प्रोस्टेट ग्रंथि कैंसर की पहचान, कारण तथा आधुनिक उपचार

प्रोस्टेट ग्रंथि (ग्लैंड) की बीमारी में प्रजनन और पेशाब को शरीर से निकालने में मुख्य भूमिका निभाने वाली प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार में उम्र बढ़ने के साथ सामान्य तौर पर वृद्धि होती है, लेकिन यह वृद्धि मूत्र त्याग में कठिनाई समेत अनेक समस्याओं का कारण बन जाती है। इसका आरंभिक अवस्था में इलाज नहीं होने पर गुर्दे में खराबी आ सकती है। चिकित्सकीय भाषा में इस स्थिति को बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरलैसिया अथवा बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी.पी.एच.) कहा जाता है। प्रोस्टेट ग्रंथि के बढने का कारण हार्मोन परिवर्तन, अधिक वसा युक्त भोजन से, अधिक वजन से या इसके अनुवांशिक कारण भी हो सकते है |

प्रोस्टेट ग्रंथि की बीमारी के लक्षण, पहचान

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प्रोस्टेट ग्रंथि कैंसर
  • आम तौर पर 45 वर्ष की उम्र से पहले बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी.पी.एच) के कोई लक्षण नहीं प्रकट होते हैं, लेकिन 60 साल की उम्र के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को तथा 70 एवं 80 साल के 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी.पी.एच.) के कोई-न-कोई लक्षण दिखने लगते हैं।
  • पेशाब आरम्भ करना मुश्किल होता है।
  • मूत्र का प्रवाह कमजोर हो जाता है। पेशाब करते वक्त जलन का अनुभव होना |
  • मूत्र रुक-रुक कर आना और कई बार पेशाब के साथ रक्त भी आ सकता है ।
  • मूत्र का बार-बार आना, खासकर रात में |
  • मूत्राशय पूरी तरह खाली ना होना।
  • पेशाब रोकने की क्षमतामें कमी आना या यह क्षमता बिलकुल समाप्त होना |
  • पौरुष (प्रोस्टेट) ग्रंथि के आकार में बढ़ोतरी होने पर इसके चारों ओर के टिशूज की परत इसे फैलने से रोकती है। इससे प्रोस्टेट ग्रंथि का मूत्रमार्ग (यूरेथ्रा) पर दबाव पड़ता है।
  • कुछ लोगों को प्रोस्टेट ग्रंथि में कम वृद्धि होने के बावजूद भी अधिक परेशानी होती है। कुछ लोगों को इस समस्या का आभास अचानक उस समय होता है, जब वे मूत्र त्याग करने में पूरी तरह असमर्थ हो जाते हैं। यह स्थिति एलर्जी अथवा ठंड से बचाव की दवा लेने पर और तेज हो जाती है।

प्रोस्टेट ग्रंथि की बीमारी की जाँच

  • प्रोस्टेट ग्रंथि की जाँच के लिए डिजिटल रेक्टल परीक्षण किया जाता है। इससे चिकित्सक को प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार की सामान्य जानकारी मिल जाती है। इसकी अधिक पुष्टि के लिए प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन रक्त परीक्षण किया जाता है। इस परीक्षण से इस बात का भी पता चल जाता है कि मरीज की प्रोस्टेट ग्रंथि में कैंसर है या नहीं।
  • प्रोस्टेट ग्रंथि में बढ़ोतरी के कारण मरीज पूरा मूत्र नहीं निकाल पाता और मूत्राशय में ही कुछ मूत्र रह जाता है, जिसके जल्दी संक्रमित हो जाने का खतरा रहता है।
  • मसाने में बचे मूत्र के संक्रमित हो जाने का असर गुर्दे पर पड़ता है। ऐसी अवस्था में मरीज का ऑपरेशन के जरिए जल्द-से-जल्द इलाज किया जाना आवश्यक होता है। मसाने में बचे मूत्र का गुर्दे पर दबाव पड़ता है, जिससे गुर्दे फूलने लगते हैं और इलाज नहीं होने पर कुछ समय बाद गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं।

