PCOD पीसीओडी बीमारी क्या है? कारण, लक्षण तथा आधुनिक उपचार

पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम/पी.सी.ओ.एस./PCOD -Polycystic Ovarian Syndrome लक्षणों के एक समूह को कहते हैं, जिसमें एक लक्षण यह भी है कि ओवरी में अनेकों छोटे-छोटे सिस्ट (गांठे) दिखते हैं, जिनके कारण यह नाम पड़ा है। हालाँकि पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम में सिस्ट का होना आवश्यक नहीं है और सिस्ट ना होने पर भी महिला PCOD से पीड़ित हो सकती है। जब तक नाम की समस्या नहीं सुलझती है, तब तक इस लक्षण समूह को PCOD कहते हैं। निम्नलिखित लक्षणों में से किसी दो के रहने पर भी उसे पी.सी.ओ.एस कहा जाता है |

  • पीसीओडी का मतलब – ओवरी में अनेक छोटे-छोटे सिस्ट (एक सेंटीमीटर से भी छोटी गांठे)। ये सिस्ट किसी एक या दोनों ओवरी में हो सकते हैं।
  • लंबा मासिक चक्र यानि की बहुत-बहुत दिनों के अंतराल पर मासिक स्राव होना या पूर्णतः बंद मासिक चक्र (अनार्तव)। पुरुष हॉर्मोन के अधिक होने के लक्षण, जैसे अनचाहे बाल और मुँहासे ये अनचाहे बाल छाती, चेहरे, पीठ और पेट पर कहीं भी या सभी जगह हो सकते हैं।

PCOD के अन्य लक्षण

PCOD पीसीओडी बीमारी क्या है? कारण, लक्षण तथा आधुनिक उपचार pcod kya hota hai karan lakshan ilaj parhej
पीसीओडी बीमारी
  • मोटापा, बाँझपन, अनियमित माहवारी, गर्दन की त्वचा पर पैच, बार बार गर्भपात,सिर के बालो का अधिक झड़ना, गर्भधारणा में मुश्किल आना, यौन इच्छा में अचानक कमी आना, चिंता या अवसाद

PCOD होने के कारण

  • अंतःस्रावी ग्रंथियों के विकार से होनेवाली महिलाओं की समस्याओं में PCOD का स्थान सबसे ऊपर है और अनुमानतः 15 से 30 साल की उम्र में 8 से 26 प्रतिशत महिलाएँ इस समस्या से ग्रसित पाई जाती हैं।
  • PCOD का मूल कारण यद्यपि ठीक से पता नहीं, पर इंसुलिन इन महिलाओं में ठीक से काम नहीं कर पाता है। इंसुलिन की कार्यक्षमता कम होने के कारण ऐसे लोगों में इंसुलिन अधिक मात्रा में स्रावित होता है। कार्यक्षमता की इस कमी को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं। इंसुलिन रेजिस्टेंस का संबंध मधुमेह, उच्च रक्तचाप, लिपिड की गडबडी एवं हृदय की बीमारी से भी है, जिसके कारण भविष्य में इन महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • यह प्रायः आनुवंशिक होता है और यदि माँ, बहन, बुआ, मौसी इत्यादि को PCOD रहा हो तो इसकी संभावना बढ़ जाती है।
  • पी.सी.ओ.एस का मूल कारण हॉर्मोनिक असंतुलन है। पिट्यूटरी से एफ.एस.एच. और एल.एच. के संतुलित स्राव में गड़बड़ी या विकार आ जाता है। एल.एच. की मात्रा मासिक चक्र के शुरू में ही अधिक हो जाती है, जिसके कारण ओवरी में फॉलिकिल्स का सही विकास नहीं हो पाता है। ऐसे फॉलिकिल्स से पुरुष हॉर्मोन (Androgen) अधिक स्रावित होता है, जिससे अनचाहे बाल या मुँहासों की समस्या पैदा होती है।

