जानिए दिल की बीमारी पता करने के लिए हार्ट टेस्ट एंजियोग्राफी तथा RGCI क्या है ?

हृदय रोगों और धमनियों में रुकावट का समय से पहले पता लगाना मरीजों की मृत्यु और दिल के दौरे से बचाने का एक कारगर तरीका है। अचानक दिल के दौरे पड़ने वाले ज्यादातर लोगों की रक्त-धमनियों में शुरुवात में रुकावट 40-50 प्रतिशत ही होती है। हृदय को रक्त उपलब्ध करानेवाली रक्त-धमनियों में कोलेस्टेरॉल के जमाव और हृदय की अन्य तरह की समस्याओं को समय पहले पता लगाने तथा उनका पहले ही पता लगाने के लिए कई हार्ट टेस्ट की खोज हुई है। इन तकनीकों के कारण दिल के मरीजों को दिल के दौरे के कारण होनेवाली समय से पहले मृत्यु को टाला जा सकता है । यहाँ ऐसी कुछ हार्ट टेस्ट के बारे में बताया गया है | इस आर्टिकल में RGCI – Realistic Geometry Cartographic Imaging और Angiography हार्ट टेस्ट के विषय में बताया गया है |

हृदय रोगों की जाँच (हार्ट टेस्ट) के लिए Angiography के अलावा इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, ट्रेडमिल टेस्ट, हॉल्टर मॉनीटरिंग जाँच, थैलियम मायोकार्डियल सिंटिग्राफी अथवा रेडियो न्यूक्लियर जाँच, मूंगा टेस्ट अथवा रेडियोन्यूक्लाइड वेंट्रीकुलर परफॉरमेंस टेस्ट जैसी विधियाँ उपलब्ध हैं | अंग्रेजी नाम नीचे लिखे है |

  • Electrocardiogram
  • Treadmill Test
  • Holter Monitoring Check
  • Thallium Myocardial Scintigraphy or Radio Nuclear Check
  • Coral Test or Radionuclide Ventricular Performance Test

तो आइये सबसे पहले RGCI हार्ट टेस्ट के विषय में जान लेते हैं |

हार्ट टेस्ट : RGCI – Realistic Geometry Cartographic Imaging क्या है?

heart test name in hindi जानिए दिल की बीमारी पता करने के लिए हार्ट टेस्ट एंजियोग्राफी तथा RGCI क्या है ?

रियलिस्टिक ज्योमेट्री कार्टोग्राफी इमेजिंग तकनीक पर आधारित हीमोट्रॉन नामक अत्याधुनिक कंप्यूटरीकृत मशीन हमारे देश के कुछ केंद्रों में ही उपलब्ध हो गई है। इस तकनीक का पश्चिमी देशों में बहुत अधिक इस्तेमाल हो रहा है, जबकि भारत में केवल छह केंद्रों पर इस हार्ट टेस्ट का इस्तेमाल हो रहा है। नई दिल्ली के अलावा बंगलौर, मुंबई, कोच्चि और मैसूर में यह मशीन लगी है।

भारत में हृदय रोगों के मामलो में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर यह तकनीक वरदान साबित हुई है  । इस तकनीक की मदद से बहुत कम खर्च में हृदय रोगों के गंभीर होने से काफी पहले रक्त-धमनियों में रूकावट का पता लगाकर मरीज को दिल के दौरे के खतरे से बचाया जा सकता है। अब तक इसके लिए कोई कारगर एवं आसान विधि उपलब्ध नहीं थी। इस समय हृदय की रक्त-धमनियों में ब्लोकेज का पता लगाने के लिए एंजियोग्राफी (कार्डियक कैथराइजेशन) का प्रयोग किया जाता है; लेकिन यह इतनी महँगी, कठिन एवं जटिल है कि मरीज अंतिम स्थिति में ही एंजियोग्राफी करवाने के लिए तैयार होता है। इसके अलावा इससे आम तौर पर हृदय की धमनियों में 50 प्रतिशत या उससे अधिक ब्लोकेज होने पर ही पता चल पाता है, लेकिन तब तक मरीज की हालत काफी खराब हो चुकी होती है।

