जानिए गर्भवती महिला के लिए संतुलित भोजन कैसा होना चाहिए

गर्भावस्था में गर्भस्थ शिशु के शरीर निर्माण के लिए ज्यादा पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है। गर्भवती महिला को संतुलित पौष्टिक आहार की जरूरत होती है। उनके आहार में प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स शामिल होना चाहिए। गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में आयरन, फोलिक एसिड की एक गोली रोज लेना जरूरी है। इसकी कमी से नवजात शिशु में कटे तालू और कटे होंठों की समस्या पैदा हो जाती है। दाल, चावल, सब्जियाँ, रोटी और फलों को रोज़ के आहार में शामिल करें।

सुबह-शाम दूध पीना न भूलें । गर्भस्थ शिशु का शरीर जब बढ़ रहा होता है तब वह अपनी सभी जरूरतें माता के शरीर से लेकर पूरी करता है। फोलिक एसिड को फोलेट भी कहते हैं। यह कई तरह के आहार में विटामिन बी के रूप में विद्यमान होता है। चूंकि आहार से गर्भवती महिला की लौह तत्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती, इसलिए आयरन, और फोलिक एसिड की गोलियाँ खाना जरूरी है।

सामान्य महिला को जहाँ रोजाना 2100 कैलोरी चाहिए, वहीं गर्भवती महिला को 2500 कैलोरी की जरूरत होती है। स्तनपान कराने वाली महिला को 3000 कैलोरी प्रतिदिन चाहिए। 10 प्रतिशत कैलोरी प्रोटीन से तथा 35 प्रतिशत कैलोरी वसा यानी तेल, घी और मक्खन से तथा 55 प्रतिशत कैलोरी कार्बोहाइड्रेट से आना चाहिए।

गर्भवती महिलाओं की सामान्य शंकाए, जो अक्सर सुनने में आती है, वे हैं :-

मैं अपने दूसरे माह में हूं तथा मेरा वज़न नहीं बढ़ रहा है। मुझे क्या करना चाहिए? मुझे खाने की तरफ देखने की भी इच्छा नहीं होती। यह अजीब है : मुझे ‘xyz खाना कभी अच्छा नहीं लगता था परन्तु अब उसके बगैर काम नहीं चलता। मेरा परिवार सोचता है कि मैं पर्याप्त खाना नहीं खा रही हूँ। क्या मुझे कोई अन्य पूरक सामग्री ग्रहण करनी चाहिए? मुझे कितना खाना चाहिए? मुझे कौन सी चीज़ नहीं खानी चाहिए? इत्यादि |  इन सब शंकाओ को हम एक-एक करके लेते हैं।

गर्भवती महिला की शुरुवाती गर्भावस्था के दौरान भूख और वज़न

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गर्भावस्था में आदर्श आहार

गर्भावस्था की शुरुवात के पहले तीन महीने हॉर्मोन के ज्यादा प्रवाह से सम्बन्धित होते हैं जो गर्भावस्था को बनाए रखने में सहायक होते हैं। हॉर्मोन के इस प्रवाह से आपको शुरुवाती कुछ महीनों में थकावट का अनुभव होता है और आप की ऊर्जा कम हो जाती है। जिस समय आपका परिवार आपको स्वादिष्ट तथा पौष्टिक भोजन देने के लिये उतावला होता है, उस समय आपकी भूख काफी कम हो जाती है तथा आपको जी मिचलाने तथा उलटी करने का अनुभव होता है। इससे स्वाभाविक रूप से, आपका वज़न कम होगा।

ये सब लक्षण शुरू के तीन महीनो के बाद गायब हो जाते हैं। इस समय तक प्लासेंटा या गर्भनाल विकसित हो जाता है तथा यह गर्भावस्था को बनाये रखने में भी सहायक होता है। आपके हॉर्मोन का स्तर नीचे गिरता है, आपकी भूख लौट आती है तथा ऊर्जा स्तर गर्भावस्था से पहले स्थिति में पहुंच जाता है।

गर्भवती महिला को शुरू-शुरू में जी मिचलाने तथा उलटी से कैसे निपटना चाहिए

गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान जी मिचलाने तथा उलटी की शिकायत खासतौर से रहती हैं, खासकर पहली तिमाही में, हालाँकि इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता, परंतु कुछ जानकारी के साथ उनका सामना बेहतर ढंग से किया जा सकता है जैसे :-

