निमोनिया बुखार के लक्षण, कारण तथा बचाव की जानकारी

निमोनिया बुखार (या न्यूमोनिया) बहुत खतरनाक होता है। यह खांसी तथा तेज़ बुखार के साथ आता है। निमोनिया में एक या दोनों फेफड़े रोगग्रस्त हो जाते हैं। निमोनिया का रोग जानलेवा भी हो सकता है, अतः इसकी जानकारी तथा इलाज जल्द से जल्द होना चाहिए। निमोनिया बुखार सबसे अधिक फेफड़ों को प्रभावित करता है इस रोग में फेफड़ों (लंग्स) में इन्फेक्शन हो जाता है। निमोनिया बुखार होने पर रोगी को साँस लेने में कठिनाई महसूस होने लगती है। ऐसा इसलिए होता है कि उसके फेफड़ों में सूजन आ जाती है। चूंकि इस रोग में बुखार भी चढ़ता है, इसलिए शरीर का तापमान तो बढ़ेगा ही, साथ में खाँसी भी होने लगती है। निमोनिया रोग जीवाणु या वायरस के संक्रमण के कारण होता है। जब किसी व्यक्ति पर एक विशेष प्रकार के कीटाणु हमला करें और वह व्यक्ति उसका मुकाबला करने में सक्षम न हो या उसकी प्रतिरोधक शक्ति कम हो तो वह निमोनिया की बीमारी से जल्दी पीड़ित हो जाता है।

निमोनिया बुखार के लक्षण

निमोनिया बुखार के लक्षण, कारण तथा बचाव की जानकारी pneumonia lakshan karan ilaj bachne upay
निमोनिया बुखार
  • निमोनिया बुखार में मरीज को अचानक ही ठंड देकर बुखार आता है। यह बुखार लगातार चढ़ा रहता है, बीच में कम नहीं होता, बेहोशी और ऐंठन, होंठों का नीला पड़ना,बहुत ज्यादा कमजोरी आना, बेहोशी छाना, बार-बार उल्टी होती है |
  • इस रोग में खाँसी होती है, जिसमें सफेद, पीला या हरा बलगम निकलता है। छाती में दर्द भी हो सकता है। साँस तेज गति से चलने लगती है। छोटे बच्चों में यह लक्षण खासकर देखने में आता है, हालाँकि ऐसी स्थिति में उनमें साँस-नलियों की सिकुड़न भी हो जाती है। इलाज जल्द शुरू न होने पर मरीज की हालत तेजी से बिगड़ती जाती है। उसमें बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है, बुखार और तेज हो जाता है और छाती में भी दर्द बढ़ जाता है। कुछ मरीजों के बलगम में खून भी आ जाता है।
  • निमोनिया बुखार में एक या दोनों ही फेफड़ों में सूजन हो जाती है |
  • पसलियों के अंदर की ओर मौजूद झिल्ली कई बार सूजकर निमोनिया रोग पैदा कर देती है।
  • निमोनिया बुखार में कई बार पसलियों के नीचे अंदर की तरफ काफी दर्द महसूस होता है।
  • इस रोग में सूखी खांसी का बार-बार आना आम बात है।
  • खांसने से चेहरा लाल हो जाता है, मगर कफ निकलता नहीं और सांस लेना कठिन हो जाता है।
  • इसी के साथ नथुने भी फूलने लगते हैं। मरीज के लिए यह बड़ी बेचैनी की घड़ी होती है।
  • निमोनिया बुखार में रोगी को प्यास बहुत लगती है, मगर पानी अधिक पी नहीं पाते।
  • निमोनिया बुखार में खांसी, दर्द तथा बुखार-तीनों एक साथ भी हो सकते हैं।

