जानिए एंटीबायोटिक दवाएं क्या है और इनके अंधाधुंध सेवन के साइड इफेक्ट्स

दवाओं को दर्द दूर करने तथा रोगों के उपचार के लिए बनाया जाता है, लेकिन आजकल दवा ही दर्द का कारण बन गई है। इसकी एक मिसाल है एंटीबायोटिक दवाइयाँ, जिनके अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से बहुत सारे साइड इफेक्ट्स ने जन्म ले लिया है। ये दवाइयाँ अंधाधुंध इस्तेमाल करने के कारण न केवल बेअसर हो रही हैं, बल्कि साइड इफेक्ट्स भी पैदा कर रही हैं।

एंटीबायोटिक दवाएं क्या है ?

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एंटीबायोटिक ले पर जरा संभलकर

एंटीबायोटिक्स को एंटीबैक्टिरियल भी कहा जाता है। जब शरीर में मौजूद सफेद सेल्स बीमारी के जीवाणु को खत्म नहीं कर पाते तब एंटीबायोटिक्स के जरिये प्रतिरोधी जीवाणु दवा के जरिये शरीर में भेजे जाते है ये दवाएं मुख्यतः इंफैक्शन्स पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए दी जाती है ।

एंटीबायोटिक दवाएं का बेवजह इस्तमाल के कारण

  • जीवाणुओं (बैक्टीरिया) से होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिलाने वाली एंटीबायोटिक दवाइयों का बिना डॉक्टरी सलाह या बेवजह इस्तेमाल पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर हो रहा है, लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया में और खास तौर पर भारत में इन दवाइयों के बहुत अधिक इस्तेमाल के कारण स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का जन्म होने लगा है |
  • इसका मुख्य कारण शायद ऐसे देशो की जनता की कमजोर आर्थिक हालत तथा लोगो में स्वस्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी हो सकता है।

एंटीबायोटिक के साइड इफेक्ट्स

  • एंटीबायोटिक दवाइयों के अधिक इस्तेमाल से मुँह में छाले, दस्त, पीलिया, एलर्जी और पूरे शरीर में खुजली जैसी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। एंटीबायोटिक के लगातार इस्तेमाल से होने वाली समस्या सूडोमैम्ब्रेनस कोलाइटिस भी कहलाती है।
  • एंटीबायोटिक के बहुत अधिक इस्तेमाल से ‘ड्रग फीवर’ भी हो सकता है। चिकित्सकों के पास ऐसे मरीज आते हैं, जिन्होंने पहले से ही एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन किया होता है, लेकिन यह देखा गया है कि जब ये मरीज एंटीबायोटिक दवाइयाँ बंद कर देते हैं तो उनकी बीमारी दूर हो जाती है। करीब 30 से 40 प्रतिशत मरीज एंटीबायोटिक दवाइयाँ बंद करने पर ही ठीक हो जाते हैं। शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि डायरिया के लिए दिए जाने वाले एंटीबायोटिक से पेट में शुगर की वृद्धि होने के कारण हानिकारक जीवाणुओं के पनपने का खतरा रहता है जो संक्रमण का कारण होता है. कई मामलों में एंटीबायोटिक के प्रयोग से गुर्दे की पथरी, रक्त के थक्के,सूर्य प्रकाश से संवेदनशीलता और रक्त विकार जैसे बीमारियों के पनपने का खतरा रहता है |
  • आजकल लोग हर किसी तकलीफ में चिकित्सक से सलाह किए बगैर अपने आप ही या किसी केमिस्ट से पूछकर एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करने लगते हैं। इससे जीवाणुओं में इन दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और ये एंटीबायोटिक दवाइयाँ बेअसर हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त चिकन मीट और मटन का व्यापार करने वाले व्यापारी भी एंटिबायोटिक्स का प्रयोग जानवरों का आकार बड़ा करने के लिए करते हैं | यही एंटिबायोटिक्स मीट के साथ हमारे शरीर में भी पहुंचते हैं भोजन में मौजूद एंटीबायोटिक और अधिक दवाओं का सेवन हमारे लिए खतरे को दोगुनी रफ्तार से बढ़ाता है |
  • कई मरीज तो तीन-चार एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन एक साथ करते हैं। यही नहीं, कई चिकित्सक वायरल (विषाणुओं से होने वाली) एवं फंगल (फंगस से होने वाली) बीमारियों में भी मरीज को एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करने की सलाह देते हैं, जबकि इन बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाइयों की कोई भूमिका नहीं हैं। हालाँकि वो अलग विषय है की किसी दवा निर्माता की दवाओ को बेचने के लिए विवशतापूर्वक एंटीबायोटिक दवा खाने की सलाह दे दी जाये |
  • आम तौर पर वायरल बुखार पौष्टिक आहार एवं आराम करने पर अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन आजकल लोगों की जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई है कि वे चाहते हैं कि दवाइयाँ खाकर जल्दी से काम-काज कर सकें। कई मरीज डॉक्टर से खुद ही एंटीबायोटिक दवाइयाँ लिखने को कहते हैं। कई मरीजों को यह गलत फहमी है कि उन्हें अधिक शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाइयाँ जल्दी फायदा करेगी, लेकिन दरअसल कोई दवाई ज्यादा या कम शक्तिशाली नहीं होती है।
  • एंटीबायोटिक दवाइयों के जरूरत के अनुसार ठीक इस्तेमाल से ही मरीज को कोई लाभ होता है, नहीं तो मरीज को नुकसान ही होता है।

