डिप्रेशन अवसाद के कारण, शुरुआती लक्षण तथा बचाव के उपाय

अवसाद या डिप्रेशन यह कोई नया रोग नहीं है। इस रोग को मनोदशा रोग (Mood Disorder) या भावात्मक रोग (Affective Disorder) के श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि इसमें मूड का ही उतार चढाव या भावनात्मक उथल-पुथल देखने को मिलता है इसलिये इसको इस श्रेणी के अंतर्गत रखा जाता है। यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जब से सभ्य मानव का विकास हुआ ये किसी न किसी रूप में मानव सभ्यताओं को प्रभावित करता रहा है जिसके पीछे शायद सबसे बड़ा कारण असीमित इच्छाएं है कुछ अन्य कारण भी हो सकते है जैसे केमिकल, फिज़िकल या अन्य मनोवैज्ञानिक जटिलताएँ |

डिप्रेशन मीनिंग – डिप्रेशन शब्द ग्रीक भाषा के “Barunomenon” से बना है, जिसका अर्थ है मन की बोझिलता। आजकल के समय में एक स्वस्थ तथा खुश मिजाज दिमाग की कल्पना करना बहुत ही मुश्किल है। सभी के जीवन में सुख-दुख तथा समस्याओं का आना जाना लगा रहता है। कोई इससे जल्दी निपट जाता है, तो कोई इन समस्याओं के प्रति अतिसंवेदनशील होता है, उसे थोडा सा दुःख या समस्याये अंदर तक हिला कर रख देती है। वास्तव में देखा जाये तो मस्तिष्क क्षमता सभी व्यक्तियों में अलग-अलग होती है, जिससे हमारे अंदर सुख-दुख को ग्रहण करने की क्षमता भी अलग हो जाती है। और व्यक्ति उसी के अनुसार प्रभावित होता रहता है। वैसे डिप्रेशन अपने आप भी 6 से 12 महिने मे ठीक हो सकता है, या फिर दुबारा भी हो सकता है। लेकिन इतने लंबे समय तक इस रोग का बने रहना व्यक्ति के प्रोफेशनल जीवन, पारिवारिक जीवन और सामाजिक जीवन को काफी पीछे धकेल सकता है या कभी-कभी इस रोग में व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है इसलिए बिना देर किये डिप्रेशन को दवा और सायकोथेरापी या योगासन से दूर करवाने हेतु खुद को तथा दूसरों को भी जागरूक करना चाहिए।

डिप्रेशन के क्या होता है ?

डिप्रेशन अवसाद के कारण, शुरुआती लक्षण तथा बचाव के उपाय avsad depression ke karan lakshan
डिप्रेशन अवसाद
  • डिप्रेशन होने के कई कारण हो सकते हैं। आज के भौतिकवादी (materialistic life), अतिमहत्वकांक्षा, शारीरिक श्रम की कमी तथा बनावटी माहौल में जीने का प्रयास पूरी तरह समाज को प्रभावित कर चुका है और इस मकड़जाल में फंसने की स्थिति के कारण व्यक्ति डिप्रेशन के चपेटे में आता ही जा रहा है।
  • कई शोधों द्वारा साबित हो चुका है कि सभी व्यक्ति डिप्रेशन जैसे मानसिक रोग के गिरफ्त में नहीं आते हैं बल्कि ज्यादातर देखा गया है कि भावुक एवं संवेदनषील व्यक्ति ही इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, ये वैसे लोग होते हैं जो छोटी-छोटी समस्याओं को भी सहन नहीं कर पाते है तो बड़ी से प्रभावित होना लाजमी ही है। पुरूषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन से अधिक प्रभावित होती हैं।
  • आज डिप्रेशन विश्व की सबसे बड़ी बिमारी के तरफ बढ़ रहा है। यह पुरूषों, महिलाओं के साथ-साथ बच्चों तक को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। WHO के अनुसार पूरी दुनिया में 2005 से 2015 के बीच डिप्रेशन में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और 2020 तक आते-आते मानसिक रोग “डिप्रेशन” दुनिया में बड़े पैमाने पर फैल चुकी होगी।
  • ये बात शायद आपको चौका सकती है की अधिकतर मामलो में शुरुवात में डिप्रेशन के रोगियों को पता ही नहीं चलता की वो किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे है अब चूँकि एकल जीवन जीने की तरफ लोगो का झुकाव अधिक बढ़ा है खासतौर से शहरी जीवन में तो उनके आसपास का सामाजिक दायरा कम होने की वजह से कोई इस तरफ उनका ध्यान भी नहीं दिलाता है की आपके व्यवहार में असामान्य परिवर्तन आ रहा है और इस पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है |
  • नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एण्ड साइंसेज) के सर्वे के अनुसार भारत में हर 20 में से एक व्यक्ति माइनर या मेजर डिप्रेशन से ग्रसित है |

