पतंजलि दिव्य: स्वर्ण भस्म,च्यवनप्राश, बादाम पाक और शिलाजीत के लाभ

Reference – इस पोस्ट में पतंजलि दिव्य आयुर्वेद दवाओ की समस्त जानकारी बाबा रामदेव जी के दिव्य आश्रम प्रकाशन की पुस्तक (आचार्य बाल कृष्ण द्वारा लिखित “औषधि दर्शन”, मई २०१६ के २५ वें संस्करण से ली गई है )

Disclaimer – यह जानकारी केवल आपके ज्ञान वर्धन और दवाओ की जानकारी के लिए है | बिना चिकित्सक के परामर्श के दवाइयों का सेवन नहीं करना चाहिए |

पतंजलि दिव्य च्यवनप्राश के लाभ

मुख्य गुण-धर्म : –

  • च्यवनप्राश केवल रोगियों के लिए ही नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य के लिए भी उत्तम रसायन है। किसी भी कारण से उत्पन्न शारीरिक और मानसिक दुबलता को दूर कर फेफड़ों को मजबूत करता है तथा कफ विकारों को दूर कर शरीर को हृष्ट-पुष्ट बना देता है।
  • यह रस रक्तादि सातों धातुओं को पुष्ट करके बल, वीर्य, कान्ति, शक्ति और बुद्धि को बढ़ाता है। इसका सेवन बच्चे, स्त्री-पुरुष व वृद्धजन सभी समान रूप से कर सकते हैं।
  • सेवनविधि व मात्राः : एक से दो चम्मच अर्थात् डेढ़ से ढाई तोला, दिन में दो बार खाएँ। दूध आधे घण्टे बाद पिएं।

पतंजलि दिव्य बादाम पाक के लाभ

  • दिव्य बादाम पाक मुख्य गुण-धर्म : बादाम पाक एक पौष्टिक रसायन है। इसके सेवन से दिमाग एवं हृदय की दुर्बलता, पित्त-विकार तथा नेत्ररोग दूर होते हैं।
  • सिरदर्द के लिए यह चामत्कारिक औषधि है। दिमागी काम करने वालों को इसका सेवन अवश्य करना चाहिये।
  • इसके सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह बल, वीर्य और ओज की वृद्धि करता है।
  • ध्वजभंग, नपुंसकता, स्नायुदौर्बल्य में इसका सेवन अत्यंत लाभकारी है।
  • सेवनविधि व मात्राः 1 से 2 तोला (10-20 ग्राम) तक गाय के दूध या जल के साथ प्रात: व सायं सेवन करें।

पतंजलि दिव्य शिलाजीत सत् के लाभ

  • मुख्य द्रव्य स्त्रोत : यह हिमालय की ऊँची पर्वतमालाओं से स्रवित होने वाला एक दिव्य रस है, जिसमें प्राकृतिक रूप में ही सोना, चाँदी, लोहा आदि सप्त धातुओं का सूक्ष्म मिश्रण होता है।

मुख्य गुण-धर्म :

  • शिलाजीत की प्रशंसा करते हुए शास्त्रों में लिखा है— की इस संसार में रस धातु आदि की विकृति से पैदा हुआ ऐसा कोई भी रोग नहीं है, जो शिलाजीत के सेवन से नष्ट न हो सके।
  • देह को निरोग और सुदृढ़ बनाने के लिए शिलाजीत सर्वोत्तम रसायन है। यह सर्व प्रकार के जीर्ण, दु:खदायी रोग, मेद वृद्धि, मधुमेह व उससे आयी हुई अशक्तता को दूर करके शरीर को शक्तिसम्पन्न व कान्तियुक्त बनाता है।
  • कम्पवात, शोथ, जोड़ों का दर्द आदि सभी प्रकार के ददों को दूर करता है। टी. बी. (यक्ष्मा), हड्डियों की कमजोरी, शारीरिक दुर्बलता, धातुरोग, यौनशक्ति की कमी, डायबिटीज आदि अनेक रोगों की एक प्रभावशाली औषध है।
  • सभी स्त्री-पुरुष तथा रोग होने पर बच्चे भी इस औषध का सेवन कर सकते हैं। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि होती है।