निमोनिया बुखार होने के कारण

  • निमोनिया के लक्षण मरीज के स्वास्थ्य पर निर्भर करते हैं। जीवाणु के कारण होने वाले निमोनिया में तेज़ बुखार, खाँसी, शरीर में दर्द, तेजी से साँस चलना आदि लक्षण होते हैं। जबकि वायरल से होने वाले निमोनिया में फ्लू की तरह लक्षण होते हैं। उदाहरण के लिए बुखार, जी मिचलाना, साँस लेने में तकलीफ, सूखी खाँसी, शरीर में दर्द और कम मात्रा में कफ बनना।
  • ज्यादातर मामलों में रोग की शुरुआत साधारण सर्दी-जुकाम, गला खराब होने से होती है। मुँह, नाक, गले में पैठ करने वाले वायरस या बैक्टीरिया मौका पाते ही साँस की नलियों की बचाव-प्रणाली को चकमा दे जाते हैं और अंदर जाकर संक्रमण फैला देते है |
  • कुछ मामलों में संक्रमण सीधा हवा से आए वायरस और बैक्टीरिया से भी हो जाता है, और कुछ में शरीर के अन्य किसी अंग से खून के रास्ते रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया फेफड़े में पहुँच जाते हैं।
  • जुकाम या कफ होने पर जब वायरस संक्रमण गले और फेफड़ो में अधिक फैल जाता है, यह भी आगे चलकर निमोनिया बुखार का कारण बन जाता है |
  • निमोनिया होने के अन्य कारणों में शामिल है : मौसम का बदलाव, सर्दी लगने, फेफड़ों पर चोट लगना, खसरा और चिकनपॉक्स जैसी बीमारियों के बाद भी इस रोग के होने की आशंका बढ़ जाती है। आजकल प्रदूषण की वजह से भी निमोनिया के केस बढ़ रहे हैं।
  • निमोनिया बुखार से पीड़ित व्यक्ति के फेफड़ों के ऊतकों में सूजन हो जाती है। गले में कफ और पस होने के कारण मरीज के रक्त और शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं मिलती जिससे साँस लेने में कठिनाई आती है ।
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निमोनिया बुखार में सावधानियां

  • निमोनिया बुखार पीड़ित मरीज की छाती में दर्द हो तो उसे दूर करने के लिए गर्म पानी की बोतल का सेंक और दर्द-निवारक दवा लेना आराम दिलाता है।
  • खाँसी से छाती में तकलीफ महसूस हो सकती है। पर उसे दबाने की कोशिश करना गलत है। जितना बलगम निकल सके, उतना ही अच्छा है। जिस समय खाँसी उठे, उस समय मरीज की देखभाल कर रहा व्यक्ति यदि हाथ से उसकी छाती को सहलाकर सहारा दे सके तो इससे मरीज को राहत पहुँचती है तथा दर्द कम होता है।
  • निमोनिया बुखार के ज्यादातर मामलों में सात से दस दिनों में स्थिति बिलकुल संभल जाती है और रोगी पहले से काफी स्वस्थ अनुभव करने लगता है। जिन मामलों में निमोनिया दूसरे किसी रोग की आड़ में होता है, उनमें उस रोग का सही इलाज होना भी बहुत जरूरी होता है।
  • छींकते, खाँसते और यहाँ तक कि बात करते हुए भी मरीज के लार के छींटों से भी ये जीवाणु फैल सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति जो किताबें, मेज, कप, गिलास आदि छूता है वे भी संक्रमित हो जाते हैं। इसलिए संक्रमित मरीज के सम्पर्क में आने के बाद या उसके सम्पर्क में आई वस्तुओं को छू लेने के बाद तुरन्त साबुन से हाथ धो लेने चाहिए।
  • खांसी अगर एक हफ्ते से ज्यादा वक्त से है तो डॉक्टर को दिखाएं। इसी तरह, अगर खसरा या चेचक (चिकन पॉक्स) निकलने के बाद खांसी होती है तो भी हल्के में न लें।
  • छोटे बच्चों का खास ख्याल रखें। उन्हें सर्दी से बचाएं और धूप में जरूर रखें।
  • ज्यादा पलूशन वाली जगहों पर जितना मुमकिन हो, न जाएं। जाना ही हो तो बेहतर क्वॉलिटी का मास्क पहनकर जाएं।

