पित्त की पथरी के लक्षण, कारण तथा जानिए इलाज के लिए कौन सा ऑपरेशन करवाएं

पित्त की पथरी (गाल ब्लैडर स्टोन) :-इस बीमारी के कारण लक्षण आदि जानने से पहले पित्त के विषय में थोडा जान लेते है | पित्त दरअसल एक हरे रंग का एक तरल पदार्थ होता है जो लीवर में बनकर लीवर  से लगी हुई, पित्त की थैली (गालब्लैडर) में इक्कठा होता रहता है। भोजन के छोटी आंत में पहुंचते ही पित्ताशय में सिकुडन शुरू हो जाता है जिससे यह द्रव पित्त नली द्वारा छोटी आंत में चला जाता है। यहां, यह द्रव कुछ विटामिनों, खनिजों एवं लवणों को पचाने का अपना महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यही पित्त की थैली का मुख्य कार्य होता है |

पित्ताशय के पत्थर पित्त में उपलब्ध कई रसायनों से बनते हैं। इस द्रव में पानी, कोलेस्ट्राल, बिलिरूबिन, कैल्शियम तथा अन्य लवण व लीवर द्वारा बाहर निकाले गए दूषित पदार्थ मौजूद होते हैं। इनमें से कोलेस्ट्राल व पित्तीय लवण ही पथरी बनाने का काम करते है। वास्तव में कोलेस्ट्राल को घोल के रूप में बनाए रखने के लिए इन दोनों का एक खास अनुपात में होना आवश्यक है। जब कभी इस अनुपात में असंतुलन आ जाती है तो पित्ताशय में कोलेस्ट्राल थक्के के रूप में जमने लगता है। यहां धीरे-धीरे कैल्शियम और बिलिरूबिन आदि के जमने से यह पत्थर की तरह सख्त होकर पथरी बन जाता है। कभी-कभी ये पत्थर खुरदुरे, किसी चट्टान के टुकड़े जैसे होते हैं। लवण एवं कोलेस्ट्राल के असंतुलन के कई कारण हो सकते हैं। यही कारण किसी भी व्यक्ति के पित्ताशय में पित्त की पथरी बनाते हैं |

