नीम के बारे में सदियों पुरानी कहावत है कि ‘नीम का खाया और बड़ों का सिखाया” शुरू में कड़वा लगता है बाद में मीठा | ‘सूरत मत देखो, सीरत देखो’ यह कहावत भी नीम पर बिलकुल सटीक बैठती है। नीम का मूल नाम ‘निम्ब’ है। और इसका अर्थ ही यही है कि ‘निम्बति स्वास्थ्यं ददाति’ अर्थात् जो निरोग कर दे | नीम को प्रकृति ने मानो प्राकृतिक चिकित्सक के रूप में इसे विशेष रूप से बनाया है। नीम के गुणों की कोई सीमा नहीं है। नीम के द्वारा आप स्वास्थ्य एवं सौंदर्य दोनों बनाए रख सकते हैं। नीम का पेड़ सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य जीवों के लिए भी उपयोगी है। आयुर्वेद के चिकित्सा ग्रंथों में इसका बहुत गुणगान किया गया है । इसकी छाया, पत्ते, फूल, फल, डंठल, छिलका, टहनी, छाया, सबके सब अमृत के समान उपयोगी माने गए हैं। इसके प्रत्येक रेशे में जीवन का अमृत है। तंदुरुस्ती तथा स्वास्थ्य का खजाना है।
नीम के वृक्ष का बॉटनी नाम (Azadirachta Indica ) है यह मुख्यत तीन प्रकार का होता है :- (1) साधारण नीम का पेड़ भारत में सभी जगह उगता है, इसीलिए हर कोई इसे जानता है। (2) मीठा नीम का पेड़ पन्द्रह फीट तक ही ऊँचा जाता है और इसके पत्ते कटे हुए किनारों के नहीं होते। उसमें सफेद फूल लगते हैं। (3) बड़े पत्तों, गुच्छेदार फलों और चालीस फीट तक ऊँचाई वाली नीम को आम बोली में ‘बकायन’ और संस्कृत में ‘महानिम्ब’ कहते हैं। इसका रस बहार के मौसम (फागुन-चैत) में नशीला और कुछ विषैला हो जाता है। नीम का पेड़ भारत में सब जगह पाया जाता है। नीम के पेड़ का महत्व जानकार ही पुराने जमाने में गाँवों में सभी घरो के सामने नीम का तथा पीपल का एक पेड़ जरूर हुआ करता था। पीपल का पेड़ भरपूर ऑक्सिजन देने से हवा को स्वच्छ रखता है तथा नीम घरेलू चिकित्सक का काम करता है। प्रकृति के इन उपहारों से हम निरोग रह सकते है। प्रकृति पर आधारित या कम से कम प्रकृति के साथ ठीक से संयोजन करके हम हमेशा स्वस्थ तथा मानसिक रूप से खुश रह सकते है ।
नीम के पत्तों में कैल्सियम, प्रोटीन, आयरन तथा विटामिन ‘ए’ पर्याप्त मात्रा में है। गंधक का तो यह भंडार ही है। नीम को सबसे बड़ा एंटीसेप्टिक माना गया है। यह बरनॉल, डेटॉल और फिटकरी से भी अधिक प्रभावशाली है। यह घावो में मवाद नहीं बनने देती हैं। घाव का बढ़ना व सड़ना रोकती है, सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करती है। शरीर में विकार नहीं पैदा होने देती है। इसका रस कड़वा होता है। यह कड़वाहट ही असल में अमृत है। नीम ने अपनी कड़वाहट में ऐसे गुण छिपा रखे हैं, जो आज के चिकित्सकों को भी चकित कर देते हैं तथा बड़ी-बड़ी आधुनिक कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स में नीम के उपयोग को बड़ी शान से विज्ञापन में दिखाते है |
नीम का पेड़ भारत में ही पाया जाता है। दुनिया के कुछ अन्य देशों में यह पेड़ भारत से ही गया है । नीम के गुणों पर अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों में जोर शोर से शोध कार्य हो रहा है। नीम के तेल का प्रयोग साबुन बनाने के काम आता है । एच.बी.टी.आई., कानपुर ने शोध से यह निष्कर्ष निकाला है कि निश्चित प्रक्रिया के बाद नीम का तेल खाने के काम में भी आ सकता है। नीम की खली ने खाद का काम किया, फसल एवं पेड़-पौधों के लिए कीटाणुनाशक का काम किया एवं भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि की।
