डायबिटीज में पैरों की देखभाल -“डायबिटिक फुट” वाक्य दरअसल पैरो की उन बिमारियों से सम्बंधित है जो मधुमेह रोगियों को अक्सर हो जाती है | (जैसे पैर में अल्सर या घाव या गैंगरीन) ये सब डायबिटीज के ही गंभीर साइड इफ़ेक्ट हो सकते है। पैर शरीर का अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। चलना, बैठना, दौड़ना, खड़े होना ये सारी क्रियायें पैरों के कारण ही होती हैं। एक चिकित्सकीय सर्वेक्षण के अनुसार डायबिटीज की वजह से देश में हर साल 45 हजार टांगें काटनी पड़ती हैं। एक अनुमान के अनुसार विश्व में कहीं न कहीं प्रत्येक 30 सेकेंड पर किसी व्यक्ति की एक टांग डायबिटीज की वजह से कटती है। इसी तरह शरीर के निचले भाग में होने वाली 40-70 प्रतिशत अंग काटने से संबंधित ऑपरेशन सिर्फ डायबिटीज की वजह से होते हैं। डायबिटीज का हर 5वां मरीज डायबिटिक फुट का मरीज हो जाता है।
डायबिटीज के कारण शरीर की सभी तंत्रिकायें (Nerves) व नसों पर प्रभाव पड़ता है। डायबिटीज का पैरों की मांसपेशियों व खूनवाहनियों पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। क्योंकि शरीर में हृदय के बाद सबसे अधिक उपयोग में आने वाला अंग पैर ही है। अधिक बढ़ी हुई शूगर का प्रभाव मांसपेशियों पर पड़ता है जिससे उनकी कार्यक्षमता कम होती है और पैरो को खून पहुँचाने वाली नली में जाने वाली शुद्ध खून की मात्रा भी कम हो जाती है | डायबिटीज होने पर सामान्यत: पाँच से सात वर्षों में मांसपेशियों पर इसका प्रभाव दिखाई देने लगता है। परन्तु डायबिटीज के परीक्षण के बाद डायबिटीज का पता चलता है लेकिन वह कब से है इसका पता नहीं चलता कई बार पैरों में दर्द होने से जाँच कराने पर डायबिटीज के होने की जानकारी होती है। इसी प्रकार डायबिटीज के कारण अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता के कारणों में 60% रोग पैरों में तकलीफ होने के कारण ही होते हैं ऐसा देखा गया है। पैरो की इन तकलीफों के लक्षण है – पैरों में गर्म चीजों का अहसास नहीं होता। बिना जोड़ों में सूजन के पैर सुन्न पड़ जाते हैं, पैरों की संवेदना खत्म हो जाती है, पैरों में सूजन, पैरों में खुला घाव आदि, पैरों के नाखूनों के आसपास बदलाव, पैरों की संरचना और रंग में बदलाव, पैरों में कंपन या झनझनाहट, पैरों में बहुत ज्यादा थकान महसूस होना और पैरों में जलन महसूस होना |
डायबिटीज में तंत्रिका तंत्र (Nervous system) पर होने वाले प्रभाव के कारण पैरों में प्राय: तीन प्रकार के परिवर्तन होते हैं –जो न्यूरोपैथी के अंतर्गत आते है |
- 1) Autonomic Neuropathy
- 2) Sensory Neuropathy और
- 3) Motor Neuropathy
डायबिटीज में पैरों की देखभाल के उपाय:-
- (Autonomic Neuropathy) – इसके कारण त्वचा की स्निग्धता कम हो जाने से त्वचा सूखने लगती है, पसीना आना बंद हो जाता है, पसीना बंद होना यह अच्छा लक्षण नहीं हैं क्योंकि पसीना आने से जख्म नहीं होते। पसीना न आने के कारण त्वचा सूखी होकर पैरों में बिवाई फटने लगती है और खुजलाने पर जख्म हो जाते हैं ।
बचाव के लिए ये कदम उठायें
- प्रतिदिन 2 से 4 बार पैरों को पानी से धोना चाहिए
- डायबिटीज पीड़ितों में गैंगरीन की समस्या आम है। इससे बचाव के लिए यह जरूरी है कि मरीज अपने पैरों को गुनगुने पानी से धोएं। आईना रखकर पैर के तलवों का निरीक्षण करें। सूती मोज़े पहनें और ध्यान रखें पैरों में किसी तरह की चोट न लगे या संक्रमण न हो।
- पैर अच्छी तरह से सुखाकर नारियल का तेल, घी या मलहम लगाना चाहिये, इससे त्वचा नम रहेगी।
- पैरों में हमेशा जुराब (मौजे) पहनने चाहिये।
- पैरों पर ज्यादा दबाव न पड़ने दें। और पैरों को लटकाकर न बैठें। उन्हें ऊंचा रखें।