पित्त की पथरी होने के कारण

पित्त की पथरी के लक्षण, कारण तथा जानिए इलाज के लिए कौन सा ऑपरेशन करवाएं
पथरी रोग
  • उम्र- आम तौर पर यह रोग 40 वर्ष के बाद होता है। इस उम्र में कोलेस्ट्राल की मात्रा लगभग सभी व्यक्तियों में बढ़ जाती है।
  • मोटापा- मोटे व्यक्तियों में इस रोग की संभावना ज्यादा रहती है। क्योंकि उनमें कोलेस्ट्राल ज्यादा होता है।
  • महिलाएं- महिलाओं में पित्त की पथरी का रोग ज्यादा होता है।
  • महिलाओं के डिम्ब से निकलने वाला एस्ट्रोजन हार्मोन पित्तीय लवण के बनने में रुकावट पैदा कर, उसका अनुपात कम कर देता है।
  • भोजन की अनियमितता-जब भोजन छोटी आंत में पहुंचता है तो पित्ताशय में सिकुडन शुरू हो जाता है और इस प्रकार पित्त पाचन कार्य के लिए छोटी आंत में पहुंच जाता है। अनियमित भोजन विशेषकर बिना पानी पिए व्रत या उपवास करने वालों में छोटी आंत में भोजन की लम्बे समय तक अनुपस्थिति, पित्ताशय को एक्टिव नहीं करता और तब पित्ताशय में रुके हुए पित्त में कोलेस्ट्राल का थक्का बनने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। व्रत व अनियमित भोजन करने की आदत महिलाओं में ही ज्यादा होती है इसलिए पित्त की पथरी से सबसे ज्यादा वही प्रभावित होती है ।
  • शारीरिक सक्रियता और एक्सरसाइज़ की कमी से भी यह रोग होता है |
  • पित्त में रुकावट-पित्त की नली पर बाहरी दवाब पड़ने से पित्त का बहना रुक जाता है। इस प्रकार लम्बे समय तक पित्त द्रव पित्ताशय में जमा रह जाता है। ऐसी स्थिति में कोलेस्ट्राल के थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी ही संभावना महिलाओं में गर्भावस्था के अंतिम चरण में होती है, जब गर्भाशय की ऊंचाई बढ़कर पित्त की नली पर दवाब डाल सकती है। इन्हीं कारणों से यह रोग बार बार माँ बनने वाली महिलाओ में अधिक होता है।
  • पित्ताशय का जीवाणुओं द्वारा संक्रमण-पित्ताशय के संक्रमण (इंफैक्शन) होने से भी पित्त की पथरी बन सकती है।
  • पथरी बनने के इन कारणों के आलावा एक और कारण होता है जिसमें बिलिरूबिन पथरी के रूप में जम जाता है। पित्त की संरचना में बिलिरूबिन एक मुख्य पदार्थ है। यही पित्त को हरा रंग देता है। पीलिया रोग में शरीर के पीलेपन के लिए भी यही जिम्मेदार होता है। यह पदार्थ लाल रक्त कणों के अवशेष से बनता है। इसका मतलब यह हुआ की जिन रोगों में लाल रक्त कण ज्यादा टूटते हैं, उमने बिलिरूबिन की मात्रा बढ़ जाती है। पित्त में बिलिरूबिन की मात्रा बढ़ने से उसके थक्के के रूप में जमकर पत्थर बनने की संभावना हो जाती है। इसे पिगमेंट स्टोन कहते हैं। इस पथरी का कोलेस्ट्राल से कोई सम्बंध नहीं होता। पीलिया रोगियों को पित्त की पथरी से अधिक सावधान रहना चाहिए तथा समय समय पर इसकी जाँच करवा लेनी चाहिए |
  • इस प्रकार कम शब्दों में यह कह सकते हैं कि पित्त की पथरी मुख्यतः बड़ी उम्र के लोगो, अधिक वजन वाली महिलाओ तथा उपवास एवं अनियमित भोजन करने से होने वाली बीमारी है।

पित्त की पथरी के लक्षण

  • लक्षणों को 3 भागों में बांटा जा सकता है
  • साधारण-कुछ रोगियों को साधारण कष्ट रहता है जैसे अपच, अफारा, लम्बी डकारें आना (विशेषकर वसायुक्त भोजन के बाद), कभी-कभी या हमेशा पेट के ऊपरी दाहिने भाग में मीठा-मीठा दर्द रहना, आदि ।
  • गंभीर-कुछ रोगियों को एकाएक छटपटाने वाला तेज दर्द उलटी के साथ शुरू हो जाता है। यह दर्द पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से से शुरू होकर पीठ तक फैलता है। कभी-कभी बुखार भी हो जाता है। सही इलाज ना करवाने पर रोग बढ़कर अन्य जटिलताएं पैदा कर सकता है।
  • पित्त की पथरी जटिल अवस्था में- पित्ताशय में सूजन और मवाद बन सकता है। मवाद से भरी यह थैली फट सकती है, जिससे पूरे पेट में मवाद फैल सकता है। वहां से खून द्वारा पूरे शरीर में फैलकर बीमारी को गंभीर बना सकता है। इसके अलावा जिगर में मवाद बन सकता है। पैंक्रियाज (अग्नाशय) का संक्रमण (कोलेंजाइटिस) हो सकता है। कभी-कभी पित्ताशय से सरक कर पथरी पित्त की नली में अटक जाती है। इस अवस्था में रोगी को पीलिया हो सकता है। यह एक अधिक गम्भीर समस्या होती है।
  • लंबे समय तक पित्त की पथरी पित्ताशय में रहे तो वहां कैंसर भी हो सकता है।