नीम के कैसे-कैसे गुण
- नीम के पत्ते के औषधीय गुण – कोंपलें आँखों के रोग, गर्मी, कोढ़ और कफ दूर करती हैं। नए पत्ते कृमिनाशक, विष-नाशक, अरुचि और अजीर्ण मिटाते हैं। सूखे पत्ते मनुष्य को भी बचाते हैं, कपड़ों को भी।
- नीम के फल के औषधीय गुण – बवासीर, प्रमेह, कोढ़, कृमि और गुल्म शांत करते हैं। पके फल (निबोली) रक्त-पित्त-कफ, आँखों के रोग, दमा दूर करते हैं।
- नीम के फूल के औषधीय गुण – कफ और कृमि के नाशक हैं।
- नीम के डंठल के औषधीय गुण– खाँसी, बवासीर, प्रमेह और संक्रामक विकार मिटाते हैं।
- नीम की गिरी के औषधीय गुण – कोढ़ में विशेषरूप से आरोग्य देती है।
- नीम के तेल के औषधीय गुण – कृमि, कोढ़ और त्वचा रोगों से मुक्ति दिलाकर दाँत, दिमाग, स्नायु और सीने के दर्द मिटाता है।
विभिन्न बीमारियों को ठीक करने के लिए नीम के नुस्खे /Neem Medicinal Uses

- मलेरिया में नीम के रस का काढ़ा सर्वोत्तम दवा है। इसके लिए 50 ग्राम नीम के पत्ते और 4-5 काली मिर्च मिलाकर पीसें और गरम पानी में घोलकर छान लें और पिलाएँ। यह मलेरिया नाशक पेय है।
- दांतों की आम समस्याओ जैसे पायरिया ,दांतों का कीड़ा आदि को दूर करने के लिए ब्रश करने के बाद नीम के पत्तो का पेस्ट दांतों पर लगाये ,सोने से पहले रोजाना ऐसा करने से दांतों में कभी कीड़ा नहीं लगेगा |
- पांच भाग वैसलिन के साथ एक भाग सूखे नीम की पत्ती से बना पाउडर मिलाकर उपयोगी मलहम घर में ही बनाया जा सकता है।
- नीम का काजल आँखों में लगाने से नेत्र साफ और स्वस्थ होंगे।
- किसी व्यक्ति को आधे सिर दर्द-जिसे ‘आधासीसी’ कहते हैं-हो तो नीम की पत्तियाँ, काली मिर्च और चादल बराबर-बराबर मात्रा से लेकर, कूट-पीसकर छान लें। सुबह नसवार की तरह सूंघें इससे छीकें आने लगेंगी और आपको आराम मिलेगा।
- यदि उल्टियाँ हो रही हों तो 25 ग्राम नीम की पत्तियाँ पीसकर पानी में घोलें और छान लें। इसमें 5-6 दाने पिसी काली मिर्च मिलाकर, आधा कप के करीब पानी एक बार में पिला दें।
- हाथ-पैरों में जलन हो तो नीम की पत्तियों को पीसकर हाथ-पैरों में लेप करें।
- नीम की पत्तियों के रस में शहद मिलाकर चाटने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। थोड़ी नीम की पत्तियाँ और थोड़ी-सी हींग मिलाकर पीसें और चटाएँ इससे भी पेट के कीड़े समाप्त होने लगते हैं।
- फिस्टुला से परेशान रोगी को नीम के तेल में भिगोई बाती फिस्टुला पर लगानी चाहिए। इससे जख्म भरता जाएगा और मरीज को ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं होगी।
- बवासीर के रोगी को नीम के फल (निंबोली) से बना मलहम प्रभावित जगह पर लगाना चाहिए।
- नीम रक्तस्रावरोधक तथा रोगाणुनाशक होता है। शरीर के किसी भी हिस्से में खुजली होना, या किसी अंग का लाल हो जाना , सूज जाना, पेशाब में जलन, पेशाब में रुकावट-ऐसे रोगों में भी नीम बहुत ही प्रभावशाली औषधि साबित होता है। इस हेतु नीम के पत्तों के रस में निंबोली को घिसना चाहिए और इसको प्रभावित हिस्से पर लगाना चाहिए।
