अब शरीर के लगभग सभी खराब जोड़ों को नी रिप्लेसमेंट सर्जरी सफलतापूर्वक बदला जाना पूरी तरह संभव हो गया है। आमतौर पर अब तक घुटने एवं कूल्हे के जोड़ों को ही बदला जाता था, लेकिन गठिया एवं अन्य जोड़ों की बीमारियों में कंधे, कोहनी, कलाई, उंगलियों व टखने आदि के जोड़ भी अब बदले जा सकते हैं। जोड़ों की हड्डियों को बदलने की सभी सुविधाएं देश के कई बड़े अस्पतालों में भी उपलब्ध हैं।
वास्तव में आज की इस भागती-दौड़ती जिंदगी में कई रोग जीवन का हिस्सा बन गए हैं। इतना ही नहीं, आरामदायक जिंदगी भी कई बीमारियों का कारण है। हड्डियों के रोगों में घुटने और कूल्हे के रोग बड़े ही सामान्य हैं। कई बार घुटने इतने घिस जाते हैं कि व्यक्ति का चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के द्वारा नया कृत्रिम घुटना लगवाने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचता हैं | महिलाओं में ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या अधिक होती है। रजोनिवृत्ति व बच्चेदानी निकलवाने के बाद शरीर में इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी होना भी उनकी हड्डियों को कमजोर बनाता है।
नी रिप्लेसमेंट सर्जरी कब की जाती है ? इसकी जरुरत क्यों पडती है ?

- यदि आप घुटनों से लाचार महसूस कर रहे हों, जैसे तेज दर्द, उठने-बैठने में तकलीफ, चलने में दिक्कत, घुटने में कड़ापन, सूजन, लाल होना, घुटने के जोड़ो में गैप का आ जाना, तो आप नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की जरुरत पड़ सकती है |
- अगर इन कारणों को ढूंढे तो पता चलता है कि घुटने संबंधी तकलीफ 50 साल की उम्र के आसपास के व्यक्तियों और खासकर महिलाओं में होती है जिसकी वजह है वजन का अधिक बढ़ना, उठने-बैठने का गलत तरीका, कमजोर मांसपेशियां तथा घुटनों में घिसाव होना आदि |
- जोड़ों की बीमारी यानी आर्थराइटिस के कारण कई बार घुटने बेकार हो जाते हैं, तब उसके स्थान पर नी रिप्लेसमेंट सर्जरी द्वारा कृत्रिम घुटना लगा देते हैं। इसे ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट’ (Total Knee Replacement) कहते हैं। टोटल नी रिप्लेसमैंट सर्जरी के दौरान पूरे घुटने को बदला जाता है जबकि यूनीकंपार्टमैंटल नी रिप्लेसमैंट के दौरान घुटने के ऊपरी व मध्य भाग बदले जाते हैं |
- आर्थराइटिस के बारे में कई गलत धारणाएं प्रचलित हैं। आमतौर पर इसके बारे में पूरी जानकारी न होने की वजह से शरीर में हड्डियों या मांसपेशियों में हर दर्द को लोग आर्थराइटिस मान लेते हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। दरअसल जोड़ों में होने वाली सूजन या जलन को आर्थराइटिस कहा जाता है और इससे शरीर के केवल जोड़ ही नहीं, बल्कि कई अंग भी प्रभावित होते हैं। इससे शरीर के विभिन्न जोड़ों पर प्रभाव पड़ता है।
नी रिप्लेसमेंट सर्जरी से पहले का इलाज
- घुटनों के दर्द की प्रारंभिक अवस्था में व्यायाम (फिजियोथैरेपी) और दवाओं का सहारा लिया जाता है। हो सकता है कि कुछ समय के लिए दर्द, सूजन व जलन से राहत मिल जाए लेकिन इसका असर स्थायी नहीं होता। दवा बंद करते ही लक्षण फिर उभरकर सामने आ जाते हैं।
- यदि आर्थराइटिस के कारण घुटना एकदम बेकार हो जाए और व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो जाए तो नी रिप्लेसमेंट सर्जरी करवा कर घुटना बदलना ही बेहतर उपाय है। इस ऑपरेशन की सफलता काफी अधिक है, ऑपरेशन के बाद न दर्द सताता है और न ही चलने-फिरने के लिए किसी का मोहताज होना पड़ता है।
- वैसे तो सख्त पेशीय तंतुओं से जुड़ा घुटना वर्षों साथ निभाता है, लेकिन अकसर हमारी खुद की लापरवाही के कारण यह क्षतिग्रस्त हो जाए या घिस जाए तो इसे बदलना ही एकमात्र उपाय रह जाता है।
- घुटने के लिए कृत्रिम जोड़ ऐसे कुदरती पदार्थों से बनाए जाते हैं जिसे शरीर आसानी से ग्रहण कर सके। इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या एलर्जी नहीं होती। यह कृत्रिम घुटना टाइटेनियम, हाई ग्रेड स्टेनलेस स्टील और पौलीइथाइलीन आदि के मेल से तैयार किया जाता है।
- नी रिप्लेसमेंट सर्जरी में लगाया गया घुटना 15-20 साल बाद थोड़ा ढीला पड़ जाता है। तब इस समस्या को दोबारा ऑपरेशन करके दूर किया जा सकता है।
- हमारे देश में फिलहाल कृत्रिम जोड़ विदेशों से आयात किए जाते हैं, इसलिए भारत में इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा होती है।
- नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के दौरान रिप्लेसमेंट के असफल होने की संभावना एक प्रतिशत से भी कम होती है। हां, चिकित्सक को अनुभवी अवश्य होना चाहिए।
- यह जरूरी नहीं कि नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के दौरान मरीज को पूरा बेहोश किया जाए, यह ऑपरेशन रीढ़ की हड्डी में इंजेक्शन लगाकर या दोनों पैरों को सुन्न करके भी किए जाते हैं। कई बार तो डॉक्टर मरीज से बात भी करते रहते हैं, घुटने के सामने से 8 इंच का लंबा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता है।
- दोनों घुटने बदलने हों तो 4 यूनिट और एक घुटने के लिए 2 यूनिट खून ऑपरेशन के बाद चढ़ाकर बहे हुए खून की आपूर्ति की जाती है। इस ऑपरेशन में कुल मिलाकर लगभग 2 घंटे का समय लगता है। और 2 से 3 लाख के बीच पूरा खर्च बैठता है |
- ऑपरेशन के पश्चात 1 या 2 दिन मरीज को पूरी तरह आराम दिया जाता है। लगभग 2 हफ्ते बाद टांके काट दिए जाते हैं और 3 माह तक मरीज को हर माह एक बार डॉक्टर के पास जाना पड़ता है, फिर 6 माह बाद और फिर 1-2 साल बाद डॉक्टर से संपर्क करते रहना चाहिए।
कई रिसर्च की मानें तो भारत में 30-35% नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की कोई जरुरत नहीं होती है। ये सर्जरी केवल व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखकर लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है | हालाँकि 60 की उम्र से अधिक व्यक्ति के लिए घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी अधिकतर मामलो में जरुरी होती है, पर इससे कम उम्र के लोगों को इससे बचने की जरूरत है। सर्जरी करवाने का आखिरी निर्णय लेने से पहले दो या तीन अलग-अलग अस्पताल या डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए |
कम उम्र के मरीज उपचार की ये नयी तकनीक आजमा सकते है :-

कम उम्र के व्यक्ति नी रिप्लेसमेंट सर्जरी करवाने से पहले यदि जाँच की शुरुवात में टिशु डैमेज (कोशिका के नुकसान) का पता चलता है, तो ऐसे लोगों में ऑस्टियोआर्थराइटिस विकसित होने का ख़तरा रहता है। Regenerative cell therapy के साथ, ऐसे मरीज़ अपनी कार्टिलेज और हड्डियों की समस्याओं के लिए प्राकृतिक और स्थायी समाधान पा सकते हैं।
कार्टिलेज सैल थेरेपी
- कार्टिलेज शरीर के सभी जोड़ों में जैसे घुटने, कूल्हे, कंधे आदि में मौजूद मुलायम कोशिका है। एक बार कार्टिलेज को क्षति पहुँचने पर, यह अपने आप ठीक नहीं हो सकती। इससे कार्टिलेज को स्थायी नुकसान की संभावना रहती है और भविष्य में “नी रिप्लेसमेंट” की ज़रुरत पड़ सकती है। मरीज़ के कार्टिलेज को दोबारा बनाने के लिए, कार्टिलेज टिशु के एक छोटे टुकड़े को काटकर प्रयोगशाला में भेजा जाता है। 3 सप्ताह में मरीज़ की खास कोशिकाओं को कल्चर किया जाता है और इम्प्लांटेशन के लिए वापिस अस्पताल भेजा जाता है जिससे टिशु दोबारा बनने लगता है और मरीज़ अपनी सामान्य जीवन में वापस जा सकते हैं।
बौन सैल थेरेपी
- एवास्क्यूलर नेक्रोसिस से हड्डियां घिसने लगती हैं जिससे अक्सर कूल्हे की हड़ी का जोड़ टूट सकता है और “हिप रिप्लेसमेंट” सर्जरी की जरुरत पड़ती है। मरीज़ की हड्डी को दोबारा बनाने के लिए, शरीर के तरल की कुछ मात्रा निकाली जाती है और हड्डी की कोशिकाओं को खास तरह से तैयार करने के लिए प्रयोगशाला में 4 सप्ताह तक कल्चर किया जाता है। इम्प्लांटेशन के बाद, यह कोशिकाएं नई तीन आयामी हड़ियां बनाती हैं जिसके परिणामस्वरूप मरीज को दर्द से राहत मिलती है। यह जानना बहुत जरुरी है कि इन दो प्रक्रियाओं की सलाह उन मरीज़ों को नहीं दी जाती जिन्हें कार्टिलेज और हल्ली बहुत अधिक खराब हो चुके है।
- अधिकतर मामलो में 60 से 65 वर्ष से ज़्यादा उम्र के अधिकतर मरीज़ों को नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की ज़रुरत पड़ती है।
अन्य सम्बंधित पोस्ट
- मजबूत हड्डियों के लिए खाएं ये फल और सब्जियां
- गठिया रोग में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए
- गठिया का अचूक घरेलू आयुर्वेदिक इलाज
- जानिए आर्थराइटिस के प्रकार, लक्षण तथा आधुनिक उपचार
- गर्दन दर्द के कारण, उपचार तथा इस समस्या से बचाव के टिप्स
- कमर दर्द के कारण व घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
- प्रोस्टेट ग्रंथि कैंसर की पहचान, कारण तथा आधुनिक उपचार
- आमवात (Rheumatism) के कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक उपचार तथा आहार
- जानिए आर्थराइटिस के प्रकार, लक्षण तथा आधुनिक उपचार