जानिए वृद्धावस्था या बुढ़ापा क्यों आता है तथा इस दौरान शरीर में क्या बदलाव आते है

वृद्धावस्था (Old Age) शारीरिक परिवर्तनों की वजह से होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसको धीमा तो जरुर किया जा सकता है पर पूरी तरह टाला नहीं जा सकता है | इस अवस्था में शरीर न तो व्यर्थ पदार्थों को ही बाहर निकालने में सक्षम होता है और न उसमें शारीरिक क्षतिपूर्ति की ही क्षमता पाई जाती है। इस अवस्था में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस अवस्था में शारीरिक स्फूर्ति में कमी पाई जाती है। इसका मुख्य कारण है आत्मविश्वाश का अभाव है। वृद्धावस्था में मानसिक हास पाये जाने के कारण व्यक्ति में कुछ नया सीखने की आदत छोड़ देता है। इसलिए अकसर वृद्धावस्था में लोग मानसिक रूप से निष्क्रिय हो जाते हैं।

यह भी देखा गया है कि जैसे-जैसे उम्र में वृद्धि होती है, मानसिक रोगों में भी बढ़ोतरी हो जाती है।  मानसिक चिकित्सालयों में पाये जाने वाले 25% वृद्ध मानसिक विकृति के शिकार होते हैं। 65 साल की आयु प्राप्त करने पर 30% से 40% व्यक्ति वृद्धावस्था की मानसिक विकृतियों के शिकार हो जाते हैं।

वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन

वृद्धावस्था या बुढ़ापा क्यों आता है तथा इस दौरान शरीर में क्या बदलाव आते है। budhapa kya hai
वृद्धावस्था

यह अवस्था इकसठ वर्ष के बाद मृत्यु तक की मानी जाती है। इस अवस्था में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के परिवर्तन पाये जाते हैं । शारीरिक परिवर्तनों के रूप में गालों पर झुर्रियाँ, त्वचा पर तिल तथा मस्से, दाँतों का गिरना, सिर के बाल का सफेद होना तथा उनका गिरना, हाथ-पैर का नाखून मोटा और सख्त होना, त्वचा पर शिराओं का स्पष्ट होना, कंधों का झुकना, चलने में कठिनाई होना, आदि होता है। जबकि मानसिक परिवर्तनों के रूप में शब्द भंडार की कमी, मानसिक संतुलन का अभाव, आकुलता, अवसाद, रुचियों में कमी । इसी प्रकार स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक प्रकार की समस्याएँ भी पाई जाती है जैसे हदय रोग, कब्ज, पाचन सम्बन्धी रोग, जोड़ों के विकार आदि।

शरीर की सभी कोशिकाएँ क्षयकारक (यानि धीरे-धीरे खत्म होने वाली ) होती हैं। लीवर एक रासायनिक तथा चयापचय फैक्टरी है। यह कई तत्त्व पैदा करती है तथा कई तत्त्व खत्म भी करती है। लीवर ग्लाइकोजेन का स्थान है, जो मांसपेशियों में आवश्यकता पड़ने पर एकत्र होती है। वृद्धावस्था में त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं तथा भूख कम हो जाती है। नींद भी कम आती है। आँखों की रोशनी तथा सुनने की ताकत कम हो जाती है और आरटीरियोस्केलरोसिस के कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) भी हो जाता है।

युवाओं में कोशिकाएँ अधिक सक्रिय, चुस्त तथा जोश से भरपूर होती हैं; परंतु वृद्धावस्था में ये पुरानी हो जाती हैं; इनमें वो पहले वाली ताकत नहीं रहती हैं, लेकिन इससे दिमाग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि सूक्ष्म शरीर को संतुलित किया जा सकता है कुछ बातों का पालन करके जैसे की यह ध्यान-योग से संभव है। मस्तिष्क शरीर की सभी कोशिकाओं को संदेश भेजता है तथा उन्हें उत्तेजित करके ऊर्जा पैदा करता है, फिर शरीर में नई कोशिकाएँ उत्पन्न होती हैं।

यह देखा गया है कि नियमित रूप से व्यायाम तथा ध्यान करनेवाले लोग युवा दिखते हैं तथा लंबी आयु तक जीवित रहते हैं। यदि व्यक्ति कायाकल्प उपचार अपनाएँ तो वृद्ध लोग भी बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर सकते है |

