हरड़ के फायदे और गुणकारी औषधीय उपयोग

हरड़ के बारे में एक कहावत मशहूर है कि जिस घर में हरड़ होती है वहां डॉक्टर नहीं आते हैं। आयुर्वेद शास्त्र में हरीतकी तथा अभया ही हरड़ के सबसे लोकप्रिय नाम है। रोगों को दूर करने के कारण हरड़ को ‘हरीतकी’ भी कहा जाता है। हरड़ का एक नाम प्रमथा’ भी है। इसका अर्थ है रोगों को मथकर उन्हें जड़-मूल से नष्ट करने वाली। चरक संहिता’ के चौथे अध्याय में औषधियों के खास गुणों के अनुसार 50 वर्ग बनाए हैं और प्रत्येक वर्ग में 10 हर्ब्स को रखा गया है। इस प्रकार कुल 500 हर्ब्स (औषधियों) को बताया गया है। हरड़ की गिनती अर्श (बवासीर/पाइल्स), कुष्ठ (लेप्रोसी), (हिचकी) खांसी (कफ) बुखार को दूर करने वाले, दस्तों को रोकने तथा उम्र लम्बी करने वाली हर्ब्स के वर्ग में रखा गया है।

आयुर्वेद के अनुसार हरड़ में लवण रस को छोड़कर शेष सभी रस होते हैं। आजकल बाजार में सिर्फ 3 प्रकार की हरड़ ही उपलब्ध हैं- 1. बाल हरड़-इसे जवाहरड़ भी कहते हैं। 2. पीली हरड़, 3. बड़ी हरड़। (इसे काबुली हरड़ भी कहते हैं।) तीनों प्रकार की हरड़ों के गुण लगभग समान ही हैं। हरड़ का कच्चा और छोटा फल जब पेड़ से गिर जाता है, तब उसे छोटी हरड़ कहा जाता है। दवाई के लिए प्राय: हरड़ के फल का छिलका ही उपयोग में लाया जाता है। हरड़ में मीठा, खट्टा, कडवा (चरपरा), तीखा और (कसैला) ये 5 रस ही होते हैं।

हरड़ के सेवन से वात, पित्त और कफ असंतुलन से पैदा हुए रोग-विकार ठीक होते है। हरड़ आँखों के लिए भी बहुत गुणकारी होती है। सूजन, पेट के रोग, अर्श, सांस के रोग व खांसी में बहुत लाभप्रद होती है। हरड़ के सेवन से उच्च रक्तचाप में बहुत लाभ होता है। हरड़, बहेड़े और आंवलों को कूट-पीसकर बनाए गए “त्रिफला चूर्ण’ के बहुत सारे औषधीय उपयोग है जो हम इसी पोस्ट में आगे बतायेंगे।

हरड़ के गुणकारी औषधीय उपयोग

बड़ी हरड़ के फायदे harad triphala ke fayde laabh nuskhe
हरड़ के लाभ
  • हरड़ में छालो या अल्सर को ठीक करने और जीवाणु के संक्रमण को रोकने की बहुत क्षमता होती है।
  • हरड़ को जलाकर, उसको पीसकर, उसमें वैसलीन मिलाकर अल्सरपर लगाने से बहुत लाभ होता है।
  • हरड़ को घिसकर छाले पर लेप करने से छाले का दर्द ठीक होता है।
  • रात को सोने से पहले हरड़ का मुरब्बा खाकर, दूध पीने से सुबह खुलकर पेट साफ़ होता है।
  • 3 ग्राम हरड़ का चूर्ण सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करने से कब्ज ठीक होने से (बवासीर) रोग में बहुत लाभ होता है।
  • पेशाब करते समय दर्द या जलन होने पर हरड़ के 3 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर चाटकर लेने से बहुत लाभ होता है।
  • हरड़ के चूर्ण को छाछ के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पेशाब सम्बंधी सभी रोगों में लाभ होता है |
  • हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम और गुड़ मिलाकर सेवन करने से पेट में गैस के गोलों से छुटकारा मिलता है।
  • हरड़ को चबाकर खाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। हरड़ को पीसकर खाने से कब्ज का निवारण होता है तथा हरड़ को हल्का-सा उबालकर सेवन करने से दस्त की बीमारी में फायदा होता है |

