वात पित्त कफ का इलाज : त्रिदोष नाशक उपाय

आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक बीमारी त्रिदोष के असंतुलन से पैदा होती है इसलिए आयुर्वेदिक उपचार में मुख्य उद्देश्य वात पित्त कफ के इलाज द्वारा दिमाग तथा शरीर को संतुलित अवस्था में वापस लाना होता है। शरीर की पूरी प्रक्रिया दिमाग द्वारा नियंत्रित होती है | यह निम्नलिखित क्रियाओं को नियंत्रित तथा नियमित करता है- भूख, नींद, जागना, पाचन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, वसा (चयापचय) मेटाबोलिज्म, प्यास, शरीर का तापमान तथा शरीर का विकास। ये सब क्रियाएँ हमारे शरीर के अंदर बिना हमारे नियंत्रण के अपने आप चलती रहती हैं इसलिए इस प्रक्रिया का चलते रहना दिमाग पर निर्भर करता है। दिमाग हमें संतुलित अवस्था में रखता है। आयुर्वेदिक दवाओं का लक्ष्य वात पित्त कफ की असंतुलित अवस्था को संतुलित करना है। इस पोस्ट में दी गई जानकारी केवल वात पित्त कफ के संतुलन से संबंधित हैं, उनकी चिकित्सा से नहीं। एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करना हमेशा सुरक्षित तथा लाभकारी होता है, जो आपको संबंधित बीमारी के लिए विस्तृत परामर्श दे।

[वात पित्त कफ का इलाज] : वात दोष उपचार  

वात पित्त कफ का इलाज : त्रिदोष नाशक उपाय vat pitt kaf ka ilaj tridosha nashak
त्रिदोष संतुलन के उपाय

वात सब दोषों का राजा है। यह सुप्रीम कमांडर है। यह पित्त तथा कफ की गतिविधियों को नियंत्रित तथा नियमित करता है। वात को संतुलित करके आप अन्य दोनों दोषों के लिए भी लाभ हासिल कर सकते हैं। बाहरी वातावरण में वात की तुलना हवा से की जा सकती है, जो बादलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर धीरे या तेजी से ले जाती है। इसी प्रकार शरीर में वात भी पित्त तथा कफ की गतिविधियों को सक्रिय तथा उत्तेजित करता है। यह मेन स्विच बोर्ड की तरह है। जैसे ही इसे ऑन किया जाता है वैसे ही पूरे शरीर की गतिविधियाँ आरंभ हो जाती हैं। यह न केवल रक्त-संचार तथा सांस के लिए, बल्कि दिमाग तथा शरीर की ऊर्जा के मूल स्तर पर कोशिकाओं के लिए भी जरूरी है।

वात को संतुलित करने का उपाय है-

  • तिल के तेल की मालिश।
  • गरम पानी से स्नान करना। पर सिर के लिए हलके गरम पानी का प्रयोग।
  • भोजन में पोषक आहार लेना
  • शारीरिक तथा मानसिक विश्राम।
  • रात में दस बजे तक अवश्य सो जाना।
  • सुबह तथा शाम छह बजे पाँच-दस मिनट ध्यान करना।
  • अपने शरीर को गरम रखें। यह वात के लिए अच्छा है, क्योंकि उसका मूल स्वभाव ठंडा है। ठंड में न निकलें और ठंडा भोजन न करें।
  • तनाव तथा दबाव से दूर रहना
  • शांत तथा मौन रहना और अपनी आदतों को नियंत्रित करना।

