टीबी के कारण, लक्षण, प्रकार और बचाव की जानकारी

टीबी के रोग से लाखो लोग जूझ रहे है यह बीमारी पुराने समय से ही मृत्युओं का बड़ा कारण थी ही, लेकिन आज भी टीबी (तपेदिक) एक दुनिया भर में स्वास्थ्य की एक बड़ी समस्या है। वैसे इस रोग के जीवाणुओं के बारे में 100 साल पहले ही पता चल चुका था और अब इस रोग का टीका तथा सफल इलाज भी उपलब्ध है, लेकिन इसके बावजूद रोग पूरी दुनिया, विशेषकर भारत जैसे देशों में बढ़ रहा है। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने हाल में खुलासा किया था कि एक वक्त वह टीबी से पीड़ित थे लेकिन अब वो इलाज से पूरी तरह ठीक हो गए है। बेशक टीबी किसी को भी हो सकती है |

एक अनुमान के अनुसार दुनिया में टीबी के 15 से 20 करोड़ मरीज ऐसे हैं, जो अन्य लोगों में भी इस रोग को फैला रहे हैं और 4 से 5 करोड़ नए टीबी के रोगी प्रतिवर्ष बढ़ जाते हैं। टीबी के कारण हर साल दुनिया में तीन करोड़ मौतें होती हैं। इन आँकड़ों से ही रोग की स्थिति समझ में आ जाती है। जहाँ विकसित देशों में 14 वर्ष तक के बच्चों में संक्रमण की दर 2 से 3 प्रतिशत है, वहीं विकासशील देशों में यह 60 से 80 प्रतिशत तक है। भारत में टीबी के संक्रमण की दर पुरुषों में 35 प्रतिशत और महिलाओं में 25 प्रतिशत है। बीमार व्यक्तियों की संख्या प्रति 1000 की आबादी पर 40 है।

तपेदिक से बचने और उसका इलाज करने के लिए आरंभिक अवस्था में ही चिकित्सा करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए आपको तपेदिक के लक्षणों एवं चिह्नों को जानना चाहिए, ताकि आप उसकी शुरू में ही पहचान कर सकें। तपेदिक इलाज से ठीक हो सकता है। फिर भी करीब 5 लाख लोग हर साल इस बीमारी से मरते हैं। तो आईये जानते है :-

टीबी के कारण, लक्षण, बचाव और उपचार

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टीबी

टीबी (क्षयरोग) क्या है?- देश में प्रतिवर्ष 5 लाख मौतें तपेदिक रोग से होती हैं। इस तरह टीबी भी देश में प्रमुख जानलेवा रोगों की सूची में शामिल है।

  • क्षय रोग, यक्ष्मा अथवा तपेदिक जिसे अंग्रेजी में ट्यूबर (टी.बी.) भी कहते हैं, माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के संक्रमण से होनेवाला रोग है। इसमें प्राय: मरीज के फेफड़े ही अधिक प्रभावित होते हैं। लेकिन बीमारी त्वचा, आँतों, हड़ियों, जोड़ों, मस्तिष्क की झिल्लियों और जनन अंगों को भी प्रभावित कर सकती है।
  • लसिका ग्रंथियों (Lymph glands) में भी इस रोग का संक्रमण हो सकता है। इस तरह केवल यह मानना कि तपेदिक फेफड़ों का रोग है, यह धारणा सही नहीं है।
  • शरीर में क्षय रोग के जीवाणु क्या करता है ? – टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है
  • इस बीमारी में (Mycobacterium Tuberculosis) आक्रमण करके फेफड़ों या अन्य अंगों में एक ट्यूबरकल या गाँठ का निर्माण करते हैं। यह गाँठ शुरू में आकार में बढ़ता है। फिर इसके बीच के भाग की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं और यह आसपास के ऊतकों को भी नष्ट करता है। शुरू में टीबी का संक्रमण केवल फेफड़ों में होता है |
  • लेकिन बाद में यह टांसिल और आंतो में भी जा सकता है। शुरुवाती संक्रमण गरदन की लसिका ग्रंथियों में भी हो सकता है। कई भाग में कैल्शियम जमा होकर ठीक हो जाती है। लेकिन कुछ मरीजों में जीवाणु शरीर के किसी भी हिस्से में जाकर बीमारी पैदा कर सकते है |
  • जब शुरुवाती संक्रमण ठीक नहीं हो पाता तो फिर यह फेफड़ों में फैलकर वहाँ टीबी की बीमारी पैदा करता है। इसके अलावा यह रोग हृदय और मस्तिष्क की झिल्लियों, पेट, जनन अंगों इत्यादि में भी फैल सकता है।
  • टीबी का संक्रमण फेफड़ों में कई तरह का हो सकता है। जैसे-छोटे-छोटे धब्बों के रूप में या केविटीज के रूप में ।

