जानिए दिमागी बुखार के लक्षण व बचाव की जानकारी

जापानी दिमागी बुखार  (Japanese Encephalitis) – यह एक मच्छर द्वारा उत्पन्न खतरनाक रोग है, जो क्यूलैक्स ट्राइिरनोटिक्स नामक मच्छर द्वारा फैलाया जाता है और रोग का कारण होता है बी-अर्बोवाइरस, फ्लेविवायरस। वास्तव में यह जानवरों और पक्षियों को होने वाली बीमारी है, जो कभी-कभी मनुष्यों में भी फैल जाती है। इससे विश्व में लगभग 45 हजार लोग प्रभावित होते हैं और लगभग 11 हजार मौतें होती हैं। लगभग 85 प्रतिशत बच्चे, जिनकी उम्र 15 वर्ष या इससे नीचे होती है, इस रोग से प्रभावित होते हैं। 60 वर्ष से ऊपर के 10 प्रतिशत वृद्ध में यह रोग होता है।

यह रोग भारत में भी फैलता है। विशेष रूप से असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जापानी दिमागी बुखार से प्रभावित हुए हैं। दक्षिण भारत में सिंचित धान के खेतों में रोग फैलानेवाले मच्छर अंडे देते हैं। इसीलिए जापानी मस्तिष्क शोथ इन क्षेत्रों में ज्यादा पाया जाता है।

जापानी दिमागी बुखार कैसे फैलता है : Japanese Encephalitis causes, Symptoms & Prevention Tips.

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जापानी दिमागी बुखार के कारण लक्षण व बचाव

जब क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर रोग से ग्रसित सूअर अथवा जंगली पक्षियों का रक्त चूसते हैं तो रोग के वाइरस मच्छर में पहुँच जाते हैं और जब ये मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो उसके रक्त में रोग के वाइरस पहुँच जाते हैं। संक्रमण के शिकार व्यक्ति में रोग के लक्षण 5 से 15 दिनों के बीच देखने को  मिलते हैं। इस समय को ‘इंक्युबेशन पीरियड’ या उदभव काल कहते है। साल के तीन महीने अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में अपने जोरों पर होता है | जापान में इस वायरस की पहचान हुई थी, जिस कारण इसका नाम ‘जैपनीज इन्सेफ्लाइटिस’ पड़ा |

यह बात आश्चर्यजनक है कि वाइरसयुक्त मच्छरों द्वारा काटे गए सभी व्यक्तियों में रोग नहीं होता, बल्कि कुछ रोगियों में ही रोग के लक्षण उत्पन्न होते हैं। ऐसा इस रोग के वाइरस के प्रति शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण होता है।  दिमागी बुखार की पहचान करने के लिए इसके लक्षणों को समझें |

जापानी बुखार के लक्षण और अवस्थाएँ :

मस्तिष्क ज्वर के लक्षण:

रोग की तीन अवस्थाएँ होती हैं |

  • मच्छर द्वारा रक्त में विषाणु पहुँचने के बाद बदन दर्द, सिरदर्द, थकान, शरीर का अतिसंवेदनशील होना एवं बुखार आता है।
  • अकसर इस अवस्था में रोग की पहचान नहीं हो पाती, क्योंकि ये लक्षण ज्यादातर सभी तरह के बुखारों में पाए जाते हैं।
  • रोग की दूसरी अवस्था में बहुत तेज बुखार के साथ गरदन में कड़ापन, झटके आना, दौरे आना बेहोशी या मतिभ्रम और पक्षाघात (Paralysis) तक हो सकता है। इसके अलावा मस्तिष्क ज्वर के लक्षण में रोगी गहरी बेहोशी में जा सकता है उसके सोचने, समझने, देखने और सुनने की ताकत कम हो जाती है |
  • छोटे बच्चों में ज्यादा देर तक रोना, भूख की कमी, बुखार और उल्टी होना जैसे कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं |
  • रोग की तीसरी अवस्था में बुखार चला जाता है। मस्तिष्क की सूजन भी कम हो जाती है। रोगी की स्थिति बहुत कुछ सुधर जाती है। लेकिन मस्तिष्क संबंधी गड़बड़ी, जैसे-लकवा स्थायी रूप से रह सकता है।
  • मस्तिष्क ज्वर के अन्य लक्षणों में लाल ऑंखें, चिडचिडापन, साँस लेने में परेशानी, अकडन आदि भी हो सकते हैं |

