डायबिटीज मुख्यत दो प्रकार की होती है – टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज। इस पोस्ट में हम इंसुलिन निर्भर डायबिटीज और बिना इंसुलिन निर्भर डायबिटीज यानि टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के कारण लक्षण और उपलब्ध उपचार की जानकारी देंगे | परंतु सबसे पहले डायबिटीज का एक संक्षेप परिचय जान लेते है |
डायबिटीज की बीमारी ग्लूकोज़ इनटोलरेंस के नाम से भी जानी जाती है। साधारण भाषा में इस रोग को शुगर भी कहते क्योंकि प्राय: डायबिटीज रोगियों के यूरिन में शर्करा पाई जाती है। दरअसल हमारे शरीर को ठीक से चलने के लिए और शरीर की कोशिकाओं को विकसित होने तथा जीवित रहने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा के लिए हमें ग्लूकोज़ की आवश्यकता होती है। जब हम भोजन करते हैं, तब भोजन ऊर्जा के एक रूप जिसे ग्लूकोज़ कहते है में बंट जाता है। ग्लूकोज़ हमें डबल रोटी, आलू, चपाती, शकरकदी, जैम और केला आदि से प्राप्त होता है और हमारा लीवर इसे हमारे शरीर के अंदर भी बनाता है। यह ग्लूकोज़ हमारे खून में जाता है और हमारे खून में शुगर बढ़ जाती है।
इंसुलिन एक हार्मोन है जो पैंक्रियाज़ में बनता है। इंसुलिन ग्लूकोज़ (शर्करा) को शक्ति में बदलने के लिए आवश्यक होता है। यह ग्लूकोज़ को रक्त से कोषाणुओं में पहुंचाने का काम करता है, जिससे शरीर ऊर्जा के लिए इसका उपयोग कर सके। डायबिटीज हो जाने पर खून में ग्लूकोज़ की मात्रा अनियंत्रित होकर बढ़ जाती है | इस अतिरिक्त मात्रा को घटाने के लिए शरीर इसे पेशाब के रास्ते बाहर निकालता है। इससे व्यक्ति ज्यादा बार पेशाब करता है और शरीर का पानी निकालता रहता है। तब उसे प्यास लगती है जिससे वह ज्यादा पेय पदार्थ पीता है। डायबिटीज के कारण रोगी के शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं पाता है या जो इंसुलिन बनता है वह ठीक से काम नहीं करता। टाइप 2 डायबिटीज या टाइप 1 दोनों ही एक लंबे समय तक या आजीवन चलने वाला रोग है। रक्त में ग्लूकोज़ की अधिक मात्रा होने के कारण इसे ‘धीमी मौत’ भी कहते हैं। उच्च रक्तचाप तथा मोटापे के साथ इस रोग को ‘मेटाबॉलिक सिंड्रोम’ कहा जाता है। इन दोनों का मिलन ज्यादा खतरनाक होता है |
टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज की जानकारी
- इंसुलिन निर्भर डायबिटीज (IDDM) : टाइप 1 डायबिटीज
- बिना इंसुलिन निर्भर डायबिटीज (NIDDM) : टाइप 2 डायबिटीज
- गर्भावस्था का डायबिटीज
- प्री-डाइबिटीज
इंसुलिन निर्भर डायबिटीज (IDDM) के लक्षण : टाइप 1 डायबिटीज

इस प्रकार का डायबिटीज अधिकतर 40 व उससे कम उम्र के लोगों (मुख्यतः बच्चे किशोर व्यक्ति और जवान) में होता है। यह एशियाई, एफ्रो, कैरिबियाई और चीनी मूल के लोगों में ज्यादा मिलता है। इस प्रकार के डायबिटीज में शरीर बिल्कुल भी इंसुलिन (insulin) नहीं बना पाता। इसलिए यह डायबिटीज इंसुलिन पर निर्भरता वाला डायबिटीज भी कहलाता है। डायबिटीज के रोग के बारे में पहली बार रोगी को पता चलना उसके लिए डरावना अनुभव होता है लेकिन इसमें घबराहट की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर स्वस्थ जीवन-शैली मतलब सही खान पान योग आसन, और परहेज निभाने से और चिकित्सक का परामर्श लगातार करते रहें तो व्यक्ति लंबे समय तक स्वस्थ एवं खुश रह सकता है।