टीबी के कारण

  • टीबी होने में कई कारण होते हैं जैसे – नशे, औद्योगिकीकरण और बढ़ता हुआ प्रदूषण, भीड़-भाड़ टीबी को पैदा करने और बढ़ाने में सहायक हैं। प्रदूषित अथवा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में यह रोग अधिक देखा गया है। इसी तरह बीड़ी मजदूर जो तंबाखू युक्त हवा में साँस लेते हैं अथवा जो लोग अधिक मात्रा में धुम्रपान करते हैं, उनमें भी सामान्य लोगों की अपेक्षा टीबी अधिक होता है।
  • विभिन्न शोधों से यह बात सामने आई है कि साफ-सुथरे पर्याप्त क्षेत्रफल-वाले प्रकाशयुक्त और शुद्ध हवा की व्यवस्था वाले मकानों में रहने वालों में यह रोग, गंदी बस्तियों या झोंपड़पट्टी में रहनेवालों की अपेक्षा कम होता है। अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है |
  • गाँव-देहातों में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध न होने के कारण रोग का निदान और इलाज जल्दी नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में क्षय रोगी जब खाँसते हैं तो लाखों की संख्या में रोग के जीवाणु ड्रापलेट्स अथवा बलगम की छोटी-छोटी बूंदों के द्वारा बाहर निकलते हैं। आस-पास मौजूद स्वस्थ व्यक्ति जब इन जीवाणुओं को श्वास द्वारा अंदर खींचते हैं तो उन्हें भी तपेदिक का संक्रमण लग जाता है।
  • गरीबी के कारण लोग रहन-सहन का उचित स्तर नहीं बना पाते। अधिक थकान वाला शारीरिक श्रम, कम रोशनी, कम हवा आवागमन वाले मकान तथा पर्याप्त पौष्टिक तत्वों वाले भोजन का अभाव भी इस रोग के लिए जिम्मेदार हैं।
  • जब कमजोरी से शरीर की रोग प्रतिरोधकता क्षमता कम हो जाती है तो शरीर टीबी का शिकार आसानी से बन जाता है और जो मरीज अपना इलाज सही तरीके से नहीं करवा पाते, वे स्वयं अपने परिवार के सदस्यों और संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को रोग का शिकार बनाते रहते हैं।
  • इम्युनिटी में कमी से डायबिटीज, एचआईवी व गर्भवती महिलाओं को इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है |