एंटीबायोटिक दवा लेते समय इन बातों का रखे ख्याल 

  • कई लोगों की यह धारणा होती है कि एंटीबायोटिक दवा नुकसानदायक एवं दुष्प्रभाव पैदा करने वाली ही होती हैं, इसलिए वे जरूरी होने पर भी इन दवाइयों के सेवन से बचते हैं, लेकिन उन्हें यह जानना चाहिए कि जरूरी होने पर इन दवाइयों के सेवन से कतराना नहीं चाहिए, नहीं तो संक्रमण जानलेवा भी हो सकता है। जीवाणु संक्रमण होने पर और एंटीबायोटिक दवाइयाँ नहीं लेने पर संक्रमण पूरे शरीर में फैलकर सेप्टीसिमिया का रूप ले सकता है। अगर सेप्टीसिमिया पूरे शरीर में फैल जाए तो गुर्दे एवं अन्य महत्त्वपूर्ण अंग खराब हो सकते हैं।
  • दरअसल संक्रमण तभी होता है, जब जीवाणु शरीर की रोग प्रतिरक्षण प्रणाली को पराजित कर देते हैं। ऐसे में जीवाणुओं को मारने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन आवश्यक होता है।
  • अकसर यह देखा जाता है कि कई डॉक्टर मरीज को एंटीबायोटिक दवाई की कम खुराक लेने की सलाह देते हैं, लेकिन कई बार इनसे कोई लाभ नहीं होता है। दरअसल दवाई की खुराक मरीज की उम्र एवं शारीरिक वजन के हिसाब से दी जानी चाहिए। कम खुराक में दवाई लेने पर जीवाणुओं में दवाई के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इसके अलावा एंटीबायोटिक दवाई जितने दिन लेने को कहा जाए उतने दिन ही लेनी चाहिए। आम तौर पर सात दिन तक एंटीबायोटिक दवाई लेनी चाहिए। हालाँकि गैस्ट्रोइंटेराइटिस जैसी बीमारियों में तीन से पाँच दिन तक भी एंटीबायोटिक दवाई ली जा सकती है, जबकि टायफाइड और निमोनिया जैसी बीमारियों में दो हफ्ते तक एंटीबायोटिक दवाई चलती है।
  • अकसर यह भी देखा जाता है कि मरीज ठीक होते ही एंटीबायोटिक दवाई अपने आप बंद कर देते हैं, लेकिन ऐसी स्थिति में यह एंटीबायोटिक दवाई बेअसर हो जाती है और यही संक्रमण दोबारा हो जाता है तथा उसे ठीक होने में ज्यादा समय लगता है। आजकल जीवाणुओं में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस विकसित हो गया है अर्थात् जीवाणुओं में कई-कई दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। आम तौर पर टी बी की दवाई पर रोजाना 25 से 30 रुपये का खर्च आता है, लेकिन मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस विकसित हो जाने पर मरीज को एंटीबायोटिक दवाइयों पर रोजाना 300 से 500 रुपये खर्च करना पड़ता है। यही नहीं, सामान्य स्थिति में टीबी की दवाई एक साल तक लेनी पड़ती है, जबकि मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस विकसित हो जाने पर डेढ़ से दो साल तक दवाई लेनी पड़ती है।
  • एंटीबायोटिक देने से पहले मरीज के रक्त के नमूने का कल्चर करके देखा जाए कि उसे किस किस्म का बैक्टीरियल संक्रमण है तथा उस मौसम में कौन से जीवाणु ज्यादा सक्रिय हैं। आजकल कुछ ऐसी एंटीबायोटिक दवाइयाँ विकसित हुई हैं, जिन्हें कम ही बार लेने की जरूरत पड़ती है। मिसाल के तौर पर, गले के निमोनिया के लिए विकसित एजोब्रोमाइसिन की 500 मिलीग्राम की गोली केवल नाश्ते के समय लेनी होती है। यह दवाई परंपरागत एंटीबायोटिक दवाइयों की तुलना में सुरक्षित एवं हानिरहित है।
  • आजकल ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो बीमारी को जड़ से खत्म करने में अपना ध्यान नहीं रखते और तुरंत आराम पाने के लिए एक गोली ले लेते हैं। आधुनिक दवाइयों से उनकी उम्मीदे बहुत ज्यादा होती हैं और वे उनका बहुत अधिक इस्तेमाल करते हैं। मानसिक समस्याओ जैसे नींद की कमी, डिप्रेशन और नजरिया बदलनेवाली नशीली दवाओं के मामलों में तो यह खासतौर पर सही बात है। लोगो की सोच अब यह होती जा रही है कि दिन में तीन गोलियाँ खाना आसान है—एक सुबह चुस्ती-फुरती दिलाने के लिए, दोपहर में आराम के लिए एक और एक रात में नींद की गोली, असली समस्या के समाधान के लिए वे कुछ नहीं करना चाहते, कई लोग तो अपने आप ही दवाएँ ले लेते हैं और भूल जाते हैं कि सबसे पहला उपचार तो डॉक्टर को दिखाना ही होता है।
  • किसी भी मरीज को चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और न ही अपनी सारी समस्याओं के समाधान डॉक्टर पर छोड़ देने चाहिए। इलाज के लिए दोनों का कारगर जुड़ाव जरूरी है |
  • डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय रोग, कैंसर, मानसिक बीमारी, इनमें से अधिकतर बीमारियाँ शरीर के साथ शराब, तंबाकू, तनाव, गलत खानपान या व्यायाम की कमी जैसी गलतियों के कारण होती हैं।
  • याद रखें जितनी ज्यादा दवा आप खाएँगे, शरीर के अंदर उस दवा के लिए उतनी ही ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाएगी। कई बार लोग बुखार उतारने या दर्द कम करने के लिए एंटीबायोटिक गोलियाँ खा लेते हैं और इस बात को नहीं समझते कि ये गोलियाँ लक्षणों को बदल सकती हैं और जब डॉक्टर देखेगा तो वह रोग की सही पहचान करने में चूक कर सकता है।
  • ध्यान रखिए, हर दवा अलग होती है और किसी एक मरीज पर कामयाब रही दवा, हर मरीज के लिए भी कामयाब हो, यह जरूरी नहीं है

