अम्लता (अम्लपित्त) बीमारी को दूर करने के लिए घरेलू आयुर्वेदिक उपाय

अम्लता जिसे एसिडिटी भी कहते है यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर के तरल पदार्थ में अम्ल की मात्रा अधिक हो जाती है। सामान्य तौर पर शरीर के तरल पदार्थों में 20 प्रतिशत अम्ल और क्षार का संतुलन रहता है। सामान्य रूप से स्वस्थ व्यक्ति में रक्त की क्रिया क्षारीय होती है, जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है। कार्बोहाइड्रेट और वसा शरीर को 90 प्रतिशत उर्जा देते हैं। जब रक्त की क्षारीयता कम होती है तो उसके साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड को पहुँचाने की क्षमता भी कम होती जाती है, जिसके फलस्वरूप ऊतकों में अम्ल जमा होने लगते हैं। इस स्थिति को अम्लता अथवा ‘रक्त की अति क्षारीयता’ कहा जाता है। अम्लपित्त के इलाज में देरी और भोजन में लापरवाही की जाए तो उलटी होने लगती है। उलटी के साथ पित्त भी निकलता है। उलटी करने के बाद रोगी को कुछ आराम अनुभव होता है। अम्लता से पीड़ित व्यक्ति को देर तक कुछ खाने को न मिले तो पेट में पित्त की अधिकता होने से उनका जी मिचलाने लगता है |

अम्लता के लक्षण

अम्लता (अम्लपित्त) बीमारी को दूर करने के लिए घरेलू आयुर्वेदिक उपाय amlapitta hyper acidity ke upay ilaj
अम्लता (अम्लपित्त) बीमारी
  • भूख, अपच, पेट में जलन, उलटी, सिर दर्द, स्नायवीय अनियमितता और घबराहट आदि अम्लता के लक्षण हैं।
  • इससे अनेक रोग जन्म लेते हैं। वृक्क शोथ, अस्थि-संधि दर्द, असामयिक वृद्धावस्था, उच्च रक्तचाप, त्वचा रोग एवं अन्य रोग इसके कारण पैदा होते हैं। यह शरीर की ग्रंथियों और अन्य अवयवों की जैविकता को कम करता है, जिसके कारण कई संक्रमण रोगों के पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • जब अम्लपित्त रोग होता है तो रोगी को कभी बहुत खट्टी और कड़वी डकारें आती हैं। गले और छाती में तेज जलन होती है। जलन के कारण रोगी बेचैन हो जाता है। रोगी को भूख नहीं लगती है। पेट में भारीपन अनुभव होता है।

अम्लपित्त होने के कारण

  • अम्लता का मुख्य कारण अनुचित आहार है, जिनमें अधिक अम्ल बनाने वाले खाद्य होते हैं। चयापचय के अनेक मामलों अथवा शरीर द्वारा भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने के दौरान विभिन्न तरह के अम्ल बनते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन में और भी अम्ल शामिल होते हैं। जब अम्ल की अधिकता होती है तो फेफड़ों, वृक्क और आँतों द्वारा वे ठीक तरह से शरीर से उत्सर्जित नहीं हो पाते हैं, तब रक्त की क्षारीयता घट जाती है, जिसके कारण अम्लता की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • अतिसार, पेचिश, हैजे के कारण रक्त की क्षारीयता में कमी, रक्त परिवहन, फुपफुसीय रोगों की तरह कम भूख लगने पर कार्बन डाइऑक्साइड का संग्रह और भूख, उलटी एवं मधुमेह के कारण शरीर में ” एसीटोन” जमा होना आदि भी अम्लता होने के कारण बनते है |
  • दूषित और बासी भोजन करने वाले व्यक्ति अम्लपित्त के शिकार होते हैं। शराब और सिगरेट पीने वालों को अम्लपित्त की बीमारी जल्दी होती है।