प्रोस्टेट ग्रंथि के आधुनिक उपचार

  • एक समय प्रोस्टेट ग्रंथि की इस समस्या को दूर करने के लिए ऑपरेशन का सहारा लेना पड़ता था, जिसमें काफी चीर-फाड़ करनी पड़ती थी, लेकिन अब टी.यू.आर-पी (ट्रांस यूरेथ्रल रिसेक्शन ऑफ प्रोस्टेट) नामक तकनीक की मदद से यह ऑपरेशन होने लगा है, जिसमें मूत्र नली के जरिए उपकरण डालकर बिजली की मदद से प्रोस्टेट ग्रंथि को काटकर बाहर निकाल दिया जाता है। इसके अलावा आजकल ट्रांस यूरेथ्रल इंसिजन ऑफ द प्रोस्टेट (टी.यू.आई.पी.) नामक सर्जरी का भी इस्तेमाल होता है, लेकिन ये दोनों तकनीकें भी साइड इफेक्ट्स वाले हैं और इसकी अपनी सीमाएँ हैं। यह भी जरुर पढ़ें – प्रोस्टेट की बीमारी में क्या खाएं तथा क्या ना खाएं
  • आजकल मरीज को लेजर आधारित तकनीक की मदद से प्रोस्टेट की समस्या से छुटकारा दिलाना संभव हो गया है। इस तकनीक में होलमियम लेजर का इस्तेमाल होता है। लेजर मशीन से ऑपरेशन करने पर रक्त की हानि नहीं के बराबर होती है, रोगी को बहुत कम दर्द होता है और उसे एक या दो दिन अस्पताल में रहने की जरूरत पड़ती है।
  • प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्याओं के इलाज के लिए लेजर तकनीक के अलावा रेडियो तरंगों का भी इस्तेमाल होने लगा है। आजकल इन समस्याओं के इलाज के लिए रोटो रिसेक्शन नामक अत्याधुनिक तकनीक का विकास हुआ है।

प्रोस्टेट ग्रंथि कैंसर जैसी बिमारियों से बचने के लिए इन चीजो से परहेज रखे  

  • भोजन में अत्यधिक वसा का सेवन करनेवालों में स्तन, ग्रीवा, बड़ी आँत, प्रोस्टेट ग्रंथि के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। असंतृप्त वसा (प्यूफा) के सेवन से हृदय रोगों से बचाव होता है, पर भोजन में केवल प्यूफा वसा सेवन से भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड शरीर का कैंसर से बचाव करता है। यह मछलियों, सोयाबीन तथा अखरोट में पाया जाता है।
  • भोजन में घी-तेल कम मात्रा में सेवन करना चाहिए। दूध मलाई या क्रीम निकालकर या स्कीम्ड दूध और इसी दूध से बने दुग्ध पदार्थों का सेवन करें। भोजन को कम-से-कम घी-तेल में पकाएँ। मांसाहारी के लिए गोश्त (रेड मीट) के स्थान पर चिकन, मछली (व्हाइट मीट) ठीक रहता है। गोश्त पकाने से पूर्व इसकी चरबी हटा दें।
  • यह भी पता चला है कि घी तेल को अत्यधिक गरम करने से या एक ही तेल को बार-बार गरम करने से इसमें हानिकारक कैंसर कारक तत्त्व बन जाते हैं, अत: घी-तेल को अत्यधिक तेज आँच पर गरम न करें। एक बार गरम घी-तेल को पुन: उपयोग में न लाएँ।
  • चिकित्सा विज्ञानियों ने पाया है कि शाकाहारियों में मांसाहारियों की तुलना में कैंसरग्रस्त होने की संभावना कम होती है, साथ ही मोटे व्यक्तियों में स्तन, पित्ताशय, अंडाशय, गर्भाशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि इत्यादि के कैंसर की संभावना ज्यादा होती है। भोजन में कैलोरी की मात्रा नियंत्रित करने से, वजन सामान्य होने से कुछ कैंसर के अतिरिक्त मोटापे के कारण होनेवाले अन्य रोगों जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय धमनी रोग (एंजाइना, हार्टअटैक), मधुमेह इत्यादि से बचाव भी होता है।
  • रेशों (डायटरी फाइबर) का आँतों में पाचन और अवशोषण नहीं होता, पर पर्याप्त मात्रा में भोजन में इनकी मौजूदगी से आँतों एवं कुछ अन्य कैंसर से बचाव होता है। पर्याप्त मात्रा में देशों के सेवन से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हदय धमनी रोगों से भी बचाव होता है।

सवाल : प्रोस्टेट ग्लैंड के लिए किया जाने वाला पीएसए टैस्ट कितना विश्वसनीय है?

जवाब : पीएसए टैस्ट रक्त में प्रोस्टेट स्पेसिफिक ऍटिजन की मात्रा को मापता है। प्रोस्टेट कैंसर होने पर यह मात्रा बढ़ जाती है। लेकिन यह वृद्धि प्रोस्टेट में सूजन आने, यूटीआई होने, गुदा जांच करवाने, प्रोस्टेट बॉयप्सी होने के बाद जांच करवाने पर भी दिख सकती है। सामान्य वीर्य विसर्जन (मैथुन) के 48 घंटों बाद तक नमूना देने पर भी पीएसए बढ़ा हुआ हो सकता है। सिर्फ एक-तिहाई मामलों में पीएसए प्रोस्टेट कैंसर के कारण बढ़ा होता है।

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