आज के भाग-दौड़ भरी जीवन शैली के कारण हर दूसरा व्यक्ति चिंता, थकान, अनिद्रा, अवसाद, याददाश्त की कमी और माइग्रेन आदि मानसिक रोगों से जूझ रहा है। आधुनिकता ने हमारी जीवन शैली को बदलकर रख दिया है, उसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और आधुनिकीकरण ने दिन और रात के फर्क को खत्म कर दिया है। कार्यशैली में बदलाव आया है तो भागदौड बढ़ी है और इसके साथ ही बढ़ी है स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां भी। इन सब भागम भाग वाली जिंदगी से हर व्यक्ति तनाव में रहने लगा है और चिड़चिड़ेपन की आदत बढ़ने लगी है। इसी कारण अवसाद और अनिद्रा की बीमारी से सभी परेशान है। कुछ लोग इसके इलाज़ के लिए मनोचिकित्सक का सहारा भी ले रहे है। लेकिन आयुर्वेद के माध्यम से इन सब बीमारियों में बेहतर तरीके से काबू पाया जा सकता है। इसमे पंचकर्म की एक बहुत पुराने तरीके शिरोधारा विशेष रूप से लाभदायक है।
शिरोधारा क्या है ?
शिरोधारा- शिरो का अर्थ है सिर और, धारा का अर्थ है, प्रवाह। शिरोधारा को आयुर्वेद की सभी चिकित्साओं में सबसे उपयोगी माना गया है। यह एक पुरानी पंचकर्म की चिकित्सा विधि है जिसे भारत में लगभग 5,000 वर्षों से प्रयोग किया जा रहा है।
शिरोधारा कैसे की जाती है विधि –
शिरोधारा के लिए एक ऐसा लोहे का या मिट्टी का बर्तन लिया जाता है जिसके तल में छेद हो तथा इस छेद को एक डाट या ढक्कन से बंद किया जाता है, इस बर्तन को उस शैय्या पर लेटे हुए व्यक्ति के माथे के ऊपर लटकाया जाता है। औषधीय तेल, क्वाथ या दूध के रूप में औषधीय तरल को बर्तन में भरा जाता है, तथा इसके बाद इस तरल को व्यक्ति के मस्तिष्क पर चार अंगुल ऊपर से धार के साथ डाला जाता है। रोगी की आँखों में औषधि न जाए इसके लिए उसके सिर पर एक बैण्ड या तौलिया बाँध दिया जाता है। यह उपचार एक दिन में लगभग 45 मिनट तक दिया जाता है।
शिरोधारा के फायदे किन रोगों में है ?
- इसका प्रयोग बहुत सी परिस्थितियों में किया जा सकता है- जैसे कि माइग्रेन
- डिप्रेशन की समस्या होने पर शिरोधारा पंचकर्म बहुत लाभ पहुंचाती है |
- आँखों के रोग सायनासाइटिस, भूलने की बीमारी में, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, चेहरे का लकवा, पुराना सिरदर्द जैसे रोग जो दिमाग से जुड़े होते है |
- अधकपारी शिरोधारा मानसिक तनाव को करता है कम करता है |
- माइग्रेन शिरोधारा आयुर्वेद में एक ऐसी तकनीक है जो माइग्रेन ठीक करने में मदद करता है। यह माइग्रेन के दर्द को रोकता है।
- एकाग्रता शिरोधारा भटके हुए मन को एक जगह पर लाकर मन को एकाग्रता देता है। अंतर्ज्ञान को बढाता है।
- आध्यात्मिक जागरूकता शिरोधारा के द्वारा आध्यात्मिक जागरूकता में बढ़ोतरी होती है।
- अनिद्राशिरोधारा नींद ना आने की बीमारी को दूर करता है |
शिरोधारा में उपयोग होने वाले पदार्थ
- तक्रधारा – शिरोधारा में जब चिकित्सकीय प्रक्रिया के लिए विशेष विधि से निर्मित औषधयुक्त तक्र ( छाछ) का इस्तेमाल किया जाता है तो यह तक्रधारा कहलाती है | इसका प्रयोग मोटापा, बालो की समस्याओ में , रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए, सिरदर्द और त्रिदोषज रोगों में किया जाता है |
- तेलधारा – शिरोधारा के इस प्रकार में किसी विशेष रोग के लिए औषध युक्त तेल प्रयोग में लिया जाता है जिसकारण इसे तैलधारा कहते है |
- क्षीरधारा – क्षीर दूध को कहते है | क्षीरधारा को बलामूल, शतावरी मूल और दूध से बनाया जाता है | इसका इस्तेमाल उन्माद, अपस्मार,अनिद्रा और दाह रोगों में किया जाता है |
- जलधारा – औषधि युक्त गुनगुने जल से जब शिरोधारा की जाती है तो यह जलधारा कहलाती है |
कैसे कार्य करती है शिरोधारा
आयुर्वेद के अनुसार, वात एवं पित्त के असंतुलन से पीड़ित व्यक्तियों के लिए शिरोधारा अत्यधिक लाभदायक है। शिरोधारा में इस्तमाल की जाने वाली औषधियां व्यक्ति के दिमाग, सिर की त्वचा तथा तंत्रिका तंत्र को आराम तथा पोषण देता है तथा दोषों को संतुलित करता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली को (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) सुधारती है। शिरोधारा के दौरान, माथे पर गिरने वाले तेल की धार से एक निश्चित मात्रा में दवाब औरकंपन पैदा होता है। निरंतर हो रहे शोध में ये बात पता चली है की धारा से होने वाला कंपन थेलेमस तथा प्रमस्तिष्क के अगले भाग को सक्रिय करता है जिससे सेरोटोनिन तथा केटेकोलामाइन की मात्रा सामान्य स्तर पर आ जाती है और जिससे गहन निद्रा आने लगती है। लंबे समय तक लगातार रूप से औषधीय द्रव डालने से पड़ने वाला दवाब मन को शांति प्रदान करता है तथा कुदरती नींद का आनंद देता है। शिरोधारा से तंत्रिका तंत्र को आराम मिलता है, मस्तिष्क शांत होता है, थकान मिटती है, चिंता, अनिद्रा, पुराने सिरदर्द, घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है।
सावधानियाँ
शिरोधारा, विशेषज्ञ के द्वारा ही करवाना चाहिए, अन्यथा यह नसों को नुकसान पंहुचा सकता है।