कंजक्टिवाइटिस रोग : आँख में कीचड़ आने के कारण, लक्षण तथा बचाव के उपाय

कंजक्टिवाइटिस यानी कि आंख की बाहरी झिल्ली और पलक के भीतरी हिस्से में सूजन या संक्रमण होना कंजक्टिवाइटिस आँखों को ढकेलने वाली पतली झिल्ली ‘कंजेक्टिवा’ की सूजन के कारण होती है। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे ‘आँख आने की बीमारी’ कहा जाता है। कंजंक्टाइवा, वास्तव में, कोशिकाओं की एक पतली पारदर्शी परत होती है, जो पलकों के अंदर के हिस्से और आंख के सफेद हिस्से को ढकती है. अकसर पिंक आई के नाम से बुलाया जाने वाला कंजक्टिवाइटिस आँखों की एक सामान्य रोग है, जो खासतौर से बच्चों को घेरता है. यह एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है. कंजंक्टिवाटिस के कुछ प्रकार काफी संक्रामक होते हैं और आसानी से घर व स्कूल दोनों जगह फैल सकते हैं. वैसे तो कंजक्टिवाइटिस आमतौर पर आंख का एक मामूली संक्रमण होता है लेकिन कई बार यह गंभीर समस्या में भी बदल जाता है |

वायरल या बैक्टिीरियल संक्रमण से भी कंजक्टिवाइटिस हो सकता है. यह हवा में मौजूद एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों, जैसे पौलन (परागकण) और धुआं, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन, कौस्मेटिक्स में मौजूद तत्त्वों या आंख के संपर्क में आने वाले कौंटैक्ट लैंस जैसे अन्य तत्त्वों के कारण एलर्जिक रिऐक्शन से हो सकता है |

चूँकि यह एक संक्रामक रोग है इसलिए इस बीमारी से पीड़ित लोगों के संपर्क में आने मात्र से ही यह बीमारी स्वस्थ व्यक्ति को हो सकती है। अधिक भीड़-भाड़, गंदी बस्तियाँ, अस्वच्छ वातावरण इसके कीटाणु को पनपने तथा बढ़ने में सहायक होते हैं। कंजक्टिवाइटिस का प्रसार रोकने के लिए साफ-सफाई रखना सब से जरूरी है |

कंजक्टिवाइटिस रोग के लक्षण

कंजक्टिवाइटिस रोग : आँख में कीचड़ आने के कारण, लक्षण तथा बचाव के उपाय
Conjunctivitis
  • एक या दोनों आंखों में किरकिरी महसूस होना
  • एक या दोनों आंखों में जलन या खुजली होना
  • आंख से अधिक पानी बहना
  • आंखों में कीचड़ आना
  • एक या दोनों आंखों के सफेद हिस्से में गुलाबीपन आना
  • आंखों में रोशनी चुभना
  • इस रोग के असर से आँख और पलकों का निचला हिस्सा सूज जाता है।
  • शुरू में आँखें लाल हो जाती हैं और सूख भी जाती हैं। बाद में इनमें जलन होने लगती है और फिर पानी गिरने लगता है।
  • कभी-कभी संक्रमण के अधिक बढ़ जाने पर इनमें पीप का बनना शुरू हो जाता है। रात के समय अकसर पीप पानी सूख जाता है, जिससे आँखें चिपक जाती हैं।
  • आँखों में कीचड़ आने लगता है. आँखों को रोशनी अच्छी नहीं लगती. आंखों में जलन और गरमी महसूस होती है. हालांकि दर्द नहीं होता है पर परेशानी बहुत होती है |

