मिर्गी रोग को संस्कृत में ‘अपस्मार’ कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘स्मृति” चली जाना। अंग्रेजी में और चिकित्सक इसको एपिलेप्सी (Epilepsy) कहते हैं। आम भाषा में इस रोग को ‘झटके आना’ या सीजर (Seizures), फिट्स (Fits) भी कहते हैं। एपिलेप्सी न दैवी या शैतान प्रकोप है, न ही पागलपन इन गलतफहमियों के कारण सामाजिक तिरस्कार के कारण देश में अभी भी काफी मरीजों का उपचार नहीं करवाया जाता, रोग को छुपाने का प्रयास किया जाता है। उपचार न करवाने, देरी से शुरू करने, नियमित दवाओं का सेवन न करने से रोग मुक्त होना मुश्किल हो सकता है। बच्चों को मिर्गी के पड़ने को लेकर बहुत से अंधविश्वास प्रचलित हैं। इनमें मुख्यतः दौरे पड़ने को बच्चे पर भूतप्रेत का का साया पड़ना समझा जाता है। वास्तव में यह सब इसलिए है, क्योंकि लोगों को दौरे पड़ने के सही व वैज्ञानिक कारणों का पता नहीं है। उचित इलाज के बाद मरीज पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। बच्चे को दौरे पड़ने जन्म के बाद किसी भी उम्र में शुरू हो सकते हैं। ये दौरे कई तरह के होते हैं जो आगे हम इसी आर्टिकल में बतायेंगे |
मिर्गी रोग मनोविकार नहीं, बल्कि मस्तिष्क का एक रोग है। आधुनिक विज्ञान ने सभी अंधविश्वासों का निराकरण कर दिया है। रोग अचानक मस्तिष्क में तेजी से असामान्य विद्युत् तरंगें उत्पन्न होने के कारण होता है।
मिर्गी रोग की जानकारी

- मिर्गी रोग का प्रकोप पुरुष व महिलाओं में लगभग बराबर होता है; पर देश में अध्ययनों के अनुसार पुरुषों में रोग का प्रकोप महिलाओं की अपेक्षा दो गुना ज्यादा पाया गया है। पर यह अंतर शायद लड़कियों व महिलाओं में रोग को ज्यादा छुपाने के कारण है। रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, पर बचपन में इसकी संभावना सबसे ज्यादा होती है। करीब दो-तिहाई में रोग की शुरुआत बचपन में होती है। इनमें से काफी युवावस्था तक रोग-मुक्त हो जाते हैं। सबसे अधिक खतरा जीवन के पहले कुछ महीनों में होता है इसके बाद इसकी संभावना कम होती जाती है। वृद्धावस्था में इस रोग के होने की संभावना फिर से बढ़ जाती है।
- मिर्गी रोग का अटैक किसी भी व्यक्ति को कभी भी हो सकता है। एक दौरा होने पर दूसरे दौरे की संभावना 40 प्रतिशत, दो दौरों के बाद भविष्य में दौरों की संभावना 88 प्रतिशत होती है। वृद्धावस्था में यदि स्ट्रोक (फॉलिज) होने के साथ झटके आते हैं तो भी यह गंभीर स्थिति है।
मिर्गी रोग के कारण
- एपिलेप्सी दिमाग से सीमित समय के लिए अनियंत्रित विद्युत् तरंगें पैदा होने के कारण होती है, जिससे दिमाग की कार्य प्रणाली बिगड़ जाती है। अकसर दौरे के समय बेहोशी हो जाती है। दौरे विभिन्न स्वरूप में हो सकते हैं। कुछ में मस्तिष्क से प्रवाहित विद्युत् तरंगों के प्रभाव से झटके आते हैं, अन्य को असामान्य संवेदनाएँ जैसे सुन्न पड़ना, झनझनाहट, दर्द इत्यादि महसूस होता है, व्यवहार में बदलाव होता है, वातावरण से संपर्क टूट सकता है।
- तकरीबन 4-5 फीसदी बच्चों में बुखार की वजह से दौरे आ सकते हैं। इसके अलावा जन्म के समय हुई। समस्याएँ जैसे बर्थ एस्फिक्सिया (जन्म के समय व तत्पश्चात् बच्चे के दिमाग को ऑक्सीजन की उचित मात्रा न मिलना), बर्थ ट्रॉमा, बच्चे को अधिक समय तक पीलिया होना, जन्म के पश्चात् बच्चे को लंबी बीमारी आदि के कारण भी दौरे पड़ सकते हैं।
