जानिए क्यों है जरुरी शिशु के लिए स्तनपान तथा ब्रेस्ट फीडिंग के फायदे

प्रोफेशनल, पारिवारिक या आर्थिक कारणों से शादी के बाद भी महिलाओं को नौकरी करनी पड़ती है। माँ होने के बाद एक तरफ बच्चे का पालन-पोषण और दूसरी तरफ नौकरी की समस्या से उन्हें परेशान होना पड़ता है। बच्चा होने के दो महीने के अंदर ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए कई बार बच्चे को रिश्तेदारों, आया या नौकरानी के हाथों सौंपने के अलावा दूसरा चारा नहीं रहता। इसी कारण से गाय का दूध या डिब्बे का दूध पिलाना पड़ता है। दूसरी तरफ बहुत-सी स्त्रियों का सोचना है कि बच्चे को स्तनपान यानि ब्रेस्ट फीडिंग करवाना कोई जरुरी नहीं है बल्कि उससे फिगर भी खराब होता है। डिब्बा बंद या गाय के दूध के युग में माँ के दूध की कोई खास आवश्यकता नहीं है। बहुत-सी स्त्रियाँ खुलेआम कहती हैं कि उनका बच्चा तो बोतल में ही ठीक से पीता है। लेकिन ऐसी स्त्रियों को यह समझ लेना चाहिए की भले ही कितनी भी तकनीकी प्रगति क्यों न हो जाए, कुछ काम ऐसे हैं, जो प्रकृति से बेहतर कोई कर ही नहीं सकता है। शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार बनाने का काम भी उन्हीं में से एक है | इतनी विकसित  मेडिकल तकनीक होने के बावजूद भी माँ के दूध जितना पोष्टिक विकल्प आज तक नहीं खोजा जा सका है | आज के समय में, बालरोग विशेषज्ञ, प्रसूति विज्ञानी, दाइयां और यहां तक कि फार्मूला दूध निर्माताओं का भी यही मानना है कि मां का दूध ही शिशु के लिए सबसे बेहतर है।

बच्चे को जन्म देते ही माँ के स्तनों में गाढ़े पीले रंग का द्रव उतरने लगता है। पीले रंग के इस शुरुआती द्रव को ‘कोलोस्ट्रम’ कहा जाता है। बच्चे को अगर जन्म के इस तुरंत बाद यह कोलोस्ट्रम पिलाया जाए तो उसका वजन ज्यादा नहीं घटता, उन बच्चों की अपेक्षा में जिन्हें ऊपरी दूध पिलाया जाता है। शिशु के लिए अमृत है माँ दूध : नवजात शिशु में जन्म के 3-4 दिन बाद पीलिया के लक्षण दिखना आम बात है, परंतु कोलोस्ट्रम का सेवन कर रहे बच्चों में इसके लक्षण बहुत कम देखने को मिलते हैं। कोलोस्ट्रम में विटामिन्स, मिनरल्स और प्रोटीन का भंडार होता है। इसमें मौजूद एंटीबॉडीज बच्चे को संक्रमण से बचाकर उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करते हैं। कोलोस्ट्रम के आसानी से पचने से नवजात शिशु जल्दी ही मल त्याग करता है, जो उसके स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी है। अगर बच्चे को स्तनपान न कराया जाए तो बच्चा इतनी आसानी से पहली बार मल त्याग नहीं कर पाता और उसके पेट में कई अशुद्धियाँ रह जाती है जो बच्चे की सेहत के लिए बिलकुल ठीक नही है | प्रसव के तीसरे दिन माँ के स्तनों में सफेद दूध उतर आता है। शुरुआती दूध भी गाढ़ा होता है, पर बाद में सामान्य हो जाता है। शुरुआती दूध, जिसे ‘फोरमिल्क’ कहा जाता है, यह अधिक प्रोटीन व कम वसा वाला होता है। तो आइये विस्तार से जानते हैं की स्तनपान का शिशु और माता दोनों के लिए क्या स्वास्थ्य वर्धक फायदे होते हैं |

शिशु के लिए स्तनपान के फायदे

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स्तनपान क्यों है महत्त्वपूर्ण