कंजक्टिवाइटिस रोग के कारण

  • यह बीमारी जीवाणुओं के संक्रमण या आँख पर ज्यादा दबाव पड़ने से होती है।
  • यह रोग आंखों की पतली झिल्ली श्लेष्मला (Coniunctiva) में, जो आंख की सफेदी के ऊपर और दोनों पलकों के अंदर होती है, बैक्टीरिया (Bacteria) या वायरस ( छोटे कीटाणुओं) के संक्रमण से होता है |
  • गरमी और बरसात के मौसम में इस का प्रकोप बहुत बढ़ जाता है और तब यह छूत की बीमारी की तरह एक से दूसरे तक फैलती हैं |
  • कृत्रिम रोशनी में ज्यादा देर तक काम करने से या एक ही ओर ज्यादा देर तक निगाह रखने से भी यह बीमारी हो सकती है; पर इसका असली कारण है-आँखों की श्लेष्मिक झिल्लियों की सूजन, जो सामान्य रक्त-विषाक्तता और खान-पान में असमानता तथा गंदगी भरे वातावरण की वजह से होती है।
  • इस रोग में मरीज अकसर ज्यादातर जुकाम से पीड़ित रहता है। इसका अर्थ यह है की रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है इसलिए वायरस से बचाव करने में वो कमजोर है |

कंजक्टिवाइटिस होने के 3 मुख्य कारण होते हैं- एलर्जिक, संक्रामक और रासायनिक | कंजक्टिवाइटिस की वजह उस के प्रकार पर निर्भर करती है |

  • एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस-आमतौर पर उन लोगों को होता है जिन्हें मौसम बदलने के कारण एलर्जी होती है, उन्हें आंख के किसी ऐसे तत्त्व के संपर्क में आने पर कंजक्टिवाइटिस होता है, जिस से आंख में एलर्जिक रिऐक्शन शुरू होता हैं, जौइंट पैपिलरी कंजक्टिवाइटिस, एक प्रकार का एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस होता है, जो आंख में लंबे समय तक किसी बाहरी तत्त्व के रहने के कारण होता है. सख्त कौंटेक्ट लैंस, सौफ्ट लैंस पहनने लेकिन उन्हें लंबे समय तक नहीं बदलने वाले हो, ऐसे लोगों को कंजक्टिवाइटिस होने की आशंका अधिक होती है |
  • संक्रामक कंजक्टिवाइटिस– बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस, यह संक्रमण आप की त्वचा या सांस प्रणाली से आने वाले स्टेफाइलोकोकल या स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया के कारण होता है, कीट, अन्य लोगों के साथ शारीरिक संपर्क, साफ सफाई नहीं होने (गंदे हाथों से आंख छूना) या प्रदूषित आई मेकअप का इस्तेमाल करना या फिर चेहरे पर लगाने वाले लोशन से भी संक्रमण हो सकता है. मेकअप सामग्री साझा करना या किसी और के कौंटैक्ट लैंस पहनने या फिर गंदे कौंटैक्ट लैंस पहनने से भी बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस हो सकता है |
  • वायरल कंजक्टिवाइटिस-सब से आम प्रकार का संक्रमण है और यह सर्दी से जुड़े वायरसों के कारण होता है जिससे जुकाम और कफ की बीमारी भी होती है | यह किसी ऐसे व्यक्ति की खांसी या छींक के कारण हो सकता है, जिसे सांस की नली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण हो. वायरल कंजक्टिवाइटिस, फेफड़े, गले, नाक और कंजंक्टाइवा को जोड़ने वाले शरीर के म्यूकस मेंब्रेन में वायरस के फैलने की वजह से भी हो सकता है, चूंकि आंसू नाक की नली से बाहर आते हैं, ऐसे में जबरदस्ती नाक साफ करने से मुमकिन है कि वायरस आप को सांस प्रणाली से आप की आंखों में पहुंच जाए |
  • औप्थैलमिया नियोनैटोरम, एक गंभीर प्रकार का बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस है, जो नवजात शिशुओं में होता है. यह बेहद गंभीर समस्या हो सकती है। और अगर इस का तुरंत इलाज नहीं किया गया तो इस से आंखों को स्थायी तौर पर नुकसान भी हो सकता हैं. औप्थैलमिया नियोनैटोरम की समस्या तब होती है जब गर्भाशय से निकलते समय नवजात क्लेमीडिया या गोनोरिया के संपर्क में आ जाए |
  • रासायनिक कंजक्टिवाइटिस -कैमिकल कंजक्टिवाइटिस की वजह वायु प्रदूषण, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन और आँखों का हानिकारक रसायनों के संपर्क में आना हो सकता है |