- टाइप 2 डायबिटीज के विपरीत टाइप 1 में पैंक्रियाज़ इंसुलिन पैदा नहीं करता। पहले यह किशोर डायबिटीज के नाम से भी जाना जाता था। इस प्रकार का डायबिटीज मुख्यतः युवा बच्चों और वयस्कों में होता है। यह डायबिटीज गंभीर होता है, लेकिन सही तरीके से इलाज करवाने पर लोग डायबिटीज के साथ लंबे समय तक स्वस्थ व सुखी रह सकते हैं। टाइप 1 आमतौर पर 6 से 18 साल से कम उम्र के बच्चो में ही देखने को मिलती है।
- इंसुलिन निर्भर डायबिटीज के लक्षण आमतौर पर कुछ समय के बाद विकसित होते हैं। इसके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं :
- निरंतर प्यास लगना । बार-बार पेशाब आना तथा बिस्तर गीला होना, अत्यधिक भूख लगना। आँखों से धुंधला दिखाई देना | बिना स्पष्ट कारण के कमजोरी और थकान महसूस होना।
- वजन कम होना, स्त्रियों में योनि में स्त्राव या खुजली होना। जी मचलना और उल्टी होना ।
- डायबिटीज का जल्दी पता लग जाने का अर्थ यह होता है इसका इलाज आसानी से हो सकता है और खतरा भी कम हो जाता है। रक्त की साधारण सी जांच से डायबिटीज का पता आसानी से चल जाता है।
इंसुलिन निर्भर डायबिटीज के कारण :
इस वीमारी का ठीक कारण अभी तक जाना नहीं गया है। कुछ लोगों में इंसुलिन निर्भर डायबिटीज पैदा होने का कारण कुदरती होता है। इन लोगों में डायबिटीज शायद किसी विषाणु के कारण उत्पन्न होने लगता है। इससे पैंक्रियास का इंसुलिन उत्पादन करने वाला हिस्सा खराब हो जाता है। भारत में 1% से 2% मामलों में ही टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी होती है | ज्यादातर मामले टाइप 2 डायबिटीज के ही होते हैं |
इंसुलिन निर्भर डायबिटीज के उपचार :
इलाज का उद्देश्य होता है- इंसुलिन और ग्लूकोज़ का सही संतुलन बनाए रखना, जो स्वस्थ शरीर अपने आप करता है। डायबिटीज का नियंत्रण करने का मतलब है खून ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य स्तर के जितना पास बनाए रखा जा सकता है उतना बनाए रखना ।
इंसुलिन निर्भर डायबिटीज के नियंत्रण के तीन मुख्य उपाय है :
- व्यायाम / योगासन
- इंसुलिन और
- स्वस्थ भोजन
यदि रोजाना इंसुलिन की सुई लगाकर उपचार न किया जाए, तो डायबिटीज इंसुलिन निर्भर वाले व्यक्ति के खून में वसा के जलने से उत्पन्न हुए खराब पदार्थ इकट्ठे हो जाते हैं। इससे कीटों-एसिडॉसिस कहलाने वाली परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