टीबी के लक्षण

रोग के लक्षणों को दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं :-

  • ) संक्रमण के कारण वे लक्षण, जो पूरे शारीरिक तंत्र को प्रभावित करते हैं- इनमें थकान, कमजोरी, भूख न लगना, वजन कम होना, खून की कमी, रात को सोते समय पसीना आना, बुखार रहना (बुखार अकसर दोपहर बाद या शाम को आता है और यह बहुत तेज न होकर हलका-हलका रहता है) इत्यादि शामिल हैं।
  • ) अंगों में संक्रमण के कारण उत्पन्न लक्षण फेफड़ों के क्षय रोग– खाँसी, बलगम में रक्त आना, साँस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द इत्यादि।
  • तीन हफ्ते तक बलगम या बिना बलगम के खाँसी आना। लगातार वजन कम होना और कमजोरी बढ़ना।
  • खाँसी में खून आना।
  • दो हफ्ते से ज्यादा बुखार आना (शाम को बुखार जो रात को पसीना आने पर उतर जाता है।)
  • छाती अथवा पीठ के ऊपरी हिस्से में दर्द।
  • गले की टीबी के लक्षण- आवाज मोटी हो जाना, खाने में तकलीफ होना।
  • आँतों की टीबी के लक्षण -दस्त लगना, पेटदर्द, आँतों में रुकावट, खाने का अवशोषण ठीक से न होना।
  • गुरदे (किडनी) की टीबी के लक्षण – पेशाब से खून आना, बार-बार पेशाब जाना।
  • गर्भाशय का क्षय रोग- नलिकाओं में सूजन, मवाद बनना, बाँझपन।
  • मस्तिष्क की झिल्लियों में टीबी के लक्षण – सिरदर्द, गरदन में अकड़न, झटके आना, उलटियाँ होना।
  • लसिका ग्रंथियों का क्षय रोग- ग्रंथियों का आकार बढ़ना, उनमें मवाद पड़ना, दर्द होना।
  • हड्डियों एवं जोड़ों का क्षय रोग- दर्द और सूजन आना, मवाद पड़ना।
  • फेफड़ों का तपेदिक (टी.बी.) – फेफड़ों का तपेदिक लंबे समय तक रहनेवाला और आसानी से फैलने वाला रोग है, जो किसी को भी हो सकता है। लेकिन यह बीमारी सामान्यतया 15 से 35 उम्र वाले वाले लोगों को ज्यादा होती है, विशेष रूप से कमजोर, कुपोषित बच्चे तथा तपेदिक के रोगी के साथ रहने वाले लोग। यह हाथ मिलाने से या रोगी द्वारा प्रयुक्त किए गए बरतनों से नहीं होता है। इसके रोगाणु धूप में मर जाते हैं। इसलिए कमरे की खिड़कियाँ आदि खुली रखनी चाहिए, इससे हवा में रोगाणुओं की कमी हो जाती है।

त्वचा की टीबी

  • जो सूक्ष्म कीटाणु फेफड़ों का तपेदिक पैदा करते हैं, वही कभी-कभी त्वचा पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं। उस स्थिति में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं, जिनमें दर्द नहीं होता है |
  • त्वचा की टीबी हमेशा धीरे-धीरे शुरू होता है, बहुत समय तक रहती है और नौ माह अथवा वर्षों के अंतराल के बाद फिर लौट आती है। प्राय: इसका इलाज मुश्किल होता है।

लसिका ग्रंथि की टीबी

  • कभी-कभी गरदन और कंधों के बीच की हँसली की हड्डी के पीछे वाली लसिका गाँठों में भी तपेदिक अपना संक्रमण फैला देता है। ये गाँठे बड़ी होकर फूटती हैं और इनमें से पीब निकलता है। उसके बाद ये फिर फूटती हैं और इनके बीच में से पीब निकलने लगती है। प्राय: इनमें दर्द नहीं होता।

टीबी से बचाव

  • सबसे पहला और प्रभावी बचाव का तरीका यह है कि नवजात शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद अथवा 6 सप्ताह तक अन्य टीकों के साथ बी.सी.जी. का भी टीका आवश्यक रूप से लगवा देना चाहिए। रोगी के निकट संपर्क में आए घर के सदस्यों अथवा अन्य व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से सुरक्षात्मक इलाज के रूप में आई.एन.एच. और एथेमब्यूटाल की दवा नौ महीने तक खा सकते हैं।
  • इसके अलावा अन्य बातों का भी ध्यान रखें, जैसे- खुले और स्वच्छ वातावरण में रहना, पौष्टिक आहार का सेवन करना, शारीरिक श्रम के बाद भरपूर आराम भी जरूरी है।
  • टी.बी. का रोग गाय में भी पाया जाता है। दूध में इसके जीवाणु निकलते हैं और बिना उबाले दूध को पीने वाले व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकते हैं। यह भी जरुर पढ़ें – टीबी (क्षय रोग) में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए
  • रोग पर काबू के लिए स्वास्थ्य की नियमित जाँच की जानी चाहिए।

