सड़क पर चलते फिरते समय, घर में कोई काम करने या ऑफिस की सीढ़ियां, चढ़ते-उतरते कई व्यक्ति बेहोशी (Unconsciousness) के शिकार हो जाते हैं। हिस्टीरिया रोग में लड़कियां और मिरगी रोग में पुरुष बार-बार बेहोशी के शिकार होते हैं। अधिक दिनों तक किसी संक्रामक रोग से पीड़ित रहने पर स्त्री-पुरुष बेहोशी के शिकार हो सकते हैं। शारीरिक कमजोरी के कारण भी बेहोशी हो सकती है। खून की कमी व मधुमेह रोग में कभी-कभी इतनी अधिक शारीरिक कमजोरी हो जाती है कि रोगी सिर चकराने से लड़खड़ाकर गिर पड़ता है और बेहोश हो जाता है। कई बार अचानक कोई सदमा लगने से भी कई लोग बेहोश हो जाते है | दूषित वातावरण में फैली गैसों के कारण बेहोशी हो सकती है। ऐसे में फर्स्ट एड का उद्देश्य अचानक बेहोश वाले रोगी को ऐसी अस्थाई सहायता पहुंचाना है ताकि डॉक्टर की देखरेख में आने तक या अस्पताल पहुंचने तक उस रोगी का जीवन सुरक्षित रहे। रोगी को ठीक होने में सहायता मिले, उसकी हालत खराब न हो और उसे आराम मिले। इसलिए सभी को इस विषय पर जानकारी होना बेहद जरुरी है क्योंकि इससे आप किसी की जान बचा सकते है |
बेहोश होने पर फर्स्ट ऐड (प्राथमिक चिकित्सा )

- बेहोशी हर व्यक्ति के साथ अलग कारणों से हो सकती है। ऐसे में, जैसे ही बेहोशी छाए, रोगी को तुरंत उठाएं। किसी अलग स्थान पर लिटा दें। रोगी के आसपास शोर, भीड़ करना ठीक नहीं। उस पर झुकें नहीं। हवा को रोकना नहीं चाहिए |
- बेहोश रोगी के कमीज़ के बटन खोल दें। जितना संभव हो, कपड़े ढीले करें ताकि उसे सांस लेने में कोई तकलीफ ना हो। उसे लेटे हुए कोई दिक्कत न आए, इस बात का भी अवश्य ध्यान रखें।
- रोगी को खूब खुली हवा मिलनी चाहिए। सावधानी के तौर पर यह देख लेना चाहिए कि रोगी की नाक में कुछ रूकावट तो नहीं हो रही है जैसे की रक्त तो नहीं जम गया है ।
- रोगी जिस जगह पर हो वहां कोई गन्दी गैस अथवा धुआं आदि नहीं होना चाहिए। जैसा की अकसर सडक दुर्घटनाओ में होता है जहाँ भीडभाड के साथ ही साथ धुवां भी अधिक होता है |
- रोगी के मुंह में यदि नकली दांत हों तो उन्हें निकाल देने चाहिए।
- अगर साँस लेने की क्रिया रुकती और फेल होती दिखाई दे तो कृत्रिम सांस चालू कर देनी चाहिए।
- अगर रोगी की साँस तेज़ आवाज के साथ न होता हो तो उसे पीठ के बल लिटाना चाहिए तथा सिर एवं कन्धों के नीचे एक तकिया लगाकर इन दोनों भागों को ऊंचा कर देना चाहिए और सिर एक ओर घुमा देना चाहिए।
- यदि बेहोशी सर्द मौसम में तेज ठंडक के कारण आई है, तो ठंडा पानी, छींटे, मुंह में बर्फीला पानी टपकाना या ठंडा पेय जल, ग्लूकोज़ या फलों का रस बिलकुल न दें। रोगी के तलवे, हथेली, माथा सब पर गरम हथेली से, गरम मुलायम कपड़े से थोड़ा रगड़ें। ताकि रोगी के शरीर में कुछ गर्मी आए।
- रोगी के शरीर को गर्म रखने के लिए, रजाई, कंबल, भारी कपड़ा डालें। उसे अच्छी प्रकार ढंक दें। उसे ज़रूर होश आ जाएगा।
बेहोश को होश में कैसे लाये ?