- बच्चे में दौरे का एक प्रमुख कारण बच्चे के दिमाग में हुए विभिन्न संक्रमण हैं। इनमें प्रमुख हैं-दिमागी तपेदिक, न्यूरोसायटिसिरोसिस, बैक्टीरियल और वायरल मेनिनजायटिस। उपापचय संबंधी समस्याएँ जैसे हाइपोग्लेसिमिया (बच्चे के खून में शर्करा की मात्रा कम होना), हायपोकेलसिमिया (बच्चे के खून में कैल्सियम का कम होना), हाइपोनेट्रेमिया अर्थात् बच्चे के खून में सोडियम की कमी आदि के कारण भी दौरे पड़ सकते हैं।
- दौरे का एक अन्य कारण है, किसी वजह की दिमागी चोट। इस चोट की वजह से या तो केवल दिमाग की झिल्ली में थोड़ी सूजन आ सकती है या फिर दिमाग के अंदर रक्तस्राव हो सकता है। ज्यादातर बच्चों को चोट लगने के तुरंत बाद ही दौरे आते हैं, लेकिन कुछ बच्चों में ये दौरे चोट लगने के कई वर्षों बाद भी आ सकते हैं। तकरीबन 25-30 प्रतिशत बच्चों में दौरे का कारण ही पता नहीं चल पाता है। इसे इडियोपैथिक एपिलेप्सी कहते है |
मिर्गी रोग के लक्षण
- मिर्गी का अटैक अचानक हो सकता है। कुछ रोगियों में अटैक के पहले कुछ अजीबोगरीब चीजे महसूस होती है। यह सभी रोगियों में भिन्न होती है। दर्द, ऐंठन, पेट के ऊपरी हिस्से में भारीपन महसूस होना, स्वाद बदलना, कानों में आवाजे आना, अत्यधिक तनाव, चिंता होना, आँखों के आगे रोशनी की चमक महसूस होता, अजीबोगरीब महक, शरीर में गरमी या ठंडक महसूस होना इत्यादि हो सकता है।
- अटैक के दौरान आस-पास के वातावरण के प्रति संवेदनाएँ कम हो सकती हैं। संपर्क टूट सकता है, अर्थात बेहोशी आ सकती है, दूसरों के आदेश-निर्देश अटैक के दौरान पालन करने में असमर्थ होते हैं।
- अटैक विभिन्न रूप में हो सकते हैं। कुछ में पेशियों का तनाव कम हो जाने से अनियंत्रित हो सकती हैं। मरीज अचानक गिर पड़ते हैं। अन्य में पेशियों में तनाव बढ़ने से शरीर कड़ा हो जाता है। कुछ में पेशियों के बार बार संकुचन होने से झटके आते हैं। अन्य में पेशियों में विभिन्न अंतराल के संकुचन से जर्क होते हैं ।
- झटके के दौरान या बाद में कुछ अजीबोगरीब सी हरकतें या मुद्रा बनाते हैं। कुछ समय तक बेहोश रहने के बाद कुछ समय भ्रमित रहते हैं, फिर धीरे-धीरे होश आ जाता है। मरीज को अटैक की याद नहीं रहती है ।
- कुछ महिलाओं में माहवारी पूरी तरह बंद होने से पहले, दौरान या बाद में दौरा पड़ता है। यह कैटोमेनियल एपिलेप्सी (Catomenial Epilepsy) कहलाता है।
- बच्चो में मिर्गी रोग के लक्षण – बच्चे के हाथ-पैरों का कड़ा होना और हाथ-पैरों का असामान्य हरकतें करना, दाँत भिंचना व मुँह से झाग निकलना।
- बच्चे का बार-बार कोई असामान्य हरकत करना।
- कुछ पल के लिए बच्चे की हालत बेहोशी जैसी हो जाना।
- नवजात शिशु के चेहरे (मुँह और आँख) की मांसपेशियों की असामान्य हरकत, बच्चे का एकदम तेज चीखना, बच्चे का हाथ-पैर कड़ा करना आदि। अगर बच्चे में यह दौरा बार-बार आता है तो इसे एपिलेप्सी कहते हैं। अगर किसी बच्चे को 30 मिनट से ज्यादा देर तक दौरा पड़े तो इसे स्टेटस एपिलेपटिकस कहते हैं। यह एक आपात स्थिति है, जिसमें बच्चे को तुरंत अस्पताल में भरती करके इलाज कराना जरूरी है।
मिर्गी रोग के अन्य स्वरूप [Types of Seizures / epilepsy]
