मासिक धर्म में असामान्य या अधिक रक्तस्राव होने के कई कारण हो सकते है, सामान्य मासिक चक्र 28 दिनों का होता है। इससे सात दिन कम या सात दिन अधिक का चक्र भी सामान्य ही माना जाता है। सामान्य मासिक स्राव में प्रतिमाह रक्त की मात्रा 20 से 60 मि.ली. होती है और रक्तस्राव दो से छह दिनों तक होता है। यदि स्राव सात दिन से अधिक हो तो उसे प्रोलौंग्ड (Prolonged) और 80 मिलीलीटर से अधिक हो तो उसे हेवी (Heavy) मासिक स्राव कहते हैं, जो पहले मिनोराजिया (Menorrhagia) कहलाते थे। यदि नियमित मासिक स्राव के अलावा बीच-बीच में भी थोड़ा या अधिक रक्तस्राव होता रहे तो वह इंटरमेन्स्टूअल ब्लीडिंग (Intermenstrual Bleeding) कहलाता है, जिसे पहले मेट्रोराजिया (Metrorrhagia) कहा जाता था। किसी-किसी स्त्री को ये दोनों तकलीफें होती हैं। मासिक में रक्तस्राव सामान्य से कम होना हाइपोमिनोरिया (Hypomenorrhoea) और 35 दिनों से अधिक अंतराल पर होना ओलिगोमिनोरिया (Oligomenorrhoea) कहलाता है। ब्रेक-थू ब्लीडिंग (Breakthrough Bleeding) उस रक्तस्राव को कहते हैं, जो हॉर्मोन की गोलियों का सेवन करते समय बीच-बीच में हो जाया करता है। हॉर्मोन की गोलियों का सेवन खत्म करने के बाद होनेवाला रक्तस्राव विदडूवल ब्लीडिंग (Withdrawal Bleeding) कहलाता है। यदि संभोग के बाद रक्तस्राव हो तो वह पोस्टक्वायटल ब्लीडिंग (Postcoital Bleeding) कहलाता है।
मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव होने से महिला को रक्त की कमी यानी एनीमिया और एनीमिया से संबंधित जटिलताओं के होने की संभावना रहती है। अतः इसका कारण जानकर सही उपचार करना आवश्यक है। प्रजनन काल में करीब 10 से 30 प्रतिशत स्त्रियाँ असाधारण रक्तस्राव से कभी-न-कभी ग्रसित होती हैं। रजोनिवृत्ति का समय नजदीक आने पर यह गणना बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाती है। किशोरावस्था में भी असामान्य रक्तस्राव की संभावना अधिक रहती है।
मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव के कारण
- नवजात-जन्म के दो-तीन दिनों के बाद कुछ नवजात बच्चियों को योनि से रक्तस्राव होता है, जो स्वत: दो-तीन दिनों में बंद भी हो जाता है। यह गर्भ में माँ के हॉर्मोंस के प्रभाव में रहने और जन्म के बाद उस प्रभाव के खत्म हो जाने के कारण होता है।
- बचपन-बाहरी जननांगों का संक्रमण बच्चों में रक्तस्राव का मुख्य कारण होता है। उपचार के पहले यह जानना जरूरी है कि यह रक्तस्राव कहाँ से हो रहा है–योनि, मूत्रनली या गुहा द्वार से कभी-कभी रक्तस्राव जननांगों में चोट, बाहरी वस्तु का योनि में प्रवेश, कैंसर या जबरदस्ती संभोग की कोशिश से भी हो सकता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कारण के अनुसार उपचार किया जाता है।
- किशोरावस्था-इस उम्र में अधिक रक्तस्राव के मुख्य कारण हैं- एनोवुलेशन (डिंब ग्रंथि से डिंब का निष्कासन नहीं होना) और रक्त में थक्का बनानेवाले तत्वों की कमी। कभी-कभी गर्भ संबंधी जटिलताएँ, यौन रोग एवं यौन अपराध भी किशोरावस्था में रक्तस्राव के कारण हो सकते हैं।
