महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी के इस आर्टिकल में हम आज जानेंगे की गर्भवती स्त्रियों के एनीमिया और थाइराइड कैसे उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, इनका उपचार क्या होता है आपको क्या-क्या सावधानियां रखनी चाहिए | तो आइये सबसे पहले थाइराइड के बारे में जानते है |
महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी : थाइराइड क्या है ?

थाइराइड गर्दन में स्थित एक अन्तः स्त्रावी ग्लैंड होती है। थाइराइड ग्लैंड से निकलने वाले हार्मोन शरीर के चयापचय (Metabolism) को बनाये रखने के लिये जरुरी होते हैं हम जो भी भोजन हम खाते हैं यह ग्रंथि उन्हें ऊर्जा में बदलने का काम करती हैं | गर्भवती महिलाओं में थाइराइड निष्क्रियता बहुत सामान्य बात है। सामान्यतः हाइपोथाइराइडिज्म या थाइराइड की कम सक्रियता हारपरथाइरोडिज्म की तुलना में अधिक पायी जाती है। ऐसी दशा में थाइराइड ग्रंथि कम हार्मोन पैदा करती है।
थाइरोइड लेवल्स इन प्रेगनेंसी –गर्भधारण के पहले और गर्भधारण के पहले तीन महीनो के बीच तक टी.सी.एच की सन्तुलित मात्रा 2.5 mU/ml होती है। बाद की अवधि में 3 mU/ml होनी चाहिये। इस स्तर को बनाए रखने के लिये डॉक्टर महिला के लिये थाइराइड रिप्लेसमेंट उपचार शुरू कर सकते हैं। इन हार्मोन टेबलेट्स को लेने का सबसे अच्छा समय सुबह के समय खाली पेट है। आदर्श स्थिति यह है कि लगभग आधे घण्टे तक महिला कुछ भी न खाये।
अकसर किशोरावस्था व गर्भवती महिलाओं में जो थायराइड की समस्या देखने को मिलती है उसे हाइपोथाइरोडिज्म कहते हैं जैसा की हमने ऊपर बताया है महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी के कई कारणों में से यह भी एक कारण होता है | इसके लक्षणों में प्रमुख हैं गले में सूजन, वजन का बढ़ना, मासिकधर्म की अनियमितता आदि | किशोर युवतियों को शारीरिक विकास के लिए आयोडीन की जरूरत होती है, जिसकी कमी होने से प्युबर्टी गोइटर हो जाता है | इसके अलावा किसी विशेष क्षेत्रवासियों में भी यह कमी देखने को मिलती है | इस का कारण वहां की जमीन में ही आयोडीन की कमी होना है | खून की जांच कराने पर इस की कमी पता चल जाती है, आयोडीन नमक का प्रयोग एवं अपने डाक्टर की सलाह ले कर नियमित दवा का सेवन करना चाहिए, अकसर लड़कियों में यह कमी 20-21 वर्ष के बाद ठीक हो जाती है तो गर्भवती महिलाओं में प्रसव के बाद इस के लक्षण समाप्त हो जाते हैं |
जब किसी गर्भवती महिला को थाइराइड उपचार पर रखा जाता हैं तो डॉक्टर समय-समय पर निगरानी रखने के लिये बार-बार हार्मोन स्तर की जाँच कराते रहते हैं। अक्सर गर्भावस्था अवधि के अनुसार इन दवाओ की खुराक बढ़ायी जाती है। और प्रसव हो जाने पर कम की जाती है। एक बार खुराक बदलने के 6-8 सप्ताह बाद टी.सी.एच स्तर की जाँच करानी चाहिये ताकि इसके प्रभाव को परखा जा सके। गर्भावस्था में थाइराइड पर नियंत्रित करने के लिए सही समय पर इसका इलाज और व्यायाम करना बहुत ही जरूरी है।
शिशु के Neurological विकास के लिये थाइराइड का ठीक रहना बहुत जरुरी है। हाइपोथाइराइडिज्म की बीमारी स्त्री की फर्टिलिटी को प्रभावित करता है और गर्भावस्था पर भी ख़राब प्रभाव डालता है इसीलिए यह महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी का कारण है । इसके कारण गर्भपात और जल्दी प्रसव भी हो सकता है, जन्म के समय शिशु कम वजन का हो सकता है और वह गर्भ के अन्दर मर भी सकता है। थाइराइड की समस्या माँ के ब्लड प्रेशर को असंतुलित करता है। इसलिए थाइराइड का सही स्तर माँ और शिशु दोनों की सुरक्षा और एक सफल गर्भावस्था के लिए आवश्यक है। यह भी याद रखें की शिशु के जन्म के बाद तीसरे से पांचवे दिन के भीतर बच्चे का थाइराइड टेस्ट भी जरूर करवाएं।
महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी : खून की कमी यानि एनीमिया