निमोनिया बुखार में मरीज का आदर्श भोजन कैसा होना चाहिए

  • निमोनिया बुखार में रोगी को चपाती ना खिलाएँ।
  • उसे पहले तीन दिन पूरी तरह फलों के रस पर रखें। फलों का रस पिलाने के लिए आधा गिलास गाजर और आधा गिलास चुकंदर का रस लें। आप प्याज, खीरा, पालक, एक-एक कप रस निकालें। तीनों को मिलाकर पिलाएँ |
  • चौथे दिन से उसे ताजा फल खिलाना शुरू कर दें। सेब, चीकू, अंगूर आदि मीठे फल खिलाएँ।
  • निमोनिया बुखार के रोगी को नींबू, आलू बुखारा, संतरा, पालक, आँवला, अंगूर आदि भी खाने को दें। धीरे-धीरे भोजन में रोटी भी देना शुरू करें। निमोनिया ठीक होगा तो फेफड़े भी ठीक काम करने लगेंगे।
  • अधिक जानकारी के लिए पढ़ें यहाँ – निमोनिया में क्या खाएं क्या ना खाएं -Pneumonia Diet

निमोनिया बुखार से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब

किस प्रकार की शारीरिक कमजोरी में निमोनिया पनपता है ?

  • यह कमजोरी कई प्रकार की हो सकती है। बिगड़ी हुई डायबिटीज, कुपोषण, शराब का व्यसन, गुर्दो की खराबी, लंबे समय से बीमारी से पीड़ित होना, हाल में हुआ ऑपरेशन, कैंसर के लिए दी जा रही दवाएँ, एच.आई.वी. संक्रमण आदि बहुत सी स्थितियाँ हैं जिनमें शरीर की रोग-बचाव ताकत कम हो जाती है और निमोनिया बुखार के बैक्टीरिया को पैर जमाने का मौका मिल जाता है।
  • क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस होने पर या धूम्रपान की आदत होने पर भी साँस-नलियों की रोग प्रतिरोधक ताकत कमजोर हो जाती है। इसलिए क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस के मरीजों और धूम्रपान करने वालों में निमोनिया के मामले अधिक होते हैं।

डॉक्टर निमोनिया बुखार की कैसे पहचान करते है ?

  • रोगी के लक्षण और शारीरिक जाँच के परिणाम ही इसका अंदाजा लगा देते हैं। रही-सही पुष्टि छाती के एक्स-रे से हो जाती है। इसमें निमोनिया की किस्म का भी अंदाजा लग जाता है। यदि फिर भी रोग की पुष्टि करने में कठिनाई हो तो अंत में खून और बलगम की जाँच कराने से स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है।

निमोनिया बुखार का इलाज क्या है ?

  • यूँ तो निमोनिया बुखार का इलाज मरीज को घर में रखकर भी कराया जा सकता है पर यदि इलाज से लाभ न हो रहा हो तो निमोनिया के साथ टी.बी की जाँच भी करा लेनी चाहिए। गम्भीर स्थिति होने पर निमोनिया बुखार से पीड़ित मरीज को अस्पताल में भरती करा दिया जाना चाहिए।
  • निमोनिया बुखार उपचार का मुख्य आधार ऐंटिबॉयटिक दवाई होती हैं। इनका चयन संक्रमण के अनुरूप किया जाता है। संक्रमण को जल्दी खत्म करने के लिए कई मामलों में ऐंटिबॉयटिक नस से टीके के जरिए दिये जाते हैं। बुखार उतारने के लिए निमोनिया बुखार की दवा दी जाती है। जैसे पेरासिटामोल या निमूलिड, ओसेलटामिविर, टेमीफ्लूआदि । साँस की नलियों में सिकुड़न होती है तो उसे दूर करने के लिए ब्रोंकोडाइलेटर दवा देते हैं। ऑक्सीजन भी दी जाती है। जब तक मरीज की हालत नहीं सुधरती, नस से ग्लुकोस भी दिया जाता है ताकि शरीर को पानी और पोषण मिलता रहे। आम तौर से ऐंटिबॉयटिक का असर 24 से 72 घंटों में दिखने लगता है। निमोनिया बुखार कम होते ही स्थिति में सुधार आना शुरू हो जाता है। लेकिन ऐंटिबॉयटिक दवा की डोज में जरा भी असावधानी नहीं बरतनी होती। यह दवा दस से चौदह दिन तक चलती है।

क्या निमोनिया बुखार के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है ?

  • यह मरीज की हालत पर निर्भर करता है। कम गंभीर मामलों में घर पर नियम से दवा देकर भी रोग का इलाज हो सकता है। 5 साल से छोटे बच्चों और 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगोंको इस रोग से अधिक खतरा होता है इसलिए इन्हें जल्द से जल्द हॉस्पिटल में भर्ती करवा देना चाहिए |

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