डायबिटीज एक जीवन भर चलने वाला रोग है। डायबिटीज रोगी अगर सावधानी से ना रहे तो उसको डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स का सामना भी करना पड़ सकता है जो रोगों की एक जटिल श्रंखला होती है, जैसे की एक कहावत है “एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा” मतलब दोगुना कडवा | खैर, इस पोस्ट को लिखने का हमारा मकसद डायबिटीज से पीड़ित रोगियों को जागरूक बनाना है क्योंकि इस रोग को काबू में ना रखा जाए तो इसके परिणाम कितने खरनाक हो सकते है क्योंकि मधुमेह से आप केवल दवाइयों के सहारे कभी नहीं जीत सकते हैं इसके लिए आपको कई स्तरों पर प्रयास करने पड़ेंगे और यकीन मानिये आपके डॉक्टर के हाथ में केवल कुछ प्रतिशत ही इलाज है जो केवल दवा और जाँच तक ही सिमित है | इससे आगे सारा उपचार केवल आपके ही हाथ में है जैसे – 1) आहार नियंत्रण (2) नियमित दवाई लेना (3) व्यायाम करना (4) डायबिटीज संबंधी ज्ञान — इन चारो विषयों पर हम अपनी वेबसाइट पर जानकारी प्रकाशित करते रहते है और आगे भी करते रहेंगे |
यदि रक्त में शूगर का स्तर लंबे समय तक ऊंचा बना रहे, तो उससे मरीज के शरीर में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। ज्यादातर मरीजों को शुरू में डायबिटीज की वजह से कोई लक्षण पैदा नहीं होते, इसलिए वे सोचते हैं कि मुझे कोई तकलीफ नहीं है तो मैं दवाई क्यों लू? जबकि डायबिटीज चुपचाप रोगी को अंदर ही अंदर नुकसान पहुंचाता रहता है और शुरू में मरीजों को इसके हमले का पता भी नहीं चलता। लेकिन जब इन महत्वपूर्ण अंगों पर असर होने लगता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। डायबिटीज के कारण इन अंगों की जो नुकसान हो चुका होता है उसकी भरपाई कोई दवा नहीं कर सकती। लेकिन जितना बचा है उसे संभाल लेने में ही मरीज की भलाई है।
यह नुकसान किसी मरीज़ को 5 वर्ष में तो किसी को 10 से 15 या बीस वर्ष के बाद सामने आ सकता है, अतः मरीज़ को सतर्कता बरतनी चाहिए। आसान भाषा में समझे तो मधुमेह के रोगी यदि अपनी शुगर को कंट्रोल नहीं करते है तो भविष्य में उनके नीचे दी गई बीमारियाँ होने की संभावना बहुत अधिक होती है | तो आइये जानते है डायबिटीज से होने वाली जटिलताएं एवं गंभीर स्वरूप |
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स : शरीर के अंगो पर

- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – दांतों पर
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – दिमाग पर
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – हृदय और धमनी पर
- डायबिटीज व दिल की बीमारी का संबंध
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – किडनी (गुर्दे) पर
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – त्वचा पर
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – अन्य बीमारियाँ (जैसे – गैंगरिन, संक्रमण, टी.बी, हाथ पैरों में सुन्नता, लकवा आदि )
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – दांतों पर
- डायबिटीज के रोगियों को अपने पूरे शरीर की समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत होती है। ऐसे मरीज़ को अपने मुंह के स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक होना बहुत जरूरी है। उनके लिए दांतों की देखभाल का भी उतना ही महत्व है जितना पैरों की। चूंकि डायबिटीज के रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है इसलिए उनके दांतों पर भी सीधा असर होता है।