मिर्गी रोग के अटैक विभिन्न स्वरूप, गंभीरता, अवधि और कारणों से हो सकते हैं। इनके स्वरूप के अनुसार ही उपचार निर्धारित किया जाता है और उपचार के परिणाम प्रभावित होते हैं। मिर्गी की अंतरराष्ट्रीय संस्था आई.ई.ए.ई. (ILE.A.E.) ने मिर्गी रोग का वर्गीकरण लक्षणों और मस्तिष्क के ई.ई.जी. के आधार पर किया है।
- जब रोग मस्तिष्क के विभिन्न कारणों से क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है तो सिम्टोमैटिक एपिलेप्सी (Symptomatic Epilepsy) कहलाता है। जबकि करीब दो-तिहाई मरीजों में प्रयास करने से भी कारण का पता नहीं लग पाता तो यह इडियोपैथिक ( Idiopathic Epilepsy) कहलाता है।
- जब झटके आने के कारण का पूर्णतः पता नहीं होता, पर संदेह होते हैं तो क्रिप्टोजेनिक (Cryptogenic Epilepsy) कहलाता है। मिर्गी रोगियों में झटके विभिन्न स्वरूप में हो सकते हैं। दौरों से शरीर के कुछ विशिष्ट हिस्से या पूरा शरीर प्रभावित हो सकता है।
- आंशिक एपिलेप्सी (Partial Seizures)- जब मस्तिष्क के सीमित हिस्से के स्नायु ही उत्तेजित होते हैं। मस्तिष्क के उत्तेजित अंश के अनुसार ही इनकी पेशियों के तनाव में बदलाव आने, झटके आने, असामान्य संवेदनाएँ महसूस होने, भावनात्मक, व्यावहारिक बदलाव कदा ऊँची तीखी विद्युत तरंगें हो सकती हैं। इनमें विशिष्ट ई.ई.जी. द्वारा प्रभावित मस्तिष्क के अंश का पता लगाया जा सकता है।
- पूर्ण एपिलेप्सी- ये दौरे एक साथ दोनों तरफ के मस्तिष्क के उत्तेजित होने से असामान्य विद्युत् तरंगें उत्पन्न होने के कारण होते हैं। इन मरीजों में ई.ई.जी. या अन्य जाँचों से मस्तिष्क किसी विशिष्ट अंश जहाँ से असामान्य विद्युत् तरंगों की शुरुआत होती है, का पता नहीं लग पाता। यह भी विभिन्न प्रकार की होती है।
- पेटिटमल एपिलेप्सी (Petitual Epilepsy)- ये हलके दौरे भी कहलाते हैं। दौरे होने पर अचानक बगैर पूर्वाभास के मरीज अचेत हो जाते हैं। इनका आसपास के वातावरण से संपर्क टूट जाता है, पर गिरते नहीं हैं। मरीज सबकुछ भूलकर एकटक देखते हैं। चेहरा भाव शून्य हो जाता है। दूसरे को लगता है, यह दूसरी दुनिया में खो गए हैं। अटैक होने पर बात अधूरी रह जाती है, हाथ का सामान गिर सकता है या सिर एक तरफ झुक जाता है। मुँह से लार की बूंद टपकती है |
- जैक्सोनियन दौरे भी ग्रांडमल एपिलेप्सी का ही एक रूप है। शुरुआत में मरीज बेहोश नहीं होते। इनमें किसी अंग जैसे पैर या हाथ या कुछ में आँखों की हरकतें होती हैं, धीरे-धीरे यह बढ़कर पूरे शरीर में फैलती है। मरीज बेहोश हो जाते हैं। कुछ में अटैक के दौरान पेशियों का तनाव कम होने से अचानक गिर सकते है, सिर मुड़ सकता है, फिर बेहोश हो जाते हैं। गिरने से कभी-कभी गंभीर चोट लग सकती है। यह भी पढ़ें – जानिए मिरगी रोग में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं
- ग्रांडमल एपिलेप्सी के दौरान ई.ई.जी. में विशिष्ट बदलाव होते है अकड़न होने पर पूरे मस्तिष्क की ई.ई.जी. में छोटी व तेज गति की तरंगें होती हैं, फिर ऊँची तीखी तरंगें होती हैं।
- झटके के दौरान अत्यधिक ऊँची तरंगों के समूह के साथ धीमी गति की तरंगें होती हैं। झटके समाप्त होने के बाद विभ्रम की स्थिति में पूरे मस्तिष्क में धीमी तरंगें होती हैं, जो होश आने पर धीरे-धीरे सामान्य हो जाती हैं।
