किडनी के साथ ही मूत्राशय (urinary bladder) का सम्बंध होता है। पेशाब में जलन व दर्द होना, पेशाब न होना, अधिक पेशाब होना, पेशाब में खून आना, पेशाब रोक न पाना, सोते समय पेशाब निकल जाना आदि अनेक रोग मूत्राशय से सम्बंधित होते हैं। अनेक कारणों से यूरिनरी ब्लैडर (मूत्राशय) के अंदर की झिल्ली में सूजन आ सकती है। इसे सिस्टाइटिस (Cystitis) अर्थात् मूत्राशय प्रदाह कहते हैं। इस बीमारी का मुख्य लक्षण है तेज दर्द और जलन के साथ थोड़ी-थोड़ी, बूंद-बूंद करके पेशाब होना। इस बीमारी से मिलती-जुलती अन्य समस्याएं भी होती हैं जैसे गुर्दे की पथरी, मूत्र मार्ग में जलन (यूरेथ्राइटिस), किडनी में सूजन होना (नेफ्राइटिस) आदि । इसलिए लक्षणों को ठीक से देख-समझकर ही उपचार का चुनाव करना चाहिए।
सिस्टाइटिस बीमारी के कारण

- सिस्टाइटिस रोग अनेक कारणों से हो सकता है-तेज मिर्च, मसालेदार एवं खटाई युक्त खाने पीने की चीजो का अधिक सेवन करने से।
- मानसून के सीजन में नमी के चलते प्यास कम लगती है। नतीजा ये होता है कि हम पानी पीना कम कर देते हैं। कम पानी पीने की वजह से सिस्टाइटिस होने का खतरा बढ़ जाता है।
- मूत्र मार्ग में कैथेटर डालने के बाद अथवा मूत्र मार्ग से कैथेटर निकालने के बाद।
- मूत्राशय में संक्रमण होना, किडनी पर अथवा मसाने में कोई चोट लग जाना।
- सिस्टाइटिस के अन्य कारणों में यूरेथ्रा (मूत्र मार्ग) की सूजन मूत्राशय में कैंसर, मूत्राशय में गांठें बनने के कारण, टी बी रोग गुर्दो में होने पर, बुढ़ापे में प्रोस्टेट ग्रंथियों के अनियमित रूप से बढ़ जाने के कारण |
- स्त्रियों में ब्लैडर में गांठ बनने के कारण या पेट में बच्चा होने पर मूत्राशय पर दवाब पड़ने के कारण। यह व्याधि दो प्रकार की होती है- एक्यूट (अल्पकालीन) और क्रॉनिक यानि पुरानी cystitis) अल्पकालीन बीमारी आम तौर पर 4-5 दिनों में ठीक हो जाती है।
- जो स्त्रियाँ गर्भनिरोधक के रूप में डायफ्राम या स्पर्मिसीडल का इस्तमाल करती है उनको भी सिस्टाइटिस बीमारी होने का खतरा हो जाता है |
- स्त्रियों में मेनोपौज के बाद यूटीआई के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है |
सिस्टाइटिस बीमारी के लक्षण
- पेशाब करते समय व बाद तक तेज जलन और दर्द होता है। यह दर्द थोड़ी देर बाद तक भी होता रहता है।
- पेट के निचले भाग में भी दर्द होता है, जो काफी देर बाद तक भी बना रहता है।
- पेशाब करने की इच्छा अचानक होती है और उसे रोकना भी मुश्किल हो जाता है।
- थोड़ी-थोड़ी देर के बाद पेशाब होता है।
- पेशाब गंदला और बदबू दार हो सकता है।
- इस रोग में बुखार भी हो सकता है जो 100 से 102 डिग्री तक हो सकता है।
सिस्टाइटिस की जाँच
- सिस्टाइटिस के रोगी की पेशाब जांच कराने पर पेशाब की ग्रैविटी (घनत्व) कम मिलती है, पेशाब में एसिड का अंश अधिक होता है और श्लेष्मा (म्यूकस) की मात्रा भी ज्यादा मिलती है।
- पुरानी सिस्टाइटिस बीमारी के लक्षण तो एक्यूट सिस्टाइटिस जैसे ही होते हैं, लेकिन पेशाब में दुर्गंध बढ़ जाती है।
- मूत्र में फास्फेट्स एल्ब्युमिन मिल सकते हैं और बैक्टीरिया भी पाए जाते हैं।
- यदि समय पर उचित उपचार न कराया जाए तो इसका संक्रमण किडनी तक पहुंच सकता है। ऐसे में पायलोनेफ्राइटिस अर्थात् गुर्दो की सूजन नामक बीमारी हो जाती है।
- कभी-कभी पेशाब रुक जाता है और कैथेटर डालकर कराना पड़ता है।
- स्त्रियों में सिस्टाइटिस होना आम बात है क्योंकि उनकी पेशाब नलिका पुरुषों के मुकाबले छोटी होती है और गुदा (Anal) के पास होती है।
- स्त्रियों की योनि या गुदा से कीटाणु निकलकर आसानी से मूत्रनलिका द्वारा मूत्राशय तक पहुंचकर इस बीमारी का संक्रमण पैदा कर देते हैं। पुरुषों को यह बीमारी अधिकतर प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ जाने के कारण होती है।
- नव-विवाहित स्त्रियों में यह बीमारी अधिक देखने में आती है। इसे हनीमून सिस्टाइटिस कहते हैं।
- यदि उपचार के साथ-साथ सही खानपान का भी ध्यान रखा जाए तो रोग से जल्दी ही मुक्ति मिल सकती है।
सिस्टाइटिस में खाएं ये आहार
- दिन भर अधिक-से-अधिक मात्रा में पानी पीना, ठण्डा दूध पीना, मिट्टी की पट्टियां या ठंडे पानी की पट्टियां पेट के निचले भाग पर रखें, ठंडे पेय का सेवन करें। यह भी जरुर पढ़ें – यूरिन इन्फेक्शन की बीमारी में क्या खाएं क्या ना खाएं
- भोजन शाकाहारी व बिना-मिर्च मसाले वाला लें तो इससे जल्दी ही लाभ मिलता है।
- ताजा नारियल, स्प्राउट्स, अलसी के बीज, कच्ची सब्जियों जैसे गाजर, नीबू, ककड़ी, और पालक का रस आदि खाएं |
- अधिक से अधिक लिक्विड चीजें लें कम से कम 10 से 15 गिलास पानी पीएं |
- गर्म चीजो का सेवन बिलकुल ना करें जैसे शराब, चाय, कॉफ़ी आदि |
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