पित्त की पथरी की जांच

  • डॉक्टर रोगी के लक्षणों को देखकर या टेस्ट द्वारा रोग का इलाज करता है। फिर भी पित्त की पथरी की जाँच के लिए आवश्यकतानुसार रक्त व पेशाब की जांच, एक्स-रे, अल्ट्रासोनोग्राफी, हृदय की जांच आदि करवा सकते हैं। अल्ट्रासोनोग्राफी काफी हद तक विश्वसनीय जांच होती है।
  • पित्ताशय में बनी बड़ी पथरी तो जल्दी अपनी जगह नहीं बदल सकती है, लेकिन छोटी पथरियों के विषय में एक बात जाननी जरूरी है जो वाहिनियों में रुकावट पैदा करती हैं। छोटी पथरियां अपना स्थान बदल कर आगे सरक सकती हैं और आंत के रास्ते बाहर भी निकल सकती हैं। यही कारण है कि ऐसा भी हो सकता है कि पहली बार हुए अल्ट्रासाउंड में वे कहीं दिखायी दें और दूसरी बार में वे न दिखायी दें अथवा आगे बढ़ी जान पड़ें।

पित्त की पथरी का इलाज

  • अगर शुरुआती दौर में लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इस समस्या को केवल दवाओं से इलाज किया जा सकता है। ज्य़ादा गंभीर स्थिति में सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है।  पित्त की पथरी होने पर किसी भी प्रकार की जटिलता में ऑपरेशन करा लेना चाहिए। आजकल ऑपरेशन की कई विधियां अपनाई जाती हैं जैसे :-

पित्त की पथरी इलाज की ओपन सर्जरी – सामान्य विधि

  • पित्त की पथरी के इलाज हेतु यह साधारण विधि बहुत पुरानी है। इस विधि में पेट में चीरा लगाकर खोला जाता है। फिर पित्ताशय को अन्य अवयवों से छुड़ाते हुए सावधानी से निकाल लिया जाता है। यह सर्जरी रोगी को बेहोश करके की जाती है। आमतौर पर रोगी को 7 दिनों में छुट्टी मिल जाती है। इसका खर्च भी आम आदमी की पहुंच में ही होता है।

पित्त की थैली में स्टोन का ऑपरेशन : लेप्रोरकोपिक विधि

  • पित्त की पथरी का इलाज करने की इस विधि में पेट पर लम्बा चीरा लगाने के बजाए आवश्यकतानुसार 3-4 बटन जैसे छेद बनाए जाते हैं। इन छेदों के अंदर से लेप्रोस्कोप नामक मशीन को पेट के अंदर डाला जाता है। मशीन के बाहरी हिस्से पर लगे कैमरे से टी. वी. स्क्रीन पर देखते हुए इसे करते हैं। इसे सर्जरी अपनी आंखों के आगे रखकर नियंत्रित करता है। इस मशीन में काट-छांट करने वाले औजार भी लगे होते हैं जिनका नियंत्रण बाहर से आवश्यकतानुसार किया जा सकता है। इन्हीं यंत्रों द्वारा पित्ताशय को काट-छांटकर पेट पर मुख्य यंत्र के लिए बनाए गये छिद्र से बाहर निकाल लिया जाता है। यह शल्यक्रिया भी बेहोशी में की जाती है। ऑपरेशन सफलतापूर्वक होने पर रोगी को 2-3 दिनों में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है |
  • इस विधि को कोई विशेष प्रशिक्षित सर्जन ही कर सकता है। इसमें खर्चा भी अधिक होता है।

पित्त की थैली में स्टोन का ऑपरेशन : लिथोट्रिप्सी

  • वास्तव में यह विधि गुर्दे की पथरी के लिए उपयोगी है। पित्त की पथरी के लिए इस विधि द्वारा खास परिस्थितियों में इलाज किया जा सकता है। इस विधि में विशेष प्रकार की तरंगों को स्क्रीन पर देखते हुए, पथरी पर केन्द्रित करके उसे चूर-चूर कर दिया जाता है। फिर पित्ताशय के संकुचन से ये कण पित्त के साथ छोटी आंत से होते हुए मल द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
  • बहुत पुराने या संख्या में ज्यादा पत्थर रहने पर पित्ताशय में संकुचन की प्रक्रिया बंद हो जाने पर यह विधि उपयोगी नहीं होती है। इसके अलावा पथरी निकल जाने के बावजूद भी लम्बे समय तक महंगी दवाएं लेनी पड़ती हैं। यह इलाज करवाने के बाद भी दुबारा पित्त की पथरी बनने की संभावना रहती है।

