असुरक्षित तथा असंयमित यौन सम्पर्क से एसटीडी रोग का फैलाव होता है। एसटीडी रोग अंग्रेजी नाम है जिसकी फुल फॉर्म है (Sexually Transmitted Diseases S.T.D) यह एक संक्रामक बीमारी है जो किसी संक्रमित पुरुष या स्त्री के यौन सम्पर्क करते समय होता है। यह रोग कई प्रकार के संक्रामक परजीवों जैसे बैक्टीरिया, वाइस फंफूदी (फंगस) के कारण होता है। परीक्षण के आधार पर अब तक लगभग 20 प्रकार के यौन एसटीडी रोग पाए जाते हैं। इन रोगों का कुप्रभाव पहले प्रजन अंगों पर पड़ता है और सही समय पर इलाज न किये जाने की अवस्था में यह शरीर के किसी भी अंग व दिमाग में संक्रमण फैलाकर रोग खतरनाक रूप ले सकता हैं। इस श्रेणी के एच. आई. वी. से उत्पन्न होने वाला एड्स नामक रोग तो और भी खतरनाक होता है क्योंकि उसका कोई इलाज भी नहीं है।
आजकल के जवान लड़के-लड़कियों में एसटीडी रोग को लेकर कई गलत धारणाएं हैं। तेजी से बदलते आधुनिक जीवन शैली का असर यह है कि कई लड़के-लड़कियां एक से अधिक लोगों के साथ यौन रिश्ता रखते हैं। लेकिन आपके इस कदम से आप कई जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में आ सकते हैं। यह भी याद रखें की महिलाओं को पुरुषों की तुलना में यौन संचारित रोग यानि एसटीडी रोग होने का अधिक खतरा होता है। यौन संचारित रोग होने की संभावना 15-24 वर्ष की आयु वाले वयस्कों को ज्यादा होती है। एसटीडी महिलाओं में इनफर्टिलिटी का एक बड़ा कारण है। इतना ही नहीं डॉक्टर प्रेगनेंट महिलाओं में सिफिलिस के लिए भी टेस्ट करते हैं क्योंकि एसटीडी रोग के दौरान होने वाले बच्चे को खतरा हो सकता है।
प्रमुख एसटीडी रोग के नाम : एसटीडी रोग की सूची

- सिफलिस
- गोनोरिया
- शैन्क्रोयड
- हरपीज
- क्लेमाइडिया
- ट्रायकोमोनिलियेसिस
- लिम्फोग्रैनुलोमा वेनेरम
- खुजली (स्केवीज)
- यौन रोग (वैजीनाइटिस)
- पेडिकुलोसिस
- यौन अंगों पर घाव
- हेपेटाइटिस ‘बी’
एड्स और हेपेटाइटिस ‘बी’ इन दोनों का कोई इलाज नहीं है।
एसटीडी रोग होने के कारण
- जब एक स्वस्थ स्त्री किसी एसटीडी रोग से संक्रमित पुरुष से अथवा कोई स्वस्थ पुरुष किसी संक्रमित स्त्री से असुरक्षित यौन-सम्बन्ध बनाता है तो इस बीमारी के कीटाणु संक्रमित पुरुष/स्त्री से स्वस्थ स्त्री/पुरुष के यौन अंगों के द्वारा उसके शरीर में संक्रमण को पहुंचा देते हैं। इन कीटाणुओं का जब शरीर में संक्रमण हो जाता है तो यह कीटाणु धीरे-धीरे संक्रमित व्यक्ति के रक्त में बढ़ते जाते हैं और जब वह पूरे शरीर में फैल जाते है तो रोग का विकराल रूप पैदा हो जाता है। एसटीडी रोग कई तरह के होते है जैसा की हम पहले बता चुके है।
- हालाँकि सभी एसटीडी रोग श्लेष्मात्मक झिल्लियों के द्वारा ही शरीर में घुसते हैं, इसके अलावा शरीर के किसी भी अंग पर खुले घावों, कटे, फोड़ों के स्थानों पर वीर्य अथवा स्त्री योनि के स्राव सम्पर्क में आ जाते हैं तो उनमें भी संक्रमण हो जाता है।
- गर्भस्थ शिशु संक्रमित माता से यह संक्रमण प्राप्त करता है।
- एच.आई.वी. एड्स रोग का फैलाव संक्रमित व्यक्ति (स्त्री/पुरुष) के साथ यौन सम्पर्क करने से या संक्रमित सुई सिरिंज के प्रयोग से, नशीली दवाओं के एक ही सुई से कई लोगों द्वारा नस में प्रयोग से एवं संक्रमित माता से उसके गर्भस्थ शिशु को हो सकता है।