जापानी दिमागी बुखार उपचार:

  • मस्तिष्क ज्वर बहुत ही खतरनाक बीमारी है, जिसमें लगभग 40 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु 1 से 9 दिन के बीच में ही हो जाती है। अत: रोग का तुरंत इलाज जरूरी है। इसका इलाज घर पर संभव नहीं हो पाता, इसलिए रोगी को दिमागी बुखार के लक्षण मिलने पर तुरंत अस्पताल में भरती करना चाहिए, वहाँ इसका आधुनिक इलाज उपलब्ध होता है।

जापानी दिमागी बुखार से बचाव के उपाय :

  • मच्छरों पर नियंत्रण- मच्छरों पर नियंत्रण सरल कार्य नहीं है। यदि यह इतना ही आसान होता तो मच्छरों द्वारा उत्पन्न सभी रोगों का नामोनिशान मिटाना संभव हो जाता।
  • क्यूलेक्स मच्छर जहाँ उत्पन्न होते हैं, वहाँ मेलाथिआन नामक कीटनाशक का छिड़काव मच्छरों की पैदाइश पर रोक लगाता है। विशेषकर जिस घर या गाँव में इस रोग के मामले पाए गए हों, वहाँ छिड़काव अवश्य करवाना चाहिए।
  • घरों की खिड़कियों तथा रोशनदानों में मच्छरजालियाँ लगवाएँ तथा सोते समय मच्छरदानी ‘ का प्रयोग करें।
  • मच्छरदानियाँ भी मच्छरजनित रोगों की रोकथाम में काफी प्रभावी पाई गई हैं। पूरी आस्तीन की कमीज के साथ साथ जूतों के साथ जुराब पहने। मच्छरो से बचाव की अधिक जानकारी के लिए पढ़ें यह पोस्ट – चिकनगुनिया से बचाव : ऐसे भगाए मच्छरो को 
  • गंदे पानी के संपर्क में आने से बचें और साफ-सफाई से रहें |
  • टीका- जिस गाँव-शहर में रोग फैले वहाँ सभी लोगों को इसका टीका लगवाना चाहिए। इस रोग का टीका त्वचा में 7 से 14 दिनों के अंतर से दो बार लगाया जाता है। इसकी प्रभावी मात्रा (Booster dose) भी दो-तीन महीने बाद लगवानी चाहिए। यह टीका तीन वर्ष तक सुरक्षा प्रदान करता है। इसके बाद इसे फिर से लगवाया जा सकता है।
  • इसके अलावा बच्चे को नौ माह पर तथा 16 से 24 माह पर जेई प्रथम व जेई द्वितीय का टीका अवश्य लगवाना चाहिए। इससे मस्तिष्क बुखार पर किसी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
  • मरीज बेहोशी की हालत में है तो उसके मुंह में कुछ न डाले उसे पीठ के बल बिल्कुल न लिटाए |
  • सुअर पालन घर के आसपास या रिहाइशी आबादी से दूर रखें। भोजन पहले, शौच के बाद और जानवरों के संपर्क में आने के बाद हाथ जरुर धोएं।

आइये फर्क समझते हैं सामान्य दिमागी बुखार और जापानी दिमागी बुखार में :

मस्तिष्क बुखार (दिमागी बुखार) कई तरह के होते हैं हमारे देश में दिमागी बुखार जैसी खतरनाक बीमारी अकसर फैलती रहती है। यह रोग संक्रामक होने से कहीं-कहीं सामूहिक रूप से भी फैल जाता है, जिससे लोगों में भय व्याप्त हो जाता है, क्योंकि दिमागी बुखार की बीमारी का इलाज घर पर संभव नहीं होता और रोगी की जान जल्दी जाने का खतरा भी बना रहता है, इसलिए इस बीमारी से बचाव के लिए रोग की सही जानकारी होना आवश्यक है।