वात को शांत करने वाले खाद्य पदार्थ

  • नियमित रूप से तथा समय पर गरम भोजन करना चाहिए।
  • नियमित भोजन में दो बार भोजन तथा एक बार अल्पाहार लेना चाहिए।
  • दोपहर के भोजन से पहले सूखा या गीला अदरक तथा भोजन के बाद सौंफ चबाना अच्छा रहता है, जो भोजन में रुचि जगाता है और पाचन को दुरुस्त करता है।
  • वात के उपचार के लिए केवल गरम तरल पदार्थ लें, क्योंकि वे वात प्रकृति के लोगों के लिए लाभकारी होते हैं।
  • तड़क-भड़कवाले संगीत तथा शोर से परहेज करें।
  • अपने घर को प्रकाश से परिपूर्ण, साफ तथा स्वच्छ रखें।
  • वात प्रकृति के लोगों के लिए धूप अच्छी होती है, इसलिए दरवाजे-खिड़कियाँ खुली रखें। होता है। लंबी अवधि तक बाहर न रहें। आपने आपको खुशनुमा किताबो या अन्य कामो में व्यस्त रखें।
  • मादक पदार्थों से दूर रहें : शराब, चाय, कॉफी तथा धूम्रपान से दूर रहना चाहिए।
  • नेजल ड्रॉप (नसया) : सिर, गला, आँख, कान तथा नाक की सभी बीमारियों के लिए नसया उत्तम चिकित्सा है। ठंडी जलवायु में नाक शुष्क हो जाती है, इसलिए तिल के तेल की पाँच बूंदें नाक में डालनी चाहिए। इसके बाद नाक की हलकी मालिश करें। ऐसा साइनसाइटिस के मामले में नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसमें पहले से ही रूकावट रहती है। तेल कफ को गाढ़ा कर देता है, इस कारण अत्यधिक पीड़ा तथा सिरदर्द होता है।
  • यह उपचार दिन में तीन से चार बार या इससे अधिक बार किया जा सकता है। साइनस के मरीजों को यह उपचार नहीं अपनाना चाहिए। अन्य सभी प्रकार के लोगों के लिए यह उपचार उपयोगी होता है। यह दिमाग की शांत रखता है।

वात प्रधान प्रकृति का व्यक्ति निम्नलिखित चीजों से उत्तेजित हो सकता है |

  • तीखा तथा मसालेदार भोजन करने से, रात को देर से सोना, ठंडा भोजन, ठंडी जलवायु, शुष्क भोजन, भय, कम मात्रा में खाना तथा गलत समय पर भोजन।
  • इनसे वात और असंतुलित हो सकता है। गलत समय पर भोजन या बिलकुल भोजन न करना अप्राकृतिक है।
  • उचित समय पर न सोना भी प्रकृति के विरुद्ध है। रात्रि दस बजे तक जरुर सो जाना चाहिए। दस बजे के बाद पित्त का समय शुरू हो जाता है, जिससे नींद आने में कठिनाई होती है। ये सभी चीजें शरीर तथा दिमाग को असंतुलित बना देती हैं। इन अनियमितताओं की वजह से वह अपना आत्मविश्वास और याददाश्त खो सकता तथा नींद की बीमारी का शिकार भी हो सकता है।
  • वात प्रकृति का व्यक्ति अधिक लोगों के साथ नहीं रहना चाहता और शोरगुल पसंद नहीं करता। आधुनिक युग में तनाव और दबाव असंतुलन को और बढ़ा सकते हैं। आरंभिक चरणों में शरीर असंतुलित अवस्था को अस्वीकार करके उसे संतुलित करने का प्रयास करता है। वात को संतुलित करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति शांत रहे, सही समय पर सोए, समय पर तथा सही मात्रा में भोजन करे। यह प्रकृति के अनुकूल है।

[वात पित्त कफ का इलाज] : पित्त दोष उपचार 

दिमाग तथा शरीर की सभी क्रियाएँ संयमित होनी चाहिए। पित्त को ठंडे भोजन, ठंडी वायु तथा ठंडे वातावरण से संतुलित किया जाता है। पित्त दोषवाले लोग बड़े आक्रामक तथा गरम मिजाज होते हैं। तीखा, खट्टा तथा नमकीन भोजन पित्त दोष को असंतुलित कर देता है। अल्कोहल युक्त पेय भी पित्त को उतेजित करते हैं। ऐसे लोग क्रोधी, जिद्दी, झगड़ालू और अत्यंत भावुक होते हैं। पित्त को संतुलित अवस्था में रखने के लिए निम्नलिखित बातों की ध्यान में रखें

