अपेंडिक्स के लक्षण, कारण, बचाव तथा अपेंडिक्स में क्या खाएं

छोटी आंत (Appendix) अर्थात एक मुंह वाली आंत-10 से 15 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है। यह बड़ी आंत के साथ मिली होती है। इसमें सूजन हो जाती है। जब अपेंडिक्स में पुराना संक्रमण हो तो यह रोग और भी गंभीर रूप धारण कर लेता है। ऐसी स्थिति में थोड़े समय में ही आंत में छेद हो सकता है और इसका विषैला तरल पेट की भीतरी झिल्ली (पेरीटोनियम) में पहुंचकर वहां सूजन पैदा कर सकता है। प्रायः युवावस्था और मध्य आयु में यह रोग अधिकता से होता है।

छोटी आंत (SMALL INTESTINE) और बड़ी आंत (COLON) के जोड़ (CAECUM) के निचले भाग में हम लोगों की आंत की पूंछ (अपेंडिक्स ) इसका एक मुंह, एक पतली छोटी थैली के समान है। यह लम्बाई में लगभग 3 या साढ़े तीन इंच होती है, परंतु इसकी लम्बाई कभी-कभी 9 इंच तक हो जाती है। यह केवल एक-चौथाई इंच मोटी होती है। इसी आंत की पूंछ में जो सूजन होती है उसे ही अपेंडिसाइटिस कहते हैं। बहुत-सी अवस्थाओं में अपेंडिक्स में ही सूजन होती है, जो दवाई के उपचार द्वारा आसानी से ठीक हो जाती है, किंतु कभी-कभी आंत के तमाम तंतुओं में ही सूजन फैल जाती है। ऐसे हालात में सर्जरी ही एकमात्र उपचार है, वरना यह फट सकती है और जानलेवा साबित हो सकती है। क्या होती है अपेंडिक्स ?- पहले डॉक्टर्स का मानना था कि अपेंडिक्स शरीर में फालतू अंग होता है और इसका कोई उपयोग नहीं है। लेकिन बाद में हुई रिसर्च में पाया गया कि एक स्वस्थ शरीर के लिए अपेंडिक्स भी जरूरी अंग होता है। इसमें भोजन पचाने के लिए गुड बैक्टीरिया जमा होते हैं जो पाचन में मदद करते हैं। जब शरीर में किसी लंबी बीमारी के कारण बैक्टीरिया की कमी हो जाती है तो अपेंडिक्स का काम पाचन तन्त्र को ठीक रखना होता है।

अपेंडिक्स के लक्षण

अपेंडिक्स के लक्षण, कारण, बचाव तथा अपेंडिक्स में क्या खाएं Appendix bimari karan lakshan diet
अपेंडिक्स रोग
  • अपेंडिक्स के प्रमुख लक्षणों में शामिल है – बुखार होना, जी मिचलना, उलटी, पीठ में दर्द, अत्यधिक मात्रा में गैस बनना, भूख कम लगना, पेशाब करते समय दर्द, गंभीर संक्रमण जैसे अपेंडिक्स के लक्षण हो सकते हैं। इसमें पेट में अधिक मात्रा में गैस तो बनती ही है, लेकिन उसे बाहर निकालने में समस्या आती है। इसके अलावा कब्ज़ और डायरिया के लक्षण भी दिखाई देते हैं।
  • अपेंडिक्स की बीमारी में पहले पेट में नाभि के नीचे और आस-पास बहुत तेज दर्द होता है, जिसके कारण रोगी तड़पने लगता है। यह दर्द अपना स्थान बदलता रहता है और अंत में नाभि के दाईं ओर कुछ नीचे दक्षिण में दर्द आकर ठहर जाता है।
  • इस रोग में पेट के इंफैक्शन वजह से जीभ पर सफेद परत सी जम जाती है |
  • इस रोग में रोगी को तेज़ दर्द के साथ मितली और उलटी भी आती है तथा कम्पन होकर 101 से 102 फॉरेनहाइट तक बुखार भी हो जाता है।
  • रोगी की नाड़ी की गति 120 बार प्रति मिनट तक पहुंच जाती है। रोगी अपनी दाईं टांग खींचकर रखता है क्योंकि ऐसा करने से उसे दर्द से कुछ राहत महसूस होती है। पेट को दबाने पर उस स्थान पर दर्द अधिक होता है और सूजन के कारण उभार-सा दिखाई देने लगता है।
  • अपेंडिक्स के मरीज को उठने-बैठने पर या दाईं टांग सिकोड़ने और फैलाने में बहुत तकलीफ का अनुभव होता है। इसी कारण प्रायः रोगी हिलता-डुलता तक नहीं है।
  • दाएं तरफ का पेट और पेट की पेशी अकड़कर सख्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त रोगी को कब्ज की शिकायत हो सकती है और कई रोगियों को दस्त भी होते हैं।
  • अपेंडिक्स से पीड़ित रोगी के रक्त के श्वेत कण (B.C.) बढ़ जाते हैं।
  • अपेंडिक्स भोजन करने अथवा न करने से संबंध नहीं रखता और हर समय दर्द होता रहता है। यह दर्द व्यायाम और परिश्रम करने पर बढ़ जाता है।
  • एक्स-रे कराने अथवा बेरियम के एनिमा से इस रोग से पीड़ित 80% रोगियों में इस रोग की जाँच द्वारा पता लगाया जा सकता है।