हरड़ सेवन करने की विभिन्न लाभकारी विधियां

  • हरड़ के सेवन की कई विधियां होती हैं जिसके प्रभाव भी अलग-अलग होते हैं । जैसे हरड़ को चबाकर खाने से अलग प्रभाव होता है। हरड़ को पीसकर (चूर्ण बनाकर) या पानी में उबालकर अथवा भूनकर सेवन करने से शरीर में अलग-अलग प्रभाव होते हैं।
  • चबाकर खाने से : पेट की अग्नि बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
  • पीसकर (चूर्ण बनाकर) खाने से : कब्ज दूर होती है। पेट को साफ करती है।
  • पानी में उबालकर सेवन करने से : दस्तों में लाभ करती है। दस्त दूर करती है।
  • भूनकर सेवन करने से : त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ को संतुलन (नॉर्मल रेंज) में लाती है।
  • हरड़ के बारीक पिसे हुए छने हुए चूर्ण को भोजन के साथ सेवन करने से बुद्धि बढ़ती है तथा शरीर में शक्ति का संचार होता है।
  • खाना खाने के तुरंत बाद हरड़ के सेवन से खाद्य-पदार्थों के सेवन से पैदा हुए दोष जैसे गैस, बदहजमी, खट्टी डकारे, आदि ठीक होते हैं।
  • हरड़ को घी में भूनकर सेवन करने से वात (वायु) विकार ठीक होते है।
  • हरड़ के सेवन से वात, पित्त और कफ विकृति से पैदा हुए रोगों का निवारण भी होता है।
  • हरड़ और सेंधा नमक मिलाकर खाने से कफ ठीक होता हैं।
  • शारीरिक कमजोरी और थकान में तथा याददाश्त की कमी में हरड़ के सेवन से बहुत लाभ होता है।
  • त्वचा के विभिन्न रोग-विकारों में भी हरड़ के सेवन से बहुत लाभ होता है।
  • आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (एलोपैथी) ने भी माना है कि हरड़ के सेवन से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और हृदय रोगों में बहुत ही लाभ होता है।
  • टॉन्सिलों के दर्द में हरड़ को औषधि के रूप में प्रयोग करने से बहुत लाभ होता है।
  • इसके अतिरिक्त हरड़ का शहद मिलाकर स्वादिष्ट और गुणकारी मुरब्बा भी बनाया जाता है। इसको कुछ दिनों तक लगातार रोजाना सेवन करने से तथा आहार-विहार का सही पालन करने से पाचन क्रिया तेज होती है और आँखों को बहुत लाभ होता है।
  • हरड़ के सेवन से मोटापा भी कम होता है। ज्यादातर वैद्य भोजन के साथ हरड़ का सेवन करने का परामर्श देते हैं |
  • हरड़ की गुठली के भीतर की कोमल गिरी वायु व पित्त को ठीक करके विभिन्न रोगों का निवारण करती है।
  • जैसा कि हमने बताया था कि हरड़ में नमक को छोड़कर शेष पांचों रस विद्यमान होते हैं। सबसे अधिक इसमें कषाय रस पाया जाता है। यही कारण है कि हरड़ की मुंह में रखकर चूसने के बाद पानी पीने से जीभ का स्वाद बिल्कुल मीठा हो जाता है।

त्रिफला चूर्ण के लाभ

  • हरड़ को बहेड़ा और आंवला के साथ कूट-पीसकर और छान कर समान मात्रा में मिलाकर संसार प्रसिद्ध त्रिफला-चूर्ण बनाया जाता है। यह वात, पित्त और कफ यानि तीनों दोषों (त्रिदोष) का नाशक उत्तम रसायन है।
  • हरड़, बहेड़े और आंवलों को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रखें। इस चूर्ण को त्रिफला चूर्ण कहते हैं। रात को 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गर्म पानी या दूध के साथ सेवन करने से कब्ज ठीक होती है।
  • 7-8 ग्राम त्रिफला चूर्ण रात को पानी में डालकर रखें। सुबह उठकर उसको थोड़ा-सा मसलकर, कपड़े द्वारा छानकर उस पानी से आँखों को धोने से आँखों के रोग ठीक होते हैं और आँखों की रोशनी भी तेज होती है।
  • आँखों के विकारों, सूजन आदि को ठीक करने के लिए त्रिफला के पानी से आंखों को धोने से तथा चूर्ण का सेवन करने से धूल, मिट्टी व जीवाणुओं के संक्रमण (इन्फेक्शन) से आसानी से सुरक्षित रहा जा सकता है।

