( वात, पित्त और कफ ) -आज हम आपको आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार एक स्वस्थ्य जीवन पाने के तरीके के बारे में बतायेंगे | हमारी कोशिश होगी की ये जानकारी आपको सरल और आम बोलचाल की भाषा में समझा सके ताकि आप इस जानकारी को व्यवहारिक रूप से अपने जीवन में उतार सके और रोगों से अपना बचाव कर सके हमारी वेबसाइट का फोकस हमेशा बिमारियों से बचाव के तरीको पर ज्यादा होता है, क्योंकि हमारा मानना है की “रोगों से बचाव ही सबसे बेहतर उपचार है” | तो आइये जानते है आयुर्वेद के अनुसार बीमारियों के मुख्य कारण क्या है और उनसे कैसे बचें |
आयुर्वेद के ‘त्रिदोष सिद्धान्त’ तीन दोष को समझना बहुत जरुरी है जो इस प्रकार है – वात, पित्त और कफ – ये दरअसल दोष नहीं है बल्कि शरीर में मौजूद मूल धातुएं है या आम भाषा में समझें तो ये शरीर को खड़ा रखने के लिए तीन खम्बे है, जो असंतुलित नहीं होने चाहिए | आयुर्वेद में ( वात, पित्त और कफ ) धातुओं को “दोष” कहा जाता है पर हम इन्हें धातु ही लिखेंगे ताकि इसका आपको समझने में आसानी हो | वैसे इन धातुओं को हम रसायन यानि केमिकल भी समझ सकते है |
जब किसी व्यक्ति में ये निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं, तो हम कह सकते हैं कि धातुओं में पूरे संतुलन के कारण वह पूरी तरह स्वस्थ है जैसे की- संवेदनशील, कल्पनाशील, अच्छी याददाश्त, थोड़ी सी असुरक्षा की भावना से ग्रस्त, खुशमिजाज, बुद्धिमान तथा तीव्र स्मरण शक्तियुक्त, स्नेह करने वाला, सहानुभूतिपूर्ण ।
आपने कभी सोचा है की, क्यों एक जैसे अंग होने के बावजूद अरबो-खरबों लोगो का शरीर दिखने में, क्षमता में और स्वास्थ्य के अनुसार अलग-अलग होता है | दो व्यक्तियों के बीच इस असमानता मुख्यत: इन तीन धातुओ (वात, पित्त और कफ) के आधार पर ही होती है इसीलिए आयुर्वेद में इनका बहुत महत्वपूर्ण स्थान हैं, क्योंकि ये दिमाग और शरीर को आपस में जोड़ते हैं। जब इन धातुओ में बदलाव होता है या ये असंतुलित होते हैं तो दिमाग और शरीर के बीच का संपर्क डिस्टर्ब हो जाता है। दरअसल ये धातुए ही दिमाग तथा शरीर की हजारों अलग-अलग क्रियाओं को कंट्रोल करती हैं। शरीर की ऊर्जा के प्रत्येक स्तर में इन तीन धातुओं का होना जरूरी है। #Tridosha: The #Science Of #Ayurveda #Foundations #Concept #theory.
वात धातु : यह कोशिकाओं तथा शरीर की ऊर्जा के मूल स्तर सहित शरीर की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है। व्यक्ति में वात धातु होना चाहिए, जो साँस लेने, हृदयगति तथा खून के बहाव को नियंत्रित करता है, पाचन में मदद करता है और दिमाग के सिगनल बाकी अंगो तक पहुंचाता है।
पित्त धातु : यह पाचक अग्नि और अंत:स्त्रावी ग्रंथियों के आंतरिक स्त्रावों को नियंत्रित करता है।
कफ धातु : यह मुख्यतः शरीर की संरचना को नियंत्रित करता है, जिसमें कोशिकाएँ, ऊतक और शरीर में उनकी ऊर्जा का मूल स्तर शामिल होता है।
पित्त धातु – यह पाचक अग्नि होता है, जो भोजन के पाचन और पूरे शरीर में पानी तथा हवा के स्तर को नियंत्रित करता है। कोशिका या अंगों के प्रत्येक भाग, जैसे मांसपेशी, वसा और हड्डियों को साथ रखने के लिए कफ धातु आवश्यक है। जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको वात प्रकृति का बताता है तो इसका मतलब है कि आपके शरीर में वात धातु अधिक प्रभावी है और बाकी दो धातु कम स्तर पर हैं।
वात, पित्त और कफ के अनुसार शरीर की प्रकृति जानने का मुख्य उद्देश्य है आपके भोजन, व्यायाम, दैनिक जीवनचर्या , मौसमी व्यवहार तथा रोगों के बचाव में उपयोगी अन्य कारकों को ठीक से बिठाना।
आइये एक उदाहरण के द्वारा समझते है – वात, पित्त और कफ को

एक हवाई अड़े पर देरी से आ रहे विमान की प्रतीक्षा कर रहे एक व्यक्ति का उदाहरण ले । वात प्रकृतिवाला व्यक्ति बेचैन, अशांत और बेसब्र होकर संबद्ध अधिकारी से पैसे वापस करने की माँग करेगा। पित्त प्रकृति वाला व्यक्ति क्रोधित होकर देरी के लिए अधिकारियों की आलोचना आरंभ कर देगा; परंतु कफ प्रकृति वाला व्यक्ति शांत और चुप रहेगा।