स्त्रियों में एसटीडी रोग के लक्षण
- एसटीडी रोग के मुख्य लक्षणों में शामिल है – योनि से असामान्य स्राव (पीले, हरे, दही के समान फेनयुक्त मवाद जैसा बदबूदार या रक्त से सना हुआ तरल निकलना ) यानि डिस्चार्ज का कलर चेंज होना |
- पेडू व निचले अंगों में पीड़ा।
- योनिमार्ग से अनियमित रक्त स्राव ।
- संभोग क्रिया में तेज दर्द उठाना |
- योनि में खुजली, जलन, दाने आदि |
- यूरिन के समय तेज दर्द होना
- लोअर पेल्विक पेन होना |
पुरुष में एसटीडी रोग के लक्षण
- लिंग से बदबूदार तरल निकलना |
- यौन अंगों पर दाने, चकत्ते, घाव ।
- यौन संचारित रोगों के लक्षण कई दिनों या हफ्तों के बाद दिखाई दे सकते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एसटीडी रोग से संक्रमित व्यक्ति में इसके लक्षण दिखाई न दें। ऐसा होने पर भी रोगी अन्य किसी को संक्रमित कर सकता है।
स्त्री/पुरुष दोनों में पाए जाने वाले एसटीडी रोग के लक्षण
- पेशाब करते समय करते समय पीड़ा व जलन, पेशाब की मात्रा बढ़ जाना।
- जननांगों पर एक या अनेक दाने चकत्ते या खुले रिसने वाले घाव जिनमें दर्द नहीं भी होता है या हो भी सकता है।
- जांघों एवं धड़ के जुडने वाले स्थान की ग्रंथियों में सूजन।
- यौनांगों में या उसके आस-पास खुजली या झनझनाहट।
- शरीर पर लाल चकत्ते ।
- मुंह में या ओठों के कोनों में घाव ।
- त्वचा के नीचे गांठे।
- फ्लू से पीड़ित होने के लक्षण–सिरदर्द, थकावट, उबकाई, मतली आदि
- अधिक जानकारी के लिए यह पढ़ें – पुरुषो तथा महिलाओं में यौन रोग (एसटीडी) के लक्षण
एसटीडी रोग का संक्रमण होने पर क्या करना चाहिए ?
- यदि आप ऊपर बताए गए लक्षण अपने शरीर में पाते हैं, तो चाहे आप स्त्री हों या पुरुष, शर्म न करें। रोग को बिलकुल ना छिपाएं क्योंकि यह आपके लिए तो घातक है ही साथ-ही-साथ आपके परिवार के अन्य सदस्य भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।
- इसलिए जल्द से जल्द किसी अस्पताल में जाएं व डॉक्टर से सम्पर्क करें ।
- डॉक्टर को आप बिना छिपाए पूरी-पूरी बात व लक्षण बताएं।
- चिकित्सक आपसे जो प्रश्न करे उनका सही-सही नि:संकोच उतर दें क्योंकि पूरी जानकारी से ही आपका सही उपचार हो सकेगा।
- डॉक्टर आपसे कुछ जाँच कराने को कहेंगे जिनमें मुख्यतः रक्त, वीर्य, श्लेष्मा व मूत्र की जांच करानी होगी तथा दवाइयों का नियमित बताए गये तरीके से जितने भी समय के लिए कहा गया है, उनका सेवन करें और यौन जनित रोग से मुक्त हों ।
- एसटीडी रोग से पीड़ित मरीज अपने इलाज के साथ अपने यौन साथी का भी इलाज कराएं नहीं तो एसटीडी रोग फिर से हो सकता है।
एसटीडी रोग से बचाव के टिप्स
- एसटीडी रोग में खास बात यह है कि एड्स तथा हेपेटाइटिस ‘बी’ को छोड़कर बाकि सभी रोगों का पूरी तरह से इलाज हो सकता हैं। इन दो का उपचार न होने के कारण बचाव के लिए बताए गये तरीकों को अपनाएं।
यदि आप अविवाहित हैं तो :-
- सबसे बेहतर यह होगा की आप यौन-सम्पर्क न बनाएं ।
- फिर भी यदि सम्बंध बनाना ही चाहें तो बिना कॉन्डम के कभी भी यौन न बनाएं । लेकिन यहां यह जानना जरूरी है कि कंडोम भी एसटीडी से बचाव की सौ प्रतिशत गारंटी नहीं है | सुरक्षित सेक्स करने के बाद भी आपको यौन-जनित संक्रमण हो सकता है |
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