- रोगी के मुंह में ऐसा विशेष संक्रमण हो जाता है जिससे दांत और मसूड़े कमजोर हो जाते हैं। मुख हमारे शरीर का द्वार होता है। मुंह, दांत व मसूड़ों में पनपने वाली बीमारियां शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को रक्त के माध्यम से संक्रमित अन्य लोगों के मुकाबले कमजोर हो जाती है। भीतर की त्वचा में होता है।
- प्रायः ये पाया जाता है कि डायबिटीज के रोगियों के मुंह में एवं दातों से एक किस्म का संक्रमण प्रारंभ होता है, जिससे न केवल दांत और मसूड़े कमजोर होते हैं, उनमें सूजन आती है, बल्कि निरंतर बदबू बनी रहती है। ये संक्रमण न केवल दांतों के लिए नुकसानदेह है, बल्कि कई जानलेवा खतरनाक बीमारियों को आमंत्रित करते हैं।

- यदि डायबिटीज का रोगी शराब, तंबाकू, सिगरेट और पान मसालों का शौकीन है तो स्थिति और भी खराब हो जाती है।
- इसके पहले कि मधुमेही का इस तकलीफ से सामना हो, उसे जल्द से जल्द किसी कुशल दंत चिकित्सक को एक निश्चित अवधि के अंतराल में दांतों का परीक्षण करवाते रहना चाहिए।
- मुंह संबंधित एक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया कि कैंसर जनित एवं कैंसर पूर्व के अधिकांश रोगी डायबिटीज से पीड़ित थे। जो रोगी डायबिटीज को दवाइयों व परहेज़ से नियंत्रित रखे हुए हैं व मुख की अच्छी साफ-सफाई पर ध्यान देते हैं उनके मसूड़ों में रक्त संक्रमण नहीं होता। पर ऐसे मरीज़ जिनका डायबिटीज कट्रोल नहीं है उन्हें मुंह में निम्न विकार दिखाई देते हैं
- मसूड़ों से खून व मवाद का आना।
- मसूड़ों में जगह-जगह गांठ का बन जाना।
- बार-बार दांत साफ करने व कुल्ला करने के बाद भी बदबू आना
- दांतों का धीरे-धीरे हिलना व पाकेट का बन जाना ।
- लार की कमी, मुंह सूख जाना व सांस लेने में एक प्रकार की सड़ी बदबू (एसीटोनिक ओडर) का आना।
- बार-बार बुखार का आना
- होठों के किनारे का फटना
बचाव के उपाय
- ऐसे मरीज़ को समय-समय पर दंत रोग विशेषज्ञ से दांतों की अच्छी सफाई, मसूड़ों का इलाज़, दंत क्षय का भराव आदि शीघ्र करवाना चाहिए।
- दिन में दो बार ब्रश अवश्य करें।
- जीभ को नर्म ब्रश से साफ करें।
- नियमित रूप से माउथवाश का उपयोग करें। दांतों के बीच की सफाई करनी चाहिए।
- मसूड़ों की मालिश पर विशेष ध्यान दें।
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – दिमाग पर

- डायबिटीज के मरीजों को मिठाई व इंजेक्शन दोनों का बड़ा ही डर रहता है। डायबिटीज की डर से तो सभी परिचित हैं। पहली बार जब किसी व्यक्ति को डायबिटीज का पता लगता है तो उसे एक झटका सा लगता है कि मुझे डायबिटीज कैसे हो गया?
- ये स्टेज ऑफ शॉक कहलाती है, जिसमें वह ऐसा समझता है कि उसकी तो दुनिया ही लुट गई, अब उसका क्या होगा? वह हर वक्त घबराया-घबराया सा रहता है। जरा-जरा सी बात पर वो डर जाता है।
- इससे उल्टा कई बार डायबिटीज का मरीज ये मानने की तैयार नहीं होता है कि उसे डायबिटीज हो गया है और वह दो-तीन या ज्यादा बार इसकी पुष्टि अपने तरीके से करता है, ये स्टेज ऑफ डिनायल कहलाती है।
- इसके बाद आती है स्टेज ऑफ वरीज़, जिसमें मरीज हमेशा चिंतित रहता है कि अब उसे खाने-पीने में बहुत-सी बातों का ध्यान वगैरहा-वगैरहा ? जरा-जरा सी बात पर वो घबरा-सा जाता है और चिंता से ब्लड शुगर और बढ़ जाती है।
- इसके बाद स्टेज ऑफ फीअर आती है, जिसमें मरीज हमेशा डरा-डरा सा रहता है कि कहीं उसकी शक्कर कम हो गई और वह बेहोश हो गया तो ? कहीं उसका पैर न कट जाए? अब उसे मिठाई खाने को नहीं मिलेगी, शादी-ब्याह में कैसे जाएंगे, वहां कैसे खाना खाएंगे? लोग क्या सोचेंगे ?