  • सुबह उठने के बाद ब्रश करने के पहले आप सूखे एवं फीके बिस्कुट जैसे कि क्रीम क्रैकर, मैरी गोल्ड अथवा कोई ग्लूकोज बिस्कुट अथवा खाखरा खायें।
  • दिन में थोड़ी मात्रा में बार-बार भोजन करें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार खायें
  • साधारणतः महिलायें फीके एवं कम महक वाले भोजन को आसानी से सहन कर सकती हैं। चाय, कॉफी, मछली जैसे खाद्य पदार्थ, जिनकी सुगंध पहले आपको अच्छी लगती थी, अब अचानक अच्छी नहीं लगेगी इसलिए जब तक वे पुनः आपको अच्छी लगना शुरू न हों, उनसे दूर रहना ही बेहतर होगा। इन्हें जबरदस्ती खाने की कोशिश ना करें |
  • कभी-कभी डॉक्टर आपको डॉक्सीलामाइन जैसी दवायें खाने का सुझाव देंगे। इन गोलियों की मात्रा को महिला की आवश्यकता के हिसाब से दिया जाता है। कुछ महिलाओं के लिए रात में सोते समय केवल एक गोली का सेवन ही काफी होता है जबकि अन्य को दिनभर कई खुराक देनी पड़ सकती हैं।
  • कम कैलोरी ग्रहण करने के कारण गर्भावस्था की शुरुवात में कुछ महिलाओं का वज़न कम होता है परन्तु यह पूरी तरह से सामान्य बात है। जैसे ही जी मिचलाना तथा थकावट ठीक हो जाती है, भूख फिर से लगने लगती है तथा गर्भवती महिला का वज़न बढ़ने लगता है।

गर्भवती महिला के भोजन में कैलोरी कितनी होनी चाहिए  

  • अधिक कैलोरी खाने पीने की मीठी चीजो में होती है खासकर चीनी में |
  • यह सामान्य धारणा है कि गर्भवती महिला को दो व्यक्तियों के लिये भोजन करना चाहिये पर यह बात सही नही हैं। हालाँकि गर्भवती स्त्री को अपने भोजन की मात्रा को बढ़ाना चाहिये, पर ज्यादा कैलोरी यानि उर्जा का दोगुना सेवन नहीं करना । सामान्य तौर से जो महिला गर्भवती नहीं है उसकी औसत आवश्यकता 2200 कैलोरी तथा 50 ग्राम प्रोटीन (1 ग्रा./ कि.ग्रा.) प्रतिदिन होती है। गर्भवती महिला को लगभग 300 कैलोरी तथा 10 ग्राम प्रोटीन की अतिरिक्त आवश्यकता होती है। इसलिये गर्भवती महिला को 2500 कैलोरी वाला आहार प्रतिदिन खाने की सलाह दी जाती है।
  • यदि एक गर्भवती महिला की आहार तालिका को देखें, तो साफ़ है कि यह महज 3 रोटी प्रतिदिन अथवा 01 कटोरी ऊसल (मटकी फली अथवा मूंग की दाल से बनाई गई डिश) अथवा 02 कप दूध है।
  • शायद प्रकृति ने महिला द्वारा ली गई कैलोरी को कम करने के लिये ही सुबह की उलटी की बीमारी (Morning Sickness) जैसा उपयुक्त तरीका बनाया है।
  • डिलीवरी के बाद दूध बढ़ाने में सहायक लड्डू आदि खाना बहुत अच्छा लगता है, बेहतर यही होगा कि इन सामग्रियों को सीमित मात्रा में ही खाया जाये क्योंकि आपके द्वारा अतिरिक्त रूप से ग्रहण की गयी कैलोरी को बाद में हजम करना ही पड़ता है, विशेषकर यदि आप गर्भावस्था पूर्व आकार तथा माप में वापस आना चाहती हों।
  • प्रोटीन आहार की सही मात्रा 1 ग्राम प्रति कि.ग्रा. है तथा गर्भावस्था के लिये 10 ग्राम अतिरिक्त है यानि 50 किग्रा. वज़न की महिला को प्रति दिन 60 ग्राम प्रोटीन का उपभोग करना चाहिये। गर्भवती महिला को ऐसा सन्तुलित आहार खाना चाहिये जिसमें आयरन, कैल्शियम तथा रेशे अधिक मात्रा में हों ।