- मायोक्लोनिक सीजर-इस स्थिति में अचानक थोड़े समय के लिए पेशियों का संकुचन होता है। संकुचन कुछ पेशियों या पूरे शरीर की पेशियों में हो सकता है। इनमें सोते समय जर्क हो सकते हैं। ई.ई.जी. में मस्तिष्क के दोनों तरफ लंबी व तीखी तरंगें होती हैं।
- नवजात शिशुओं, शिशुओं में मस्तिष्क के अपरिपक्व होने, स्नायुओं में आपस में सुचारु संबंध न होने के कारण अन्य स्वरूप में अटैक हो सकते हैं। इनमें आंशिक पूर्ण एपिलेप्सी का वर्गीकरण प्रायः संभव नहीं हो पाता।
मिर्गी के रोगियों को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए
- हम सभी का सबसे अधिक समय घर में व्यतीत होता है। किसी के साथ भी घर में दुर्घटना हो सकती है। मिर्गी के मरीज भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं। यदि दौरा पड़ता है तो चोट लगने की संभावना रहती है, अत: चोट व दुर्घटना से बचाव के लिए सावधानी रखनी जरूरी है।
- मिर्गी रोग के मरीज के रहने के कमरे में आग, अँगीठी तथा हीटर में जाली लगी होनी चाहिए, जिससे अटैक होने पर जलने का खतरा न रहे।
- घर के फर्नीचर नुकीले नहीं होने चाहिए। खिड़कियों में जाली या रॉड लगी होनी चाहिए। मिर्गी रोग के मरीज किचन में कार्य कर सकते हैं, पर गैस, हीटर पर कवर रखें। बेहतर होगा, यह माइक्रोवेव ओवन में भोजन पकाएँ। तथा चाय- कॉफी केतली में बनाएँ।
- मिर्गी रोग के मरीज नहाते समय या अन्य समय बॉथरूम व टायलेट के दरवाजे की कुंडी न लगाएँ। घर में अकेले होने पर बेहतर है, नहाएँ नहीं। बाथटब में स्नान न करें। यदि रात को सोते समय अटैक होते हैं, पलंग से गिरने की संभावना है तो बिछावन फर्श पर बिछाएँ।
- मिर्गी रोग के मरीज बच्चों की शिक्षा भी आवश्यक है। इनको स्कूल भेजना चाहिए। स्कूल के अध्यापक को रोग की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। स्कूल में यह अधिकांश खेलों व अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकते हैं।
- मिर्गी रोग के मरीज अधिकांश कार्य कर सकते हैं, पर खतरे वाले कार्य जैसे भारी वाहन चालन, इलेक्ट्रिशियन, घूमती मशीनों पर कार्य नहीं करने चाहिए।
- मरीज के लिए यात्रा करने की पाबंदी नहीं होती है। ये बस व ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं, पर पर्याप्त मात्रा में दवा साथ लेकर यात्रा पर जाना चाहिए।
- मिर्गी रोग के मरीज अब रोग पर नियंत्रण होने के एक वर्ष बाद अपना वाहन चलाने का ड्राइविंग लाइसेंस मिल सकता है।
- मिर्गी के मरीज बच्चे साइकिल चला सकते हैं, बेहतर होगा कि तीन पहिए या सहारा लगी साइकिल दें।
- सुखद जीवन के लिए मनोरंजन आवश्यक है। टी.वी. आठ फीट की दूरी से देखें। एक घंटे से ज्यादा लगातार टी.वी. न देखें, कंप्यूटर पर कार्य न करें। बेहतर होगा कि एल.सी. डी.टेलीविजन (LCD-TV) हो, कंप्यूटर का मॉनीटर भी एल.सी.डी. हो। यदि झिलमिलाती रोशनी में मिर्गी के अटैक होते हैं तो बचाव करें।
- मिर्गी रोग के मरीज खेलों में हिस्सा ले सकते हैं। खेल के दौरान अटैक होने की संभावना अन्य समय की अपेक्षा कम होती है । पर चोट लगने, खतरे वाले खेल, बॉक्सिंग कुश्ती, रग्बी इत्यादि न खेलें ।