- और अंत में स्टेज ऑफ डिप्रेशन, जब मरीज को ये सभी लक्षण कम या ज्यादा मात्रा में लगातार लंबे समय तक बने रहते हैं तो वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है एवं डिप्रेशन या अवसादग्रस्त दिखता है, जो उसकी ब्लड शुगर की घट-बढ़ के लिए जिम्मेदार होता है? उपरोक्त सभी परिस्थितियां सभी मरीजों में नहीं आती हैं। यह किसी में कोई तो किसी में कोई, किसी में कम, किसी में ज्यादा होती हैं। ऐसे सभी मरीजों को सायको थेरेपी से मदद मिलती है। कभी-कभी एंटी डिप्रेशन दवाइयां भी देनी पड़ती हैं। पढ़ें यह पोस्ट –मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के उपाय- Stress Management.
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – हृदय और धमनी पर

- डायबिटीज और हृदय धमनी रोग (एंजाइना, हार्ट-अटैक) दोनों तेजी से बढ़ रहे है। कुछ समय पहले यह धारणा थी कि ये दोनों उच्च वर्ग एवं बुढ़ापे के रोग हैं। किंतु जीवन में बदलाव, गलत खान-पान, बढ़ते मोटापे, तनाव, सक्रियता में कमी, बढ़ते तंबाकू सेवन इत्यादि कारणों से ये रोग महामारी का रूप ले रहे हैं।
- डायबिटीज रोग में रक्त ग्लूकोज़ बढ़ने के साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा भी असामान्य हो जाते हैं। हृदय धमनियों द्वारा लाए गए रक्त के माध्यम से पहुंचाए गए पोषण पर निर्भर होता है। धमनियां काफी कम मोटाई की नलिकाएं होती हैं। हृदय को जाने वाली सबसे बड़ी धमनी माचिस की तीली जितनी ही मोटी होती है।
- डायबिटीज में शरीर में अतिरिक्त शुगर वसा में परिवर्तित हो जाती है। यह वसा रक्त में मिलकर ‘हाइपरलिपिडेमिया’ का अतिरिक चौड़ाई और भी कम हो जाता है, अंत में ये बंद तक ही जाती हैं। जब हृदय तक रक्त नहीं पहुंचता तो हार्ट-अटैक हो जाता है। डायबिटीज रोगियों में सामान्य लोगों की अपेक्षा हार्ट-अटैक से मृत्यु की दुगनी संभावना रहती है।
डायबिटीज व हृदय धमनी रोग में संबंध
- डायबिटीज रोगियों में हृदय रोग अपेक्षाकृत कम आयु में ही सकते हैं। दूसरा अटैक होने का खतरा हमेशा बना रहता है।
- मासिक धर्म से पहले महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण हृदय रोगों का खतरा पुरुषों की अपेक्षा कम होता है। पर डायबिटीज ग्रसित महिलाओं में यह सुरक्षा कवच बेकार हो जाता है और इनको हृदय रोग का खतरा पुरुषों के बराबर ही हो जाता है।
- डायबिटीज रोगियों में हृदय धमनी रोग मौत का प्रमुख कारण है।
- डायबिटीज रोगियों में हृदय रोग का खतरा डायबिटीज की अवधि के साथ-साथ बढ़ता जाता है। इनमें हार्ट अटैक ज्यादा गंभीर और घातक होता है।
- डायबिटीज मरीजों में हार्ट अटैक होने पर भी छाती में दर्द का अहसास दिलाने वाला स्नायु क्षतिग्रस्त हो सकता है। यह शांत हार्ट अटैक कहलाता है। क्योंकि इसमें कोई दर्द नहीं होता है |
- डायबिटीज रोगियों को एंजाइना होने पर साँस फूलने, चक्कर आने, हृदय गति अनियमित होने का खतरा रहता है।
- डायबिटीज रोगियों में यदि रक्त का ग्लूकोज़ स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है और रक्त में किटोन का स्तर भी बढ़ता है तो अचानक रक्त संचार की प्रणाली कार्य करना बंद कर देती है और उससे मौत हो सकती है।
- डायबिटीज रोगियों में विभिन्न कारणों से रक्त वाहिनियों में एश्रोस्कलेरोसिस (Athrosclerosis) के बदलाव कम आयु में शुरू होकर तेजी से होते हैं।
- डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप सभी जटिल, गंभीर व घातक रोग होते हैं। इन रोगों का घनिष्ठ संबंध जीवन-शैली से तो है ही, साथ ही तीनों का आपस में भी घनिष्ठ संबंध होता है।