पित्त की थैली में स्टोन का ऑपरेशन : एंडोस्कोप विधि

  • एंडोस्कोप एक नली जैसी मशीन होती है जिसके एक सिरे पर लगी आंख से दूसरे सिरे के सामने आने वाले दृश्य दिखाई पड़ते हैं। इसमें काटने और पकड़ने वाले यंत्र लगे रहते हैं, जिन्हें बाहर से कंट्रोल करने की व्यवस्था रहती है। इस यंत्र से सिर्फ पित्त नली में फंसी पथरी को निकाला जा सकता है। पित्त अवरोधी पीलिया में यह विधि अधिक उपयोगी रहती है।
  • पित्त की पथरी का इलाज करने के लिए इस मशीन के सिरे को मुंह से भोजन नली से होते हुए छोटी आंत में स्थित पित्त नली के द्वार से प्रवेश कराया जाता है। वहां फंसी पथरी को निकालने के लिए बाहर से नियंत्रित होने वाले यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इन सब विधियों आम भाषा में दूरबीन का ऑपरेशन भी कहते है |

पित्त की पथरी के ऑपरेशन के बाद सावधानियां

  • पित्ताशय की थैली हटाने साइड इफेक्ट – ऑपरेशन के बाद रोगी पित्ताशय नहीं रहता है और तब उसमें पित्त को इक्कठा रखने की क्षमता नहीं रह जाती है। पित्त धीरे-धीरे छोटी आंत में रिसता रहता है और भोजन के छोटी आंत में पहुंचने पर वह भरपूर मात्रा में नहीं मिल पाता है। इसलिए ऐसे मरीजो में वसा को पचाने की ताकत कम हो जाती है। इसलिए ऑपरेशन के बाद रोगियों को वसा यानि कम फैट वाला भोजन ही खाना चाहिए । आवश्यकता पड़ने पर ऐसे रोगियों को भोजन पचाने वाली दवाएं भी दी जा सकती हैं।
  • पित्त की पथरी का इलाज करवाने के बाद बिना डॉक्टर से सलाह किये गर्भ-निरोधक गोलियां नहीं खानी चाहिए।
  • हमारे देश में पित्त की पथरी के रोगियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस रोग से बचाव संभव है यदि आहार को संतुलित रखा जाए। मोटापे से बचाव, वसायुक्त भोजन बंद करना, सप्ताह में एक बार से अधिक उपवास नहीं और बार बार गर्भ धारण करने से बचना इस प्रकार आप पित्त की पथरी की बीमारी से बच सकते है।

पित्त की पथरी की होमियोपैथिक चिकित्सा

  • प्रत्येक चिकित्सा-पद्धति की अपनी सीमाएं होती हैं। गुर्दे की पथरी व मूत्राशय की पथरियों को होमियोपैथिक चिकित्सा द्वारा आसानी से ठीक किया जा सकता है। यहां सफलता की दर प्रतिशत 80 प्रतिशत तक रहती है। लेकिन पित्त की थैली की पथरी में यह प्रतिशत 40 प्रतिशत तक ही रहता है।
  • होमियोपैथी इलाज में पित्त की पथरी के लक्षणों की जाँच सबसे अहम होती है। इसी आधार पर कार्डअस, चिओनेंथस चेलीडोनियम, कैल्केरिया कार्ब, कोलेस्ट्राइनम, बरबोरिस वल्गेरिस हाइड्रस्टिस, चाइना, कालमेग आदि दवाइयां प्रयोग में लाई जा सकती हैं लेकिन किसी अच्छे होमियोपैथिक डॉक्टर से परामर्श करके, उसकी देख-रेख में ही ये दवा लेनी चाहिए।

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