ऐसे में रियलिस्टिक ज्योमेट्री कार्योग्राफी इमेजिंग तकनीक पर आधारित हीमोट्रॉन हृदय रोगियों के लिए वरदान बनकर सामने आई है। इस तकनीक के माध्यम से मरीजों की जान बचाने अथवा उनके हृदय रोग को रोकने में मदद मिलेगी। साथ-ही-साथ मरीज को एंजियोग्राफी जैसी कठिन, कष्टप्रद एवं महँगी जाँच-प्रक्रिया से भी नहीं गुजरना पड़ेगा। हीमोट्रॉन की मदद से कुछ ही मिनटों में न केवल हृदय को रक्त उपलब्ध करानेवाली रक्त-धमनियों में रुकावट के बारे में, बल्कि इन रक्त-धमनियों में रक्त प्रवाह, हृदय को हो रही रक्त की आपूर्ति की स्थिति और हृदय के सिकुड़ने एवं फैलने के समय-अंतराल के बारे में ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ तथा तसवीरें प्राप्त हो जाती हैं जिन्हें अब तक की किसी भी जाँच तकनीक की मदद से हासिल करना संभव नहीं था। इस तकनीक की मदद से एंजाइना दर्द और उससे पहले की मायोकार्डियल इस्कीमिया की स्थिति का वर्षों पहले ही पता लगाकर और मरीज का इलाज शुरू करके बाईपास सर्जरी के बिना मरीज की जान बचाई जा सकती है। इस तकनीक की मदद से कोरोनरी धमनियों में 20 प्रतिशत के जमाव का भी पता लगाया जा सकता है। इतना जमाव होने पर किसी तरह के लक्षण या कष्ट नहीं उभरते। जबकि एंजियोग्राफी की परंपरागत विधि की मदद से 50 प्रतिशत से अधिक रुकावट होने पर ही पता चलता है। इस तकनीक से हृदय धमनियों में अस्थिर जमाव (इलास्टिक स्टिनोसिस) का भी पता चल जाता है, जिसे कोरोनरी एंजियोग्राम की मदद से देखना संभव नहीं होता है। अध्ययनों से पता चला है कि इस नई तकनीक की मदद से 80 से 98 प्रतिशत शुद्धता के साथ रक्त-धमनियों में जमाव का पता चल सकता है। इस तकनीक से जाँच के लिए मरीज को न तो बेहोश करने की और न ही अस्पताल में भरती करने की जरूरत पड़ती है। यही नहीं, इसमें एंजियोग्राफी की तरह मरीज को न तो किसी तरह का इंजेक्शन दिया जाता है, न ही जाँघ में छेद करके कोई कैथेटर ही प्रवेश कराया जाता है और न ही उसके शरीर में किसी तरह की डाई दी जाती है।

RGCI – Realistic Geometry Cartographic Imaging जाँच की विधि  

इस मशीन की मदद से हृदय की जाँच यानि हार्ट टेस्ट करने के लिए मरीज की छाती पर इस मशीन से जुड़े 12 इलेक्ट्रोड तथा एक अत्यंत संवेदनशील फोन ट्रांसड्यूसर रखे जाते हैं। इस मशीन का संबंध कंप्यूटर से होता है। इसमें मरीज के हृदय तथा रक्त-धमनियों के बारे में तमाम जानकारियाँ एवं तसवीरें बन जाती हैं। इन्हें कंप्यूटर मॉनीटर पर देखा जा सकता है और इनके प्रिंट लिये जा सकते हैं। कंप्यूटर इन जानकारियों का विश्लेषण करके मरीज के दिल की पूरी स्थिति का विवरण दे देता है। मरीज की जाँच कितने समय तक करनी है, यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। आम तौर पर इसके लिए मरीज के हृदय की 1024 धड़कनों तक उसका जायजा लिया जाता है। हार्ट टेस्ट की इस पूरी प्रक्रिया में आधे घंटे का समय लगता है। इसकी मदद से हृदय की रक्त-धमनियों में जमाव या अवरोध का पता तो चलेगा ही, साथ-ही-साथ इससे हृदय की संपूर्ण प्रणालियों में रक्त के बहाव एवं रक्त की गतिशीलता, दिल की हर धड़कन के दौरान आयतन, हृदय के सिकुड़ने तथा फैलने का समयांतराल, हृदय की मांसपेशियों को होनेवाली रक्त एवं ऑक्सीजन की आपूर्ति, हृदय में रक्त एवं ऑक्सीजन के रिजर्व की स्थिति तथा हृदय के बाएँ निलय से रक्त के पास होने की दर जैसी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं। इसके अलावा हृदय की रक्त आपूर्ति की तमाम प्रणालियों की वास्तविक स्थिति की तसवीरें प्राप्त होती हैं। इन सबकी मदद से मरीज के इलाज की सही रणनीति बनाई जा सकती है और मरीज को सही सलाह दी जा सकती है। कई बार रक्त-धमनियों में रुकावट होने के बावजूद हृदय की मांसपेशियों को सामान्य दिनचर्या एवं काम-काज के लिए जरूरी रक्त मिलता रहता है; लेकिन मरीज अगर सीढ़ियाँ चढ़े या तेजी से चले अथवा अधिक तनाव हो तो उसे समस्या पैदा हो सकती है। मरीज को इस तरह के सही सुझाव दिए जा सकते हैं।

हार्ट टेस्ट : एंजियोग्राफी ?