- इनमे से कोई भी एक रोग होने पर अन्य दूसरे रोगों के होने का खतरा साथ में बढ़ जाता है। रोगों का शुरुआती अवस्था में ही पता लग सके, अन्यथा ये रोग अनियंत्रित, लाइलाज हो सकते हैं।
- डायबिटीज रोगियों की जीवन-शैली में बदलाव, दवाओं के सेवन के साथ-साथ नियमित अंतराल पर चिकित्सक से परीक्षण और जांच करवानी चाहिए, जिससे डायबिटीज रोग पर नियंत्रण तथा इसके कारण होने वाली जटिलताओं की शुरुआत में ही जानकारी प्राप्त हो सके, जिससे सावधानी, परहेज़, उपचार द्वारा इनके घातक परिणामों से बचाव हो सके।
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स किडनी (गुर्दे) पर

- गुर्दे यानि किडनी हमारे शरीर में छलनी का काम करते हैं, ताकि शरीर की गंदगी (कचरा) छनकर निकलती रहे। डायबिटीज के कारण खून में ग्लूकोज़ की अधिक मात्रा होने से छानने की यह छलनी क्षतिग्रस्त हो सकती है। यानी नेफ्रोपैथी (Nephropathay)
- बेकाबू डायबिटीज से किडनी खराब होने के कारण मूत्र पूरी तरह छनकर बाहर बाहर नहीं निकलता है इसलिये खराब पदार्थ (urea) खून में जमा होने लगते हैं इसलिये बेहोशी की अवस्था आती है इसके लिये डायलेसिस जैसा उपचार, जो कम स्थानों पर उपलब्ध होता है और बहुत महंगा है करवाना पड़ सकता है।
- डायबिटीज के रोगियों के किडनियों की रक्त नलियां (गुर्दो तक खून ले जाने वाली नलिकाएं) क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इस क्षति के कारण गुर्दे शरीर के भीतर से गंदगी को हटाने के साथ-साथ उस प्रोटीन को भी हटाने लगते हैं, जो शरीर के भली-भांति काम करने के लिए आवश्यक होती है।
- किडनी की क्षति, डायबिटीज का रोग शुरू होने के काफी समय पश्चात होती है। किसी-किसी व्यक्ति में तो गुर्दो की क्षति होने में 20 से 30 वर्षों से भी अधिक का समय लगता है।
- गुर्दो को क्षति होने से बचाने के लिए डायबिटीज के रोगियों को खून में ग्लूकोज़ की मात्रा को नियंत्रित रखने की आवश्यकता होती है। डायबिटीज के रोगी खून में ग्लूकोज़ की मात्रा भोजन करने से पहले 70-120 mg/dl के बीच और भोजन करने के दो घंटे बाद 180 mg/ d1 से कम रखें। इससे खून की नलिकाओं की क्षति की संभावना कम हो जाती है, जिसके कारण गुर्दे क्षति होने से बच जाते हैं।
- गुर्दे क्षतिग्रस्त हैं या नहीं, पता करने के लिए पेशाब की जांच की जाती है। कभी-कभी इस जांच से प्रोटीन का पता चल जाता है, लेकिन ऐसा होने की वजह गुर्दो में हुई क्षति ही नहीं होती, बल्कि पेशाब में होने वाला संक्रमण भी होता है। इसकी सही जांच करने के लिए 24 घंटों के पेशाब को जमा किया जाता है और एक अन्य परीक्षण किया जाता है इससे पता चल जाता है कि गुर्दे प्रोटीन की कितनी मात्रा निकाल रहे हैं।
- इसके अलावा खून की जांच भी आवश्यक होती है जिससे यह पता चल जाएगा कि गुर्दे ठीक काम कर रहे हैं या नहीं। ब्लड प्रेशर की जांच भी जरूरी है। अगर यह ऊंचा होगा, तो उससे किडनी के लिए उचित ढंग से काम करना शायद और भी कठिन हो जाए और उनकी अधिक क्षति (Damage) हो जाती है।
किडनी की बीमारी का उपचार
- खून में ग्लूकोज़ की मात्रा को सही रखने से किडनियों को उचित रूप से काम करने में सहायता मिल सकती है। अपने डॉक्टर की सलाह लें ताकि ये निर्णय हो सके कि किडनियों को ठीक रखने और ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए गोलियां खानी चाहिए या नहीं।
- ब्लड प्रेशर की कम रखने का एक अन्य उपाय है कम नमक खाना, योगासन करना, टहलना, हल्का व्यायाम तनाव मुक्त जीवन और अपना मनपसंद कार्य करते हुए सक्रियता बनाए रखना।