- प्रजनन उम्र- इस उम्र में अधिक रक्तस्राव के अनेकों कारण हैं, पर प्रमुख हैं— गर्भ-संबंधित समस्याएँ एवं यौन रोग। फाइब्रॉयड एवं एंडोमेट्रियल पॉलिप की संभावना भी उम्र के साथ-साथ बढ़ती है, जिनके कारण असामान्य रक्तस्राव होता है।
- रजोनिवृत्ति के समय-इस उम्र में अधिक रक्तस्राव का मुख्य कारण अनियमित डिंबक्षरण यानी एनोवुलेशन (Anovulation) होता है, पर इस उम्र में भी वे सभी कारण पाए जा सकते हैं, जो प्रजनन काल में पाए जाते हैं। इनके अलावा कैंसर की संभावना इस उम्र में अधिक होती है, जो उम्र के साथ-साथ बढ़ती जाती है। अतः रजोनिवृत्ति के समय असामान्य रक्तस्राव हो तो कैंसर की संभावना को मद्देनजर रखना आवश्यक है।
- रजोनिवृत्ति के बाद इस उम्र में अधिकांश रक्तस्राव गर्भाशय के आंतरिक सतह के क्षीण होने के कारण होता है, पर कैंसर की खोजबीन इस उम्र में और भी जरूरी हो जाती है, क्योंकि गर्भग्रीवा, गर्भाशय, ओवरी या फैलोपियन ट्यूब के कैंसर इस उम्र में अधिक पाए जाते हैं।
- संभोग के बाद रक्तस्राव-20 से 40 वर्ष की उम्र में इसकी अधिक संभावना रहती है। करीब दो-तिहाई पीड़ितों में काफी जाँच पड़ताल के बाद भी रक्तस्राव के कारण का पता नहीं चल पाता है। यद्यपि अधिकांश रक्तस्राव सुगम (Benign) कारणों से होते हैं, पर बार-बार संभोग के बाद रक्तस्राव हो तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है और ऐसी स्त्रियों में योनि, गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय के कैंसर के लिए पूरी जाँच जरूरी है।
- अधिक रक्तस्राव के साथ श्रोणि में दर्द- फाइब्रॉयड, पॉलिप, ‘एडिनोमायोसिस, संक्रमण एवं गर्भ संबंधी जटिलताओं के कारण होनेवाले रक्तस्राव के साथ श्रोणि में दर्द भी हो सकता है। फाइब्रॉयड एवं एडिनोमायोसिस के साथ कभी-कभी बिना रक्तस्राव के भी या तो सहवास के समय या यूँ भी कभी भी श्रोणि में दर्द होने की संभावना रहती है।
- पहचान– अधिक रक्तस्राव के कारण को सुनिश्चित करते समय सबसे आवश्यक है कैंसर की संभावना पर ध्यान रखना पैप स्मीयर, अल्ट्रासाउंड (V.S.), एंडोमेट्रियल बायोप्सी और हिस्ट्रोस्कॉपी का आवश्यकतानुसार उपयोग कैंसर को पहचानने में सहायक होता है। कारण पता हो जाने के बाद उसका उचित उपचार किया जाता है। गर्भाशय के कैंसर की संभावना उम्र के साथ-साथ बढ़ती जाती है और ऐसे तीन चौथाई कैंसर रजोनिवृत्ति के बाद ही होते हैं। 80 से 90 प्रतिशत गर्भाशय के कैंसर से पीड़ित महिलाएँ असामान्य रक्तस्राव के कारण डॉक्टर की सलाह के लिए आती हैं। अतः इस उम्र में असामान्य रक्तस्राव होने पर एंडोमेट्रियल बायोप्सी आवश्यक है। 25 प्रतिशत गर्भाशय के कैंसर रजोनिवृत्ति के पहले पाए जाते हैं, विशेषकर उन स्त्रियों में, जो मोटी हैं या जिन्हें नियमित डिंबक्षरण (Ovulation) नहीं होता है। अतः 35 वर्ष से अधिक उम्र की स्त्रियों में असामान्य रक्तस्राव होने पर एंडोमेट्रियम की ठीक से जाँच अवश्य की जानी चाहिए और 35 वर्ष से कम उम्र में भी यह जाँच होनी चाहिए, यदि महिला अधिक मोटी हो या अनियमित ओवुलेशन से ग्रसित हो। हिमोग्लोबिन, बिटा-एच.सी.जी., प्लैटलेट, थक्का बनानेवाले तत्त्व एवं फेरीटीन की जाँच भी असामान्य रक्तस्राव की स्थिति में करना जरूरी है। किशोरियों में प्लैटलेट एवं थक्का बनानेवाले अन्य तत्वों की कमी की जाँच विशेष जरूरी है।
