दमा (अस्थमा) रोग के कारण, लक्षण, बचाव तथा खानपान की जानकारी

आजकल प्रदूषित वातावरण होने से सांस से जुड़े रोगों में बढ़ोतरी हो रही है दमा या अस्थमा रोग भी इन्ही में से एक है। सड़कों पर वाहनों का धुआं और बस्तियों के आसपास कल-कारखानों की विषैली गैस वातावरण को इतना दूषित कर देती हैं कि कुछ दिन वहां के निवासी अस्थमा के शिकार होने लगते हैं। ये विषैली रासायनिक गैसें जब सांस के साथ शरीर में पहुंचती हैं तो फेफड़ों पर हानिकारक प्रभाव डालकर अस्थमा रोग को पैदा करती हैं। दूषित और असंतुलित भोजन भी सांस के रोगों का कारण बनता है। बीड़ी, सिगरेट के सेवन की आदत व धुंआ भी सांस रोग को बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा करते हैं। अधिक समय तक अधिक ठंडे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से कफ पुराना होकर फेफड़ों में जमा हो जाता है तो यह भी दमा होने का कारण बन सकता है।

अस्थमा क्या है ? बहुत पहले से लोग यह कहते आए है की दमा का रोगी कभी सुख की साँस नहीं ले सकता। यह रोग तो दम अर्थात प्राण के साथ ही जाता है। रोगी जीवनभर तड़पता रहता है। ठीक तरह से साँस नहीं ले पाता है, उठ, चल-फिर नहीं सकता, अपने कामकाज नहीं कर सकता। मगर नहीं। अब इस रोग से बचने के इतने उपाय सामने आ चुके हैं तथा उन्नत किस्म की उपचार-विधियाँ आ गई हैं कि इस रोग को कम करना, शांत करना, ठीक करना अब कठिन नहीं रहा है। थोड़ी कोशिश, थोड़ी सावधानी, थोड़ी खान-पान की ठीक जानकारी से इस रोग के ख़राब असर को काफी हद तक रोका जा सकता है इस आर्टिकल में इसी विषय पर विस्तार से जानकारियां दी गई है जिससे सभी अस्थमा रोगियों को निश्चित रूप से बहुत लाभ पहुंचेगा |

दमा (अस्थमा) के लक्षण 

दमा (अस्थमा) रोग के कारण, लक्षण, बचाव तथा खानपान की जानकारी दमा asthma ke lakshan pehchan prakar bachao
दमा (अस्थमा)
  • इस रोग में लक्षणों के रूप में घर्र-घर्र की आवाज के साथ सांस लेने में तकलीफ होती है | अस्थमा के दौरे के समय बैठने में आराम और लेटने में कष्ट का अनुभव, गले में रूकावट सी महसूस होना, कफ का अत्यंत गाढ़ा, चिपचिपा होना तथा इसका आसानी से न निकलना, मानसून के मौसम में, सर्दियों में, ठंडी हवाओं और मौसम परिवर्तन से दमे की बीमारी का और अधिक बढ़ना, हृदय की धड़कन तेज होना, सीने में जकडन, सिर भारी होना, चेहरे पर पसीना आना, हाथ-पैर ठंडे होना, मानसिक घबराहट आदि लक्षण देखने को मिलते हैं।
  • दमे के मरीज को सांस लेने में काफी परेशानी होती है। जब वह साँस लेता है तो साफ़ हवा यानि की आक्सीजन अंदर नहीं जा पाती। ऐसा इसलिए होता है कि उसका गला तथा फेफड़े बुरी तरह सँधे होते हैं जब वह साँस बाहर निकालने लगता है तब भी बड़ी कठिनाई होती है। ऐसे में उसकी आँखें लाल हो जाती हैं। मरीज की साँस उखड़ जाती है।
  • यदि खाँसते, हाँफते हुए बलगम आ जाए तो उसे कुछ राहत मिलती है। रात दो-ढाई घंटे सोने के बाद दमा के रोग में तेजी आती है। साँस उखड़ने लगती है। खाँसी काफ़ी होती है। कफ आसानी से नहीं आता। रोगी उठकर बैठ जाता है। उसका छटपटाना बढ़ जाता है। वह पसीना-पसीना हो उठता है। ये सब अस्थमा अटैक के लक्षण होते है |
  • रोग पुराना होने पर रोगी नीला पड़ जाता है। उसे साँस लेने व छोड़ने में बेहद तकलीफ होती है। कई बार दौरे को शांत करने के लिए इंजेक्शन भी लगानी पड़ सकता है।
  • रोगी की दुर्दशा इसलिए भी होती है कि दमा शुरू हो जाने पर ताज़ी हवा अंदर नहीं जाती। ऐसे में उसके शरीर को आक्सीजन भी नहीं मिल पाती। जब साफ हवा के साथ आक्सीजन शरीर में नहीं जा पाती या बहुत कम जाती है तब अंदर से दूषित हवा और कार्बन डाई-ऑक्साइड भी बाहर नहीं आ पाती। इससे शरीर विषाक्त होता रहता है। रक्त भी अशुद्ध होता जाता है, क्योंकि खून को शुद्ध करने के लिए प्रर्याप्त आक्सीजन नहीं मिलती। इसी से दमे का दौरा शुरू होता है। जब दमा की तकलीफ बढ़ती है तो फेफड़ों के फैलने और सिकुड़ने में भी रुकावट आ जाती है। इसी से रोगी की छटपटाहट बढ़ जाती है। दम फूलने लगता है।