गर्भवती महिला का आदर्श स्वास्थ्यवर्धक आहार

  • स्वास्थ्यवर्धक आहार क्या है? – एक स्वास्थ्यवर्धक आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का सन्तुलन होता है तथा अच्छी मात्रा में तरल पदार्थ भी होते हैं (स्वच्छ और सादा पानी भी काफी है) ताजे फल तथा सलाद विटामिन, मिनरल तथा फायबर के अच्छे स्त्रोत होते हैं तथा 5-6 बार प्रतिदिन खाना चाहिये। यह कहने की बात नहीं है कि आपको यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सब्ज़ियाँ तथा फल ताजे हों तथा खाने से पहले उन्हें अच्छी तरह से धोना चाहियें नहीं तो कई संक्रमण अन्दर जा सकते हैं जो फ़ूड पोइजनिंग जैसी बीमारी का कारण बनते है ।
  • गर्भवती महिला को अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है तथा शाकाहारी लोग इसकी पूर्ति दूध तथा दूध से बने उत्पादों, फलियों तथा दालों, मेवे तथा सोयाबीन को बढ़ाकर कर सकते हैं। दूध सामान्यतः कम वसा वाला बिना मलाई वाला होना चाहिये। सभी तरह के माँस प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत होते हैं तथा दिन भर में एक अण्डा आपको 07 ग्राम प्रोटीन तथा 70 कैलोरी देता है। बेहतर यह होगा कि अधपके माँस के सेवन से बचा जाये क्योंकि इसमें जीवाणु होते हैं जो गर्भवती महिला के लिये ख़तरनाक हो सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति गर्भावस्था के दौरान टोक्सोप्लाज्मा संक्रमण के प्रति चिन्तित रहता है और इसकी रोकथाम का सबसे अच्छा उपाय यह है की माँस पूरी तरह से पका हुआ हो, बगैर पकी हुई सब्ज़ियों को अच्छी तरह से धोया गया हो तथा पालतू जानवर जैसे की कुत्ते बिल्लियों को गर्भवती महिला से दूर रखा जाये।
  • भोजन को अनसैचुरेटेड फैट में पकाया जाना चाहिये। पकाने का सही तरीका यह है कि खाना पकाने के तेल के प्रकार को कुछ-कुछ दिनों में बदल दिया जाये। शरीर को वसा की हर रोज जरुरत होती है पर सीमित मात्रा में नहीं तो बाद में उच्च कोलेस्ट्रॉल तथा मोटापा आपको घेर लेगा |
  • गर्भवती महिला के खाने में आयरन की 03 मि.ग्रा. मात्रा होनी चाहिए इसके लिए 30 मि.ग्रा. आयरन वाले फल सब्जियां खानी चाहिए, आयरन के अच्छे स्त्रोतों में हरी पत्तेदार सब्जियाँ, गुड़, खजूर, सूखे मेवे तथा लाल माँस (विशेष रूप से लीवर तथा स्पलीन) आदि हैं। लोहे के बर्तनो में पकाने का परम्परागत तरीका भी फायदेमंद होता है। हमारे देश में महिलाओ में आयरन की कमी सामान्य रूप से पायी जाती है। जिसके फलस्वरूप महिलाओं को आयरन की गोलियां दी जाती है। इन गोलियों को खाना खाने से ठीक पहले दिया जाता है।
  • नींबू के रस जैसे अम्लीय तत्व अवशोषण में सहायक होते हैं जबकि फाइटेट्स तथा फॉस्फेट इस प्रक्रिया को धीमा करते हैं। इसलिये आरयन को कैल्शियम की गोलियों अथवा चाय तथा कॉफी के साथ लेना अच्छा नहीं होता है। आयरन मिश्रित पदार्थों के सेवन से मल का रंग काला दिखने लगता है तथा कभी-कभी कुछ महिलाओं को दस्त भी लग सकते हैं जबकि कुछ महिलाओं को कब्ज़ की शिकायत हो सकती है। ऐसे में आयरन निर्मित खाद्य पदार्थों को कम खाना ही ठीक रहता है।
  • एक गर्भवती महिला को प्रतिदिन 1000 मि.ग्रा. कैल्शियम की आवश्यकता होती है, जो उसे दूध तथा दूध उत्पादों से मिल सकता है। प्रसव के समय पर आयरन तथा कैल्शियम दोनों की आवश्यकता बढ़ जाती है तथा स्तनपान कराने के समय तक तथा स्तनपान बन्द करने के एक माह तक बाद महिलाओं को आयरन तथा कैल्शियम पूरक का सेवन जारी रखना चाहिये ताकि शरीर में आयरन की कमी को पूरी कर सकें।

गर्भवती महिला के लिए क्या पूरक भोजन ज़रूरी हैं?