PCOD बीमारी की वजह से होने वाली समस्याएँ

  • डिंबक्षरण नहीं होना (An 0vulation)- फॉलिकिल्स के सही विकास नहीं होने के कारण ओवुलेशन यानी डिंबक्षरण नहीं हो पाता है, जिससे बाँझपन की समस्या पैदा होती है और मासिक चक्र भी अनियमित हो जाता है। वैसे तो दोनों ओवरी मिलाकर केवल एक ही फॉलिकल को हर महीने परिपक्व होना चाहिए, जो मासिक चक्र के करीब चौदहवें दिन डिंबक्षरण करता है।
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी में कई फॉलिकल एक साथ विकसित होना शुरू कर देते हैं, पर उनमें से कोई भी पूर्ण विकसित नहीं हो पाता है और फलस्वरूप ओवुलेशन नहीं हो पाता है। ये अर्द्धविकसित फॉलिकिल्स धीरे-धीरे ओवरी के भीतर ही सिस्ट का रूप ले लेते हैं। कई सारे फॉलिकिल्स इस तरह सिस्ट बनकर ओवरी में पड़े रहते हैं, अतः उस ओवरी को पॉलीसिस्टिक ओवरी कहा जाता है। डिंबक्षरण नहीं होने के कारण प्रोजेस्टेरोन स्रावित नहीं हो पाता है और इस्ट्रोजेन बढ़ा रहता है।
  • मासिक चक्र की अनियमितता-मासिक चक्र काफी लंबा हो जाता है और मासिक स्राव बहुत-बहुत दिनों पर होता है, कभी-कभी तो महीनों और वर्षों की लंबी अवधि के बाद अनार्तव (Amennorrhoea) भी हो सकता है। जब मासिक स्राव होता है, तब अधिकांशतः अधिक मात्रा में या काफी दिनों तक होता रहता है।
  • बाँझपन- नियमित डिंबक्षरण नहीं होने के कारण गर्भाधान नहीं हो पाता है और PCOD से पीड़ित अधिकांश विवाहित स्त्रियों को बाँझपन की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • अनचाहे बाल (Hirsutism) और मुँहासे- PCOD से पीड़ित कई लड़कियों में जहाँ-तहाँ अनचाहे बाल हो सकते हैं, जैसे हल्की बूंछे, दाढ़ी, पेट या छाती पर अनचाहे बाल। ये बाल साधारण से अधिक मोटे और काले होते हैं। चेहरे पर मुँहासे काफी संख्या में हो सकते हैं और बालों के उड़ने की शिकायत भी हो सकती है।
  • मोटापा-मोटापा का PCOD से काफी संबंध है। PCOD से ग्रसित अधिकांश स्त्रियों का बी.एम.आई. अधिक होता है। कमर और नितंब का अनुपात भी अधिक होता है।
  • नींद में साँस की रुकावट-PCOD रहने पर यह समस्या अधिक पाई जाती है।
  • मेटाबोलिक सिन्ड्रोम-इस लक्षण समूह में इंसुलिन रेजिस्टेंस, मोटापा, लिपिड की मात्रा में विषमता एवं उच्च रक्तचाप शामिल हैं। PCOD से पीड़ित 45 प्रतिशत महिलाएँ इस समस्या से ग्रसित हो सकती हैं। इन्हें भविष्य में हृदय एवं रक्तनलिकाओं संबंधी बीमारियों की अधिक संभावना रहती है, जिसमें एक लकवा भी है। अत: PCOD से पीड़ित हर महिला की नियमित जाँच तथा भविष्य में हृदय संबंधी रोगों से बचाव के उपाय करना आवश्यक है।
  • गर्भाशय का कैंसर और प्रीकैंसर- PCOD में अर्द्धविकसित डिंब लगातार इस्ट्रोजेन नामक हॉर्मोन स्रावित करते रहते हैं। इस्ट्रोजेन का असर गर्भाशय पर पड़ता है और उसकी अंत:परत (Endometrium) अधिक इस्ट्रोजेन के कारण मोटी होती जाती है, जिसे हाइपरप्लेसिया कहते हैं। ऐसे अंत:परत में भविष्य में कैंसर होने की संभावना रहती है। अत: एनोवुलेशन से पीड़ित हर महिला के गर्भाशय की अंत:परत की जाँच समय-समय पर की जानी चाहिए।
  • गर्भ संबंधी समस्याएँ – PCOD से पीड़ित महिला को गर्भाधान के बाद गर्भपात की संभावना 30 से 50 प्रतिशत रहती है, जो साधारण जनसमुदाय में करीब 15 प्रतिशत है। यदि गर्भपात नहीं भी हुआ तो गर्भजनित मधुमेह, गर्भजनित उच्च रक्तचाप, समयपूर्व प्रसव एवं शिशु की प्रसवकालीन मृत्यु की संभावना सामान्य से दोगुनी-तीन गुनी बढ़ जाती है।
  • PCOD की पहचान-चूँकि PCO Dके लक्षण कई अन्य बीमारियों में भी मिल सकते हैं, अत: इसकी सही पहचान जरूरी है, जिसके लिए निम्न जाँच की जाती हैं |
  • टी.एस.एच. और प्रोलैटिन- रक्त में इनकी जाँच की जाती है, क्योंकि इनके बढ़ने पर भी मासिक चक्र में अनियमितता आती है।
  • टेस्टोस्टोरिन की जाँच-यदि अचानक या तेजी से पुरुष हॉर्मोन संबंधी लक्षणों में वृद्धि आए तो पुरुष हॉर्मोन स्रावित करनेवाले ट्यूमर के लिए जाँच आवश्यक है। कुछ ओवरी के ट्यूमर भी पुरुष हॉर्मोन स्रावित करते हैं, जो अल्ट्रासाउंड, सी.टी. या एम.आर.आई. से पहचाने जा सकते हैं।
  • डिहाड़ोएपिएन्ड्रोस्टेरोन सल्फेट (DHEAS)-यदि रक्त में इसकी मात्रा 700 माइक्रोग्राम प्रति डी.एल. से अधिक हो तो एड्रिनल ग्रंथि के ट्यूमर की संभावना रहती है, जिसको पहचानने के लिए सी.टी. या एम.आर.आई. की जाती है।
  • एफ.एस.एच. और एल.एच.-यदि ओवरी की कार्यक्षमता में गिरावट आ चुकी हो या अब वे काम करना बंद कर चुके हों तो एफ.एस.एच. और एल.एच. की मात्रा बढ़ जाती है।
  • 17-हाइड्रोक्सीप्रोजेस्टेरोन (17-Hydroxyprogesterone)–इसकी जाँच सुबह खाली पेट में की जाती है। यदि इसकी मात्रा रक्त में 200 नैनोग्राम प्रति डी.एल. से अधिक हो तो एड्रिनल ग्रंथि में विकार की संभावना रहती है।
  • कॉर्टिजोल-इसकी जाँच 24 घंटे के पेशाब में की जाती है। यदि 300 माइकोग्राम से अधिक हो तो कशिंग सिंड्रोम की संभावना रहती है।
  • इंसुलिन रेजिस्टेंस और लिपिड की जाँच-ग्लूकोज टॉलरेन्स टेस्ट, खाली पेट में इंसुलिन की जाँच और लिपिड की जाँच मधुमेह की संभावना या रक्त में लिपिड की गड़बड़ी के लिए की जाती हैं।
  • ए.एम.एच. (Anti Mullerian Hormone-AMH)-PCOD में रक्त में ए.एम.एच. की मात्रा बढ़ जाती है।
  • गर्भाशय की अंत:परत की जाँच (Endometrial Biopsy)-35 वर्ष से अधिक उम्र की PCOD से पीड़ित स्त्रियों में अनियमित रक्तस्राव हो तो गर्भाशय की अंत:परत की जाँच बायोप्सी द्वारा अवश्य करनी चाहिए। 35 से कम उम्रवालों में भी यदि दवाओं से समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा हो तो बायोप्सी आवश्यक है।
  • सोनोग्राफी-यह पेट या योनि के द्वारा की जा सकती है। रोग की पहचान के लिए योनि मार्ग से सोनोग्राफी (TVS) अधिक सहायक होती है, पर कुंवारी लड़कियों में पेट द्वारा ही करना चाहिए। पी.सी.ओ.डी. में एक या दोनों ओवरी का आकार बड़ा हो जाता है और उसमें 12 या उससे अधिक छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं।