दमा (अस्थमा) होने के कारण

  • हर रोगी के लिए दमा होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। सबके लिए एक जैसे कारण नहीं होते। एलर्जी होना इसका मुख्य कारण है। किसी को किसी एक चीज से एलर्जी हो जाती है तो किसी को दूसरी चीज़ से। किसी को किसी फूल की सुगंध से, किसी को किसी फसल से, किसी को किसी फल, सब्जी, भोजन, खाद्य पदार्थ के सेवन से तो किसी को कोई पेय पीने से। हर एक के लिए अलग-अलग अलर्जन होते हैं। इसे ढूंढ निकालना आसान नहीं हैं। किसी को शुष्क जलवायु खराबी करती है तो किसी को तर जलवायु । कोई एक स्थान पर स्वस्थ रह सकता है तो कोई वहाँ आते ही दमा से पीड़ित हो जाता है। यह तो अपने-अपने स्वभाव व शरीर की प्रकृति पर ही निर्भर करता है। सभी के साथ एक ही जैसा नहीं होता।
  • दमा होने के अन्य कारणों में शामिल है आनुवंशिकता (वंशानुगत), दीवारों के पेंट, धूल मिटटी के कण, चूने के कण, परागकण, जानवरों के रोएं, परफ्यूम, धूल मिट्टी से एलर्जी आदि अस्थमा का कारण बनता है ।
  • यह रोग वंशानुगत भी होता है। घर के बड़े-बजुर्ग, ननिहाल, दादा या दादी में से, किसी को जब यह रोग हो तो उनके बच्चो को भी यह रोग हो सकता है। इस बीमारी का कोई एक खास कारण नहीं है।
  • व्यक्ति को अपनी प्रकृति के विरुद्ध भोजन करना भी रोग का कारण बन सकता है। वातावरण का परिवर्तन, जलवायु का परिवर्तन, ऋतु का परिवर्तन, रहने के मकान में परिवर्तन, सुगंधों में परिवर्तन-मतलब यह कि किसी को परिवर्तन ठीक बैठता है तो किसी के लिए दमा रोग का कारण बन जाता है। यदि किसी के रोग का कारण कोई एलर्जी हो तो फिर वंशानुगत वाली कोई बात नहीं होती हैं । दमा रोग के मानसिक कारण भी होते हैं। कोई चिंता, तनाव, क्रोध, भय आदि भी इस रोग के कारण हो सकते हैं। आम तौर पर, इस रोग का असर पूरे सालभर रहता है। मगर वर्षा ऋतु तथा सर्दियों में यह अधिक परेशान करता है। इसमें दौरे भी पड़ सकते हैं।
  • दमा रोग का कारण जानकर, बचाव करना ही सबसे बेहतर उपचार माना गया है। दवा और परहेज़ से हालत ठीक रहती है। हानिकारक कारणों को अपने जीवन से हटा दें। रोग के कारणों को हटा देने से कई बार रोगी सदा के लिए स्वस्थ भी हो जाता है। इसलिए गंभीर होकर रोग के कारण ढूँढे तथा उससे अपना बचाव करें।
  • अक्सर लोग ये सवाल पूछते हैं की क्या दमा पूरी तरह से ठीक हो सकता है ? तो इसका उत्तर यह है की ह्रदय रोग और मधुमेह की तरह अस्थमा भी लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है, जिसे लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है। कई रोगी जब खुद को बेहतर महसूस करते हैं तो दवा लेना छोड़ देते हैं जिससे यह रोग फिर से उभर आता है । हालाँकि कुछ डॉक्टर का दावा है की यह रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है खैर ये तो अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है लेकिन सही जानकारी के अनुसार जीवन जीने से दमे के मरीज भी अन्य सामान्य ब्यक्तियो की तरह अपना जीवन जी सकते हैं इसमें कोई शक नहीं है |