- पैप स्मीयर-पैप स्मीयर उन सभी स्त्रियों की होनी चाहिए, जो विवाहित हैं या यौन संबंध बनाती हैं। जरूरत के अनुसार कौल्पोस्कॉपी और एंडोमेट्रियल बायोप्सी भी की जाती है।
- एंडोमेट्रियल लायोसी- डोमेट्रियल बायोप्सी द्वारा गर्भाशय के आंतरिक सतह में संक्रमण, कैंसर, पॉलिप और बीजपोषक बीमारियों (Gestational Trophoblastic Disease) की पहचान की जा सकती है। इसके लिए गर्भाशय की अंत:परत से एक छोटा सा टुकड़ा निकालकर उसकी दूरबीन द्वारा जाँच की जाती है एवं उसमें कोई बीमारी है कि नहीं, यह देखा जाता है। यह प्रक्रिया एक छोटी सी सर्जरी द्वारा, जिसे डी. एंड सी. (Dilatation & Curettage) कहते हैं, की जाती है। डी एंड सी के बजाय पिपेल से भी अंत: परत का नमूना निकाला जा सकता है।
- टी.वी.एस. (Transvaginal sonography)- असामान्य रक्तस्राव के कारण की पहचान में योनि मार्ग से सोनोग्राफी यानी टी.वी.एस. का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस जाँच में अल्ट्रासाउंड के प्रोब को पेट के बजाय योनि में रखा जाता है। गर्भाशय के कैंसर में उसके अंत:परत की मोटाई काफी बढ़ जाती है, जो टी.वी.एस. से देखा जा सकता है। रजोनिवृत्ति के बाद सामान्यतः यह मोटाई 4 मिलीमीटर से कम होनी चाहिए। हाइपरप्लेसिया में यह बढ़कर लगभग 10 मिलीमीटर और कैंसर में उससे भी अधिक हो जाती है। यदि रजोनिवृत्ति के बाद अंत:परत 5 मिलीमीटर से अधिक मोटी पाई जाए तो हिस्ट्रोस्कोपी या बायोप्सी द्वारा अंत: परत की जाँच जरूरी है। रजोनिवृत्ति के पूर्व भी अधिक उम्र की स्त्रियों में यदि अंत: परत हमेशा 12 मिलीमीटर से अधिक पाई जाए तो उसकी भी जाँच आवश्यक है, विशेषकर उनमें, जिन्हें असामान्य रक्तस्राव, अनियमित ओवुलेशन, बंध्यता, मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप हो या जो टैमोक्सीफेन नामक दवा का उपयोग कर रही हों। टी.वी.एस. के साथ-साथ कलर डॉप्लर का उपयोग या गर्भाशय में सेलाइन डालकर अल्ट्रासाउंड जाँच (Saline Infusion Sonography -S.I.S.) अधिक जानकारी दे सकती है।
- हिस्ट्रोस्कॉपी– यह जाँच की एक यांत्रिक विधि है, जिसमें एक विशेष ट्यूब को गर्भग्रीवा के रास्ते गर्भाशय में डाला जाता है। इस ट्यूब के आखिरी सिरे पर एक कैमरा लगा होता है, जो गर्भाशय की अंत:परत एवं अन्य गड़बड़ियों का चित्र खींच सकता है। ये चित्र टी.वी. स्क्रीन पर दिखाई पड़ते हैं। साफ चित्र आने के लिए गर्भाशय में उपयुक्त द्रव डालकर गर्भाशय को फैलाया जाता है। असामान्य रक्तस्राव के कारण की पहचान में यह विधि काफी उपयोगी है। कुछ पॉलिप या फाइबॉयड, जो टी.वी.एस. से नहीं पहचाने जा पाते, हिस्ट्रोस्कोपी से पहचान में आ जाते हैं। असामान्य रक्तस्राव की पहचान के लिए पहली जाँच टी.वी.एस. या अल्ट्रासाउंड होती है और उसके बाद आवश्यकता के अनुसार एंडोमेट्रियल बायोप्सी, हिस्ट्रोस्कॉपी या एस.आई.एस. किया जाता है।
अधिक रक्तस्राव के कुछ अन्य कारण
- हॉर्मोस का असंतुलन।
- गर्भ संबंधी जटिलताएँ।
- रक्त में थक्का बनानेवाले तत्वों की कमी (Coagulopathies)।
- संक्रमण
- ट्यूमर (Neoplasm)
- कॉपर-टी।
- मिरेना।
- केवल प्रोजेस्ट्रोनवाली गर्भनिरोधक गोलियाँ।