त्रिदोषों को दूर करने के लिए  हरड़ के सेवन विधि

  • वात (वायु) विकार : इन विकारों से उत्पन्न रोगों में हरड़ का सेवन घी (गाय का देशी घी) के साथ करना चाहिए।
  • पित्त विकार : इन विकारों में हरड़ का सेवन मिश्री (मिश्री) के अभाव में शक्कर के साथ करना चाहिए।
  • कफ विकारों में : कफज रोगों में हरड़ का सेवन सेंधा नमक के साथ करना चाहिए।
  • त्रिदोषज (वायु, पित्त व कफ के मिले-जुले विकारों में) : हरड़ का सेवन पुराने गुड़ के साथ करना चाहिए । नोट : नया गुड़ विभिन्न प्रकार के कफज रोगों को पैदा करता है। इसलिए दमा, खांसी आदि नए गुड़ के सेवन से बढ़ जाते हैं। नया गुड़ पेट में कीड़े भी पैदा करता है। पुराना गुड़ पचने में हल्का, भूख बढ़ाने वाला, शक्ति बढ़ाने वाला, पित्त को शांत करने वाला होता है।
  • यदि पुराना गुड़ ना मिले तो नए गुड़ को कम-से-कम 1 घंटा तेज धूप में रखने से उसमे पुराने गुड़ के गुण पैदा हो जाते हैं।

हरड़ मात्र औषधि नहीं, बल्कि एक टॉनिक भी है

  • हरड़ के रासायनिक गुणों का लाभ उठाने के लिए साल भर की 6 ऋतुओं में प्रत्येक ऋतु में अनुपात बदलते करते हुए सेवन करना चाहिए।
  • बड़ी हरड़ को लेकर इसे थोड़ा-सा कूटकर गुठली रहित कर लें यानि गुठलियों को निकाल दें। फिर हरड़ के छिलकों को बारीक कूट-पीसकर तथा छान कर चूर्ण तैयार करके किसी साफ-स्वच्छ एयर टाइट शीशी आदि में सुरक्षित रख लें। इस चूर्ण को 1-1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ प्रात: खाली पेट तथा रात को भोजनोपरांत सोते समय सेवन करें। नोट : एक वर्ष से अधिक पुरानी हरड़ उपयोग में न लाएं। पुरानी हरड़ में औषधीय गुणों की कमी हो जाती है।
  • मौसम के अनुसार हरड़ के सेवन की विधि |
  • गर्मियों में समान मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर 2. वर्षा ऋतु सेंधा नमक मिलाकर 3. सर्दियों में समान मात्रा में मिश्री/शक्कर मिलाकर  |

हरड़ के साइड इफेक्ट नुकसान और सावधानियां

  • तेज प्यास या बार-बार पानी पीने की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को हरड़ सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है |
  • खूनी दस्त रोग में हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • रक्त प्रदर से पीड़ित स्त्री तथा नक्सीर या शरीर के किसी भी भाग से खून बहने की दशा में हरड़ सेवन से बचना चाहिए।
  • तासीर गर्म होने के कारण हरड़ का सेवन गर्मी में अधिक नहीं करना चाहिए। यदि सेवन करना जरुरी हो तो समान मात्रा में पुराने गुड़ में मिलाकर करें।
  • हरड़ की तासीर (प्रकृति) गर्म है। इसलिए गर्भवती स्त्रियों को इसके अधिक सेवन से बचना चाहिए
  • जिसके शरीर में अत्यधिक रूखापन रहने की शिकायत हो, उनको हरड़ सेवन नहीं करना चाहिए

हरड़ के सेवन से हृदय सम्बंधी विभिन्न रोग, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना, हाई ब्लड प्रेशर, थायराइड, मधुमेह (शुगर) आदि शीघ्र ही ठीक होने लगते हैं। हरड़ के इन प्रयोगों से शरीर के सभी अंग सुचारु रूप से कार्य करने लगते है | तो आप भी इस गुणकारी हर्ब को अपने जीवन में शामिल करके आरोग्य जीवन जिएँ |

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