यदि आपको स्वस्थ रहना है तो अपने शरीर की प्रकृति को वात, पित्त और कफ के अनुसार जानें और उसके हिसाब से ही चले चलें। अपने भोजन तथा शारीरिक गतिविधियों को एक संतुलित शरीर और दिमाग के साथ समायोजित करने पर संतुलित स्वास्थ्य प्राप्त की जा सकती है। धातुओं, पाचक अग्नि, ऊतकों तथा उत्सर्जित पदार्थों का संतुलित होना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है। हर किसी में स्वाभाविक रूप से तीन प्रकार के संयोजन होते हैं, लेकिन संयोजन की प्रमुखता वातज, पित्तज तथा कफज को निर्धारित करती है। कफ प्रकृति वाले लोग कुछ नम्र और ठंडे होते हैं।
वात, पित्त और कफ अनुसार अपने शरीर को जाने
स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन के लिए अपनी प्रकृति को जानना-समझना चाहिए। एक भट्ठी वाली फैक्टरी में काम करने वाले व्यक्ति को त्वचा की बीमारियों की समस्या लेकर आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास गए। वह आक्रामक, चिड़चिड़े और ईष्यालु स्वभाव के थे। उनकी याददाश्त तेज थी और उनकी वाणी बहुत तीखी थी। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी, परंतु रहन सहन विलासितापूर्ण था। उनके निदान से पता चला कि वह पित्त प्रकृति के हैं। उन्हें वर्तमान नौकरी बदलने की सलाह दी गई। यह बात ध्यान देने योग्य है कि वह ठंडी जलवायु में खुश रहते थे, ठंडे पेय और ठंडा खाना पसंद करते थे। इसलिए उन्हें अपना कार्यस्थल बदलने, ठंडा भोजन करने, शीतल पेय लेने और शांत तथा ठंडे परिवेश में रहने की सलाह दी गई। उन्हें किसी दवा की आवश्यकता नहीं थी। आयुर्वेद के अनुसार उनकी प्रकृति (टाइप ) को जानकार उनके रहन-सहन के तरीके और वातावरण में बदलाव करने मात्र से ही उनकी बीमारी दूर हो गई | यह भी पढ़ें – पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा के लाभ तथा इसे कैसे किया जाता है |
प्रकृति से सामंजस्य (को-आर्डिनेशन )
व्यक्ति एक खास संयोजन से बना होता है, जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता। उसे सिर्फ संतुलित किया जा सकता है। सूखा, रूखा, ठंडा, तीखा, कड़वा और कड़ा भोजन लेने पर वात में वृद्धि होती है। यदि पित्त प्रकृतिवाला व्यक्ति गरम जलवायु में तीखा, खट्टा तथा नमकीन भोजन करेगा तो वह अपने आपको अस्वस्थ महसूस करेगा। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए ठंडा भोजन, ठंडी जलवायु, आलस्य तथा अधिक मात्रा में मिठाइयाँ खाने की प्रवृति को बदल देना चाहिए। एक व्यक्ति में ये तीनों धातुए (वात, पित्त और कफ) मौजूद होती हैं, पर उनमें से एक ज्यादा ताकतवर होती है और वो ही उस व्यक्ति की प्रकृति (टाइप ) है । इन धातुओं के कुछ मनोवैज्ञानिक लक्षण भी होते हैं, जिनसे आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी को पहचानते है जो हम आपको आगे प्रकाशित होने वाले पोस्ट में बतायेंगे |
- आगे हम आपको बतायेंगे की आप कैसे अपनी प्रकृति को पहचाने की आप वात, पित्त, या कफ प्रधान है ?
- उसके बाद हम बताएगें की इन धातुओ की प्रधानता के अनुसार व्यक्ति को क्या खाना चाहिए ? उदहारण के तौर पर – अगर आपकी प्रकृति पित्त प्रधान है तो आपको क्या खाना चाहिए तथा किन रोगों से सचेत रहना चाहिए ?
- आपकी शरीरिक और मानसिक कमजोरियां और ताकत क्या है ?
- आपको सेहतमंद बने रहने और दीर्घ आयु पाने के लिए आयुर्वेद के अनुसार क्या कदम उठाने चाहिए और सही जीवन शैली कैसी होनी चाहिए ?
- आपको कौन से योगासन करने चाहिए ? कैसे वातावरण में रहना चाहिए आदि | वात रोग के कारण, लक्षण और क्या है वात विकार
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Very nice information
धन्यवाद अमित जी,
इस विषय पर आने वाले दिनों हम कई और ज्ञान वर्धक लेख पोस्ट करेंगे |
Apni prkriti kaise jane
Tarika bataiye
रवि जी,
ये तीन पोस्ट पढ़ें – वैसे तो इन लक्षणों को पहचानने के लिए अनुभवी होना जरुरी होता है | फिर भी हमने भरसक प्रयास किया है की एक साधारण व्यक्ति भी समझ सके, कम से कम आंशिक रूप से ही सही | यदि आपको समझने में कोई कठिनाई हो तो आप किसी आयुर्वेदाचार्य से संपर्क कर सकते है |
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