  • आराम : पित्त को संतुलित करने में आराम बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दिमाग तथा शरीर दोनों को आराम मिलना चाहिए। यह आपकी भावनाओं, बेचैनी तथा तनाव को नियंत्रित करता है। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें
  • ठंडा भोजन करें। गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए।
  • दिमाग को शांत रखने तथा किसी प्रकार की आक्रामकता से बचने के लिए ध्यान सर्वोत्तम उपाय है।
  • आराम करें और किसी भी प्रकार के तनाव से दूर रहें।
  • ठंडी चीजें पित्त को नियंत्रित करती हैं। ठंडे पानी से स्नान करना भी अच्छा रहता है।
  • जब पित्त बढ़ जाता है तो ठंडे और मीठे फलों का रस लेने की सलाह दी जाती है। किशमिश, अंगूर तथा सेब का रस लाभदायी होता है।
  • तरल पदाथों का सेवन अधिक-से-अधिक करें।
  • संभव हो तो पानी से घिरे हुए स्थान में रहें।
  • बहुत ठंडे खाद्य पदार्थ नहीं लेने चाहिए, क्योंकि वे पाचक अग्नि को शांत करते हैं।
  • पित्त को शांत करने वाला आहार लें
  • एक समय का भी भोजन न छोड़ें, क्योंकि यह अल्सर का कारण बन सकता है।
  • यदि पाचन-क्रिया तेज है तो दूध में चीनी मिलाकर पीएँ। इससे पित्त संतुलित होगा। यदि अधिक भूख और प्यास लगे तो पित्त शांत करने वाला आहार लेकर उसे संयमित रखें।
  • अत्यधिक भूख को आहार कम करके नहीं, बल्कि सब्जियाँ लेकर शांत किया जा सकता है। यह सब ‘चरक संहिता’ में वर्णित है।
  • सॉफ्ट ड्रिक्स से परहेज करें, क्योंकि ये पित्त को बढ़ाते हैं। शराब पाचक अग्नि के लिए पेट्रोल की तरह है, जो भूख को असामान्य बनाकर आँतों तथा पेट को जलाती है।
  • डबल रोटी तथा खमीर उठे पदार्थ भी पित्त प्रकृति के लोगों के लिए स्वास्थ्यकर नहीं हैं।
  • दस्त लगाने वाले पदार्थ पित्त दोष को संतुलित करने के लिए सर्वोतम होते हैं। अरंडी का तेल भी इसके लिए उत्तम है। सावधानी : पेट के अल्सर तथा आंतो के विकार वाले लोग अरंडी के तेल का प्रयोग न करें, क्योंकि यह आँतों तथा छिद्रों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • शरीर में यदि पानी की कमी महसूस हो तो कुनकुना पानी पीना उचित रहता है। इससे अगले दिन व्यक्ति हलका और ताजा महसूस करेगा। कुनकुना पानी पाचक तथा अधिक मूत्र उत्पन्न करने वाला होता है। ‘विरेचन’ के अगले दिन संतरे या सेब का रस लेना चाहिए।
  • भोजन : शुद्ध भोजन, पानी तथा वायु पित्त प्रकृति के लोगों के लिए उपयुक्त होते हैं। जंक फ़ूड से परहेज करें, क्योंकि वे चयापचय संबंधी बाधाएँ उत्पन्न करते हैं और पित्त को असंतुलित करते हैं।

