स्त्रियों के रोगों में बैद्यनाथ अशोकारिष्ट के फायदे और औषधीय गुण

बैद्यनाथ अशोकारिष्ट बनाने में अशोक की छाल ही ज्यादा मात्रा में प्रयोग की जाती है। अशोक की कई जातियां होती हैं। इनमें एक जाति के पत्ते रामफल के समान, फूल नारंगी के रंग के होते हैं, जो बसन्त ऋतु में खिलते हैं, इसको लैटिन में “जौनेसिया अशोक” कहते हैं, और यही असली अशोक है। अशोकारिष्ट बनाने में इसी अशोक की छाल उपयोग की जाती है। अन्य जाति के अशोक की छाल द्वारा निर्मित अशोकारिष्ट गुणकारी नहीं होता है। ये अशोक का पेड़ बंगाल में बहुत मिलता है।

अशोक स्वाद में मधुर, शीतल, अस्थि को जोड़नेवाला, सुगन्धित, कसैला, शरीर की कान्ति बढ़ाने वाला, स्त्रियों के रोग दूर करने वाला, मलशोधक, पित्त, दाह, श्रम, उदररोग, शूल, विष, बवासीर, अपच और रक्त-रोगनाशक है। डॉक्टरों ने भी अशोक का रासायनिक विश्लेषण करके देखा है। इसके अन्दर का अलकोहोलिक एक्सट्रेक्ट गरम पानी के अन्दर घुलने वाला है। इसमें टेनिन की मात्रा काफी पायी गयी है इसमें लोहे की मात्रा भी काफी ज्यादा होती है | इसमें अलकेलाइड और एसेन्शियल ऑइल की मात्रा बिल्कुल नहीं पायी गयी।

वास्तव में बैद्यनाथ अशोकारिष्ट स्त्रियों से जुडी बिमारियों में अधिक कामयाब औषधि है, इसका कार्य गर्भाशय को मजबूत बनाना होता है। गर्भाशय की शिथिलता से उत्पन्न होने वाले कई रोगों में इसका उत्तम उपयोग होता है, गर्भाशय के भीतर के आवरण में विकृति, बीजवाहिनियों की विकृति, गर्भाशय के मुख पर योनि-मार्ग में या गर्भाशय के भीतर या बाहर व्रण हो जाना आदि कारणों से अत्यार्तव रोग उत्पन्न होता है। इसमें अशोकारिष्ट के उपयोग से अच्छा लाभ होता है। इसका उपयोग श्वेत प्रदर, मूत्र के साथ रक्तस्राव ,अधिक माहवारी, पेडू दर्द और स्त्रियों में महावारी से संबंधित अन्य रोगों में होता है।

कितनी ही स्त्रियों को मासिक धर्म आने पर पेट दर्द की शिकायत हो जाती है, जिसे पीड़ितातत का कष्टार्तव कहते हैं-इस रोग में मुख्यतः बीजवाहिनी और बीजाशय की विकृति कारण होती है। कितनी ही स्त्रियों को तीव्र रूप में पीड़ा होती है, कमर में भयंकर दर्द, सिर-दर्द, वमन आदि लक्षण होते हैं। इस विकार में अशोकारिष्ट उत्तम कार्य करता है।

बैद्यनाथ अशोकारिष्ट के बारे में परिचय

  • अशोकारिष्ट इन जड़ी बूटियों को मिलाकर बनाई जाती है – अशोक की छाल, गुड़, धाय के फूल, स्याह जीरा, नागरमोथा, सोंठ, दारुहल्दी, नीलोफर, हरड़, बहेड़ा, आमला, आम की मींगी, सफेद जीरा, वासक मल और सफेद चन्दन |

बैद्यनाथ अशोकारिष्ट सेवन मात्रा

  • 15 से 20 मिली बराबर पानी के साथ भोजन के बाद या चिकित्सक के परामर्श अनुसार |

बैद्यनाथ अशोकारिष्ट गुण, लाभ और उपयोग

स्त्रियों के रोगों में बैद्यनाथ अशोकारिष्ट के औषधीय फायदे baidyanath ashokarishta uses fayde ladies