गर्भावस्था में अपेंडिसाइटिस के लक्षण

  • गर्भावस्था में इस बीमारी की पहचान देर से हो पाती है, क्योंकि अपेंडिक्स इस समय गर्भाशय से ढंका रहता है। अपेंडिक्स का दर्द पेट के दाई भाग में नीचे की ओर या पेट के बीच में होता है, साथ में बुखार और उल्टियाँ हो सकती हैं। यदि जल्दी ही इसका ऑपरेशन नहीं किया जाए तो अपेंडिक्स के फटने का डर गर्भावस्था में अधिक रहता है। अपेंडिसाइटिस की पहचान होते ही उसका ऑपरेशन जल्दी ही करवा लेना सही कदम होता है। पहचान के लिए कभी-कभी एम.आर.आई. की जरूरत भी पड़ सकती है। गर्भ के पहले छह महीने में अपेंडिक्स का ऑपरेशन लैप्रोस्कॉपी द्वारा किया जा सकता है; पर इसके बाद पेट खोलकर ऑपरेशन करने की जरूरत होती है। साथ में एंटीबायोटिक्स देना जरूरी है, ताकि संक्रमण फैल न सके। अपेंडिसाइटिस के कारण गर्भपात एवं समय पहले बच्चा होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे हालात में नवजात का वजन भी कम होता है।

अपेंडिक्स के कारण

  • जो लोग मांसाहारी नहीं हैं, उनमें यह रोग बहुत ही कम देखा जाता है।
  • इस रोग का प्रमुख कारण कब्ज होता है।
  • अपेंडिक्स आंत में रुकावट आने से |
  • हालाँकि, आधुनिक चिकित्सा पद्धति के मतानुसार जिन जीवाणुओं को अपेंडिक्स का कारण कहा जाता है, वे सभी स्वस्थ व्यक्तियों की आंतों के भीतर दिखाई पड़ते हैं। इसके साथ ही हम यह भी बता दें कि कब्जियत होने से ही यह रोग हो जाता है, ऐसी भी बात नहीं है, बल्कि जिनका शरीर पहले से विजातीय द्रव्यों से भरा होता है, केवल उन्हीं को यह रोग होता है।

अपेंडिक्स की बीमारी से बचाव

  • अपेंडिक्स जैसी अंदरूनी बिमारियों से बचाव का सबसे प्रभावकारी उपाय नियमित स्वस्थ्य जाँच और स्वस्थ जीवन शैली को अपनाना होता है इस विषय पर हमने कई आर्टिकल लिखे है | यह पढ़ें – जानिए क्यों जरुरी है फुल बॉडी चेकअप तथा Full Body Checkup List
  • अपेंडिक्स की बीमारी से बचने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा फाइबर्स वाले भोजन, ग्रीन वेजिटेबल्स, सलाद वगैरह खाएं। पानी भरपूर पिएं। जंक फूड, स्मोकिंग ड्रिंकिंग का सेवन ना करें।