  • इंसानों के नवजातों की शारीरिक जरुरत के अनुसार ही प्रकृति मां के शरीर में इस दूध का निर्माण करती है। निर्माण की यह तकनीक लाखो वर्षो के क्रम-विकास (ह्यूमन इवोलुशन) के दौरान कुदरती तौर पर इंसानों तथा जानवरों में विकसित हुई है |
  • माँ के दूध में कम-से-कम 100 तत्त्व ऐसे पाए जाते हैं, जो गाय के दूध में भी नहीं होते और न ही किसी प्रयोगशाला में तैयार किए जा सकते हैं। स्तनों से प्राप्त होने वाले दूध में शिशु की बदलती मांगों के अनुसार बदलाव आते-जाते रहते हैं जो अन्य प्रकार के दूध में नहीं हो सकते है। दिन, रात, सप्ताह, महीने; इस दूध में बदलाव होते रहते हैं। एक नवजात दूध के पोषक तत्वों को जिस अनुपात में पचा सकता है, यह बदलाव उसी के अनुसार होता है। मिसाल के लिए इसमें गाय के दूध में शामिल सोडियम के मुकाबले माँ के दूध में सोडियम की कम मात्रा पाई जाती है, ताकि नवजात उसे आसानी से पचा सके।
  • शिशु को माँ का दूध कब तक पीना चाहिए – कम-से-कम पहले 6 महीने तक केवल स्तनपान ही कराना चाहिए 12 महीनोंतक करवा सके तो और भी अच्छा है। प्रारंभ में बच्चे को भूख लगने व रोने पर ही दूध देना चाहिए। यदि बच्चे को आधी रात में भी भूख लगी हो तो उसे अवश्य स्तनपान कराना चाहिए।
  • माँ का दूध शिशु को आसानी से हजम होता है। शिशु के सेंसिटिव एवं विकसित हो रहे पाचनतंत्र के लिए यह अन्य प्रकार के दूध की तुलना में बेहतर है। इसका प्रोटीन और वसा शिशु आसानी से पचा लेता है। शिशु आम दूध के मुकाबले इस माँ के दूध के पोषक तत्त्व आसानी से हजम कर पाते हैं, क्योंकि जानवर के दूध में मौजूद पोषक तत्त्व तो उसके बछड़े की आवश्यकता के अनुसार पैदा होते हैं इंसानों के लिए नहीं । इस तरह स्तनपान करने वाले शिशु कम दूध उलटते हैं तथा उनके पेट में कम गैस बनती है।
  • यह पूरी तरह से सुरक्षित है। आप पूरी तरह से निश्चिंत हो सकती हैं कि आपके स्तनों से निकला दूध पूरी तरह से सुरक्षित होगा, वह खराब नहीं होगा। बशर्ते आप किसी संक्रामक बीमारी से पीड़ित न हों (कुछ खास मामलों में रोगी मां को स्तनपान न कराने की सलाह दी जाती है जैसे टी.बी की बीमारी में ) माँ को यदि कोई गैर संक्रामक बीमारी बीमारी है तो ऐसी स्थिति में बच्चे को स्तनपान कराते रहना चाहिए। मासिक धर्म के दौरान या बुखार, पेचिश आदि बीमारियों में भी स्तनपान कराना चाहिए। केवल डॉक्टर के मना करने पर ही स्तनपान रोकना चाहिए।
  • एलर्जी पर रोकः शिशु को कभी भी मां के दूध से एलर्जी नहीं होती। यह हो सकता है कि मां के खानपान के कारण दूध के स्वाद या गंध में हल्का बदलाव आ जाए, पर यह पूरी तरह से सुरक्षित होता है। इससे कभी कोई एलर्जी नहीं होती। वैसे कई शिशु गाय के दूध से बने फार्मूला दूध के कारण एलर्जी का शिकार हो सकते हैं।
  • कई अध्ययनों से पता चला है कि फार्मूला दूध की तुलना में स्तनपान करने वाले शिशु दमा या एग्जिमा जैसे रोगों से कम पीड़ित होते हैं (ऐसी एलर्जी की दशा में सोया या हाइड्रोलाइसेट फार्मूला दिया जा सकता है, किन्तु वह भी मां के दूध से मिलने वाले पोषक तत्वों का मुकाबला नहीं कर सकता।