  • स्त्रियों को होनेवाले प्रमुख रोग जैसे – श्वेत प्रदर, पीड़ितार्तव, पाण्डु, गर्भाशय व योनि भ्रंश, डिम्बकोष प्रदाह, हिस्टीरिया, वन्ध्यापन तथा ज्वर, रक्तपित्त, अर्श, मन्दाग्नि, सूजन, अरुचि इत्यादि रोगों को ठीक करता है।
  • श्वेत प्रदर रोग में बैद्यनाथ अशोकारिष्ट के लाभ – मद्यपान, अजीर्ण, गर्भस्राव, गर्भपात, अति मैथुन, कमजोरी में परिश्रम, चिन्ता, अधिक उपवास आदि से स्त्रियों का पित्त दूषित होकर पतला और अम्लरस प्रधान हो जाता है वह खून को भी वैसा बना डालता है। फलतः शरीर में दर्द, कटिशूल, सिर-दर्द, कब्ज तथा बेचैनी आरम्भ हो जाती है। साथ ही योनिद्वार से चिकना, लस्सेदार, सफेदी लिए चावल के धोवन जैसा रक्त गिरने लगता है। रोग पुराना हो जाने पर उसमें दुर्गन्ध निकलने लगती है और रक्तस्त्राव मज्जामिश्रित भी हो जाता है। ऐसा हो जाता है कि चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम खून जारी रहता है, कोई अच्छा कपड़ा पहनना कठिन हो जाता है। कभी कभी खून के बड़े-बड़े जमे हुए, कलेजे के समान टुकड़े गिरने लगते हैं। इस अवस्था में खाना-पीना, उठना-बैठना, सोना सब मुश्किल हो जाता है। यह हालत लगातार महीनों तक चलती है। कभी-कभी किसी उपचार या अधिक रक्ताभाव से कुछ दिन के लिए खून का निकलना बन्द भी हो जाता है। परन्तु फिर वही हालत हो जाती है। इस प्रकार तमाम शरीर का रक्त गिर जाता और शरीर बिल्कुल रक्तहीन हो जाता है। पाचन शक्ति बिल्कुल खराब हो जाती है, अतः नया रक्त भी नहीं बन पाता है। बैद्यनाथ अशोकारिष्ट इन सभी बिमारियों को दूर कर, शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए गुणकारी दवा है। इसी तरह श्वेत प्रदर में रक्त की जगह सफेद, गाढ़ा और लस्सेदार पानी गिरता है। इसकी उत्पत्ति के दो स्थान हैं-योनि की श्लैष्मिक कला तथा गर्भाशय की भीतरी दीवाल, यह रस इसी त्वचा में बनता और निकलता रहता है। योनिमार्ग से सदा सफेद, लस्सेदार पदार्थ गिरता रहता है। पहले तो गन्धरहित, फिर दुर्गन्धयुक्त नाव होने लगता है, और पीड़ा भी धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। इस रोग में भी वे सभी उपद्रव होते हैं, जो रक्त-प्रदर में होते हैं। अशोकारिष्ट का सेवन इन रोगों को दूर करने के लिए बहुत प्रसिद्ध दवा है।
  • जिन महिलाओं में हल्का बुखार होता है। मासिक धर्म बड़े कष्ट से और कम आता है, कमर, पीठ, पार्श्व आदि सभी अंगों में बहुत दर्द होता है। पेशाब भी बड़े कष्ट से उतरता है। इस रोग में सब से अधिक पीड़ा बस्ति-स्थान (पेडू) में होती है, इससे मुक्त होने के लिए बैद्यनाथ अशोकारिष्ट अवश्य सेवन करना चाहिए।
  • गर्भाशय भ्रंश या योनि भ्रंश में – मैथुन क्रिया का ज्ञान नहीं रहने के कारण या कामोन्मादवश गलत ढंग से मैथुन करने पर गर्भाशय तथा योनि दोनों अपने स्थान से हट जाते हैं। गर्भाशय तो भीतर ही टेढ़ा होकर कई प्रकार की पीड़ा का कारण बनता है और योनि बाहर निकल आती है। इसके साथ पेडू और कमर में दर्द होना, पेशाब करने में दर्द होना, श्वेत प्रदर का जोर होना तथा मासिक धर्म कम होना या बिल्कुल बन्द हो जाना आदि लक्षण होते हैं। ऐसी स्थिति में अशोकारिष्ट का तो सेवन करना चाहिए और साथ में चन्दनादि चूर्ण में त्रिवंग भस्म मिला कर सुबह-शाम दूध के साथ देने से जल्दी लाभ होता है।
  • डिम्बकोष प्रदाह -यह रोग ऋतुकाल में पुरुष के साथ संगम करने से होता है, इसमें पीठ और पेट में दर्द होना, वमन होना, रोग पुराना हो जाने पर योनि से पीब निकलना आदि लक्षण होते हैं। स्त्रियों के लिये यह रोग बहुत खतरनाक होता है। इसमें प्रातः-सायं चन्द्रप्रभाबटी 1-1 गोली तथा खाना खाने के बाद बैद्यनाथ अशोकारिष्ट बराबर पानी में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
  • हिस्टीरिया में – स्नायुसमूह की उग्रता से यह रोग पैदा होता है, रोग पैदा होने के पहले छाती में दर्द तथा शरीर और मन में ग्लानि उत्पन्न होती है, ऐसे देखने में तो यह रोग मिरगी जैसा ही प्रतीत होता है, परन्तु इसमें रोगी स्त्री के मुँह से झाग नहीं आते; कभी-कभी इस रोग से पेट के नीचे एक गोला-सा उठ कर ऊपर की ओर आ जाता है। यह रोग नवयुवतियों को तंग करने वाला है। बैद्यनाथ अशोकारिष्ट के सेवन से ये रोग दूर हो जाते हैं।
  • पाण्डुरोग (Anemia) – स्त्रियों के रक्तप्रदर आदि कारणों से रक्त की कमी होकर उनका शरीर पीले रंग का हो जाता है। इसमें शारीरिक शक्ति कम होने लगती है। आलस्य और नींद हरदम घेरे रहती है, थोड़ा भी परिश्रम करने से भ्रम (चक्कर) आने लगता है। भूख नहीं लगती। यदि कुछ खा भी लें, तो मन्दाग्नि के कारण हजम नहीं हो पाता, जिससे पेट भारी बना रहता है। यदि कम उम्र की लडकी में यह रोग हुआ तो यौवन का विकास ही रुक जाता है और स्त्री अपनी जिन्दगी से निराश रहने लग जाती है। इस रोग को ठीक करने के लिए सुबह शाम नवायस लौह और खाने के बाद बैद्यनाथ अशोकारिष्ट में समभाग लौहासव तथा बराबर पानी मिलाकर देने से जरुर लाभ होता है।
  • रक्तपित्त के लिए अशोकारिष्ट उत्तम औषध है। रक्तार्श में भी विशेष रूप से दर्द या जलन न होने पर अशोकारिष्ट के सेवन से लाभ होता है।

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