भारत में स्त्रियों में एनीमिया की समस्या सबसे अधिक होती विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं में और यह भी महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी का कारण बनती है। गर्भावस्था में एनीमिया या खून की कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे कम पोषण वाला भोजन, गर्भपात या बवासीर के कारण खून बहने से रक्त की कमी, संक्रमण, थैलिसीमिया जैसे वंशानुगत कारण भी होते है । खून में आयरन की कमी रक्ताल्पता का सबसे सामान्य प्रकार है और इसके ठीक बाद में आती है फ़ोलिक ऐसिड या विटामिन बी-1 की कमी से होने वाली एनीमिया | खून की कमी होने से गर्भवती महिला को शिशु से ज्यादा तकलीफ होती है जैसे सांस लेने में दिक्कत होती है और वह जल्दी थक जाती है। यदि गर्भावस्था के दौरान एनीमिया हो जाये तो गर्भवती महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी का सामना करना पड़ता है। यदि एनीमिया बहुत अधिक है तो उसे हृदयघात भी हो सकता है।
अक्सर गर्भवती महिलायें अपने खून की रिपोर्ट को लेकर परेशान हो जाती है जिसमें उनका हीमोग्लोबिन स्तर लैब द्वारा दिखाये गये स्तर से बहुत कम होता है। कृपया यह याद रखें उन रिपोर्टो में दिखाया गया रेफरेंस स्तर अन्य महिलाओं यानि जो गर्भवती नहीं है उनके अनुसार दिया जाता है और वह गर्भवती महिलाओं के लिये पूरी तरह से ठीक नहीं होता है । गर्भावस्था के दौरान रक्त पतला हो जाता है जिसमें हीमोग्लोबिन स्तर गिरता है यह एक सामान्य प्रक्रिया है । एक अच्छा सन्तुलित भोजन एनीमिया जैसी समस्या को आसानी से काबू कर लेता है। आयरन से भरपूर भोजन जैसे हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, लाल गोश्त, ख़ासतौर से लीवर और स्प्लीन, गुड़ और खजूर बहुत लाभदायक होते हैं। ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को किसी न किसी रूप में आयरन से भरपूर चीजें खाने को दी जाती हैं। सबसे अच्छा तो यह होगा कि आयरन को कैल्शियम सप्लीमेंट के साथ न लिया जाये। जब दोनों साथ में लिये जाते हैं तो पचने में कठिनाई होती है। नींबू के रस एवं अन्य एसिड वाले पदार्थों से इसका अवशोषण बढ़ता है जबकि फाइटेट और फास्फेट इसको रोकते हैं। इसलिए आयरन का सप्लीमेंट या गोलियां चाय के साथ न लें। यदि महिला को आयरन वाली गोलियाँ बर्दाश्त न होती हों तो उसको कभी-कभी आयरन के इंजेक्शन दिए जा सकते हैं। कभी-कभी खून की कमी इतनी अधिक हो सकती है कि महिला को रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है। | गर्भवती महिलाओं में फोलिक ऐसिड की कमी भी सामान्य रूप से पाई जाती है। फोलिक ऐसिड के स्तर में कमी से शिशु में पैदाइशी विकार आ सकते है। हालाँकि हरी पत्तियों में पर्याप्त रूप से फोलिक ऐसिड पाया जाता है, लेकिन भोजन पकाने की प्रक्रिया से इसमें बहुत अधिक कमी आ जाती है। यह भी पढ़ें – खून की कमी (एनीमिया) : कारण, लक्षण और उपाय
महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी : थैलिसीमिया
यह बीमारी सामान्यतः वंशानुगत होती है और सामान्य रूप से गुजरात के कच्छ के लोगो में, सिन्धियों और लोहाना लोगों में अधिक पाई जाती है। थैलिसीमिया वाले लोगों में विकृत हीमोग्लोबिन होता है जो कि जीन के कारण होता है और उससे हीमोग्लोबिन की बनावट प्रभावित होती है। माइनर थैलिसीमिया में व्यक्ति अधिक प्रभावित नहीं होता है। ये लोग बहुत कम रक्ताल्पता वाले होते हैं। दूसरी ओर यदि दो ‘अलीली’ प्रभावित होते हैं तो यह मेजर थैलिसीमिया का कारण होता है जो कि अपंगता कर देने वाली एनीमिया है। यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक को माइनर थैलिसीमिया होता है तो बच्चे के प्रभावित होने की सम्भावना बहुत कम है किन्तु यदि माता और पिता दोनों को माइनर थैलिसीमिया हो तो शिशु को मेजर थैलसीमिया होने का खतरा होता है। थैलिसीमिया माइनर महिला का हीमोग्लोबिन थोड़ा कम होगा जिससे महिलाओं में हाई रिस्क प्रेगनेंसी का खतरा बढ़ जाता है । यहाँ यह बात याद रखनी चाहिये कि ऐसी महिला को हीमोग्लोबिन स्तर बढ़ाने के लिये हर समय आयरन की चीजे देना लाभ के बजाय हानिप्रद हो सकता है।
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