कंजक्टिवाइटिस रोग की जांच

कंजक्टिवाइटिस की जांच आँखों के परीक्षण से की जा सकती है, इस में कंजंक्टाइवा और उस के आसपास की कोशिकाओं पर ध्यान से टैस्ट किए जाते हैं और इन में निम्न भी शामिल हो सकते हैं :

  • रोगी का इतिहास, जिस से लक्षणों को पहचानने में मदद मिले, पता चल सके कि लक्षण कब शुरू हुए और क्या इस समस्या में पर्यावरण संबंधी या सामान्य स्वास्थ्य संबंधी समस्या का कारण शामिल है या नहीं |
  • आँखों की रोशनी को चैक करना जिससे यह पता लगाया जा सके कि मरीज की देखने की क्षमता प्रभावित हुई है या नहीं। कंजंक्टाइवा और आंखों की बाहरी कोशिकाओं का आकलन तेज रोशनी और मैग्निफिकेशन के इस्तेमाल से से भी की जाती है |
  • आंख के अंदर के ढांचे का आकलन करना जिस से यह पता लगाया जा सके कि कोई अन्य कोशिका तो प्रभावित नहीं हुई हैं |
  • पूरक टैस्टिंग, जिस में कंजंक्टाइवा से प्रभावित कोशिका का एक हिस्सा लिया जाता है, यह लंबे समय तक रहने वाले कंजक्टिवाइटिस या जब इलाज के बावजूद परिस्थिति नहीं सुधर रही हो, ऐसे केस में यह सबसे महत्त्वपूर्ण जाँच होती है ।

कंजक्टिवाइटिस में सावधानियां तथा बचाव के उपाय

  • मरीज से हाथ न मिलाएं |
  • कंजक्टिवाइटिस के मरीज को अंधेरे कमरे में आराम करना चाहिए, टीवी न देखें और न पढे |
  • उस की छुई हुई चीजों को न छुएं. दरवाजे, कुंडी, सिटकनी, नल, बालटी, मग जैसी वस्तुएं, जो उस ने छई होंगी उन को यदि छूना पड़ रहा है तो उस के फौरन बाद हाथ धो लें, भले ही यह बारबार करना पड़े |
  • मरीज की इस्तेमाल की हुई चीजें जैसे किताबें, अखबार, पत्रिकाएं, पेन, रूमाल, तौलिया, साबुन, कंघा इत्यादि इस्तेमाल न करें।
  • मरीज अपनी आंखों को बार-बार न छुएं ।
  • आंखों पर काला चश्मा पहनें ताकि उड़ती हुई धूल आदि आंख में न जाएं |
  • आंख और उस के आसपास चेहरे पर मक्खी न बैठने दें. मक्खियां रोग के कीटाणुओं को एक से दूसरे व्यक्ति तक फैलाती हैं |
  • अच्छी तरह और बार-बार अपने हाथ धोएं.
  • रोजाना अपना तौलिया और कपड़े बदलें, और उन्हें किसी भी अन्य के साथ साझा नहीं करें.
  • आंखों के कौस्मेटिक्स का प्रयोग बंद कर दें विशेषतौर पर मस्कारा का |
  • किसी अन्य व्यक्ति के आई कौस्मेटिक्स या निजी आई केयर उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करें | कौंटैक्ट लैंस की सही देखभाल के लिए आंखों के डाक्टर की सलाह अनुसार ही चले |
  • अगर आपकी आंख में कोई कैमिकल गिर जाता है। तो कई मिनटों तक अपनी आंखों को पानी से धोते रहें और फिर डाक्टर के पास जाकर इसका इलाज जरुर करवाएं |

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