टीबी की जाँच

  • फेफड़ों की टीबी के लिए बलगम जांच होती है, जोकि 100-200 रुपये तक में हो जाती है।
  • यदि इस टेस्ट में टीबी पकड़ में नहीं आती तो AFB कल्चर कराना होता है। यह 2000 रुपये तक में हो जाती है। लेकिन इनकी रिपोर्ट 6 हफ्ते में आती है।
  • डॉक्टर रोगी के बलगम एवं रक्त की जाँच तथा सीने का एक्स-रे करवाकर रोग का निश्चयन करता है। कई बार इलाज के लिए मॉण्टॉक्स टेस्ट या ट्रेंड्यूबरक्युलिन टेस्ट भी जरूरी हो जाता है।
  • बढ़ी हुई लसिका ग्रंथियों की बायोप्सी के बाद उसकी सूक्ष्मदर्शी जाँच भी करवाई जाती है।
  • आजकल एक आधुनिकतम जाँच पी.सी.आर. भी टी बी के संक्रमण का पता करने के लिए की जाती है। इसके अलावा सूजन या गाँठ में सूई डालकर उससे कोशिकाएँ निकालकर जाँच भी करते हैं एवं एलाइजा जाँच से भी रोग का पता किया जाता है।
  • डॉक्टर केवल लक्षणों के आधार पर टीबी की चिकित्सा शुरू नहीं करते है। इसलिए शुरुवाती लक्षण दिखने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

टीबी का इलाज (डॉट्स पद्धति ) Direct Observation Treatment (DOTS)

  • डॉट्स प्रोग्राम भी प्राइवेट अस्पतालों के इलाज की तरह ही असरदार हैं। दवाओं में कोई फर्क नहीं है। उलटे फायदा यह है कि सरकारी अस्पतालों में ये फ्री मिलती हैं।
  • इस पद्धति में डॉक्टर की सीधी देख-रेख में रोगी इलाज शुरू किया जाता है और स्वास्थ्य विभाग भी रोगी को प्रभावी दवाइयाँ नि:शुल्क उपलब्ध करवाता है।
  • इस पद्धति के तीन हिस्से हैं-(1) जाँच एवं पर्याप्त प्रभावी दवाइयाँ, (2) स्वास्थ्यकर्मी या डॉक्टर की सीधी देख-रेख में दवाइयाँ लेना तथा (3) मॉनीटरिंग अर्थात् समय-समय पर इलाज की प्रगति एवं रोगी की हालत का पता करना।
  • दवाइयाँ नि:शुल्क प्राप्त होने से गरीब लोगों को लेने में कोई कठिनाई नहीं होती है, लेकिन इसके लिए रोगी को सरकारी अस्पताल में पंजीकरण करवाना होता है।
  • दवाइयों द्वारा इलाज के अलावा रोगी को साफ़ हवा और प्रकाश वाले स्थानों में रहना चाहिए। सुबह-सुबह बगीचों या खेतों में टहलते हुए लंबी-लंबी साँसें लेना चाहिए। साथ ही ताजा पौष्टिक आहार, जिसमें विटामिन और प्रोटीन की मात्रा अधिक हो। जैसे-दूध, अंडे, फल इत्यादि खाना चाहिए। इस तरह रोग सही इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाता है। इसीलिए इस रोग के रोगियों को घबराने या चिंता करने की जरूरत नहीं है। बस, दवाइयों को नियमित लेने का ध्यान रखना जरूरी है।

लसिका ग्रंथि की टीबी का इलाज

  • किसी भी पुराने घाव, अल्सर या सूजी हुई लसिका गाँठों की स्थिति में डॉक्टरी सलाह लेना बेहतर होता है। कारणों को जानने के लिए जाँच की आवश्यकता होती है। त्वचा के तपेदिक का इलाज भी बिलकुल वैसा है जैसा कि फेफड़ों के तपेदिक का होता है। रोग ठीक होने के बाद दुबारा न लौट आए, इसके लिए चमड़ी से तपेदिक के निशान मिटने के बाद भी कई महीनो तक इलाज जारी रखना जरूरी होता है।
  • चिकित्सा-आजकल पहले की अपेक्षा काफी प्रभावी एंटीबायोटिक दवाएँ उपलब्ध हैं। यदि इनकी पूरी मात्रा सही समय तक ली जाए तो रोग पूरी तरह ठीक हो जाता है। इस रोग का किसी कुशल चिकित्सक से ही करवाना चाहिए।