डिप्रेशन के डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण –

  • जब व्यक्ति में यूं ही रोजमर्रा के समस्याओं के कारण कुछ दिनों तक उदासी सी बनी रहे, फिर अपने आप ही ठीक भी हो जाये तो इसे डिप्रेशन नहीं कहा जा सकता है। कम से कम अवसाद या डिप्रेशन 2 हफ्ते तक बनी रहे या इससे अधिक समय तक बनी रहे तब ही हम इसे चिकित्सकीय भाषा में डिप्रेशन कह सकते हैं।
  • डिप्रेशन के बहुत से कारण हो सकते है। हार्मोन्स असंतुलन, थायरॉयड ग्रंथि से उत्पन्न विकार, मोटापा, नशीली दवा या अन्य दवाओं का सेवन, गतिशील न होना, असमान्य वैवाहिक जीवन, बिना उद्देश्य के जीवन, पारिवारिक स्नेह से वंचित होना, सामाजिकता का अभाव, इंटनेट या कम्प्यूटर में अधिक समय बिताना और वास्तविक जीवन से दूरी बना लेना तथा अलग थलग चुपचाप रहने के भी कारण हो सकते हैं।
  • ध्यान देने वाली बात यह है कि हम इसके कारण में अनुवांशिकता (यानि पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले रोग ) को भी दरकिनार नहीं कर सकते हैं। जैसे यदि माता पिता में से एक को जब डिप्रेशन रोग हो तो उसके बच्चों में ये 8 गुणा तथा माता पिता में जब दोनो को को ही यह रोग हो तब तो उनके बच्चों में ये 16 गुणा अधिक मात्रा में प्रभावित कर सकती है। इसका सीधा सा मतलब यह है की समान्य व्यक्ति की अपेक्षा ऐसे लोगो को डिप्रेशन का 8 से 16 गुना अधिक खतरा हो सकता है |
  • एटिपिकल डिप्रेशनः– इस डिप्रेशन में कुछ अलग हटकर लक्षण मिलते हैं, जिसको पहली नजर में डिप्रेशन नहीं कह सकते, लेकिन होता है वो डिप्रेशन ही है | ये बच्चों या महिलाओं में ज्यादा देखा गया है। लक्षण के मामले में ज्यादातर डिप्रेशन में भूख कम हो जाती है। लेकिन इसमें मरीज को भूख खूब लगती है, वो भी मीठा खाने को ज्यादा मन करता है, क्योंकि शरीर को ग्लूकोज की मात्रा ज्यादा चाहिए होती है।
  • अवसाद के शिकार लोगों के नकारात्मक व स्वयं के प्रति आलोचनात्मक विचार होते हैं।
  • अकसर ऐसे लोग काबिलियत के बावजूद वे अपने आप को निरर्थकता व प्यार न किए जाने की भावना से घिरे रहते हैं। डिप्रेशन की वजह से हमेशा सुस्त बने रहने के कारण ऐसे व्यक्ति अपने आस-पास के लोगों एवं उन क्रिया-कलापों से कट जाते हैं, जिन्हें करते हुए भी उन्हें कभी आनंद आता था। इससे वे कहीं अधिक अकेलापन तथा सबसे कटे-कटे महसूस करते हैं, और इस तरह डिप्रेशन व नकारात्मक सोच में बढ़ोतरी होती जाती है।
  • लम्बे समय तक डिप्रेशन रहने से शरीरिक बीमारियाँ जैसे हाई ब्लड प्रेशर, पेट खराब होना, वजन बढ़ना या घटना, सिरदर्द व नींद की समस्या आदि तक हो जाती हैं।