- होश में लाने के लिए रोगी को प्याज का रस या प्याज़ को हाथ से तोड़कर सुंघाना चाहिए। सांस के साथ रस की महक जरूर शरीर के अंदर जानी चाहिए । कपूर सुंघाने से भी जल्दी होश आएगा।
- यदि आप समझते हैं कि मौसम गर्मी का है या बेहोश व्यक्ति को पसीना आ रहा है, तो धीरे-धीरे हवा करें। हवा के मिलने से रोगी की हालत में तेजी से सुधार आ सकता है। जरूरत समझें, तो उसके चेहरे पर पानी के कुछ छींटे मारें। यदि उसके मुंह में ठंडे पानी की कुछ बूंदें डालें तो ठीक रहेगा।
- बेहोशी की हालत में कोई खाना, पानी, दूध, चाय आदि देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
- अगर रोगी को होश आने लगे तो उसके होंठों को पानी से तर कर देना चाहिए।
- होश आने पर, यदि पेट में कोई चोट पहुंचने का शक न हो तो एक-एक घूंट पानी दिया जा सकता है। बशर्ते कि रोगी पानी मांगे।
- जैसे ही रोगी को होश आए, पानी में ग्लूकोज घोलकर एक गिलास पिलाने का प्रयत्न करें। ग्लूकोज़ इतना जरूर डालें ताकि पानी खूब मीठा हो जाए। तीन-चार चम्मच ठीक रहेगा।
- एक गिलास ताजा फलों का रस पिलाएं और अधिक फायदा होगा।
- होश आने पर थोड़ा संभलने की कोशिश में कई बार बेहोश व्यक्ति का मन उलटी करने को होता है। ऐसे में मरीज को रोकें नहीं बल्कि उसे उलटी करने दें। रोगी को उलटी करता देख घबराने की ज़रूरत नहीं। यह एक अच्छी निशानी है। ऐसे में भूल से उलटी रोकने की दवा न करें।
- रोगी को जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचा देना चाहिए अथवा डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
बेहोशी क्या है : इसके कारण
- कोई भी व्यक्ति आमतौर पर तभी बेहोश होता है, जबकि उसके नर्वस सिस्टम एवं दिमाग की प्रक्रिया व्यस्त हो जाते हैं। अक्सर लोग सिर में चोट लगने से बेहोशी हो जाते है। साधारण चोट से बेहोशी नहीं पैदा होती, बेहोशी बड़ी चोट के कारण ही होती है।
बेहोशी के प्रकार
- बेहोशी दो प्रकार की होती है |
- 1) अर्ध-चेतनावस्था (थोड़ा होश रहना)
- 2) पूरी संज्ञाहीनता (पूरी बेहोशी)।
रोगी की बेहोशी की किस हालत में है, इसका इन बातों से इसका पता लगाना चाहिए।
- रोगी से बात करके देखिए।
- अर्धचेतनावस्था में बातचीत करने से रोगी कुछ हरकत करता है अथवा थोड़ी बात कहने की कोशिश करता है, जबकि पूर्ण संज्ञाहीनता में वह बिल्कुल हरकत नहीं करता है।
- अर्धचेतनावस्था में अगर उसकी आंखों की पलकें छुई जाएं तो वह पलकों को चलाता है। वह ऐसी चेष्टा प्रकट करता है कि उसकी पलक न छुई जाएं। दूसरी ओर पूर्ण संज्ञाहीनता में वह इस तरह की कोई चेष्टा नहीं करता।
- बेहोशी के लिए दो स्थितियां उत्तरदाई होती हैं–कंकशन और कम्प्रैशन। सिर पर सीधी चोट पहुंचने से ये दोनों स्थितियां बन सकती हैं।
कंकशन बेहोशी
- कंकशन उस स्थिति को कहते हैं जिसमें दिमाग थोड़ा बहुत हिल गया हो। इस हिलने से दिमाग द्वारा संचालित शरीर की भिन्न-भिन्न क्रियाएं गडबड हो सकती हैं।
