पथरी रोग के कारण, लक्षण, बचाव की जानकारी तथा खानपान के उपाय हम पहले ही बता चुके हैं | इस आर्टिकल में पथरी रोगियों के लिए कौन से योगासन लाभकारी है यह बतायेंगे | यूरिन में मौजूद साल्ट व मिनरल से मिल कर पथरी बनती है। पथरी तीन जगह पर होती है- गॉल ब्लेडर, किडनी तथा यूरिन तंत्र। पथरी के लिए योगासन में पवनमुक्तासन, उत्तानपादासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, हलासन, भुजंगासन, धनुरासन आदि आसन उपयोगी रहते हैं।
पथरी के लिए योगासन : भुजंगासन

भुजंगासन का दूसरा नाम सर्पासन है। इस आसन की आकृति फन फैलाकर सिर उठाए सांप जैसी होने के कारण इसको सर्पासन कहते हैं।
विधि–
- दोनों पांव फैलाकर टांगें सीधी करके पेट के बल लेट जाएं।
- पांवों के दोनों अंगूठों को खींचकर रखें।
- हाथ माथे की ओर ले जाएं पांव के अंगूठे, नाभि, छाती, कपाल और हाथों के तलवे जमीन में एक लेबिल में रखें।
- हाथों को धीरे-धीरे कमर की ओर ले जाएं। उसके बाद माथा और छाती पीछे की ओर बिलकुल धीमी गति से ले जाएं। नाभि का स्थान जमीन पर रहे।
- शरीर का सारा वजन हाथों के पंजों पर ही रहे। सिर को जितना हो सके, पीछे ले जाने की कोशिश करें।
- शरीर की स्थिति कमान जैसी बन जाएगी और रीढ़ की हड्डी के अंतिम भाग पर सारा दवाब केन्द्रित होगा। उस समय दृष्टि को छत की ओर स्थिर रखें पहले यह स्थिति 20 सेकण्ड तक रखें।
- उसके बाद सिर को धीरे-धीरे जमीन की ओर ले जाएं। पहले छाती जमीन पर रखें उसके बाद सिर को जमीन से लगाएं।
- आसन करते समय सांस भरकर कुम्भक करें और आसन को छोड़ते समय सांस, धीरे-धीरे छोड़ें ।
लाभ–
- विभिन्न लाभों के साथ गुर्दो की सक्रियता को बढ़ाता है। इस कारण पथरी बनने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
पथरी के लिए योगासन : पवनमुक्तासन

इस आसन के करने से शरीर की अतिरिक्त वायु से मुक्ति मिलती है। इसीलिए इस आसन को पवनमुक्तासन कहते हैं।
विधि-
- सबसे पहले भूमि पर चित्त लेट जाएं उसके बाद प्राणायाम की पूरक क्रिया करके सांस भीतर लें।
- अब किसी एक पैर को घुटने से मोड़कर, दोनों हाथों को मिलाकर, कैची बनाकर मुड़े हुए पैर को घुटने के पास से पकड़कर पेट से लगाएं। फिर सिर को भूमि पर से उठाकर नासिका को मुड़े हुए पैर के घुटने से स्पर्श कराएं।
- यह क्रिया करते समय सांस भीतर रखें । फिर सिर तथा पैर को भूमि पर रखकर रेचक करें ।
- क्रमशः दोनों पैरों को बदलते रहें। दोनों पैरों को साथ में मोड़कर भी यह आसन किया जा सकता है।
लाभ-
- शरीर की अधिक वायु निकल जाने के कारण वायु से होने वाले दर्द दूर होते हैं। यह योगासन गुर्दो की क्रिया को भी ठीक रखता है।
पथरी के लिए योगासन : उत्तानपादासन

पांवों को उठाने के कारण इसको उत्तानपादासन कहते है
विधि-
- भूमि पर चित्त लेट जाएं। दोनों हाथों को शरीर के साथ सटा-सटाकर कमर की तरफ रखें।
- दोनों पांवों के अंगूठे मिला दें। टांगें तानकर रखें। अब सांस भरकर दोनों पैरों को धीरे-धीरे इतना ऊपर उठाएं कि आपकी कमर भूमि से लग जाए। (लगभग डेढ़-दो फुट के करीब)।
- सांस को जितना रोक सकें उतनी देर पैर ऊपर रखें । घबराहट हो तो, उससे पहले बहुत धीरे-धीरे पैर भूमि पर रखें। शरीर ढीला करके श्वास निकाल दें।
लाभ-
- पेट के विकारों को दूर करता है। चर्बी घटाता है। भूख बढ़ाता है। गुर्दो को पुष्ट करता है।
पथरी के लिए योगासन : हलासन

लेटकर दोनों पैरों तथा हाथों को पीछे की तरफ ले जाने के कारण इस आसन को हलासन कहते है।
विधि-
- भूमि पर चित्त लेटकर दोनों पैर सीधे रखें। दोनों हाथ शरीर से सटाकर रखें। अब सांस छोड़ते हुए टांगों को धीरे-धीरे ऊपर उठाकर आकाश की तरफ ले जाएं। उसके बाद टांगें सीधी करते हुए पीछे सिर की तरफ जमीन से लगाएं।
- ठोढ़ी को छाती से लगाकर कुंम्भक कायम रखें । टांगे नीचे लाने पर पूरक रेचक करें।
लाभ-
- पेट की चर्बी घटाता है व टांगें पीछे जाने के कारण गुर्दो का रक्त प्रवाह उलटा होकर फिर सीधा हो जाता है जिस कारण गुर्दो की सक्रियता बढ़ जाती है।
पथरी के लिए योगासन : धनुरासन

धनुर का अर्थ है धनुष इस आसन के सधने पर शरीर की आकृति खिंचे हुए धनुष के समान बन जाती है इसलिए इस आसन को धनुरासन कहते हैं।
विधि-
- दरी या कम्बल पर पेट के बल लेट जाइए। टांगों को लम्बा फैलाकर सीधा कर लीजिए। बांहों को बराबर रखकर सीधा फैला लीजिए। बाहें बंगलों के साथ लगी रहें।
- अब दोनों टांगों को घुटनों से मोड़कर, दोनों एड़ियों को नितम्बों पर सटाइए।
- दोनों हाथों को पीछे की ओर ले जाइए। बाएं हाथ से बाएं पांव का टखना और दाएं हाथ से दाएं पांव का टखना पकड़ लीजिए |
- अब पूरक करते हुए कुम्भक लगाइए। गर्दन को ऊपर उठाकर, बांहों और टांगों को आकाश की ओर तानते हुए, छाती को ऊंचा उठाइए। गर्दन को पीछे की ओर ले जाकर, आसमान की ओर देखिए ।
- शरीर को पूरी तरह तानते हुए चित्रानुसार आ जाएं। यह इस आसन की पूरी स्थिति है। जितनी देर सरलता पूर्वक रुक सकते हैं, रुकिए।
- शुरुवात में तीन से पांच सेकण्ड करना ही काफी होता है। धीरे-धीरे समय बढ़ा सकते हैं।
- हृदय रोगियों, उच्च रक्तचाप तथा हर्निया के रोगियों को धनुरासन नहीं करना चाहिए।
लाभ-
- मेरुदण्ड मजबूत तथा लचीला बनता है। पेट, छाती, फेफड़े व गुर्दे मजबूत होकर सही कार्य करते हैं।
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