- बच्चों को रोग हो जाए तो स्त्रियों की जिम्मेदारियां और बढ़ जाती हैं। इस मामले में भी नीम स्त्रियों की सहायता करता है। बच्चों को होने वाले छोटे–छोटे दाने ,खुजली की स्थिति में नीम उपयोगी सिद्ध होता है। नीम के बीजों का तेल प्रभावित हिस्से पर लगाया जाना चाहिए। नीम के पत्तों से बनी पेस्ट भी लगानी चाहिए। नीम साबुन से नहाना चाहिए। तकिया के नीचे नीम के पत्ते रखने चाहिए।
- सिरदर्द की स्थिति में नीम के बीजों का पाउडर अगर माथे पर हल्के से रगड़ा जाए तो सिरदर्द गायब हो जाता है।
- नीम की पत्तियों का रस आँखों में डालने से आँखों के संक्रमण रोग दूर हो जाते है |
- ल्युकोरिया तथा डिसमेनोरिया (मासिक धर्म में तकलीफ, पेट दर्द, अनियमित तथा विरल मासिक धर्म) के समय दस ग्राम नीम के पत्ते के रस में एक बड़ा चम्मच भर शक्कर मिलाकर हर रोज सुबह सवेरे पीना चाहिए।
- डायरिया, दस्त, कब्ज में भी नीम सहायक होता है। डायरिया तथा दस्त की स्थिति में एक छोटा चम्मच नीम के पत्तों का रस शक्कर के साथ दिन में तीन बार पीना चाहिए। इससे पेट भी साफ हो जाता है।
- कब्ज होने पर दो-तीन ग्राम नीम पाउडर तथा 2 से 4 काली मिर्च दिन में तीन बार लेनी चाहिए।
- पेट में कीड़े हो जाएं, नतीजतन भूख बहुत लगे या न लगे, वजन कम हो जाए, पेट में दर्द हो, तो एक ग्राम नीम के पत्तों का पाउडर गुड़ के साथ लें। पेट के कीड़ों से भी मुक्ति मिलेगी।
- मधुमेह के रोगी को एक बड़ा चम्मच नीम के पतों का रस खाली पेट सुबह सवेरे तीन माह तक लेना चाहिए। नीम के दस बारह पत्तो को चबाने से या पाउडर के सेवन करने से भी फायदा होता है। देखें यह पोस्ट – मधुमेह रोगियों के लिए एलोवेरा से बने 18 नुस्खे
- उच्चरक्तपाच से पीड़ित व्यक्ति को हर रोज दो बार एक बड़ा चम्मच भर नीम रस पीना चाहिए।
- चेचक निकलने पर नीम की टहनियों को कमरे के दरवाजे पर लटका दिया जाता है। तथा इसकी टहनी से रोगी को हवा दी जाती है यह कोई अंध विश्वाश का टोटका नहीं है ऐसा करने के पीछे नीम के मेडिसिनल गुणों का उपयोग करना होता है । चेचक एक संक्रामक रोग है। नीम के पत्तों से की गई हवा इसके कीटाणुओं को फैलने से रोकती है तथा रोगी को शीतलता देती है।
- खसरा, माता आदि रोगों में भी नीम की पत्तियाँ लाभदायक हैं। संक्रामक रोग होने के कारण अक्सर यह मरीज के आसपास रहने वाले लोगो को भी लग जाता है इससे बचाव के लिए घर के सभी सदस्यों को नीम की कच्ची, कोंपलें तथा काली मिर्च बराबर-बराबर मिलाकर, पीसकर प्रतिदिन खिलाएं। यह दवा पूरे साल भर इस रोग से आपकी सुरक्षा करेगी। साथ ही यदि खसरा हो गया हो, तो घर के सभी कमरे में नीम की पत्तियां टाँग दें और उससे ही रोगी की दवा करें। दाने सूखने पर नीम के पानी से नहलाएँ तथा नीम का तेल लगाएँ।
- नीम का रस खून साफ करता है और रक्त में लाल कणों की संख्या को बढ़ाता है।
- नीम की सूखी टहनियों को सुलगाकर धुआँ करने से घर के मक्खी मच्छर, कीड़े-मकोड़े भाग जाते हैं।
