एलोवेरा जूस बनाने की विधि और फायदे -Aloe Vera Juice Recipe

आयुर्वेद में एलोवेरा जूस को प्राकृतिक गुणों का भंडार कहा गया है। संस्कृत में घृतकुमारी के नाम से मिलने वाले ग्वारपाठे का आयुर्वेद में पुमासिन और कन्यालोतादि वटी के रूप में वर्णन आया है। एलोवेरा का गूदा औषध बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। यह दिखने में जेली जैसा , लसीला, चमकीला द्रव पदार्थ होता है। इस गूदे में हजारों गुण समाहित हैं। एलोवेरा कफ-पित्त को ठीक करता है। पाचन तंत्र पर अच्छा प्रभाव डालता है तथा भूख में वृद्धि करता है। ग्वारपाठा को विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे -धृतकुमारी, बहुपत्री, दीर्घपत्रिका, कुमारी, गृहकन्या, स्थूलदला, रसायनी आदि ।

एलोवेरा रक्त विकार और त्वचा रोग आदि विकारों को दूर करने वाली वनस्पति है। खाना खाने के बाद होने वाला पेट दर्द, अम्लपित, हल्का बुखार आदि रोग ग्वारपाठे के सेवन से दूर हो जाते हैं। यूरोप के लोगों को एलोवेरा की जानकारी 10वीं सदी में हुई जबकि यूनानी लोग तो ई.पू. 400 से ही इसे काम में ले रहे थे। एक अन्य प्रकार का ‘रक्तकुमारी’ जो ‘लाल ग्वारपाठा’ के नाम से भी जाना जाता है, बंगाल की तरफ पाया जाता है। ऐलोरूपेसेन (Aloe-Rupescens) नामक एक पौधे से निकलने वाले पत्तों के नीचे वाला हिस्सा बैंगनी रंग का होता है। इस पौधे पर नारंगी और लाल रंग के फूल आते हैं। एलोवेरा के मोटे-मोटे पत्तों का जूस ही एलोवेरा की खास चीज होती है। इन पत्तों से एलोवेरा जूस निकालने की आसान विधि और एलोवेरा के औषधीय गुण निम्नलिखित हैं |

एलोवेरा जूस aloe vera juice benefits and recipe
aloe vera juice benefits and recipe

How To Make Aloe Vera Juice For Drinking.

एलोवेरा जूस बनाने की विधि -1

  • एलोवेरा की पत्तियों को धोकर सबसे पहले उसके किनारे के काँटों को चाकू की सहायता से निकाल कर अलग कर दें | अब पत्तियों को छोटे-छोटे पीस में बांट लें अब पत्तियों के टुकडे लेकर उसके ऊपर का हरा वाला छिलका और पीला भाग निकाल कर अलग कर दें |
  • एलोवेरा के केवल सफेद भाग को अलग करने के बाद उसे किसी मिक्सी में डाल कर अन्य फलों और सब्जियों की भांति इससे जूस बना लें |

एलोवेरा का जूस बनाने की विधि -2

  • डेढ़-दो फुट लम्बा और आधा फुट चौड़ा एक गहरा गड्ढा जमीन में खोदकर उस पर कैनवास का टुकड़ा रखकर एलोवेरा के ताजे पत्ते एक के ऊपर करके इस तरह से रखें कि पत्तों का चौड़ा भाग गड्ढे की तरफ रहे। एक बार में 50 से 100 तक पत्ते रखें। इसमें पत्तों से जूस धीरे-धीरे गड्ढे में इकट्ठा होता रहेगा।