डायबिटीज के गंभीर होने का परिणाम शरीर के अन्य अंगों में खराबियां पैदा होना हो सकता है। अनेक बड़ी उम्र के व्यक्ति काफी पहले डायबिटीज के शिकार हो चुके होते हैं लेकिन उनके रोगी होने के सालो के बाद डायबिटीज के लक्षण पहचान में आते हैं। रोग पर काबू होने तक कितने ही रोगियों में डायबिटीज से होनी वाली अन्य बीमारियाँ घर कर जाती है जैसे अंधापन, किडनी खराब होना, हृदय रोग, पक्षाघात और स्नायुओं की क्षति जिसके कारण कोई अंग भी कटवाना पड़ सकता है। इसलिए डायबिटीज के लक्षण दिखने पर फौरन इसका टेस्ट और इलाज करवाना चाहिए।
इंसुलिन इन्सेंसिटिव डायबिटीज (NIDDM) : टाइप 2 डायबिटीज
- टाइप 2 डायबिटीज को बड़ी उम्र में शुरू होने वाला या बिना इंसुलिन निर्भर डायबिटीज (NIDDM) भी कहा जाता है। आमतौर पर टाइप 2 डायबिटीज 40 वर्ष से अधिक उम्र वाले वयस्कों में विकसित होता है। लेकिन हाल में काफी संख्या में किशोर अवस्था और युवा आयु वर्गों में भी टाइप 2 डायबिटीज होता जा रहा है।
- सब प्रकार के डायबिटीज रोगियों में से 85 से 90 प्रतिशत रोगी बिना इंसुलिन निर्भर टाइप 2 डायबिटीज के ही होते हैं। टाइप-2 डायबिटीज वाले बुजर्गो की कॉर्टिकल हड्डी कमजोर हो जाती है जिससे उन्हें फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है |
- टाइप 2 डायबिटीज में पैंक्रियाज़ पर्याप्त इंसुलिन पैदा नहीं करता या जो इंसुलिन बनता भी है तो शरीर उसका उपयोग नहीं कर पाता है | इसे इंसुलिन Insulin Resistance कहते हैं। यह बीमारी टाइप 1 डायबिटीज की तुलना में कम गंभीर होती है। टाइप 2 डायबिटीज में शरीर में पाई जाने वाली इंसुलिन इतनी मात्रा में तो होती है कि रोगी को डायबिटीज बेहोशी (डाइबिटीज़ कोमा) में नहीं जाने देती और जीवन रक्षा के लिए बाहर से इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं पड़ती। इसीलिए इसे नॉन-इंसुलिन डिपेंडेंट डाइबिटीज एन.आई.डी.डी.एम. या टाइप 2 डायबिटीज भी कहते हैं।
- टाइप 2 डायबिटीज में शरीर की कोशिका इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाती इससे खून के प्रवाह में ग्लूकोज़ (शर्करा) इकट्ठा होने लगता है। टाइप 2 डायबिटीज होने का कोई एक विशेष कारण नहीं है, लेकिन कई लोगों में दूसरों के मुकाबले इस रोग का अधिक खतरा होता है। ऐसे लोगों में मुख्यतः शामिल हैं : 40 वर्ष से अधिक उम्र होना, शरीर का वज़न ज्यादा होना, आराम तलब जीवन, ज्यादा कैलोरी वाला फ़ास्ट फ़ूड खाना, परिवार में किसी सदस्य का डायबिटीज से पीड़ित होना, यदि पहले कभी गर्भधारण काल से जुड़ा डायबिटीज हुआ हो।
- टाइप-2 डायबिटीज समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होती जाती है और शुरुआत में इसके लक्षण बहुत हल्के फुल्के होते हैं |
- टाइप-2 डायबिटीज के लक्षणों में लगातार भूख लगते रहना, सुस्ती, थकान, वजन घटना, ज्यादा प्यास लगना, बार बार मूत्र करना, मुंह सूख जाना, त्वचा में खुजली और आँखों का धुंधलाना, शुगर के स्तर में बढ़ोतरी, त्वचा पर काले पैच, घाव जल्दी से ना भरना, पैर में तकलीफ और हाथों में सुन्नपन या शरीर में संक्रमण आदि होते हैं |
टाइप 2 डायबिटीज या इंसुलिन इन्सेंसिटिव डायबिटीज दो प्रकार का होता है :
- वे व्यक्ति जो मोटे होते हैं (Obese NIDDM)
- वे व्यक्ति जो मोटे नहीं होते हैं (Non-obese NIDDM)