वृद्धावस्था का वैज्ञानिक रूप से मूल्यांकन

मस्तिष्क तंत्रिकाओं का राजा है। मस्तिष्क की कोशिकाएँ न्यूट्रॉन से बनी होती हैं। ये कोशिकाएँ शरीर में स्थित अन्य कोशिकाओं की तरह विभाजित नहीं होतीं। इसलिए उनकी संख्या स्वाभाविक रूप से कम होती जाती है। प्रतिदिन हजारों न्यूट्रॉन खत्म होते हैं। उनकी जगह नहीं भरती, परंतु हम उनकी कमी महसूस नहीं करते। यह हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं और अन्य अंगों में कमजोरी पैदा करता है तथा वृद्धावस्था के लक्षण नजर आने लगते हैं। आँखों में विकार, बहरापन, स्वाद व गंध की कमी तथा याददाश्त में कमी मुख्यतः मस्तिष्क की कोशिकाओं में कमजोरी के कारण होते हैं। वृक्क तथा अन्य अंग भी कमजोर हो जाते हैं। विटामिन ‘सी’ का अधिक मात्रा में सेवन करके कोशिकाओं के ऊतकों का क्षय रोका जा सकता है। कोशिकाओं के मरने से ऑक्सीडेंट उत्पन्न होते हैं। ये व्यक्ति की आयु कम कर देते हैं। आँवला के इस्तेमाल से इसे रोका या टाला जा सकता है। 60 मिलीग्राम का एक संतरा खाने पर रक्त फाइब्रिनोजेन (रक्त की घुलनशील प्रोटीन) को 0.15 ग्राम तक कम किया जा सकता है। यह व्यक्ति में हृदयाघात की संभावना को 10 प्रतिशत कम कर देता है। इसलिए प्रतिदिन संतरा, नींबू का सेवन करना चाहिए। लहसुन का सेवन रक्त के थक्कों को तरल करने में बहुत प्रभावी पाया गया है। यह रक्त वाहिकाओं को संतुलित अवस्था में भी रखता है। भोजन में प्याज का उपयोग भी लहसुन की तरह ही लाभदायक है। लहसुन तथा नारंगी के लाभ हेपरिन व वारपेरिन से मिलते-जुलते हैं, जो रक्त का थक्का बनने से रोकते हैं। थक्का बनने की प्रक्रिया रोकने तथा रक्तवाहिकाएँ सामान्य रखने में जड़ी-बूटियों का प्रभाव स्थायी तथा टिकाऊ है। वृद्धावस्था में प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है और इससे वृद्धावस्था में अधिक बीमारियाँ घेर लेती है। वृद्ध व्यक्ति बीमारियों की पकड़ में जल्दी ही आ जाते हैं। और बिमारियों से पीड़ित व्यक्ति कभी भी लंबी उम्र नहीं पा सकता।

वृद्धावस्था लाने में फ्री रेडिकल्स की भूमिका

ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए अनिवार्य है, परंतु कभी-कभी यह हमारे जीवन के लिए खतरनाक भी बन जाती है। जैसे ग्लूकोज के साथ कोशिकाओं के विभाजन के बाद उससे एडीनोसाइन फॉस्फेट उत्पन्न करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसके बाद ऑक्सीजन फ्री रेडिकल्स में परिवर्तित हो जाती है। अणु बाह्य रूप से इलेक्ट्रॉन में परिवर्तित हो जाते हैं। ये फ्री रेडिकल्स कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तथा उसके सूक्ष्म भागों को हटा देते हैं। फ्री रेडिकल्स कोशिकाओं को अपूरणीय क्षति पहुँचाते हैं तथा वृद्धावस्था को बढ़ावा देते हैं। एंटीऑक्सीडेंट वृद्धावस्था को टालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये विटामिन सी, ए, ई में मौजूद होते हैं, जो हमारे भोजन में होते हैं। आयुर्वेद ने रसायन (च्यवनप्राश, अश्वगंधा अवलेह) के दैनिक इस्तेमाल का समर्थन किया है, क्योंकि वह विटामिन ए, सी तथा ई के साथ ऊतकों का निर्माण करता है और दीर्घ आयु में सहायता करता है। आज के उन्नत वैज्ञानिक युग में भी 5000 वर्ष पुराने आयुर्वेद तथा उसके सिद्धांतों की दीर्घायु प्राप्त करने में अहम भूमिका है। ये मस्तिष्क तथा शरीर की अन्य कोशिकाओं का कायाकल्प कर देते हैं।

रसायन का प्रभाव

रसायनों पर ताजा अध्ययनों ने यह प्रमाणित किया है कि कुछ रसायन रक्त का थक्का बनने से रोकते हैं। तथा कैंसर के लिए रोगनिरोधक के रूप में काम करते हैं। फ्री-रेडिकल्स से बचाव करते हैं, जो बदले में दीर्घ आयु सुनिश्चित करते हैं।

6 माह या वर्ष में एक बार पंचकर्म थेरैपी करने से शरीर को 5-6 वर्ष में बुढ़ापे को थोडा पीछे किया जा सकता है। पंचकर्म थेरैपी के बाद किया गया ध्यान अधिक लाभदायक होता है।

समय पूर्व वृद्धावस्था को आने से रोकने के लिए व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार आहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, आयुर्वेदिक व्यायाम, पंचकर्म, ध्यान आदि को अपनाना चाहिए। इससे व्यक्ति स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क के साथ कम-से-कम सौ वर्ष की आयु तक जीवित रह सकता है। अंत में, एक सकारात्मक सोच तथा संतुलित जीवन शैली के साथ वृद्धावस्था में होने वाली बहुत सारी परेशानियों से बचा जा सकता है बस जरुरत होती है कोशिश करने की |

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