अम्लता का घरेलू इलाज

  • अम्लता की शिकायत होने पर कुछ घरेलू ओषधियाँ भी लाभदायक होती हैं। इन ओषधियों में मुनक्का सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। यह सूखा फल क्षारीय होने के कारण शरीर की अम्लता को संतुलित करता है। 05 ग्राम मुनक्का प्रतिदिन खाने से पेशाब की अम्लता काफी हद तक कम हो जाती है, पेशाब की अमोनिया भी कम हो जाती है। मुनक्का के इस्तेमाल से अति अम्लता भी ठीक हो जाती है। इसके अलावा पालक की सब्जी खाने से भी यह रोग ठीक हो जाता है। पालक में कैल्सियम और क्षारीय तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जो ऊतकों को स्वच्छ और रक्त की क्षारीयता को बरकरार रखते हैं।
  • अम्लता रोग की रोकथाम के लिए टमाटर भी काफी असरकारक होता है। यह भी एक क्षारीय सब्जी है। इसमें पाया जानेवाला खट्टापन मेलिक अम्ल के कारण होता है, जिसकी मात्रा लगभग .05 प्रतिशत होती है।
  • 10 ग्राम आंवले का रस लेकर उसमें 5 ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में दो-तीन बार सेवन करें।
  • अम्लता से छुटकारा पाने के लिए 3 ग्राम अजवाइन को पीसकर, 200 ग्राम नीबू का रस पानी में मिलाकर दिन में दो बार पीने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है |
  • धनिया, मिश्री और जीरा को 10-10 ग्राम मात्रा में कूट-पीसकर 3 ग्राम मात्रा में दिन में दो बार भोजन के साथ पानी से सेवन करें।
  • सुबह-शाम 200 ग्राम गाजर का रस पीने से अम्लता की बीमारी ठीक होती है।
  • अम्लपित्त की बीमारी में सुबह-शाम एक-एक लौंग चबाकर खाने और पानी पीने से बहुत लाभ होता है।
  • संतरे के 100 ग्राम रस में भुना हुआ जीरा आधा ग्राम और सेंधा नमक स्वाद के अनुसार मिलाकर पीने से अम्लता की बीमारी का निवारण होता है।
  • करेले के पत्तों को घी में भूनकर उनको कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन 2 ग्राम चूर्ण पानी से सेवन करने पर अम्लपित्त से मुक्ति मिलती है। दिन में दो बार सेवन करें।
  • 3 ग्राम पिप्पली के चूर्ण में 3 ग्राम मिसरी मिलाकर सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से अम्लता में बहुत लाभ होता है।
  • बेलगिरी के 10 ग्राम पत्तों को पानी के साथ पीसकर, फिर 60 ग्राम पानी में मिलाकर छानकर, उसमें 10 ग्राम मिसरी मिलाकर सेवन करने से अम्लता शांत होता है।
  • मुलहठी को पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। फिर 3 ग्राम चूर्ण मधु और घी मिलाकर चाटकर खाने से अम्लपित्त की तेज़ जलन शांत होती है।
  • 50 ग्राम चूने को रात में 500 ग्राम पानी में डालकर रखें। प्रातः उठने पर ऊपर का पानी छानकर 10-10 ग्राम मात्रा में दिन में तीन-चार बार पीने से अम्लता की जलन नहीं होती है।
  • नीम के कोमल पत्तों का रस 10 ग्राम, अडूसे के पत्तों का रस 15 ग्राम मिलाकर उसमें 5 ग्राम शहद डालकर सुबह-शाम पीएं।
  • भोजन के बाद पेठे की मिठाई 100 ग्राम मात्रा में खाने से अम्लपित्त की जलन नष्ट होती है।
  • आंवले का 5 ग्राम चूर्ण 100 ग्राम नारियल के पानी के साथ सेवन करें।
  • 50 ग्राम मूली के रस में थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से अम्लता की जलन से मुक्ति मिलती है।
  • अनन्नास का रस 100 ग्राम मात्रा में काली मिर्च के 5 दाने पीसकर, मिलाकर सेवन करने से अम्लता की बीमारी का निवारण होता है। दिन में दो बार भी सेवन कर सकते हैं।
  • खैर (कत्था) 3 से 6 रत्ती सुबह-शाम सेवन करने से खट्टी डकारें आनी बन्द हो जाती है।
  • अम्लपित्त में केले के स्तम्भ या कन्द का एक कप रस में काली मिर्च का योग देकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
  • मुलेठी का चूर्ण 1 से 4 माशे सुबह-शाम दूध या घृत के साथ सेवन करने से अमाशय की अम्लता दूर हो जाती है एवं अम्ल दर्द भी नहीं रह जाते है।
  • अम्लता की वजह से यदि गले में जलन हो तो कुलिंजन 2 से 4 रत्ती का टुकड़ा प्रत्येक भोजन के बाद चूसें।

अम्लपित्त की वजह से होने वाली सीने में जलन से बचने के लिए ये उपाय आजमायें

  • ठीक समय पर भोजन करें, और खाना खाने के तुरंत बाद बिस्तर पर नहीं लेटना चाहिए। कम से कम अगले दो-ढाई घंटों तक सीधे बैठे या चलें-फिरें। नीचे की ओर झुकने से परहेज बरतें। लेटने पर जलन होती हो तो पलंग के सिरहाने वाले पांवों पर इंटें रखकर सिरहाना छह इंच ऊपर उठा लें। इससे पेट में बना तेजाब पलटकर कलेजे में नहीं आएगा और आप चैन की नींद सो सकेंगे। इन उपायों के साथ-साथ अम्लता की जलन मिटाने के लिए डॉक्टरी सलाह से आप दवाएं भी ले सकते हैं।

अम्लपित्त से बचने के लिए खान-पान की किन-किन चीजों से परहेज बरतना चाहिए?

  • प्याज, लाल और काली मिर्च, संतरा, मौसमी, चाकलेट और पिपरमिंट खाने की नली (फूड पाइप) के निचले छोर और आमाशय के बीच बसे वाल्व को कमजोर करते हैं। जिसकी वजह से आमाशय में बना तेजाब पलटकर खाने की नली में जा सकता है। चाय, कॉफी और कोला ड्रिक्स में कैफीन होती है और उसका भी वाल्व पर यही असर दिखता है। तली हुई चीजों और गरिष्ट व्यंजनों को पचाने में समय लगता है इसीलिए उन्हें खाने के बाद पेट देर तक भारी रहता है, जिसके कारण आमाशय में अधिक तेजाब या अम्लता बनती है और वाल्व पर भी जोर पड़ता है। इन सभी चीजों से परहेज जरुर रखें ।

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