वात असंतुलन के समय ध्यान देने योग्य बातें

  • धूप से बचें। आग के पास न जाएँ।
  • सुबह तथा शाम को स्वच्छ-ठंडी हवा में सैर करने से पित्त संतुलित होगा। माथे या पूरे शरीर पर चंदन का शीतल लेप पित्त को संतुलित करने के लिए अच्छा रहता है।
  • हिंसक फिल्मों, पुस्तकों, उत्तेजक टी.वी. धारावाहिकों तथा धूम्रपान से परहेज करें, क्योंकि ये सब पित्त को बढ़ाते हैं।
  • मन को शांत करने वाले संगीत सुनें। खुलकर हँसना पित्त दोष के लिए सबसे बढिया दवा है। प्रकृति तथा सौंदर्य का आनंद उठाएँ, ये भी पित्त को शांत करते हैं। यह भी पढ़ें – पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा के लाभ तथा इसे कैसे किया जाता है |

[वात पित्त कफ का इलाज] : कफ दोष उपचार

कफ दोष में व्यक्ति को सक्रिय रहना चाहिए, चाहे इसके लिए आप व्यायाम करें, पैदल चलें या अलग-अलग लोगों से मिलें या विभिन्न स्थानों की यात्रा करें, वरना कफ प्रकृति के लोगों को अधिक नींद आएगी और वे आलसी तथा निष्क्रिय हो जाएँगे। कफ प्रधान लोग अपच तथा कम भूख से पीडित होते हैं। यह ऑव (नहीं पचनेवाला विषैला पदार्थ) को प्रेरित करता है। मोटापा, सर्दी, नाक बहना, एलजीं, नाक बंद होना इत्यादि भी इसी कारण होते हैं। शहद कफ शांत करने के लिए सर्वोतम होता है। हालाँकि वह मीठा होता है, पर आयुर्वेद ने इसे उपयुक्त माना है।

सूखा मौसम या गरमी नाक में जकड़न या फेफड़ों के संकुचन के लिए अच्छी होती है। नमी वाले स्थान तथा ठंडे पानी से परहेज करें, क्योंकि कफ स्वयं ठंडा होता है। सूखी मालिश शरीर के लिए अच्छी होती है। भोजन हलका और आसानी से पचने वाला होना चाहिए क्योंकि कफ प्रधान लोग बीमारी के शिकार जल्दी हो जाते हैं।

कफ के असंतुलन को कैसे ठीक करें

निम्नलिखित बातें कफ को संतुलित करने में मददगार होती हैं

  • मीठा कम खाएँ, मीठा खाने से कफ उत्तेजित होता है तथा मोटापे, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है।
  • कफ शांत करनेवाले आहार लें। मोटापे से बचने के लिए कम खाएँ। अगर अधिक खा लिया है तो खाने के बाद सूखा अदरक या सौंफ चबाएँ, जो पाचन में मदद करते हैं। यह भो पढ़ें – जाने क्या है प्राणायाम? तथा प्राणायाम करने के लाभ
  • शुष्क भोजन, सेब, हल्दी पाउडर, कच्ची सब्जियाँ कफ प्रकृति के लोगों के लिए लाभकारी हैं। ये कफ को कम करके पाचनाग्नि को नियंत्रित करती हैं।
  • धनिया और अदरक को पानी में उबालकर हलका गरम करके पीएँ। यह कफ को शांत करता है।
  • व्यायाम कफ प्रकृति के लोगों के लिए अच्छा होता है, क्योंकि इससे आलस समाप्त होता है।
  • निष्क्रिय बैठे रहने या अधिक सोने जैसी आदतों को त्याग दें। प्रतिदिन नियमित रूप से दो से चार किलोमीटर पैदल चलें या सैर करें।
  • इस स्थिति में अकसर सिर तथा नाक में जकड़न होती है। नमक मिला गरम पानी एक नथुने द्वारा खींचकर उसे दूसरी नथुने से छोड़ना लाभदायक हो सकता है। अधिक गहरी या लंबी साँस लेने का प्रयास न करें।
  • गरम कपड़े पहनें
  • गरम और ताजा भोजन करें
  • गरम पेय पदार्थों का सेवन करें
  • यथासंभव गरम जलवायु में रहें