- इस्ट्रोजेन की कम मात्रावाली गर्भनिरोधक गोलियाँ।
- हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरैपी (HRT)
- टैमोक्सीफेन।
डिस्फंक्शनल यूटेराइन ब्लीडिंग (DUB)-
- यदि पूरी जाँच-पड़ताल के बाद भी कारण का पता न चल पाए, जैसा करीब 50 प्रतिशत अधिक रक्तस्राव के मामले में होता है, तो उसे डिस्फंक्शनल यूटेराइन ब्लीडिंग (DUB) कहते हैं। जाँच जितनी ही अच्छी तरह की जाएगी, उतनी ही अधिक संख्या में कारण का पता चल पाएगा। अतः किसी भी मामले को DUB की संज्ञा देने के पहले भलीभाँति जाँच पड़ताल जरूरी है, क्योंकि कारण के अनुसार उसका उपचार किया जाता है। यदि कोई कारण न मिले तो डी.यू.बी. का उपचार निम्न विधियों के द्वारा क्रमशः किया जा सकता है
दवाएँ
- ट्रानेसेमिक एसिड (Tranexamic Acid) । एन्सेड्स (Non Steroidal Anti-inflammatory Drugs)। गर्भ निरोधक गोलियाँ (Oral Contraceptives) । प्रोजेस्टीन्स (Progestins)। ऐंड्रोजेन्स (Androgens)। जीएन.आर.एच. एगोनिस्ट्स (GnRH Agonists)। Mirena
ऑपरेशन
- कुछ स्त्रियों में अधिक रक्तस्राव रोकने की किसी भी दवा से फायदा नहीं पहुँचता है या दवाओं के Side Effects के कारण वे दवा नहीं ले पाती हैं। ऐसी अवस्था में ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है। रक्तस्राव रोकने के लिए सबसे सफल ऑपरेशन है हिस्ट्रेक्टॉमी (Hysterectomy) यानी गर्भाशय को हटा देना। यह एक बड़ा ऑपरेशन है, पर इसके बदले कभी-कभी छोटे ऑपरेशन द्वारा गर्भाशय की केवल अंत:परत को हटा देने पर रक्तस्राव में कमी आ सकती है। अंत:परत को हटाने की प्रक्रिया को एंडोमेट्रियल एलेशन कहते हैं, जो थर्माच्वायस (Thermachoice), लेजर (Laser) या डायाथर्मी (Diathermy) मशीन द्वारा की जाती है। एंडोमेट्रियल ऐब्लेशन करने से पहले भली प्रकार जाँच-पड़ताल करके कैंसर की संभावना को दूर करना आवश्यक है। उन स्त्रियों में भी इसका उपयोग वर्जित है, जो भविष्य में और बच्चे चाहती हैं। इसके अलावा यदि गर्भावस्था में संक्रमण हो या पूर्व में गर्भाशय पर शल्य क्रिया हो चुकी हो, जैसेमायोमेक्टोमी या क्लासिकल सिजेरियन तो ऐब्लेशन नहीं किया जाता है। यदि रजोनिवृत्ति की उम्र पास हो तो भी ऐब्लेशन नहीं करना चाहिए।
फायब्रॉयड-
- फायब्रॉयड के साथ अधिक रक्तस्राव होने पर रक्तस्राव को कम करने के लिए उन दवाओं का उपयोग किया जा सकता है, जिन्हें डी.यू.बी. के लिए किया जाता है। लाभ नहीं होने पर ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है।
मूलेरियन डक्ट की असामान्यता—
- इनकी चिकित्सा के लिए ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है।
आर्टेरियोवेनस मालफौर्मेशन (Arteriovenous Malformation)
- इस रोग में गर्भाशय की रक्तवाहिनियों में गड़बड़ी आ जाती है, जो अधिकांशतः किसी ऑपरेशन या गर्भपात के बाद होती है। उपचार के लिए गर्भाशय को हटाना पड़ सकता है। इम्बोलाइजेशन से भी लाभ पहुँचता है।
एंडोमेट्रियल पॉलिप-