  • पेट के लिए हल्काः स्तनपान करने से शिशुओं को कभी कब्ज नहीं होता और न ही उन्हें पतले दस्त होते हैं। मां का दूध पाचन-तंत्र की क्रियाविधि पर गलत असर नहीं डालता। यह हानिकारक माइक्रोआर्गेनिज्म को नष्ट करता है व लाभदायक तत्त्वों की वृद्धि करता है। इससे नैप्पी रेश की संभावना घटती है। स्तनपान करने वाले शिशुओं को फार्मूला दूध पीने वाले शिशुओं की तुलना में नैप्पी रैश भी कम होते हैं। हालांकि जब शिशु ठोस पदार्थ खाने लगता है तो उसके मल से भी दूसरे शिशुओं की तरह बुरी गंध आने लगती है। हालांकि सोया दूध भी पूरी तरह से पोषक पदार्थों से भरपूर नहीं होता, पर इसे नवजातों के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए। गाय का दूध मां के दूध के बाद सबसे बेहतर विकल्प है |
  • यह संक्रमण से बचाव करता है। स्तनपान करने वाले शिशुओं को एंटीबायोटिक की भरपूर मात्रा मिलती है, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। उन्हें सर्दी, खांसी, जुकाम, कान में संक्रमण व सांस संबंधी समस्याएं भी फॉर्मूला दूध पीने वाले बच्चों के मुकाबले कम होती हैं। वे अस्वस्थ होने पर जल्दी स्वस्थ होते हैं तथा रोगों की जटिलता भी अधिक नहीं होती। उन्हें Sudden infant death syndrome (SIDS) से भी सुरक्षा मिल जाती है।
  • यह फैट को घटाता है। मां का दूध पीने वाले शिशुओं में फार्मूला दूध पीने वालों के मुकाबले वसा की मात्रा कम होती है। वे उनकी तरह गदबदे शरीर वाले नहीं होते। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि स्तनपान करने वाला बच्चा मां के दूध से पेट भरने के बाद संतुष्ट हो जाता है। वह फालतू दूध नहीं पीता। बोतल से दूध पीने वाला बच्चा बोतल में दूध खत्म होने तक पीता ही जाता है।
  • स्तनों का दूध कैलोरी नियंत्रित होता है। स्तनपान के दौरान स्तनों में आखिर में उतरने वाला दूध, शुरुवाती दूध के मुकाबले अधिक कैलोरी युक्त होता है, इसलिए शिशु को संकेत मिल जाता है कि अब उसे और दूध नहीं पीना चाहिए। इन बच्चों में आजीवन मोटापे की समस्या होने का खतरा कम होता है। अध्ययनों से इस बात का पता चला है की मां का स्तनपान कर चुके शिशुओं में जवान होने पर कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा भी कम पाई गई।
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ब्रेस्ट फीडिंग
  • यह दिमाग को तेज बनाता है। कहा जाता है कि स्तनपान करने वाले शिशुओं की बौद्धिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है, क्योंकि मां के दूध में डी.एच.ए. पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त मां व शिशु के निकट संपर्क से भी एक भावनात्मक जुड़ाव बनता है, जो शिशु के विकास में सहायक होता है।
  • शिशुओं के मुंह की मजबूतीः मां के स्तनों के निप्पल व शिशु के मुंह का आपस में पूरी तरह से मेल होता है। स्तनपान करने से शिशु के मुंह का पूरा विकास होता है। उसे दांत निकलने में सहायता मिलती है। कृत्रिम निप्पल से यह कमी पूरी नहीं की जा सकती है । स्तनपान करने वाले बच्चों में बोतल का दूध पीने वाले शिशुओं के मुकाबले दंत-रोग कम पाए जाते हैं। माता-पिता को भी इस प्रक्रिया से काफी सुविधा मिलती है।