अपेंडिक्स के रोगी को राहत देने वाले कुछ कदम

  • गर्म पानी की बोतल से दर्द के स्थान पर सिंकाई करें।
  • रोगी को तकिए के सहारे बैठा देने से रोगी को दर्द थोडा कम होता है।
  • रिलैक्सिल ऑयंटमेंट (RELAXYL) निर्माता—फ्रेंको इंडियन : इस मरहम की पीड़ित स्थान पर दिन में 2-3 बार हल्के हाथ से मालिश करें। सावधानी—इस मरहम के लगाने के बाद पट्टी न करें।
  • मेडीक्रीम (MEDI CREAM) निर्माता रैलीज : इस क्रीम को भी लगाने से मरीज को कुछ राहत मिलती है ।
  • अपेंडिक्स के मरीज यदि ऊपरी इलाज यानि दवाइयों द्वारा उपचार करवा चुके है और फिर भी आराम न मिले तो किसी अच्छे से हॉस्पिटल में ऑपरेशन कराना ही एकमात्र सफल चिकित्सा है। ऑपरेशन न कराने पर और सूजन दूर हो जाने पर भी यह रोग दोबारा हो सकता है या यह फोड़ा बनकर फट जाता है और पूरे पेट में पीप (Pus) फैलकर संक्रमण (इंफेक्शन) फैला सकता है तथा रोग और भी खतरनाक स्टेज में पहुँच सकता है।
  • लेप्रोस्कोपी (दूरबीन द्वारा) भी इसका उपचार उपलब्ध है इस तरीके मे 3-5 मिलीमीटर तक के छेद किये जाते है और शरीर के भीतर एक दूरबीन के जरिये देखा जाता है यह लगभग दर्द रहित इलाज की प्रक्रिया है |

अपेंडिक्स के इलाज हेतु कुछ घरेलू आयुर्वेदिक उपाय

  • सोए के हरे पत्तों का रस आग पर पकाएं। रस फट जाने पर उसको छानकर 100 मि. ली. में शर्बत दीनार 50 मि. ली. मिलाकर दिन में 2 बार (प्रातः व सायं) पिलाएं।
  • अपेंडिक्स के दर्द और सूजन से राहत के लिए रोजाना 2 बार अदरक की चाय पियें |
  • काला नमक आग पर गर्म करके अर्क गुलाब में बुझाएं और 60 मि. ग्रा. हींग के साथ (मिलाकर) रोगी को पिलाएं।
  • बकरी के दूध में उड़द का आटा 250 ग्राम की मात्रा में लेकर और गंधकर उसमें सोंठ, हींग, नमक और सोए के बीज (प्रत्येक 5-5 ग्राम मिलाकर) तवे पर इसकी एक मोटी रोटी एक तरफ से पकाकर और दूसरी तरफ से कच्ची ही रखकर उस पर एरण्ड का तेल (केस्टर ऑयल) चुपड़कर गर्म-गर्म दर्द के स्थान पर बांध दें |

अपेंडिक्स में क्या खाएं

  • अपेंडिक्स के मरीज को दर्द के समय उपवास कराना ठीक रहता है। रोगी को प्यास लगने पर थोड़ा-थोड़ा पानी पिलाएं। दर्द दूर हो जाने पर कुछ दिन तक संतरे, माल्टे का रस, दूध, सोडा, ग्लूकोज और तरल पेय पदार्थ ही दें और ठोस भोजन रोगी को बिलकुल न दें।
  • बीमारी दूर हो जाने के बाद भी रोगी के खाने-पीने के संबंध में सावधानी रखी जानी आवश्यक है। रोगी को चाहिए कि मांस आदि कब्ज पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन हमेशा के लिए छोड़ दें । इस आर्टिकल को पढ़ें इसमें कब्ज से बचाव के लिए खानपान की जानकारी दी गई है –बवासीर में क्या खाएं क्या ना खाएं 35 टिप्स-Diet In Piles
  • मरीज को हल्का खाना खाना चाहिए |
  • अधिक मिर्च मसाले या घी तेल में बने चटपटे पकवानों से परहेज रखना चाहिए और कठिनाई व देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों तथा जल्दबाजी से खाने की आदत को भी सदैव के लिए त्याग देना चाहिए, क्योंकि खान-पान की गड़बड़ी से यह बीमारी फिर से उभर सकती है। रोगी को प्रतिदिन मौसम के उपलब्ध व रुचिकर ताजा फल, सलाद और उबली हुई सब्जी खानी चाहिए।

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