एलोवेरा का जूस बनाने की विधि -3

  • एलोवेरा के पत्तों के छोटे-छोटे टुकड़े करके मिट्टी के एक घड़े में भर दें, जिसके तल में छोटे-छोटे छेद हों जिससे पत्तों से निकलने वाला गाढ़ा जूस निकल सके। इस घड़े को अब एक बर्तन में इस प्रकार रखें कि घड़े का तल उस पात्र से कुछ ऊँचा रहे।
  • घड़े में भी एलोवेरा के टुकड़ों को हिलाते रहें। इस प्रकार धीरे-धीरे सारा जूस नीचे रखे बर्तन में आ जायेगा। इस प्रकार एलोवेरा का जूस प्राप्त करने के बाद इसे धूप में या धीमी आँच पर गरम करके कुमारीसार यानि एलुवा बना लिया जाता है।
  • यह एलुवा मोम की तरह अपारदर्शक होता है। इसे हेपाटिक ऐलोयज (Hepatic Aloes) कहा जाता है। आजकल इसके जूस को तेज आँच पर शीघ्र सुखाकर एलुआ बनाया जाता हैं।
  • अर्धपारदर्शक इस एलुवे को ग्लासी ऐलोयज (Glassy Aloes) कहा जाता है।

एलोवेरा जूस के फायदे

  • आयुर्वेद में एलोवेरा को कड़वा, शीतल, विरेचक, धातु परिवर्तक, कृमिनाशक, कामोत्तेजक और विषनाशक बताया गया है। यह लीवर के रोग, बढ़ी हुई तिल्ली, जी मिचलाना, बुखार, खाँसी, आँखों के रोग, त्वचा रोग, पेट के रोग, पीलिया, आदि रोगों में यह लाभ पहुँचाता है।
  • आयुर्वेद में इसे दुष्प्रभाव (Side-effect) रहित और रोगों में निश्चित लाभ देने वाला कहा गया है। मतलब एलोवेरा के लगभग कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते है |
  • एलोवेरा जूस के सेवन से पेट संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है तथा शरीर में छिपे रोगों के कीटाणु भाग जाते हैं। इससे पाचन क्रिया में सुधार होता है।
  • एलोवेरा जूस के सेवन से रक्त सहित सातों धातुओं की शुद्धि होती है, जिससे पेट की गैस, कब्जियत, कम भूख लगना, लीवर की समस्या, हल्का बुखार, एसिडिटी, कृमि रोग आदि रोग मिटने लगते हैं।
  • एलोवेरा जिस तरह से अन्दुरुनी प्रयोग में उत्तम कार्य करता है, वैसे ही इसका बाहरी प्रयोग भी बहुत प्रभावी रहता है।
  • एलोवेरा के गूदे का सेवन 15 दिन में ही असर दिखाता है लेकिन स्थायी और पूरे लाभ के लिये कम-से-कम 3 से 6 माह तक सेवन नियमित करना चाहिए। यह भी पढ़ें – नीम के बेहतरीन औषधीय गुण-सौन्दर्य के लिए |
  • जिन लोगो का शरीर बहुत ज्यादा कमजोर हो ,गर्मी की वजह से दस्त (Diarrhea) हो| गर्भवती तथा बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाओ को एलोवेरा जूस का सेवन नहीं करना चाहिए |
  • एलोवेरा के पत्तों से निकाला गया जूस दो प्रकार से प्रयोग किया जाता है-(1) आन्तरिक और (2) बाहरी।
  • आन्तरिक सेवन में एलोवेरा जूस पिया जाता है। तथा एलोवेरा के गूदे से विभिन्न व्यञ्जन, सब्जी, लड्डू आदि बनाकर खाते हैं।
  • बाह्य रूप में एलोवेरा जूस को त्वचा पर लगाने, मालिश करने व विभिन्न प्रकार की मरहम, क्रीम, टूथपेस्ट, पाउडर, तेल आदि के रूप में काम में लेते हैं। एलोवेरा का स्थिरीकृत जूस (Aloevera Stablized) व एलोवेरा का ताजा जूस दोनों गुणों की दृष्टि से समान है।
  • एलोवेरा जूस से (Aloevera Gel) निर्माण करने वाली अनेक कम्पनियाँ हैं। किसी-किसी का उत्पाद पानी जैसा लगता है। हो सकता है की वो पानी ही हो। इसलिये जो आप अपनी आँखों के सामने पत्तियों एलोवेरा जूस निकालेंगे वह ज्यादा विश्वास योग्य होगा।