जो व्यक्ति मोटे नहीं होते, उनमें डायबिटीज को मैच्योरिटी ओनसेट डाइबिटीज़ कहते हैं। यह खान-पान पर नियंत्रण करने से या दवाई खाने से काबू हो जाता है। यह भी पढ़ें – शुगर कम करने के उपाय
जो व्यक्ति मोटे हैं, उनके शरीर के अंदर पैदा होने वाली इंसुलिन का असर कम हो जाता है। इंसुलिन रेसिस्टेंस या इंसुलिन का असर न होना- ऐसे वयस्क लोगों में पाई जाती है जिनमें इंसुलिन तो बन रही है, परंतु उसका असर नहीं है। इन लोगों में चर्बी पेट एवं कमर के आस-पास जमा हो जाती है। आनुवांशिक कारणों से भी यह हो सकता है।
टाइप 2 डायबिटीज में शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने से थकान, कम दिखना और सिर दर्द जैसी समस्या होती है। चूंकि शरीर से तरल पदार्थ अधिक मात्रा में निकलता है इसकी वजह से रोगी को अधिक प्यास लगती है। कोई चोट या घाव लगने पर वह जल्दी ठीक नहीं होता है। टाइप 2 डायबिटीज के लगातार अधिक बने रहने का प्रभाव आंखों की रोशनी पर पड़ता है, इसके कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी नामक बीमारी हो जाती है जिससे आंखों की रोशनी में कमी हो जाती है। डायबिटीज से जुड़े भ्रम
टाइप-2 डायबिटीज से बचना है तो ऐसे आहार जिनमे ओमेगा-6 फैट ज्यादा हो जैसे सोयाबीन, सूरजमुखी के तेल, बादाम और अखरोट जैसे खाद्य पदार्थों में को भरपूर मात्रा में शामिल करना चाहिए । अपनी खुराक में फाइबर और हेल्दी कार्बोहाइड्रेट पदार्थो को ज्यादा शामिल करना चाहिए | इसके अतिरिक्त डायबिटीज में खाने पीने और भोजन की जानकारी हमने इस पोस्ट में विस्तार से दी है |
गर्भावस्था का डायबिटीज : गर्भावस्था के दौरान होने वाले गर्भावधि डायबिटीज में स्त्री इतनी पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन पैदा नहीं कर पाती जिससे माता तथा शिशु दोनों की आवश्यकता की पूर्ति हो सके। गर्भावस्था में मधुमेह होने का मुख्य कारण भी यही होता है की माँ को अपने और होने वाले बच्चे के लिए ज्यादा इन्सुलिन बनाना पड़ता है |
प्री-डाइबिटीज : यह उस दशा को कहते हैं जब खून में शक्कर का स्तर सामान्य से अधिक होता है, मगर इतना ऊंचा भी नहीं कि उसे डायबिटीज कहा जा सके। अगर किसी व्यक्ति को प्री-डाइबिटीज़ है, तो वह व्यक्ति जैसे कि दिल की बीमारी, स्ट्रोक, अंधापन, गुर्दो का क्षय और नसों की खराबी होने की अधिक संभावना है। #Diabetes #Type-1 and #Type -2 #Causes, #symptoms, #prevention, #information, #sugar, #insulin, #based #diabetes.
अन्य सम्बंधित पोस्ट
- हाइपोग्लाइसीमिया : शुगर लेवल कम होने के लक्षण, कारण, उपचार
- डायबिटीज में इंसुलिन इंजेक्शन : तरीका, सावधानी, साइड इफ़ेक्ट
- डायबिटीज कंट्रोल रखती हैं ये फल और सब्जियां
- क्या आप शुगर फ्री गोलियों का उपयोग करते है ?
- डायबिटीज डाइट चार्ट वेजीटेरियन-मधुमेह आहार तालिका
- डायबिटीज उपचार के लिए आयुर्वेदिक उपाय
- मधुमेह रोगियों के लिए एलोवेरा से बने 18 नुस्खे
- डायबिटीज में क्या खाए और क्या नहीं-31 टिप्स-Diabetic Diet