- बच्चों को अधिकतर दौरा घर में या स्कूल में पड़ता है। दौरे के समय बच्चे को तुरंत एक करवट सुला दें और किसी स्टील की चम्मच में चारों तरफ कोई मुलायम कपड़ा या पट्टी बाँधकर चम्मच को बच्चे की जीभ व दाँत के बीच में रखें, ताकि बच्चे की जीभ को क्षति न हो। साथ ही बच्चे को तुरंत किसी पास के अस्पताल में ले जाकर प्राथमिक उपचार कराएँ।
- मिर्गी रोग के दौरे का इलाज शुरू करने से पहले उसकी पूरी जाँच-पड़ताल करना जरूरी है। जरूरत होने पर एम.आर. आई. सी.टी., ई.सी.जी. आदि नवीनतम तकनीकों की सहायता लेने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।
- बच्चे में दौरे का इलाज किसी विशेषज्ञ की निगरानी में ही होना चाहिए। दौरे के इलाज के लिए समाज में प्रचलित झाड़-फूक, टोटका आदि से बचना चाहिए। कई बार अभिभावक परेशान होकर नीम हकीमों और टोने-टोटके वालों के पास चले जाते हैं। इससे समस्या और जटिल हो सकती है और बच्चे का भी अनावश्यक उत्पीड़न होता है।
- इलाज के दौरान माता-पिता और सगे-संबंधियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस बीमारी से संबंधित अंधविश्वासों, बच्चे की पढ़ाई व अन्य किसी पहलू पर बच्चे के सामने विचार-विमर्श न करें, क्योंकि इससे बच्चे के मनोवैज्ञानिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। घर के सारे सदस्यों का बच्चे के प्रति बरताव बिलकुल सामान्य होना चाहिए। इसका इलाज लंबे समय तक चलता है; लेकिन माता-पिता का अच्छा सहयोग मिलने पर ये बच्चे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
मिर्गी का उपचार
- इसके उपचार के लिए डायलेटिन (Dilantin) दवा दी जाती है। इसका उपयोग अभी भी मिर्गी के उपचार में सफलतापूर्वक किया जा रहा है। हालाँकि अब अनेक अन्य प्रभावी दवाएँ भी उपलब्ध हैं।
- मिर्गी के इलाज की दूसरी दवा देना शुरू कर पहली दवा की खुराक धीरे-धीरे कम की जानी चाहिए। दवाओं का नियमित सेवन, नियत समय पर करना बहुत आवश्यक है। एक भी दवा की खुराक भूलने से अटैक हो सकता है। कभी-कभी दवा अचानक बंद करने से लंबे समय तक गंभीर अटैक होता है।
- कुछ मरीजों में एक दवा अप्रभावी होने पर कई दवाओं को एक साथ सेवन करने की आवश्यकता होती है। उपचार के लिए अनेक समूह की दवाएँ उपलब्ध हैं। रोग के स्वरूप के अनुसार ही दवा का चयन किया जाता है। अभी तक एपिलेप्सी की पूर्णत: सुरक्षित दवा उपलब्ध नहीं है। मरीजों में दवाओं के साइड इफ़ेक्ट का पता लगाने के लिए नियमित अंतराल पर इनका परीक्षण और आवश्यक होने पर जाँच होनी चाहिए। यदि झटके के अटैक, रक्त में ग्लूकोज की कमी, सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम स्तर में गड़बड़ी के कारण होते हैं तो इनका उपचार करना चाहिए तथा प्रयास होना चाहिए कि ये समस्याएँ दुबारा न हों। इनमें एपिलेप्सी की दवा देने की आवश्यकता नहीं होती है ।
- यदि दवा के सेवन के साइड इफ़ेक्ट के कारण अटैक होता है तो दवा बंद करने से मरीज स्वस्थ हो जाते हैं।
- मस्तिष्क में ट्यूमर, फोड़ा, मस्तिष्क की झिल्ली में संक्रमण, मस्तिष्क में सूजन या मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों में असामान्यताओं के कारण अटैक होते हैं तो मूल रोग का उपचार होना चाहिए। इनको एक वर्ष तक एपिलेप्सी प्रतिरोधी दवाएँ भी सेवन करना चाहिए।
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