- आग से जलने पर नीम का तेल लगाएँ यह तेल बनाने के लिए – नीम की पचास ग्राम कोंपले लेकर इसे ढाई सौ ग्राम उबलते सरसों के तेल में इतनी पकाएँ कि यह कोंपलें जल जाएं। यह तेल शीशी में एक-दो बार छान लें। ध्यान इस बात का रखना है कि तेल में कोंपलें काली पड़ जाएँ, जलकर राख न हों।
नीम की छाल के फायदे
- नीम की छाल – नीम की छाल अच्छी किस्म की टॉनिक है। इसमे रेजिनी पदार्थ की उपस्थिति पाई गई है। यह कसैली होती है। मलेरिया बुखार में नीम की छाल का काढ़ा ज्वरनाशी माना गया है। यह भी पढ़ें – जानिए नीम के फायदे चेहरे के लिए तथा 9 बेहतरीन घरेलू उबटन
- आप घाव पर लगाने के लिए मरहम भी बना सकते हैं। ढाई सौ ग्राम नीम के तेल में सवा सौ ग्राम वैक्स (मोम), नीम की हरी पत्तियों का रस एक किलो, नीम की जड़ की छाल का चूरा पचास ग्राम और नीम की पत्तियों की राख पच्चीस ग्राम डालें। तेल और नीम रस को हल्की आँच पर इतना पकाएँ कि तेल भी आधा या उससे कम रह जाये। इसी में मोम डाल दें। तेल और मोम जब मिलकर थोडा सख्त हो जाएँ तो छाल का चूरा और पत्तियों की राख भी मिला दें। यह रामबाण मरहम है और घाव भरने में अद्भुत है। मोम मधु मक्खी के छत्ते से निकला हुआ होना चाहिए मोमबत्ती वाला प्रयोग ना करें |
- एग्जीमा त्वचा का यह रोग शेविंग करने के गन्दे रेजर, टूटे किनारे के ब्लेड से कटाव, और संक्रमण से फैलता है। इसके घाव में से निकला हुआ पानी जहाँ-जहाँ भी लगेगा, वहाँ-वहाँ तक फैल जाएगा। नीम और मजीठ का काढ़ा इस बीमारी को जड़ से उखाड़ देता है। इस रोग के दौरान चाय, शराब, और गर्म चीजे खाना पीना छोड़ दें तो कुछ दिनों में ही आराम आ जाता है। इस काढ़े को बनाने के लिए नीम की छाल, मजीठ, पीपल की छाल, नीम पर चढ़ी गिलोय दस-दस ग्राम लेकर काढ़ा बना लें और आधा कप की मात्रा में सुबह-शाम पिलाएँ।
नीम के तेल का उपयोग
- एग्जीमा वाले अंगों पर लगाने के लिए तेल ऐसे तैयार करें:- दो किलो नीम-पत्ती का रस, आधा किलो सरसों का तेल, पाँच-पाँच ग्राम आक का दूध, लाल कनेर की जड़ और काली मिर्च एक-साथ हल्की आँच पर पकाएँ। जब केवल तेल रह जाये तो उतारकर छान लें और किसी साफ बोतल में भर लें। इसे लगाने से एग्जीमा जड़ से मिट जाएगा और त्वचा पर दाग तक नहीं बचेगा। अगर सिर में एग्जीमा फैल जाये तो जरा भी लापरवाही न करें, क्योंकि यह बालों की जड़ें जवानी में ही पका देता है और उतने हिस्से में सफेद बालों के गुच्छे उगने लगते हैं।
- कोढ़ के मरीजो के लिए नीम, भगवान् का दिया हुआ वरदान है। कोढ़ हो जाए तो रोगी को निरन्तर नीम के पेड़ की छाव में रहना चाहिए । खाना, पीना, पढ़ना और टहलना भी नीम-तले ही अच्छा रहता है। नीम के तेल की मालिश, नीम की पत्तियों का रस पीना और नीम से झड़ने वाला मद पचास ग्राम मात्रा तक पी जाना चाहिए । बिस्तर पर भी नीम-पत्तियों की एक तह बिछानी चाहिए और सुबह-शाम पुरानी पत्तियाँ हटाकर ताजा पत्ते फैलाने चाहिए। नहाने के पानी में नीम-पत्ती का रस मिलाना चाहिए। जली हुई पत्तियों की राख नीम के तेल में मिलाकर घावों पर भुरकते रहें।
- खुजली – नीम और मेहंदी के पत्ते एक-साथ रगड़कर रस निकालें और 25 ग्राम की मात्रा में पी जाएँ। बाकी बचे अंश को नारियल के तेल में उबालकर छान लें और यह तेल खुजली वाले अंग पर मलें।