- 10 से 30 प्रतिशत अधिक रक्तस्राव एंडोमेट्रियल पॉलिप के कारण होते हैं। मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं टेमोक्सीफेन के उपयोग करनेवाली स्त्रियों में इसकी संभावना अधिक होती है। पॉलिप की संख्या एक या अनेक भी हो सकती है। इसकी पहचान टी.वी.एस., एस.आई.एस. या हिस्ट्रोस्कॉपी से होती है। इसका उपचार हिस्ट्रोस्कॉपी द्वारा देखते हुए इन्हें हटाकर किया जाता है, जिसे हिस्ट्रोस्कॉपिक पॉलिपेक्टॉमी कहते हैं। रजोनिवृत्ति के पूर्व यदि पॉलिप का आकार 5 सेंटीमीटर से कम हो तो ऑपरेशन करना जरूरी नहीं है, पर समय-समय पर टी.वी.एस. द्वारा उसकी जाँच करनी पड़ती है।
एंडोसर्वाइकल पॉलिप—
- गर्भाशय ग्रीवा के अंदर डंठलवाले अर्बुद (Polyp) के कारण मेनोराजिया या मेट्रोराजिया हो सकता है। इसकी चिकित्सा उसे हटाकर की जाती है, जिसे पोलिपेक्टॉमी कहते हैं।
संक्रमण-
- गर्भाशय ग्रीवा या गर्भाशय की अंत:परत के संक्रमण होने पर असामान्य रक्तस्राव की संभावना रहती है। संक्रमण से पीड़ित होने पर साधारणतया श्रोणि में दर्द और योनि से सफेदस्राव भी होता है। संक्रमण अधिकांशतः गर्भपात या प्रसव के बाद या यौन रोगों के कारण होता है, जिसकी चिकित्सा उपयुक्त एंटीबायोटिक देकर की जाती है।
गर्भ संबंधी जटिलताएँ
- प्रजनन उम्र में अधिक रक्तस्राव होने पर गर्भ संबंधी जटिलता जैसे–गर्भपात, अस्थानिक गर्भ एवं जी.टी.डी. को ध्यान में रखना जरूरी है। अल्ट्रासाउंड एवं बिटा एच.सी.जी. की जाँच से इनका पता चलता है और कारण के अनुसार उपचार किया जाता है।
अन्य बीमारियाँ-
- किडनी की लंबी बीमारी में अधिकांशतः मासिकस्राव बंद हो जाता है या बंध्यता हो जाती है। जिनका मासिकस्राव बंद नहीं होता है, उनमें से 80 प्रतिशत को अधिक रक्तस्राव होता है। इन स्त्रियों का उपचार कम मात्रा वाली गर्भनिरोधक गोलियों द्वारा किया जाता है या फिर बड़ी मात्रा में मेड्रोक्सीप्रोजेस्ट्रोन द्वारा जो मासिकस्राव बंद करा दे। यदि किडनी की बीमारी के साथ-साथ उच्च रक्तचाप भी हो तो ये दवाएँ वर्जित हैं और ऐसी अवस्था में ऑपरेशन द्वारा इनका उपचार किया जाता है या तो एंडोमेट्रियल ऐब्लेशन या हिस्टेरेक्टॉमी द्वारा।
यकृत (Liver) की बीमारी
- यकृत की बीमारी की अंतिम अवस्था में अधिक रक्तस्राव होने की काफी संभावना रहती है, पर इसकी चिकित्सा बहुत कठिन है, क्योंकि अधिकांश दवाएँ लीवर की बड़ी बीमारी में दी नहीं जा सकतीं और किसी भी तरह का ऑपरेशन जानलेवा हो सकता है।
थायरॉयड-
- थायरॉयड ग्रंथि कम काम करे या अधिक, दोनों ही स्थिति मासिक ‘चक्र को प्रभावित कर सकती है। ग्रंथि के कम काम करने पर अधिक रक्तस्राव, अनार्तव और बांझपन होने की संभावना रहती है, जबकि अधिक सक्रिय होने पर अधिकांशतः अनार्तव और रक्तस्राव में कमी पाई जाती है।
रक्त में थक्का बनानेवाले तत्वों की कमी-
- अधिक रक्तस्राव रोकने के लिए हर व्यक्ति के शरीर में एक प्राकृतिक व्यवस्था रहती है, जिसके प्रभाव से रक्त का थक्का बन जाता है, जो स्राव की जगह को बंद करके रक्तप्रवाह को रोकता है। यदि इस व्यवस्था में कमी हो यानी रक्त में थक्का बनानेवाले तत्त्वों की कमी हो तो इसके कारण भी अधिक रक्तस्राव हो सकता है। निम्न परिस्थितियों में इससे संबंधित जाँच अवश्य करानी चाहिए |
- किशोरावस्था में अधिक रक्तस्राव ।
- अधिक रक्तस्राव के कारण का पता न चल पाना।
- अधिक रक्तस्राव के लिए हिस्ट्रेक्टॉमी करने के पहले।