- नियमित चलना भी पैरों में सुचारू खून संचार के लिए अच्छा तरीका है |
संवेदी तंत्रिकाजन्य विकृति (Sensory Neuropathy) –

- इसमें पैरों की संवेदन शक्ति कम होती जाती है और पैर सुन्न पड़ने गलते हैं। पैरों को कोई भी स्पर्श समझ में नहीं आता है। कई बार ऐसा दिखाई देता है कि पैरों में चप्पल है या वह गिर गई है तब भी समझ में नहीं आता। ऐसा होने पर डायबिटीज का पता लगता है। चप्पल कसी हुई पहनने से पैरों में फोड़े होते हैं, इस प्रकार से पैर गरम लगते हैं, पैरों में जलन होती है पैरों में चीटियां आती है, बिजली का करंट लगने का आभास होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसा होने पर गरम पानी, बर्फ, मालिश, लेप सरीखे उपाय करने से गंभीर प्रभाव यहां तक कि पैर खराब होने की भी संभावना होती है इसमें पैरों में बहुत दर्द व झनझनाहटहोती है। यह दर्द खून में शुगर की मात्रा ज्यादा होने के कारण होता है। इसी प्रकार इस दर्द का संबंध मानसिक तनाव से भी होता है। शुगर की मात्रा 60 – 70% नियंत्रित करने पर दर्द कम होता है।
- डायबिटीज में पैरों की देखभाल के लिए ऐसी चप्पलें नहीं पहननी चाहिये जिनमें सिलाई अन्दर की और हो या कीलें, पट्टे, बक्कल्स लगी हुई है।
- पैरों की उंगलियों के बीच पट्टा नहीं होना चाहिये।
- डायबिटीज में पैरों की देखभाल के लिए सबसे महत्वपूर्ण कि नंगे पैर नहीं चलना चाहिये |
Motor Neuropathy
- इसमें मांसपेशियों की शक्ति कम होती है जिससे पैरों का आकार बदलता रहता है और इसमें पैरो के नाखून भारी होते है तथा पैरों की उंगलियां पास आने लगती हैं, उगलियां टेढ़ी होना, पैर टेढ़े होना, पैरों के तलवो में सूजन होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। पैरों में इस प्रकार का परिवर्तन होने पर पैरों के ऊपर वजन बढ़ता है, तथा सुन्न हुए पैरो में बढ़े हुए भार से तनाव होता है।
- मधुमेह के कारण रतवाहिनियों पर प्रभाव पड़ता है। रतवाहिकायें सिकुड़ने से रक्त प्रवाह कम होता है।
- मधुमेह में पैरो दर्द होना रक्त की आपूर्ति कम होने का संकेत होता है | इसकी कमी होने से थोडा सा चलने पर भी पैरों में गोले उठने लगते हैं।
- जख्म होने से पैर खराब (Gangrene) होने की संभावना होती है। कई बार पैर गंवाना भी पड़ता है।
- पैरों में होने वाले जख्मों में 85% जख्म इस अनियमित भार के कारण ही होते हैं |
बचाव के उपाय:-
- डायबिटीज में पैरों की देखभाल के लिए जख्म (घाव) हुए मधुमेही व्यक्ति को ज्यादा समय तक लगातार नहीं चलना चाहिये ।
- 15-20 मिनिट से ज्यादा एक ही स्थिति में खड़ा नहीं रहना चाहिये।
- आराम करना चाहिये ।
- चप्पल और जूते नरम मुलायम होने चाहिए | चमड़े के जूतों की जगह स्पोर्ट्स शूस या कपड़े से बने जूते अच्छे रहते है |
- किसी भी तरह के तंग कपड़े न पहनें जिससे खून के प्रवाह में रुकावट आए।
डायबिटीज में पैरों की देखभाल करने के कुछ और टिप्स
- चप्पल पहने बिना नहीं चलना चाहिये ।
- पैरों के नाखून नियम से काटने चाहिये।
- नाखूनों को सीधा काटें जिससे उनके किनारे खाल से थोड़ा बाहर निकले हुए रहें |
- दिन में 2/3 बार पैरों को साधारण पानी से धोना चाहिये।
- कभी-कभी साबुन भी लगाना चाहिये।
- नये जूते/चप्पल प्रतिदिन थोड़ी देर पहनकर चलना चाहिये ताकि जब आपको इन्हें लम्बे समय तक प्रयोग करना पड़े तो रगड खाकर त्वचा ना छिले ।
- पैरों में घाव/जख्म होने पर स्वयं उपाय न कर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिये ।
- पैरों को दबा-दबा कर देखें कहीं कोई दर्द तो नहीं हो रहा है |
- पैरों का व्यायाम करना चाहिये।
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