  • सुविधाः मां के स्तन का दूध पहले से तैयार होता है। इसे शिशु को कहीं भी, कभी भी पिला सकते हैं। हमेशा इसका एक तापमान बना रहता है। बाजार के फार्मूला दूध की तरह गर्म करने का, बोतल में डालने का और बोतल को साफ करने का झंझट ही नहीं रहता। आप घर में हों या बाहर, शिशु के लिए पोषक आहार आपके साथ है। यदि मां व शिशु को किसी कारण से कुछ समय के लिए अलग भी होना पड़े तो दूध को अलग से निकालकर फ्रिज में स्टोर कर सकते हैं।
  • प्रसव के बाद स्वस्थ होने में सहायकः स्तनपान कराकर आप केवल शिशु को ही लाभ नहीं पहुंचा रहीं, बल्कि उससे आपको भी फायदा होगा। स्तनपान कराने से गर्भाशय को अपने पहले वाले आकार में जल्दी लौटने में सहायता मिलती है, रक्तस्राव में कमी आएगी। प्रतिदिन 500 कैलोरी खर्च होने से वजन भी जल्दी घटेगा। जो माताएँ लंबे समय तक स्तनपान करवाती हैं, उन्हें अपना बढ़ा वजन कम करने में और अपना फिगर वापस पाने में जल्दी सफलता मिलती है।
  • स्तनपान शुरू के महीनों में परिवार नियोजन में भी मदद करता है। स्तनपान कराते हुए गर्भधारण की संभावना बहुत ही कम रहती है। प्रायः पाया गया है कि जो माताएं अपने बच्चों को स्तनपान कराती हैं, उनका मासिक चक्र भी देर से आरंभ होता है। इसका मतलब है कि वे दोबारा गर्भवती होने की संभावना से बची रहती हैं। वैसे इस बारे में आप पूरी तरह से निश्चिंत नहीं रह सकतीं। स्तनपान कराने से मिल रही यह सुरक्षा कभी भी अपने-आप समाप्त हो सकती है।
  • कैंसर के खतरे में कमीः शिशु को स्तनपान कराने से आपके लिए कैंसर का खतरा भी घट सकता है। यह पाया गया है कि स्तनपान कराने वाली माताओं में गर्भाशय, ओवरी व स्तन कैंसर होने की संभावना घट जाती है।
  • स्तनपान करवाना आपके लिए इसलिए भी अच्छा हैक्योंकि यह टाइप 2 मधुमेह विकसित होने के खतरे को कम करता है |
  • हड्डियों का निर्माणः पाया गया है कि स्तनपान न कराने वाली माताओं की तुलना में स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए, आगे चलकर ऑस्टियोपोटोसिस होने का खतरा कम हो जाता है।
  • पूरा आराम मिलना : स्तनपान कराते समय आपके शरीर को पूरी तरह से आराम मिल जाता है, जिसकी प्रसव के बाद अधिक आवश्यकता होती है। स्तनपान कराने के लिए सब काम छोड़कर लेटना या बैठना ही पड़ता है।
  • यह भी पाया गया कि स्तनपान कराने वाली माताओं को प्रसव के बाद होने वाला अवसाद भी नहीं सताता, जिसे ‘पोस्टनैटल डिप्रेशन’ कहते हैं।
  • बोतल से दूध पीने के मुकाबले स्तनपान करने से बच्चे के चेहरे की मांसपेशियाँ अधिक कसी हुई और आकर्षक बनती हैं।
  • नवजात शिशु को बाहर से दूध या पानी नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चे को बीमारी होने का डर होता है।
  • शिशु जन्म के फ़ौरन बाद बच्चे को स्तनपान कराना शुरू कर देने से बच्चेदानी सख्त हो जाती है और रक्तस्राव को बंद होने में सहायता मिलती है। इससे प्रसव के बाद महिला का स्वास्थ्य सामान्य होने में भी सहायता मिलती है।

तो देखा आपने स्तनपान कैसे माँ और बच्चे दोनों के ही लिए कितना महत्त्वपूर्ण है |

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