  • एक स्वस्थ गर्भवती स्त्री को किसी पूरक सामग्री के सेवन की आवश्यकता नहीं होती है। इनको सेवन करने का परामर्श उन महिलाओं को दिया जाता है जो कुपोषित अथवा बीमार हैं। जिन महिलाओं में गर्भाशय विकास ना होने की समस्या है तथा शिशु का विकास ठीक तरह से नहीं हो रहा है, उन ज्यादातर महिलाओं को सभी प्रकार की पूरक सामग्रियाँ खाने की सलाह दी जाती हैं। इन पूरक सामग्रियों का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं हैं, परंतु उनके कारण स्त्री के चमत्कारिक रूप से विकास होने की सम्भावना भी कम ही होती है।

गर्भवती महिला को किस तरह के भोजन से बचना चाहिए

  • गर्भवती महिला को खाने पीने की कुछ चीजो से जरुर बचना चाहिए खासकर कच्चे तथा आधे पके हुए भोजन से क्योंकि अधपके भोजन में साल्मोनेला, टोक्सोप्लाज़्मा अथवा लिस्टेरिया जैसे संदूषक और जीवाणु हो सकते हैं जो माता, शिशु अथवा दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। साल्मोनेला ऑत को संक्रमित कर सकता है जिससे गर्भवती महिला को टायफ़ाइड तथा डायरिया हो सकता है। टोक्सोप्लास्मा गोन्डी एक परजीवी होता है जो बिल्लियों में पाया जाता है। तथा कच्चे अथवा अधपके माँस अथवा सलाद जैसी बगैर धुली सब्ज़ियों के सेवन से शरीर में आ जाता है। टोक्सोप्लाज्मोसिस शिशु को प्रभावित कर सकता है जिससे उसका विकास प्रभावित हो सकता है तथा यह शिशु के दिमाग तथा विकास को बाधित कर सकता है। लिस्टेरियोसिस गर्भाशय के अन्दर का संक्रमण होता है जो गर्भ गिरने का कारण बन सकता है।

गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को निम्नलिखित वस्तुओं से बचना चाहिये :

  • गैर पाश्च्यूरीकृत दूध।
  • फल तथा कच्ची सब्ज़ियाँ जिन्हें अच्छी तरह से धोया तथा साफ़ नहीं किया गया हो।
  • अधपके अथवा कच्चे अण्डों से बने पदार्थ जैसे घर में बना मेयोनीज़।
  • सांचे में पका हुआ मुलायम पनीर (जैसे ब्राई तथा केममबर्ट) तथा ब्लू वेन्ड पनीर । चेद्दार, परमेशन तथा स्टिलटन जैसे कठोर पनीर का प्रयोग किया जा सकता है।
  • कच्चा अथवा अधपका मांस ,कच्ची मछली।
  • कच्ची शैलफ़िश।
  • ट्यूना, स्वॉर्डफ़िश तथा शाक्र का माँस जिसमें पारा अधिक मात्रा में होता है।
  • पानी जो फ़िल्टर से साफ़ ना किया गया हो या उबला हुआ नहीं है – यदि आप पीने के पानी की गुणवत्ता के सम्बन्ध में सुनिश्चित नहीं हैं तो स्वयं की पानी की बोतल अथवा मिनरल बॉटल का प्रयोग करें।
  • बाजार में सड़क का खाना : यदि आपका पेट ख़राब है तो डॉक्टर आपको बहुत सारी दवायें सेवन करने को देते हैं। शिशु के स्वास्थ्य को देखते हुए यह प्रयास करना चाहिए कि इनके सेवन की नौबत ही न आये। आप पूरी कोशिश करें की बाहर के गोल गप्पे, पानीपूरी, चटपटे चाट आदि ना खाएं यदि खाना ही हो तो घर पर बने हुए खाएं, नहीं तो कम से कम साफ़ स्वच्छ रेस्ट्रोरेन्ट में ही जायें।

गर्भवती महिला को कैफीन का सेवन कितना करना चाहिए ?

  • कम मात्रा में कैफिन ठीक है परन्तु अधिक मात्रा में इनके सेवन से बचना चाहिये क्योंकि इससे शिशु का विकास प्रतिबंधित हो सकता है। प्रतिदिन 200 मि.ग्रा. कैफीन का सेवन ठीक होता है। विभिन्न खाद्य उत्पादों में कैफीन की मात्रा निम्न प्रकार है :

एक मग

  • इन्स्टेन्ट कॉफी : 100 मि.ग्रा.
  • फिल्टर कॉफी : 140 मि.ग्रा.
  • चाय : 75 मि.ग्रा.

एक केन कोला ड्रिंक का

  • कोला : 40 मि.ग्रा.
  • एनेर्जी ड्रिंक जैसे (रेड बुल ) : 80 मि.ग्रा.
  • प्लेन डार्क चाकलेट : 50 मि.ग्रा.
  • मिल्क चॉकलेट : 25 मि.ग्रा.