  • लिगलिन– यह एक गूदे जैसा पदार्थ होता है जो एलोवेरा के पत्तों की जैली में शामिल सेलुलोज के साथ पाया जाता है। यह त्वचा में गहराई तक जाने की क्षमता रखता है। इसलिए ऐलोवेरा क्रीम लगाने से त्वचा में पौष्टिकता आती है और त्वचा-रोग शीघ्र ठीक हो जाता है। यह भी पढ़ें – शहद के फायदे और इसके 35 घरेलू नुस्खे |
  • सैपोनिंस– सैपोनिंस ग्लाइकोसाइड्स हैं जिनमें न केवल सफाई और प्रतिजैवी क्षमता होती है बल्कि शैम्पू जैसे सौन्दर्य प्रसाधन में प्राकृतिक झाग पैदा करने वाले उच्चकोटि के साबुनीकरण एजेंट भी होते हैं।
  • एलोवेरा में सैपोनिंस होते हैं। इसलिए एलोवेरा से सौन्दर्य बढ़ाने वाली क्रीम, पाउडर, साबुन तेल आदि बनाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त इन ऑर्गेनिक इन्ग्रेडिएन्टस, मिनरल्स, विटामिन्स, एंजाइम्स, अमीनो एसिडस आवश्यक व सैकण्डरी दोनों प्रकार के और मोनो व पॉली सैकेराइड्स पाये जाते हैं।
  • एलोवेरा पाचन संस्थान को ठीक रखता है। रोगों के विरुद्ध शरीर में सुरक्षा प्रणाली (Immune System) काम करती है |
  • बिना रोग प्रति रक्षण तंत्र (Immune System) के शरीर बीमारियों को दूर करने में असमर्थ रहता है। एलोवेरा प्रतिरक्षण तंत्र को समर्थ बनाता है।
  • एलोवेरा जूस एलजीं जनित कष्टों को कम करता है |
  • हवा, पानी, भोजन, रासायनिक प्रदूषण आदि रोगाणु के मुख्य वाहक हैं जो हमारे शरीर में विष फैलाते हैं। ये फ्री रेडिकल्स हमें बीमार करते हैं, कमजोर बनाते हैं। एलोवेरा जूस यह क्षमता है कि वह इनके विषैले प्रभाव को कम करके रोगाणुओं को समाप्त कर देता है |
  • एलोवेरा जूस दाँतों का रक्षक है। रोगी चाहे किसी भी चिकित्सा पद्धति ऐलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद से चिकित्सा करा रहा हो, उनकी चिकित्सा के साथ एलोवेरा जूस लेते रहने से रोग जल्दी ठीक होता है। अन्य चिकित्साओं के साथ एलोवेरा का सेवन कर सकते हैं। शरीर में एलोवेरा के अच्छे प्रभाव के लिए, इसके जूस का सेवन 3 महीने तक करें। शुरुआत में कम मात्रा में एलोवेरा जूस लेना आरम्भ करें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते जायें।

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4 thoughts on “एलोवेरा जूस बनाने की विधि और फायदे -Aloe Vera Juice Recipe”

  1. Gavarpatha ko sarvprtham Kaise utpann karate hai yadi seed she utpann karate hair to muje bataye kind seed kha milega muje by gmail jankari de plz harry up…
    THANKYOU

    Reply
    • देशराज जी हमारी वेबसाइट पर स्वास्थ्य से जुडी जानकारियां दी जाती हैं खेती से सम्बंधित जानकारी नहीं दी जाती हैं |

      धन्यवाद

  2. एलोवेरा के जूस को प्रिसर्व, स्टोर कैसे करें?
    इसकी शेल्फ लाइफ कितनी रहेगी?
    इसके अलग अलग फ्लेवर कैसे बनते हैं?
    बनने के कितनी देर के अंदर पी लेते हैं?

    Reply
    • राजेश जी,
      कोई भी जूस ताज़ा ही पीना चाहिए दस पन्द्रह मिनटों के अंदर |
      आपके बाकि सवालों के जवाब जूस बनाने वाली किसी कम्पनी से आपको पता करना चाहिए |

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