- कंकशन की हालत में दिमाग में कोई परिवर्तन नहीं आता। कभी-कभी सिर पर लगा तेज़ झटका भी दिमाग को हिला देता है और कंकशन की हालत पैदा हो जाती है।
- ऊंचाई से पीठ अथवा पैरों के बल गिरने से भी सिर पर या जबड़े पर चोट लगने से भी दिमाग में झटका पहुंचकर कंकशन की हालत बन जाती है।
कंकशन बेहोशी के लक्षण और चिन्ह :
- हल्के कंकशन में बेहोशी कम या ज्यादा हो सकती है। कई बार चोट लगने पर रोगी की आंखों के आगे अंधेरा-सा छा जाता है और रोगी भ्रम की स्थिति में आ जाता है, लेकिन कंकशन की गहरी स्थिति में निम्नलिखित लक्षण होते हैं।
- चोट पहुंचते ही रोगी गिर पड़ता है।
- जमीन पर निढाल होकर पड़ जाता है और बेहोश हो जाता है।
- उसके शरीर के सभी अंग जिस हालत में होते हैं, वैसे ही बने रहते हैं। उनमें कोई हरकत नहीं होती।
- उसकी नाड़ी तेज और कमजोर चलती है।
- सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है।
- चेहरे की त्वचा का रंग सफेद पड़ जाता है, शरीर पर पसीना आ जाता है।
- छूने पर शरीर ठण्डा लगता है।
- गहरी कंकशन की हालत में रोगी की कोई गम्भीर शारीरिक हानि नहीं हुई होती है। वह धीरे-धीरे पूरे तौर पर होश में आ जाता है। कई बार जल्दी ही बेहोशी टूटकर होश आ जाता है।
- आमतौर पर कंकशन के रोगी को दुर्घटना होने के आगे और पीछे की बातें याद नहीं रहतीं।
- बेहोशी दूर करने के उपाय : बेहोशी के उपचार के लिए नुस्खे
कन्प्रैशन बेहोशी के लक्षण
कम्प्रैशन की हालत में दिमाग पर (जो खोपड़ी के भीतर रहता है) वास्तविक दबाव पड़ता है। यह दबाव खून के जमे हुए कतरे के कारण भी हो सकता है या खोपड़ी की हड्डी टूट गई हो तो हड्डी का टुकड़ा भी दिमाग पर दबाव डाल सकता है। ऐसी हालत में कंकशन की स्थिति भी पैदा हो सकती है, जो बाद में गहरी बेहोशी में बदल जाती है अथवा ऐसा भी होता है कि एक बार होश आने पर फिर बेहोशी छा जाए जो कई बार कोमा में भी बदल जाती है।
- कन्प्रैशन की शुरुवाती अवस्था में दिमागी उत्तेजना के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। जैसे
- अंगों का ऐंठना, चीखना, चिल्लाना, चक्कर आना।
- बेहोशी तत्काल भी हो सकती है या कुछ समय बाद भी या पहले अर्धचेतनावस्था आए और फिर वह पूर्ण संज्ञाहीनता में बदल जाए।
- चेहरा लाल और तमतमाया हुआ हो जाता है।
- साँस लेने के दौरान तेज़ आवाज आती है।
- नब्ज की रफ्तार बहुत धीमी हो सकती है।
- शरीर का तापमान (गर्मी) बढ़ी हुई हो सकती है तथा सिर काफी गरम हो जाता है।
- आंखों की पुतलियों के साइज (आकार) में अन्तर आ सकता है। वे फैलकर चौड़ी भी हो जाती हैं।
- शरीर के किसी भाग को पक्षाघात (लकवा) हो सकता है।
Tags. -unconsciousness Causes, Symptoms, Types, First Aid.
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