PCOD बीमारी में मरीज इन नियमो का पालन करना चाहिए

  • यदि मासिक चक्र प्रतिवर्ष कम-से-कम आठ बार हो जाता हो तथा पुरुष हॉर्मोन का प्रभाव कम मात्रा में हो तो केवल देखरेख से काम चल सकता है। लिपिड और मधुमेह की जाँच समय-समय पर करानी चाहिए।
  • वजन कम करना-जीवनशैली में संशोधन कर मोटापा कम करने से PCOD की समस्या को बहुत हद तक सुलझाया जा सकता है, जो सही संतुलित आहार एवं शारीरिक व्यायाम द्वारा संभव है। इसके अलावा वजन कम होने पर दवाएँ भी अधिक कारगर होती हैं।

PCOD बीमारी में क्या खाना चाहिए तथा परहेज

  • साबुत अनाज, फल एवं हरी सब्जी की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए और ज्यादा वसा तथा ग्लूकोजवाले खाद्य पदार्थ का सेवन बहुत कम करना चाहिए। शारीरिक गतिविधि या व्यायाम-व्यायाम मानसिक तनाव को कम करता है | प्रतिदिन 30 से 60 मिनट तक व्यायाम करने से वजन को नियंत्रित करना आसान होता है।
  • फलों का ज़्यादा से ज़्यादा सेवन करें,हरी सब्जियां खाएं, अनाज का सेवन बढ़ा दें, ड्राईफ्रट्स को डेली डायट में शामिल करें |
  • PCOD बीमारी में मरीज को ब्रोकली, फूलगोभी और पालक जैसे उच्च फाइबर वाले खाद्य पदार्थोंखाने चाहिए. बादाम, अखरोट, ओमेगा और फैटी एसिड में समृद्ध खाद्य पदार्थ खाएं. तीन बार अधिक भोजन करने के बजाय पांच बार कम मात्रा में भोजन करें, क्योंकि यह मैटाबोलिज्म को ठीक रखेगा |
  • PCOD बीमारी में बहुत ज़्यादा मीट, चीज़ और फ्राइड फूड का परहेज रखें इससे वज़न बढ़ता है और पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOD) का खतरा भी |