अधिकतर मामलों में रोग नाइजीरिया मेनिनजाइटिस नामक जीवाणु से होता है। क्षय रोग के जीवाणु, मायकोवेक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस द्वारा होनेवाले मस्तिष्क बुखार को ट्यूबरकुलर मेनिनजाइटिस कहते हैं, जबकि पहले प्रकार के जीवाणु से फैलनेवाले मस्तिष्क बुखार को मेनिंगोकॉकल मेनिनजाइटिस कहते हैं, जबकि पहले प्रकार के जीवाणु से फैलनेवाला मस्तिष्क बुखार अपने यहाँ अकसर फैलता है और आगे इसी रोग के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।

दिमागी बुखार क्या है – मनुष्य का मस्तिष्क दुहरी झिल्लियों से ढँका रहता है। इन झिल्लियों के बीच द्रव प्रदार्थ भरा होता है, जिसे प्रमस्तिष्क प्रमेरु द्रव (C.S.F.) कहते हैं। मस्तिष्क बुखार की दशा में उक्त झिल्लियों में सूजन आ जाती है और कई बार संक्रमण भी हो जाता है। यह इस रोग की खतरनाक स्थिति होती है, लेकिन यदि समय से उचित इलाज मिल जाए तो रोगी को बचाया जा सकता है। संक्रमण की स्थिति में प्रमस्तिष्क प्रमेरु द्रव में मवाद तक पड़ सकती है।

यह रोग कैसे फैलता है ?

मस्तिष्क बुखार मच्छरों से भी हो सकता है, लेकिन यहाँ जिस रोग के बारे में हम जिक्र कर रहे है वह  मच्छरों से नहीं होता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मच्छरों से बचने की आवश्यकता नहीं है। मच्छरों की रोकथाम तो जरूरी है ही, क्योंकि इनसे और भी कई तरह के दिमागी बुखारो का खतरा होता है। मस्तिष्क बुखार के जीवाणु वास्तव में नाक या मुँह के रास्ते से शरीर में प्रवेश करते हैं, इसलिए ऐसा व्यक्ति, जिसके शरीर में ये जीवाणु होते हैं, जब खाँसता या थूकता है तो वे आस-पास की हवा में बिखर जाते हैं और नजदीक के स्वस्थ व्यक्तियों में भी साँस द्वारा प्रवेश कर सकते हैं, इसके अलावा रोगाणु खाने-पीने के साथ ही शरीर के अंदर पहुँच सकते हैं।

इस प्रकार के दिमागी बुखार के लक्षण :

मस्तिष्क ज्वर में जोरों का सिरदर्द होता है। यहाँ तक कि सिर हिलने में भी तकलीफ होती है। गरदन में कड़ापन या अकड़न आ जाती है। बुखार के साथ उलटियाँ भी होती हैं। रोगी अर्द्धबेहोशी अथवा बेहोशी की दशा में भी आ सकता है। छोटे बच्चों को झटके आते हैं। अधिकतर मामलों में शरीर की त्वचा पर फुंसियाँ या लाल चकत्ते भी उभरते हैं। समय पर सही इलाज न होने की दशा में रोगी की मृत्यु हो सकती है। कम समय में ही दिमागी बुखार गंभीर अवस्था में पहुँच जाये तो इसका तुरंत इलाज बहुत आवश्यक होता है।

संक्रामक दिमागी बुखार के प्रकार और इनके लक्षण :

तानिका शोथ (मेनिंजाइटिस)-यह मस्तिष्क की बहुत ही खतरनाक छूत का रोग है, जो बच्चों को अधिक होती है। यह वैक्टीरिया, फफूंदी-कवक तथा वाइरस से हो सकती है। यह रोग खसरे, कनपेड़े, काली खाँसी, कान की छूत जैसे किसी दूसरे रोगों के बिगड़ जाने के कारण हो सकता है। जिन स्त्रियों को तपेदिक होता है, उनके बच्चों को जीवन के शुरुवाती महीनों में तपेदिक-तानिका-शोथ हो सकता है।