इसलिये अपनी इच्छा के अनुसार दिन भर में इन्हें खाने की सीमा तय करे।

गर्भवती महिला और एल्कोहल

  • एल्कोहल का अधिक मात्रा में या नियमित रूप से उपभोग बिलकुल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे में एल्कोहल के लक्षण आ सकते हैं : शिशु की विकास दर धीमी हो सकती है | यह भी पढ़ें – गर्भावस्था में जरुरी आहार-Pregnancy Diet Chart

गर्भवती महिला के दिमाग में उठते कुछ अन्य प्रश्न

  • मैं 2 माह से गर्भवती हूं तथा जी मिचलाने, भूख की कमी से पूरी तरह से थकी हुई महसूस कर रही हूँ। मेरा वज़न कम होने से सभी चिन्तित हैं। क्या इससे मेरे शिशु को नुकसान होगा?
  • आपके लक्षण पूरी तरह से सामान्य गर्भावस्था की ओर इशारा कर रहे हैं। आपके चौथे माह में पहुंचते ही यह सभी लक्षण अपने आप ठीक हो जायेंगे तथा आपका ऊर्जा स्तर ठीक होने के साथ भूख भी वापस आ जायेगी। आपको केवल वजन का नुकसान हो रहा है, शिशु की नहीं। शिशु के विकास में कोई बाधा नहीं आएगी। तीखी महक वाली खाद्य सामग्री से बचें। उससे जी मिचलाने की समस्या बढ़ सकती है। सुबह उठने के बाद सूखे तथा फीके बिस्किट खाने का प्रयास करें तथा प्रत्येक कुछ घंटो में अपनी इच्छा के अनुसार कम मात्रा में ऐसा भोजन करें जिसे आप बर्दाश्त कर पायें । यह भी पढ़ें – प्रेगनेंसी में क्या खाएं क्या ना खाएं
  • मैं सात माह से गर्भवती हूँ? क्या मुझे प्रोटीन पूरक लेने चाहिये?
  • यदि आपको इसका स्वाद अच्छा लगता है, तो अवश्य लें । साफ शब्दों में कहा जाये तो चिकित्सकीय आवश्यकता के अनुसार पूरक आहार केवल तभी आवश्यक हैं, जब आप कुपोषित हो। यदि आप अपने आहार की चिंता करती हैं तथा आप ताजे फल तथा सब्जियाँ, पर्याप्त प्रोटीन (दूध तथा दूध से निर्मित उत्पाद, दालें, मॉस), कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा मिनरल्स आदि का सेवन करती हैं, तो पूरक आहार लेने की कोई जरुरत नहीं है। परन्तु यदि आप इस प्रकार की हैं कि आप अपने आहार की ज्यादा परवाह नहीं करती हैं। और बिस्कुट व चिप्स इत्यादि का ही सेवन करती रही हैं तथा गर्भवती होने के बाद से अचानक अपनी भोजन की पुरानी आदतों को बदल कर आप डॉक्टर से परामर्श करने के बाद कुछ पूरक आहार ले सकती हैं।
  • आसान डिलेवरी तथा स्तनों में दूध के सही संचार के लिये क्या मुझे घी तथा लड्डु जैसी सभी चीजे खानी चाहिये?
  • घी तथा लड्डू कम मात्रा में लेना अच्छा है। वसा भी आपके आहार का एक जरुरी भाग है। पर अधिक मात्रा में सेवन सही नहीं होता है । गर्भावस्था के कुछ दिन पहले चम्मच भर के घी का सेवन करने से शिशु निकलने का मार्ग चिकना नहीं होता यह गलत अवधारणा है। परम्परागत रूप से कुछ खाद्य वस्तुओं को गेलेक्टोगोगस (ऐसी चीजें जो स्तनों में दूध उत्पादन को बढ़ाती हैं) माना जाता है, जिनमें से कुछ हैं : शताबरी (एसपारगस रेसमोसस), मेथी, दिंक (खाने वाला गोंद), तथा आलिव (गार्डन क्रस सीड)
  • डॉक्टर भी ऐसे पूरक लेने का परामर्श देते हैं जिनमें गेलेक्टोगोगस शामिल हों, विशेष रूप से शताबरी, शामिल हो। कोई भी पूरक आहार लेते समय, जो प्रकृति में आयुर्वेदिक हों, यह अवश्य सुनिश्चित करें कि उसमें कोई धातु (भस्म) नहीं है। यदि आप सावधान नहीं हैं तो लैड विषाक्ता की शिकार हो सकती हैं। ज्यादातर आयुर्वेदिक टोनिक या च्वनप्राश में लेड की मात्रा अधिक होती है |

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