पीसीओडी का आधुनिक इलाज

  • पी.सी.ओ.डी. का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि महिला की परेशानी क्या है मासिक चक्र की गड़बड़ी, बाँझपन या अनचाहे बाल और मुँहासे? तकलीफ के अनुसार दवाओं का चयन किया जाता है। इसके अलावा अंत:स्राव में कितनी गड़बड़ी है, उसके अनुसार भी दवा का चयन करना पड़ता है। यदि समस्या बाँझपन एवं एनोवुलेशन की हो तो इलाज अलग होगा और यदि किसी किशोरी को केवल मासिक चक्र की गड़बड़ी या मुँहासों की समस्या है तो उसकी चिकित्सा अन्य तरीके से की जाएगी।

पीसीओडी का इलाज (दवाएँ तथा सर्जरी द्वारा)

  • गर्भनिरोधक गोलियाँ (Combined Oral Contraceptive Pills), इस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्टेरोन की गर्भनिरोधक गोलियों से मासिक चक्र नियमित होता है। और ऐंड्रोजन की मात्रा में कमी होती है, जिससे मुँहासों और अनचाहे बालों में सुधार आता है। यदि मासिक चक्र बंद है तो पहले केवल प्रोजेस्टेरोन की गोली से मासिक स्राव शुरू कराया जाता है, फिर इन गोलियों को दिया जाता है, जिन्हें नियम के अनुसार खाना पड़ता है।
  • प्रोजेस्टिन्स-इसके लिए एम.पी.ए. (Medroxyprogesterone Acetate) 10 मिलीग्राम की गोली प्रतिदिन लगातार 12 दिनों के लिए दी जाती है। गोली बंद करने के बाद मासिक स्राव शुरू हो जाता है। यदि मासिक चक्र दो से तीन महीने पर होता हो तो एम.पी.ए. से स्राव शुरू कराया जा सकता है। इस दवा से मुंहासों या अनचाहे बालों में सुधार नहीं होता है।
  • मेटफॉर्मिन एवं अन्य इंसुलिन सेन्सिटाइजर्स- ये दवाएँ इंसुलिन की कार्यक्षमता को बढ़ाती हैं और एन्ड्रोजन की मात्रा में कमी लाती हैं। एनोवुलेशन की स्थिति में 40 प्रतिशत महिलाओं को ओवुलेशन होने लगता है और बाँझपन की स्थिति हो तो इनमें बहुतों को गर्भाधान भी हो सकता है। मेटफॉर्मिन यदि ओवुलेशन कराने वाली दवाओं के साथ दिया जाता है तो उनका असर भी अधिक पड़ता है। मेटफॉर्मिन की कुल मात्रा 1500 से 2000 मिलीग्राम प्रतिदिन दी जाती है, जिसे तीन भागों में विभाजित कर एक भाग प्रति भोजन के साथ दिया जाता है। यदि गर्भाधान हो जाए तो भ्रूण पर मेटफॉर्मिन का कोई बुरा प्रभाव नहीं पाया गया है।
  • अनचाहे बाल एवं मुहाँसे- इस समस्या के लिए रक्त में ऐंड्रोजन की मात्रा में कमी लाना आवश्यक है, जिसके लिए गर्भनिरोधक गोलियों का अधिकांशतः सेवन किया जाता है, पर अनचाहे बालों पर इन गोलियों का असर छह से बारह महीनों के उपचार के बाद ही मिलता है। इस अवधि में बालों को हटाना या सौंदर्य विशेषज्ञ से इसका उपचार कराना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक गोलियों के अलावा ऐंड्रोजन कम करनेवाली कई अन्य दवाएँ भी बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे-ऐल्डैक्टोन इत्यादि।
  • मुहाँसों का इलाज भी इसी विधि से किया जाता है। चेहरे पर लगानेवाला मरहम भी मुहाँसों के लिए उपलब्ध हैं, जो चिकित्सक से परामर्श के बाद इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • PCOD का सर्जरी द्वारा इलाज -PCOD का उपचार जीवनशैली में परिवर्तन एवं दवाओं द्वारा किया जाता है। ऑपरेशन की जरूरत कभी कभार ही पड़ती है, यदि स्त्री बाँझपन से पीड़ित हो और डिंबक्षरण करानेवाली दवाएँ बेअसर हों। यह ऑपरेशन लैप्रोस्कोप के द्वारा किया जाता है, जिसमें दोनों ओवरी में चार-चार छेद डायाथर्मी द्वारा बना दिए जाते हैं।

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