कफ संतुलन के लिए उबटन/मालिश

  • उद्वर्तन एक प्रकार की सूखी मालिश है, जो कफ प्रकृति के लोगों के साथ-साथ मोटापे से पीडित लोगों के लिए भी लाभदायक है। यह रक्त-संचार को दुरुस्त करती है और शरीर की त्वचा से विषैले पदार्थ हटा देती है। उद्वर्तन इस प्रकार करें :-
  • सिर से गरदन तक गोलाकार रूप में मालिश आरंभ करें। कंधे तथा कलाई में नीचे से ऊपर की ओर मालिश होनी चाहिए। कंधे, कुहनी तथा हाथ के जोड़ों में गोलाकार मालिश करें। यह भी पढ़ें – सूर्य नमस्कार करने की विधि और लाभ
  • छाती में दिल की जगह को बचाते हुए लंबवत् या नीचे से ऊपर की ओर मालिश करनी चाहिए।
  • दिन में दो से तीन बार नीचे से ऊपर की ओर पेट की मालिश करें।
  • जाँघों के ऊपरी हिस्से, जाँघों और उनके पीछे नीचे से ऊपर की ओर तथा नितंब के जोड़ पर गोलाकार मालिश करें।
  • घुटने तथा टखने के जोड़ों और पैरों की अंगुलियों में गोलाकार गति के साथ पैरों की मालिश नीचे से ऊपर की ओर करें। ऐसा प्रतिदिन पंद्रह-बीस मिनट तक करें।
  • उद्वर्तन करने के लिए रेशमी या रबर के दस्तानों का इस्तेमाल करना अधिक अच्छा रहता है।

वात पित्त कफ असंतुलन से बचने के लिए इन बातों का भी रखें ख्याल

  • दोपहर में एक से डेढ़ बजे के बीच दोपहर का भोजन अवश्य कर लेना चाहिए क्योंकि यह यह पित्त का समय होता है, जब पाचक अग्नि पर्याप्त होती है।
  • चाय या कॉफी पीना भी अच्छा नहीं है, क्योंकि ये सब चीजें पाचन तंत्र की कमजोर बना देती हैं। कॉफी में कैफीन तथा चाय में टैनिन होता है। ये दोनों शरीर को प्रभावित करके ऑत में लौह तत्व के अवशोषण में बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे एनीमिया (रक्त या लौह तत्व की कमी) हो जाती है। ये सब अच्छे स्वास्थ्य के रास्ते में बाधक हैं।
  • भोजन के बाद 10-15 मिनट आराम करना चाहिए। शांतिपूर्वक चुपचाप बैठे या थोड़ी देर टहलें। इससे पाचन में मदद मिलती है।
  • रात्रि का भोजन शाम 6 बजे से 10 बजे तक कफ का समय होता है। इसलिए भरपेट खाने की बजाय कम ही खाना चाहिए। खमीरवाले सभी खाद्य पदार्थ कफ असंतुलन में वर्जित हैं, जैसे कि खट्टी क्रीम, दही तथा पनीर, जो पाचन को कमजोर बनाते हैं। इससे अमा बनता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है|
  • सब्जियों का ताजा रस स्वास्थ्य के लिए उत्तम रहता है।
  • रात 10 बजे तक या उससे पहले सो जाना अच्छा रहता है। यह कफ का समय होता है, इसलिए नींद आसानी से आ जाती है।

यदि आप वात पित्त कफ के संतुलन और असंतुलन के चक्र को ठीक से समझ लेते है और अपनी जीवनचर्या को आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार बनाते है तो निश्चित रूप से आप रोगों से बचाव करके एक लंबी और खुशहाल जीवन पा सकते है |

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