  • बुखार, तेज सिरदर्द, अकड़ी हुई गरदन बच्चा बहुत बीमार दिखाई देता है |
  • और जब वह लेटता है तो उसकी गरदन पीछे मुड़ी रहती है। कमर भी इतनी ज्यादा अकड़ी होती है कि सिर को घुटनों के बीच नहीं रखा जा सकता।
  • एक वर्ष से कम आयुवाले शिशुओं के सिर का कोमल भाग (तालू) ऊपर की ओर उभर आता है। प्राय: उलटियाँ भी होती हैं। बच्चा अनिंद्रा (ज्यादा नींद आना) रहता है या चिड़चिड़ा हो जाता है। वह कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहता। कभी-कभी दौरे भी पड़ते हैं।
  • शरीर में अजीब सी हरकतें भी होती हैं। बच्चे की हालत काफी खराब होती जाती है, अंतत: वह बेहोश हो जाता है।
  • तपेदिक-तानिका-शोथ रोग धीरे-धीरे शुरू होता है- यह कई दिनों या हफ्तों में होता है । लेकिन तानिका-शोथ के दूसरे प्रकार एकदम से यानी कुछ घंटों या दिनों में हो सकते हैं। यह भी पढ़ें – दिल की बीमारी से बचाव के उपाय-Heart Disease Prevention

इस प्रकार के दिमागी बुखार का इलाज :

  • तत्काल डॉक्टरी सहायता लें। क्योंकि हर मिनट कीमती होता है। संभव हो तो रोगी को अस्पताल ले जाएँ।
  • मेनिनजियोकॉकल मेनिनजाइटिस का इलाज घर पर सफलतापूर्वक संभव नहीं हो पाता। इसलिए ऐसे लक्षणों वाले मरीज को शीघ्र ही नजदीक के अस्पताल में भरती करवा दिया जाना चाहिए ।
  • नीम-हकीमों के चक्कर में पड़ने से देर भी हो सकती है। रोग के लिए सल्फा पेनिसिलीन जैसी प्रभावी दवाइयाँ हैं। इसके अलावा आजकल क्लोरोम्फेनिकल और रिफॉम्पिसीन दवाइयाँ भी दी जाती हैं।
  • रोगी के मस्तिष्क के अंदर बढ़े हुए दबाव और सूजन को कम करने के लिए रक्त-वाहिकाओं द्वारा मेनीटोल भी पहुँचाया जाता है।
  • रोग की निश्चित पहचान के लिए कुछ विशेष जाँचें, जैसे-रीढ़ की हड्डी के पानी की जाँच इत्यादि भी जरूरी होती है, इसलिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए मरीज को अस्पताल में ही भरती करना ठीक है।

दिमागी बुखार से ग्रसित रोगी के परिवार और आसपास के लोग क्या सावधानी रखें ?

वैसे तो मस्तिष्क बुखार कहीं भी, किसी को भी हो सकता है, लेकिन जैसा कि बताया गया है कि कभी-कभी यह सामूहिक रूप से भी किन्हीं-किन्हीं क्षेत्रों में फैल जाता है जैसे आजकल उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में फैला हुआ है । ऐसे समय इसकी रोकथाम अत्यंत आवश्यक है। चूँकि इस रोग के जीवाणु ग्रासनली अथवा नाक के द्वारा प्रवेश करते हैं इसलिए रोगी के संपर्क में आए व्यक्तियों को एवं उसके परिवार के सदस्यों को विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यक्तियों को डॉक्टर की सलाह से कम से-कम पाँच दिनों तक सल्फा या सिप्रोफ्लाक्सेसिन की उचित मात्रा ले लेना चाहिए और रोग का टीका भी लगवाना चाहिए। टीके का रोग से बचाव में विशेष महत्व है। इसके अलावा जिस क्षेत्र में मस्तिष्क बुखार का प्रभाव  ज्यादा हो, वहाँ पूरे गाँव या मुहल्ले के लोगों को सल्फा या सिप्रोफ्लाक्सेसिन दवाई देनी चाहिए। रोगी को शीघ्र ही अस्पताल में भरती करने से भी एक सीमा तक बीमारी फैलने से रोका जा सकता है। अस्पताल में रोगी के मस्तिष्क बुखार के प्रकार की भी सही पहचान हो जाती है। रोगी के खाने-पीने के बरतन अलग रखें और संभव हो तो रोगी खाँसते अथवा बात करते समय मुँह के सामने रूमाल रखे। अगर संकर्मण से होने वाला दिमागी बुखार है तो |

(Reference -स्रोत ) यह लेख डा. प्रेमचन्द्र स्वर्णकार (MBBS, M.D) Damoh , M.P द्वारा लिखा गया है |

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