आज आपने यह अच्छी तरह से समझ लिया होगा की कैसे एंटीबायोटिक दवा दर्द भी बन सकती है | हमारा सुझाव यह है की छोटे मोटे रोगों में जैसे सर्दी-जुकाम, बुखार, पेट दर्द या अन्य कई सारे रोगों में आप घरेलू या आयुर्वेदिक नुस्खो का प्रयोग करके भी उनको ठीक कर सकते हैं | हाँ, यह बात सही है की घरेलू नुस्खे बीमारी से छुटकारा दिलाने में अधिक समय लगते है पर याद रखें, इस छोटी से तकलीफ के बदले आपको दो मुख्य लाभ मिलेंगे एक तो आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी और दूसरा आप दवाओं के साइड इफेक्ट्स से भी बचे रहेंगे | आधुनिक चिकित्सा की दवा और अन्य किसी भी पुरानी परम्परागत चिकित्सीय प्रणाली में एक बड़ा बुनियादी फर्क यह होता है की | परम्परागत चिकित्सीय प्रणाली जिस भी रसायन को बीमारी के इलाज में उचित समझा जाता है उसको प्राकृतिक रूप में ही रोगी के शरीर में पहुँचाया जाता है “एक्सट्रेक्ट” करके नहीं  इससे शरीर को उसे पचाने में समस्या नहीं होती है और कुछ विशेष मामलो को छोड़ दिया जाए तो शरीर पर इनके कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते है |

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