WHO के द्वारा डिप्रेशन को पहचानने के मापदण्ड

  • नींद की समस्यायें जैसे आप पहले अधिक सोते थे, अब कम सो पाते हैं। या अब अत्यधिक सोने की ईच्छा होती है, फिर भी ताजगी नहीं महसूस नहीं होना। हमेशा निराश रहना और हर पल नकारात्मक बातें करना या सोचना ।
  • आत्महत्या का विचार आना, मृत्यु का भय या अनजाने डर से मन भयभीत होना |
  • लगातार कमजोरी एवं थकान अनुभव करना।
  • भोजन करने की मात्रा असमान्य होना, पहले कम खाते थे तो अब ज्यादा खाते हैं इसी तरह जो ज्यादा खाते थे वो अब कम खाने लगे हैं।
  • अचानक वजन का बढ़ना या घटना (हालाँकि ऐसा किसी अन्य बीमारी में भी हो सकता है )
  • पहले जिस कार्यों को करने में उत्साह रहता था, अब वही कार्य बोरिंग लगता है तथा उस कार्य से जी चुराना।
  • साफ-सफाई का अभाव होना, लापरवाही वाला जीवन जीना और दैनिक क्रियाकलापों में मन न लगना।
  • मन की एकाग्रता खोना, मन का एकाग्र न हो पाना।
  • आत्मग्लानि का अनुभव, बात-बात पर नसीब को कोसना, हीनता का तेज अनुभव।
  • स्वयं को हर असफलता के कसुरवार ठहराना तथा अपराध बोध का अनुभव लगातार बने रहना ।
  • ऊपर दिए गए कारणों में से 5 या ज्यादा लक्षण अगर 2 हफ्तो या इससे ज्यादा समय तक पाये जा रहे हैं तो आप निःसंदेह डिप्रेशन से गुजर रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त भी बहुत से लक्षण डिप्रेशन को दर्शाते है जैसे वैवाहिक जीवन में अरूचि, वैराग्य की बातें करना, घबराए रहना, झुंझलाहट, निर्णय लेने की असमर्थता, स्वयं से बाते करना, इंटनेट मोबाईल में लगे रहना लेकिन रिस्तेदारों या आस पड़ोस से दूरी बनाये रखना | आप इसको कुछ ऐसे भी समझ सकते है की आप इंटरनेट के द्वारा सोशल मिडिया पर तो काफी एक्टिव है लेकिन असल जीवन में समाज, आस पडोस या अपने रिश्तेदारों से कटे रहते है |
  • महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म, अधिक पसीना आना, बोलते समय जुबान लड़खड़ाना या हाथ-पैरो में कंपन सा होना एवं नशे के गिरफ्त में आ जाना भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं। खासतौर से हाई ब्लड प्रेशर लगातार बने रहना जबकि ह्रदय से सम्बंधित सभी जाँच ठीक पाई गई हो |
  • डिप्रेशन की अलग-अलग श्रेणी में रखा जाता है इसे एक कुशल मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक आसानी से पहचान लेते हैं और फिर उसी के हिसाब से काउंसलिंग या दवा देकर उपचार करते है |

लोग डिप्रेशन के शिकार क्यों होते हैं?