- यदि क्षति और बढ़ जाए, तो गुर्दे ठीक काम नहीं करते। तब रोगी को अपने भोजन के प्रति और भी सावधानी रखनी होगी ताकि गुर्दे को शरीर से गंदगी निकालने के लिए बहुत मेहनत न करनी पड़े।
- इसके लिए एक आहार विज्ञानी यानी डाइटिशियन की सलाह से कितना प्रोटीन वाला भोजन या अन्य पदार्थ का सेवन करें। कुछ लोगों को गुर्दो का काम करने के लिए एक मशीन (डायलिसिस) की भी आवश्यकता पड़ सकती है। कुछ रोगियों में तो रोगी को नया गुर्दा (kidney transplant) की जरुरत भी पड़ सकती है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें यह पोस्ट – डायबिटीज में क्या खाए और क्या नहीं-31 टिप्स-Diabetic Diet
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – त्वचा पर

- मधुमेह मरीजों को जिस चीज का सबसे अधिक खतरा होता है वह है त्वचा संक्रमण का। मधुमेह के कारण एक बार त्वचा संक्रमण होने पर इसे रोकना बहुत मुश्किल होता है।
- (Phimosis) शिश्न के ऊपर की त्वचा का पीछे न सरकना |
- त्वचा पर लाल दाने, चक्कते पड़ना, फुंसी और खुजली होना |
- मुंह, नाक और आखों के आसपास की त्वचा काली पड़ना |
- घाव का देरी से भरना |
- फंगल इफेक्शन आदि |
- इसलिए साफ़ सफाई का ख्याल रखें और घाव ना लगने दे और यदि कोई घाव हो भी जाता है तो जल्द से जल्द उसका उपचार करवाएं |
डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स – अन्य अंगों पर
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स ऐसे हैं जिन पर निश्चित उपचार नहीं है। इसलिए डायबिटीज के मरीजो को बहुत सावधानी से इस पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। यह भी जरुर पढ़ें – शुगर कम करने के उपाय -Diabetes Control Tips
- एक डायबिटिक में लकवा होने की दुगुनी संभावना होती है।
- अंगों का गैंगरिन विशेषत: पैरों का गैंगरिन जिसमें खराब हुए अंग की सर्जरी की जाती है या ऑपरेशन द्वारा निकलवाना पड़ता है।
- संक्रमण (Infection)- डायबिटिक व्यक्ति में संक्रमण से पैदा होने वाले रोग तेजी से होते है और ये जल्दी नियंत्रित भी नहीं होते है ।
- डायबिटिक व्यक्ति में टी.बी. के लक्षण ज्यादा दिखाई देते हैं। साधारणत: टीबी के विपरीत औषधि उपचार के कारण इस रोग को ठीक करना बहुत कठिन होता है।
- हाथ पैरों में सुन्नता आती है, संवेदनाये कम होती हैं। पैरों के तलवे गरम लगते है |
- डायबिटीज के साइड इफेक्ट्स (Hyperglycaemia):- ज्यादा शुगर बढने पर होने वाली बेहोशी -जब खून में शूगर की मात्रा सीमा से अधिक बढ़ जाने पर बेहोशी आती है, बेहोशी की अवस्था बढ़ने पर मृत्यु होने की संभावना अधिक होती है।
- अल्पग्लूकोज (Hypoglycaemia) यानि खून में शूगर की मात्रा कम होना | अधिक मात्रा में डायबिटीज की दवाइयां लेने पर भी भूखे पेट रहने पर (विशेषतः इन्सुलिन) व अधिक औषधि लेकर कम आहार लेने पर, अधिक मेहनत से शरीर में शूगर की कमी अनुभव करना, हाथ पैरों में कम्पन होना, सोचने समझने की शक्ति कम होना इत्यादि लक्षण दिखाई देने लगते है।
जैसा की हम बता चुके हैं डायबिटीज पूर्णत: ठीक हो इसकी संभावना कम ही होती है यानि कि नहीं ही होती है। खासकर अनुवांशिक मधुमेह में, हालाँकि कुछ पुरानी चिकित्सक पध्तियाँ जैसे आयुर्वेद आदि में इसे पूरी तरह ठीक करने का दावा किया जाता है परंतु यह अभी तक वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं हुआ है | इसलिए केवल डायबिटीज को नियंत्रण में रखकर सुख से जीवन जिया जा सकता है। आँखों पर, पैरो पर और स्त्रियों से जुड़े रोगों पर डायबिटीज के क्या प्रभाव होते है यह हम अगले पोस्ट में कवर करेंगे |
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