टीबी के रोगियों को इन बातों का अवश्य ख्याल रखना चाहिए

  • टीबी के रोगी को खांसते और छींकते समय अपनी नाक और मुंह को कपड़े या रूमाल से ढँकना चाहिए
  • रोगी के बलगम को किसी ढक्कनवाले बर्तन में थूककर बाद में आग में जला देना चाहिए।
  • टीबी के रोगी को अपना झूठा खाना पीना किसी को नहीं देना चाहिए
  • मरीज को डेढ़ वर्ष तक पूरा इलाज करवाना चाहिए बीच में इलाज नहीं छोड़ना चाहिए |
  • बाहर पानी या जूस पीते है, तो डिस्पोजेबल गिलास का इस्तेमाल करे |
  • मरीज अपना साबुन, तौलिया जैसी सभी चीजो को अलग रखे |
  • मरीज ऑफिस, स्कूल, मॉल जैसी भीड़ भरी जगहों पर जाने से परहेज करे।
  • टीबी के मरीज अन्य लोगो से हमेशा दूरी बनाएं रखें |

टीबी और एड्स

जब से एड्स के विषाणु (एच.आई.वी.) का संक्रमण बढ़ रहा है तब से क्षय रोगियों में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी हो रही है। क्षय रोगियों को एड्स होने की संभावना अधिक होती है। इसी तरह एड्स रोगियों में भी अवसरवादी रोग के रूप में टीबी अधिक होता है। WHO के अनुसार दुनिया में 50 लाख से अधिक रोगी टीबी के जीवाणु और एड्स के विषाणु से एक साथ संक्रमित हो चुके हैं। एच.आई.वी. से संक्रमित व्यक्ति यदि टीबी के जीवाणु से भी संक्रमित है तो उसमें टीबी शीघ्र ही अपने पैर पसार लेता है। ऐसे मरीज में टीबी की पहचान और इलाज भी मुश्किल होता है, क्योंकि टीबी के लिए की जाने वाली त्वचा की जाँचें एड्स के मरीजों में रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म होने के कारण संभव नहीं हो पाती है।

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6 thoughts on “टीबी के कारण, लक्षण, प्रकार और बचाव की जानकारी”

  1. आपकी पोस्ट आज ही पढ़ी। बहुत ही सुंदर व आसान वर्णन किया गया है। में मालवीय नगर नई दिल्ली से हूँ। आपके चिकित्सक से मिलना चाहता हूं अपनी स्वास्थ्य संबंधी में। कृपया बताएं।
    धन्यवाद
    सुभाष बजाज

    Reply
    • सुभाष जी,
      आम लोगो को सेहत के प्रति जागरूक बनाने का हमारा यह प्रयास आपको अच्छा लगा इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया |
      ऑनलाइन मेडिकल कंसल्टेंसी का काम अभी हमने शुरू नहीं किया है | जब कभी इसे शुरू करेंगे तब इसकी सूचना आप तक जरुर पहुंचा दी जाएगी |

      धन्यवाद

  2. Mujhe tb hai aur mujhe darr lagta hai ki kahi ye rog mere family walo ko na ho jaye. .kyunki chek up se pahle tak sabhi mera jutha khana fruit aadi khate the. .plz bataiye mai kya karu

    Reply
    • पटेल जी यह बात सही है की तपेदिक एक संक्रामक रोग है, मतलब यह की ये फैलने वाला रोग है| लेकिन कब और किन हालात में मरीज इसको फैला सकता है यह इस आर्टिकल में बता दिया गया है | फिर भी यदि आप आशंकित है तो अपने परिवार की जाँच करवा लीजिये | स्वस्थ्य की पूरी जाँच वैसे भी सभी लोगो को साल में एक बार करवा लेनी चाहिए | यह आर्टिकल पढ़ें – http://healthbeautytips.co.in/full-body-checkup-importance-list-hindi/

  3. मुझे टीवी है और मेरा इलाज काफी 6 महीनों से चल रहा है और मैंने दो-तीन जांच करवा लिया है फिर भी जांच में अभी टीवी नहीं बता रहा है फिर भी मेरा जीना बहुत तेज दर्द कर रहा है राइट साइड का तो इसके लिए मैं क्या करूं कोई सुझाव दे सकते हैं आप सीने में बहुत ज्यादा दर्द होता है जुबान टाइप की रुक-रुक कर

    Reply
    • अशोक जी सीने में दर्द होने और भी कई कारण हो सकते है ये तो जाँच के बाद ही पता चलेगा | दिल की बीमारी या फिर चेस्ट इन्फेक्शन भी कुछ आम कारण है सीने में दर्द के लिए |

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