गले में टॉन्सिल के कारण, लक्षण, प्रकार तथा उपचार

टॉन्सिल हमारे शरीर में जीभ के दोनों तरफ गले में मौजूद होते है। यह हमारे मुंह के अंदर गले के दोनों तरफ होते हैं  टॉन्सिल्स बाहरी इन्फेक्शन से शरीर की हिफाजत करते हैं। ये बाहर से आने वाली किसी भी रोगाणु को हमारे शरीर में जाने से रोकते हैं। टॉन्सिल बच्चों तथा जवानो सभी में होते है, परंतु चार से 10 साल की उम्र तक के बच्चों में ये टांसिल बहुत जल्द ही इंफेक्शन ग्रसित हो जाते है। टॉन्सिल में होने वाले इन्फेक्शन को टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। इसके दो प्रकार होते है – बैक्टीरियल इन्फेक्शन तथा वायरल इन्फेक्शन यह बीमारी मुख्यतः मार्च और सितंबर अक्टूबर के महीनो में ज्यादा होती है जब मौसम में बदलाव होता है | टोंसिलाइटिस होने पर गले में दर्द तथा बुखार होता है। गले की जांच करने पर अक्सर टांसिलों में सूजन पाई जाती है।

कारण:- धूल-मिट्टी व मक्खियों द्वारा प्रदूषित भोजन तथा खट्टी-मीठी चीजें खाने से बच्चों के टॉन्सिल सूज जाते हैं, जिसके कारण जीवाणुओं का संक्रमण होने से टॉन्सिल में पूय बनने लगती है। काली खांसी के कारण भी टॉन्सिल सूज जाते हैं। अधिक ठण्डी चीजें खाने-पीने से तथा तेल-मिर्च की वस्तुएं खाने के कारण भी गले में सूजन हो जाती है। रोगी बच्चे के जूठे बर्तनों में खाने-पीने से स्वस्थ बच्चे को भी टॉन्सिल का संक्रमण हो जाता हैं। कई बार रोग बहुत ज्यादा बढ़ जाता है कभी-कभी बच्चों के दोनों टॉन्सिल सूज जाते हैं खाना खाने में भी वह लाचार महसूस करता है। ऐसे हालात में इसका तुरन्त इलाज करवाना चाहिए। यदि इन्फेक्शन शरीर के दूसरे भाग में चला जाये, तो अनेक प्रकार के रोगों के फैलने का खतरा रहता है। अगर हमारे टॉन्सिल मजबूत होंगे तो वे बाहरी रोगाणुओं को शरीर में आने से रोकेंगे और अपने आप को भी बीमारी या इन्फेक्शन से बचाएंगे |

टॉन्सिल इन्फेक्शन के लक्षण :- सूजन, अंदर से गला लाल होना दर्द होना, आवाज का भारीपन, हल्का बुखार और कुछ भी खाने-पीने या निगलने में परेशानी होना। Throat Tonsils causes symptoms home remedies

टॉन्सिल्स के घरेलू उपचार

गले में टॉन्सिल के कारण, लक्षण, प्रकार तथा उपचार Gale me tonsil ke karan prakar gharelu ilaj
टॉन्सिल का उपचार
  • हल्दी, काली मिर्च और अदरक के रस को मिलाएं। तीनों को आग पर गर्म करें और फिर शहद मिलाकर पी जाएं। दो-तीन दिन तक रोज रात को ऐसा करें, टॉन्सिलकी समस्या में बहुत फायदा होगा।
  • दालचीनी को पीस लें और फिर इसमें शहद मिलाकर टांसिल पर लगाएं। ग्लिसरीन को भी टांसिल पर लगाने से सूजन कम होगी।
  • 250 ग्राम दूध में 2 ग्राम (आधा चम्मच) पिसी हुई हल्दी डालकर 2-3 बार उबालकर, छानकर पीने लायक गर्म रहने पर डेढ़ चम्मच पिसी हुई मिश्री या शक्कर मिलाकर रात में सोते समय लगातार 2-3 दिन सेवन करने से गले की खराश, खांसी, सर्दी, जुकाम, फ्लू में आराम होता है। विशेष : यदि इसी दूध में हल्दी के साथ-साथ चौथाई चम्मच-भर पिसी हुई सौंठ को डालकर उबाला जाए और छानकर सेवन किया जाए तो और भी लाभ होगा | बच्चों को इसकी आधी मात्रा दें।
  • हल्दी, सैंधा नमक और वायविडंग 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर और दरदरा पीसकर 500 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालकर फिर छानकर इस हल्के गर्म पानी से रोजाना 2 बार (लेकिन रात में सोते समय अवश्य) निरंतर 1 सप्ताह गरारे करने से टॉन्सिल्स (Tonsils) का रोग दूर हो जाता है।