एंजियोग्राफी हार्ट टेस्ट से रक्त-धमनियों में ब्लोकेज का पता लगाने के लिए जाँघ के एक हिस्से को दवा की मदद से सुन्न करके वहाँ छोटा चीरा लगाकर फिमोरल धमनी में ट्यूब की शक्ल की लंबी कैथेटर प्रवेश कराई जाती है। इसके लिए रक्त-धमनियों में काफी मात्रा में डाई डालनी पड़ती है, जिसके कई साइड इफ़ेक्ट होते हैं। कई मामलों में जटिलताएँ पैदा भी हो जाती हैं। इसके कई मामलों में मरीज की जान को खतरा पैदा हो सकता है और उसकी बाईपास सर्जरी करने की जरूरत पड़ सकती है। दूसरी तरफ नई विधि से जाँच करने के दौरान किसी तरह के साइड इफ़ेक्ट और जटिलता पैदा होने का खतरा नहीं रहती है। मरीज को न तो इंजेक्शन देना पड़ता है, न उसकी धमनियों में कैथेटर उतारना पड़ता है और न डाई डालनी पड़ती है। इसके अलावा इस तकनीक में बहुत कम खर्च आता है और जाँच के परिणाम एंजियोग्राफी की तरह ही अच्छे होते हैं। इसके अलावा इस मशीन के कारण मरीजों को एंजियोग्राफी के कष्ट, खर्च से भी बचाया जा सकेगा। फिलहाल रक्त-धमनियों में रुकावट की जाँच के लिए एकमात्र हार्ट टेस्ट एंजियोग्राफी ही उपलब्ध होने के कारण चिकित्सकों के लिए मरीज की एंजियोग्राफी कराने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता। इनमें से ज्यादातर मरीजों की हृदय धमनियों में 50 प्रतिशत या उससे कम रुकावट पाई जाती है। ऐसे मरीजों की एंजियोप्लास्टी या बाईपास करने की जरूरत नहीं होती। लेकिन एंजियोग्राफी के विकल्प के तौर पर इस नई तकनीक का विकास होने के कारण अब सभी हृदय रोगियों की एंजियोग्राफी करने की जरूरत नहीं रहेगी, बल्कि इस मशीन के जरिए मरीज की जाँच करके सही स्थिति का पता लगा लिया जाएगा। जिन मरीजों में बहुत ज्यादा रुकावट होगी उन्हें आगे की जाँच एवं चिकित्सा कराने की जरूरत पड़ेगी, लेकिन जिन मरीजों की रक्त-धमनियों में कम रुकावट होगी उनका इलाज दवाइयों, परहेज एवं रहन-सहन में सुधार के आधार पर हो सकेगा। हमारे देश में हर साल करीब 25 लाख लोग हृदय रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। कुल हृदय रोगियों में से लगभग 50 प्रतिशत की मौत अचानक दिल के दौरे अथवा एंजाइना से हो जाती है। इन असामयिक मौतों को रक्त-धमनियों में रुकावट का समय से पहले पता लगाकर रोका जा सकता है |

मेट्रो कोरोनरी स्क्रीनिंग

धमनियों की रुकावट का समय पूर्व पता लगाने के लिए मेट्रो कोरोनरी स्क्रीनिंग नामक नई पद्धति विकसित की है। यह तकनीक भारत के मरीजों के लिए लाभकारी है। यह एक नई परिकल्पना है। इसकी मदद से हृदय रोगों के खतरों से युवा मरीजों की समस्या का बहुत ही आसान एवं कारगर तरीके से पता लगाया जा सकता है। मेट्रो स्क्रीनिंग से अगर यह पता चल जाए कि उनमें 40 से 50 प्रतिशत ही कोलेस्टेरॉल का जमाव है। तब उन्हें योग, ध्यान और व्यायाम की मदद से, जीवन-शैली एवं खान-पान में बदलाव लाकर, धुम्रपान से परहेज करके, कोलेस्टेरॉल तथा रक्तचाप को नियंत्रण में लाकर हृदय रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है तथा उनकी जीवनचर्या को सक्रिय बनाए रखा जा सकता है। अगर मरीज की धमनियों में गंभीर रुकावट का पता चलता है। तब समय से इस रुकावट का पता लगाकर उनकी जान बचाई जा सकती है।

मेट्रो कोरोनरी स्क्रीनिंग भौतिकी के फ्ल्यूड डाइनेमिक नामक फॉर्मूले पर आधारित है। इस फॉर्मूले के अनुसार, अगर पतले कैथेटर से किसी तरल की थोड़ी मात्रा पूरे दबाव के साथ दी जाए तो वह कैथेटर के दूसरे छोर पर बहुत तेजी से निकलता है। मेट्रो स्क्रीनिंग में इसी फॉर्मूले के अनुसार कैथेटर के द्वारा बहुत थोड़ा सा डाई इंजेक्ट किया जाता है, लेकिन इससे तसवीर एंजियोग्राफी की ही बनती है। इस जाँच से सभी कोरोनरी धमनियों का पता चल जाता है। मेट्रो स्क्रीनिंग से हृदय की रक्त-धमनियों की जाँच करने में 10 मिनट से भी कम समय लगता है और 1 घंटे के भीतर व्यक्ति घर चला जाता है। मेट्रो स्क्रीनिंग के साथ-साथ इको कार्डियोग्राफी और रक्त की सभी जाँचें भी की जाती हैं। इको कार्डियोग्राफी से हृदय तरंगों का पता चल जाता है और रक्त की जाँच से रक्त में यूरिया, शुगर, गुरदे के कार्य आदि का पता चल जाता है।

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