दमा (अस्थमा) के मरीज अपने बचाव के लिए किन बातों का ख्याल रखें  

  • प्राणायाम करें, जिससे सांस की नली और फेफड़ों में जमा कफ निकल जाएगा।
  • दौरा पड़ने पर पैर गर्म पानी में रखें।
  • घर की सफाई के वक्त मुंह पर मास्क या रूमाल लगाएं।
  • हमेशा इन्हेलर को अपने पास ही रखें खासकर रात में |
  • अस्थमा की रोकथाम के लिए घर को हमेशा साफ रखें ताकि धूल मिटटी से एलर्जी की संभावना न हो इसके लिए किसी अच्छी सी कंपनी का Air purifier खरीद लें इससे घर के अंदर धूल मिटटी का स्तर कम होगा तथा साफ़ हवा मिलेगी यदि आप किसी शहर में रहते है फिर तो इसे जरुर खरीद लें |
  • घर के अंदर गमलो में पेड़ पौधे भी लगा कर रखें बशर्ते की आपको इनसे एलर्जी ना हो |
  • चिंता का समाधान निकालकर सदा प्रसन्न रहने का प्रयत्न करें।
  • यदि खाँसी नहीं होगी तो दमे का जोर भी नहीं बढ़ेगा। इसलिए खाँसी को पहले शांत रखें। फिर दमा अपने आप शांत हो जाएगा। खाँसी का इलाज करने में कभी ढिलाई न करें। खाँसी के कारण को जरूर दूर करें।
  • अस्थमा की रोकथाम के लिए सुबह सूर्य निकलने के बाद बिस्तर छोड़कर खुली हवा में निकलें। सैर को जाएँ। ताजी हवा का सेवन करें। लंबी साँस लें। गहरी साँस अंदर तक उतरकर रक्त को स्वच्छ कर देगी। खुली हवा में जाकर प्राणायाम कर सकें तो जरूर करें। दमा रोग को शांत करने में यह बड़ा उपयोगी रहता है।
  • योगाचार्य से पूछकर, वे सब आसन अथवा क्रियाएँ करें, जिनसे फेफड़ों को फैलने का अवसर मिले। फेफड़ों का फैलना तथा सिकुड़ना रोग को शांत करने में बड़ी भूमिका अदा कर सकता है।
  • दमा का रोगी भारी काम न करे। अधिक परिश्रम से बचे। ऐसा कोई काम न करे जो साँस चढ़ाने, साँस फुलाने का काम करता हो। साँस फूलेगा तो दमे का दौरा पड़ सकता है जिससे रोग से लड़ने की क्षमता घटेगी। ऐसा रोगी बहुत लंबी, थकानेवाली सैर न करे, न ही ऐसे व्यायाम करे जो उसे थका दें। हल्की-हल्की थकावट तक की सैर, व्यायाम, योगासन ठीक रहते हैं।
  • जब थोड़ा पसीना आने लगे तो समझ लें कि आपकी क्षमता के अनुसार व्यायाम पूरा हो गया। तब बंद कर देना चाहिए।
  • पालतू जानवर से दूर रहें उनके झड़ते बालों से आपको समस्या हो सकती है |
  • सर्दी,फ्लूजुकाम आदि से अपना बचाव करें | सर्दियो में मुँह से साँस न लें क्योंकि मुँह से साँस लेने पर ठंड भीतर चला जाता है जो रोग को बढ़ाने में मदद करता है।

दमा (अस्थमा) के मरीज का आहार कैसा होना चाहिए

  • दमा के रोगी को अपना भोजन चुनते समय बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। जो सब खाते हैं, वही दमा का रोगी नहीं खा सकता। फिर एक दमे का रोगी जो खाता हो, वही सभी दमा-रोगियों के लिए सुपाच्य नहीं हो सकता। अपना स्वास्थ्य, रोग की स्थिति, शारीरिक परिश्रम, उम्र, स्थान आदि को ध्यान में रखकर, अपने विवेक से काम लेते हुए भोजन चुनें। आपका भोजन ही आपका बचाव है, उपचार है, ठीक रहने का साधन है।
  • दमा के रोगी को खाली दूध कभी नहीं लेना चाहिए। उसमें कुछ न कुछ डाल कर ही पीना चाहिए। ऐसा रोगी दही का सेवन बिल्कुल बंद कर दे। विशेषकर भैंस के दूध का दही । क्योंकि यह मरीज के लिए अधिक हानिकारक होती है।
  • दमा के रोगी को कभी भी पेट भरकर नहीं खाना चाहिए। आधा पेट भोजन से भरें। पेट का एक चौथाई भाग पानी के लिए खाली रखें तथा एक चौथाई भाग हवा के लिए। ऐसा करने से साँस लेना आसान हो जाएगा। रोग शांत रहेगा।
  • रात का खाना सोने से दो घंटे पहले करें। रात का खाना खाकर 100-150 कदम जरूर चलें।
  • भोजन में खटाई, मिर्च-मसाले तथा तले पदार्थ न लें। बहुत ठंडे पेय, जल या अन्य पेय पदार्थ न लें।
  • बासी भोजन न खाएँ।
  • भारी भोजन से बचें। यह भी जरुर पढ़ें – अस्थमा या दमे में क्या खाना चाहिए, क्या नहीं
  • भोजन आसानी से पचने वाला तथा हल्का ही किया करें।
  • फलों तथा सब्जी की भोजन में अधिकता रखें।
  • बेल के ताजे व कोमल पत्तों को जल से साफ करके, जल में देर तक उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को छानकर शहद मिलाकर सेवन करने से अस्थमा रोग में राहत मिलती है।
  • अस्थमा रोगी को कब्ज होने पर अधिक परेशानी होती है। बेल का मुरब्बा खाकर, गर्म दूध पीने से कब्ज ठीक होती है |

अन्य सम्बंधित पोस्ट 

New-Feed

Leave a Comment