टॉन्सिल्स में इन चीजो को पानी में मिलाकर गरारे करें

इनमे से जो भी चीज आपके आसपास आसानी से उपलब्ध हो उसको आजमाएं |

  1. लहसुन की एक गांठ को पानी में गर्म करके और फिर पानी को छानकर।
  2. नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर।
  3. गर्म पानी में ग्लिसरीन मिलाकर।
  4. तुलसी के छह-सात पत्ते पानी में उबालकर।
  5. सिंघाड़े को पानी में उबालकर।
  6. बबूल की छाल को पानी में उबाल कर इस पानी से दिन में दो तीन बार गरारे करें |
  7. एक चम्मच अजवायन को एक गिलास पानी में उबालकर। (गरारे रोज दो-तीन बार करें।)
  8. एक गिलास गर्म पानी में 1 चम्मच पिसा हुआ नमक डालकर दिन में 3 बार गरारे करने से गले की खराश, थूक निगलने में दर्द होना और गले में कांटें जैसा चुभने का दर्द से आराम मिलता है।
  • एक छोटा गिलास भर (125) ग्राम गाजर का रस प्रतिदिन दिन में 1 बार 3-4 बजे निरंतर 2-3 महीनो तक सेवन करने से टॉन्सिल्स और गलगंड रोग दूर हो जाता है।
  • अरीठा का लेप करने से टॉन्सिल की सूजन मिटती है।
  • अनानास, मौसमी का रस गुनगुना करके पीएं इन दोनों में से जो भी उपलब्ध हो, उसके ताजा रस को रोजाना गुनगुना करके पीएं। टांसिल में बहुत फायदा देगा ।
  • प्रतिदिन आधा गिलास गाजर का ताज़ा रस बिना कुछ मिलाये, दिन में तीन-चार बार पीने से आराम आता है।
  • अखरोट के पत्तों का क्वाथ बनाकर सेवन करने से उसी काढ़े के पानी से टॉन्सिल की गांठों को धोने से टॉन्सिल रोग ठीक हो जाता है।
  • धनिया और जौ का सत्तू प्रतिदिन लगाने से टॉन्सिल की गांठे ठीक हो जाती हैं।
  • एक पूरी अदरक लेकर उसमें छेद करके हींग भर दें। ऊपर से पान का पत्ता लपेटकर मिट्टी लगा दें। फिर उपलों की आग में तब तक गर्म करें जब तक कि मिट्टी लाल न हो जाए। फिर ठंडा होने पर अदरक को पीसकर चने के आकार की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से बैठा हुआ गला खुल जाता है।

टॉन्सिल्स की आयुर्वेदिक दवा

  • अमलताश की जड को चावलों के पानी के साथ पीसकर इसे खाने से टॉन्सिल ठीक हो जाती है।
  • अलसी, सरसों, सठा के बीज, जौ और मूली के बीजों को छाछ में पीसकर लगाने से टॉन्सिल्स की गांठे मिट जाती हैं।
  • चोपचीनी का चूर्ण 1 माशा से 4 माशा तक शहद में मिलाकर खाने से टॉन्सिल ठीक हो जाती है।
  • गोरखमुंडी की जड़ को गोरखमुडी के ही रस में घिसकर लेप करने से कंठमाला रोग ठीक होता है।
  • पीपल और बच के पाउडर को नीम के तेल में मिलाकर सूंघने से भी लोग टॉन्सिल के बीमारी ठीक हो जाती है |
  • अपामार्ग की जड़ की राख (भस्म) सेवन करने और गांठों पर लगाने से टॉन्सिल रोग दूर हो जाता है।
  • नागरमोथा तुलसी के पत्ते और पान के पत्ते पानी में पीसकर पीने से टॉन्सिल ठीक हो जाता है |
  • सत्यानाशी (Mexican Poppy) का रस निकालें (सत्यानाशी को काटने पर जो पीला पदार्थ निकलता है, वही सत्यानाशी का दूध है ) फिर आग पर चढ़ाकर गाढ़ा कर लें। उसके बाद मटर के आकार की गोलियां बनाकर धूप में सुखा लें। यह 1-1 गोली दिन में 2 बार (सुबह-शाम) निरंतर 3 महीनो तक सेवन करने से टॉन्सिल रोग जडमूल से ठीक हो जाता है।

टॉन्सिल में परहेज

  • मिर्च-मसाले वाला भोजन, आइस क्रीम, चोकलेट, गोल गप्पे, तले हुए पकवान, खट्टी चीजें, ज्यादा घी-तेल, ठंडी चीजें गले की तकलीफ को बढ़ाएंगी। मूली, टमाटर, पालक जैसी सब्जियां भी टांसिल के दौरान नुकसान करेंगी।
  • यह भी पढ़ें – गले में दर्द, सूजन, इन्फेक्शन का घरेलू उपचार

यह भी याद रखें

  • ये घरेलू उपाय कभी कभी होने वाले सामान्य टॉन्सिल के उपचार हेतू बताए गए है | यदि आपको बार-बार टॉन्सिल होते है तो उन्हे हल्के में न ले क्योंकि बार-बार होने वाले टांसिल कैंसर जैसी किसी गंभीर बीमारी का रूप भी धारण कर सकते है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि टॉन्सिल एवं एडेनॉयड में वृद्धि होने से सांस संबंधी रुकावटों के कारण चेहरे और दाँतों के स्वरूप बिगड़ जाते हैं। टॉन्सिल में होने वाले गंभीर संक्रमण नाक के पिछले हिस्से और कान से गुजरने वाली युस्तिाचियन ट्यूब जैसे अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकते हैं। टॉन्सिल के कारण कान में बार-बार संक्रमण हो सकते हैं और सुनने की ताकत में कमी आ सकती है।
  • जीवाणुओं खास तौर पर स्ट्रेप्टोकोकस से होनेवाले संक्रमणों का इलाज एंटीबायोटिक से किया जाता है। दवाइयों के कारगर नहीं होने पर कई बार एवं एडेनॉयड निकालने की जरूरत भी पड़ सकती है। जिन बच्चों को कान में हमेशा दर्द रहता है और कान बहता रहता हो, उनके लिए ऐडेनॉडेक्टॉमी लाभदायक हो सकती है। जवान लोगो में कैंसर अथवा ट्यूमर की आशंका को दूर करने के लिए टॉन्सिल एवं एडीनॉयड को भी ओपरेशन द्वारा निकाला जाता है।

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