  • अवसाद या डिप्रेशन का कोई एक कारण नहीं है। इसमें कई कारण भूमिका निभाते हैं, जिसमें आनुवंशिक परिवेश से जुड़ी जीवन की घटनाएँ तथा चिकित्सीय स्थितियाँ शामिल हैं। साथ ही अपने जीवन में घटनेवाली बातों के प्रति वे किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं, यह कारण भी भूमिका निभाता है।
  • जीवन की घटनाएँ- जिस क्षण हम इस दुनिया में आते हैं, हमारी पहली साँस के साथ रोने से लेकर हमारी आखिरी साँस तक स्वयं को बनाए रखने, अपने अधिकार का बचाव करने और अपने मूल्यों व प्रियजनों की रक्षा करने का प्रयत्न, जीवन का एक कभी ना रुकने वाला संघर्ष है किसी के लिए अधिक संघर्ष है तो किसी के लिए थोडा कम । समाजिक और आर्थिक असुरक्षा की भावना परिवार के सदस्य या किसी प्रिय मित्र की मृत्यु इतना दु:खी कर सकती है कि वह अवसाद का रूप ले सकती है, और ऐसे ही जीवन की अन्य कठिनतम घटनाएँ, जैसे जब माता-पिता अलग हो जाएँ, तलाक ले लें या पुनः विवाह कर लें।
  • वास्तविक दुर्व्यवहार :- माना जाता है कि वास्तविक दुर्व्यवहार भी मस्तिष्क में रासायनिक बदलावों के कारण होते हैं, जिससे व्यक्ति की मन: स्थितियों पर प्रभाव पड़ता है । कुछ नशीली दवाएँ मस्तिष्क की संरचना को परिवर्तित कर देती हैं और उनके उदास करने वाले प्रभाव भी होते हैं। वास्तविक दुर्व्यवहार के कारण सबसे अलग रहना और दूसरे नकारात्मक परिणाम इस समस्या को और बढ़ाते हैं।
  • चिकित्सीय स्थितियाँ – कुछ चिकित्सीय स्थितियाँ हार्मोन के संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे मनोस्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि कुछ स्थितियाँ, जैसे हाइपो थायरॉइड, कुछ लोगों में अवसाद पैदा करती हैं। हालाँकि जब इन बिमारियों का इलाज हो जाता है, आमतौर पर अवसाद गायब हो जाता है।
  • बच्चों के मामले में, सीखने की अक्षमताओं का निदान न हो पाने के कारण स्कूली पढ़ाई पर उसका बुरा असर पड़ता है, जबकि हार्मोन में आनेवाले बदलाव उनकी मनोस्थिति को प्रभावित कर सकते हैं या शारीरिक बीमारी चुनौतियाँ खड़ी कर सकती है। इससे अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

जब कोई डिप्रेशन में होता है तो दिमाग में क्या होता है?

  • अवसाद में मस्तिष्क के संवेदनशील रसायन, विशेषकर न्यूरोट्रांसमीटर्स कहलाए जानेवाले रसायन, काम करते हैं । ये रसायन मस्तिष्क में स्नायु कोशिकाओं के बीच में संदेश भेजते हैं। कुछ न्यूरोट्रांसमीटर्स हमारे मूड को नियंत्रित करते हैं और अगर वे मंद पड़ जाएँ, लोग डिप्रेस्ड, चिंतित व तनावग्रस्त हो जाते हैं। तनाव भी न्यूरोट्रांसमीटर्स के संतुलन को प्रभावित कर सकता है, जिसकी वजह से डिप्रेशन हो सकता है। यहाँ तक कि पश्चिम में भी यह आमतौर पर मान लिया गया है कि योग और प्राणायाम की पारंपरिक तकनीकें मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करती हैं ।
  • साइको न्यूरो इम्यूनोलॉजी (पी.एन.आई.) वह विज्ञान है, जो इन समस्याओं का निदान करता है। सुदर्शन क्रिया और संबंधित श्वसन तकनीकों के असाधारण चिकित्सीय लाभ देखे गए हैं।

मानसिक तनाव या अन्य मानसिक समस्याओ के निदान के लिए हमने कई आर्टिकल अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किये है आप उन्हें पढ़े तथा उसमे बताई गई बातों पर अमल करें आपको जरुर लाभ होगा | अधिकतर मानसिक समस्याएँ खुद मन (दिमाग) द्वारा पैदा की जाती है तो, इससे छुटकारा पाने के लिए स्वयं (मन) दिमाग को समझाने की कला आपको विकसित करनी चाहिए जो ध्यान, योगासन या कई अन्य दूसरी तकनीको द्वारा संभव है |

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