- खून की खराबी से त्वचा पर दाने फुंसी आदि हो जाते है ऐसी स्थिति में नीम की तीस ग्राम कोंपलों का रस तीन दिन रोज पियें।
- गंजापन – नीम का तेल रोज सिर पर लगाने से गंजापन कम होने लगता हैं। अगर बाल एकदम साफ हो चुके है तो कोई फायदा नहीं होगा। हाँ, यदि सिर में गंजेपन की शुरुवात हुई है तो आपको जरुर लाभ होगा । तीन महीने लगातार नीम तेल लगाएँ । एक महीने तक नर्म हाथों से तेल मलें, उसके बाद दो महीने तक तेल लगाकर हथेली से पूरे सिर पर रगड़कर लगायें । सूखी या रोगी बालों की जड़ों में नीम के तत्व पहुँचते ही यह अपना रंग दिखाने लगेगी।
- तेज गर्मी से बचाव – नीम की पत्तियों के रस में अगर मिश्री मिला दी जाए तो इसका स्वभाव और असर बदल जाता है। सुबह शाम यह शर्बत पीने से शरीर की गर्मी शान्त हो जाती है।
- यदि आँखों में जलन हो तो नीम की पत्तियों का रस निकालकर रुई के फाहे को उसमें भिगोएँ और आँखों पर रखें। जलन और लाली दोनों ही समाप्त होंगी।
- मुंह से बदबू आने की समस्या के लिए पुदीने और नीम की पत्तियों को मिलाकर कुल्ला करे निश्चित की लाभ होगा | ज्यादा जानकारी के लिए देखें – सांस की दुर्गंध– कारण, बचाव और 16 घरेलू नुस्खे
- यदि आँखों में सूजन आ जाए और खुजली भी हो, तो नीम की 15-20 पत्तियों को पानी में उबालें और उसमें 5 ग्राम पिसी फिटकरी घोल दें। इस पानी को छान लें और साफ रुई से आँखें धोएँ। दो-तीन बार धोने से सूजन और खुजली समाप्त होने लगेगी।
- नीम की सूखी पत्तियों को कपड़ों की अलमारी में नीचे बिछाएँ, अनाज की कोठियों के ऊपर-नीचे बिछाए तथा पुस्तकों की अलमारी में रखें, इससे कीड़ों और दीमक से बचाव होगा।
- सूखी पत्तियों को कमरों में जलाएँ। इसके धुएँ से, कीड़े-मकोड़े और मच्छर भाग जाएँगे।
- शरीर में अम्लपित्त की वजह से कई विकार पैदा हो जाते हैं। इसके लिए नीम की छाल, सोंठ और काली मिर्च बराबर-बराकर मिलाकर पीस लें। 10 ग्राम चूर्ण, रोज़ सवेरे ताजे पानी के साथ फाँकें। 3-4 दिनों में स्वास्थ्य लाभ होने लगेगा।
- नकसीर की बीमारी हो तो नीम की छाल को पानी की सहायता से घिसकर गाढ़ा लेप बनाकर माथे पर लगाएँ।
- फोड़े-फुंसी, घावों तथा खुजली पर नीम की छाल घिसकर लगाएँ।
- अजीर्ण की स्थिति में खाना हजम न होने से खट्टी डकार, सिरदर्द, जी मिचलाना तथा कभी-कभी बुखार की स्थिति भी हो जाती है। ऐसे में नीम के फल (निम्बोली) खाने से पेट के विकार ठीक होने लगते है।
- पेट दर्द में 10 ग्राम नीम के बीज, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम तुलसी की पत्तियाँ तथा 8-10 काली मिर्च मिलाकर गाढ़ी चटनी जैसी बनाकर थोड़ी-थोड़ी देर से चटाएँ इससे लाभ होगा।
नीम से हानि – यह भी याद रखें की नीम को एक मेडिसिनल पौधे के रूप में उपयोग करना चाहिए इसका अर्थ यह है की इसको बताये अनुसार एक निश्चित मात्रा में ही उपयोग करें इसका बेतरतीब प्रयोग नुकसान भी पंहुचा सकता है जैसे जी मिचलाना, उलटी होना आदि | दूध पिलाने वाली स्त्रियों को नीम या करेले का सेवन नहीं करना चाहिए | व्रत या उपवास के दौरान भी नीम का सेवन ना करें |
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1 thought on “नीम के फायदे – नीम के तेल, पत्ते, रस तथा छाल के 44 औषधीय गुण”