सेवन विधि व मात्राः

  • 1 से 2 बूंद प्रात: एवं सायं दूध के साथ सेवन करें।
  • गर्मी की ऋतु में इसकी मात्रा मूंग के दाने (लगभग 65 मिग्रा) के बराबर लें क्योंकि आश्रम की शिलाजीत पूर्णत: शुद्ध होती है, अत: अत्यधिक प्रभावशाली है।
  • सर्दी के समय एक या दो चने (लगभग 125-150 मि.ग्रा) के बराबर ले सकते हैं।
  • जो दूध नहीं पीते, वे गुनगुने जल के साथ ही शिलाजीत ले सकते हैं।

समस्त रसों की सामान्य मात्रा एवं उपयोग-विधि :

  • रसौषधियाँ अति अल्प मात्रा में भी अत्यन्त प्रभावकारी होती हैं। अत: सभी रसौषधियों का प्रयोग उचित वैद्यकीय देख-रेख में या अन्य सहयोगी औषधियों के अनुपान के साथ सेवन करना चाहिए।

पतंजलि दिव्य महाविध्वंसन रस के लाभ 

पतंजलि दिव्य: स्वर्ण भस्म, च्यवनप्राश , बादाम पाक और शिलाजीत ले लाभ
Patanjali Ayurved
  • मुख्य गुण-धर्म : सभी प्रकार के जोड़ों के दर्द व वातरोगों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य योगेन्द्र रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : पक्षाघात, मिरगी, हृदयरोग, बेचैनी व मानसिक विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य रसराज रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : लकवा तथा अर्दित (मुख का पक्षाघात), स्नायुविकार, तन्त्रिका-विकार व मस्तिष्क विकारों में लाभप्रद एवं शरीर को तन्दुरस्ती प्रदान करने वाली।

पतंजलि दिव्य लक्ष्मीविलास रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सर्दी, खांसी, जीर्ण प्रतिश्याय, नाक के रोगों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य वसन्तकुसुमाकर रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : यह हृदय को बल देने वाला शक्तिवर्धक, बहुमूत्रता, हर प्रकार को प्रमेह, सोमरोग, श्वेतप्रदर, योनि तथा गर्भाशय विकारों, वीर्य विकारों को दूर करने वाला उत्तम तथा अद्भुत रसायन है। वीर्य की कमी से उत्पन्न क्षय रोग की यह उत्तम औषधि है।
  • इसके सेवन से हृदय एवं फेफड़ों की कमजोरी, शूल तथा दिमागी कमजोरी, भ्रम, रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, खून की कमी और बुढ़ापे की कमजोरी व रोग निवृत्ति के बाद की कमजोरी दूर होती है।
  • मधुमेह रोग की यह प्रसिद्ध औषधि है।
  • यह नेत्ररोग, केश रोग व अन्य उदर सम्बन्धी विकारों को दूर करता है व आयुवर्धक निरापद रसायन है।

सेवन विधि व मात्रा :

1 से 2 रत्ती (125–250 मि.ग्रा) तक मक्खन, मलाई, शहद या दूध के साथ इसका प्रयोग करें |

पतंजलि दिव्य एकांगवीर रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : कटिशूल, स्नायुशूल (नसों का दर्द), पक्षाघात व वातविकार में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य कामदुधा रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : अम्लपित्त, आन्त्रशोथ (आतों की सूजन) तथा उदर-विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य कुमारकल्याण रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सभी प्रकार के शिशु रोगों में लाभप्रद। बच्चों के आरोग्य वृद्धि एवं शारीरिक पुष्टि में सहायक।

पतंजलि दिव्य त्रिभुवनकीर्ति रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सर्दी, खांसी तथा ज्वर में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य प्रवाल पंचाम्रत रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : उदरविकार, अम्लपित्त तथा समस्त पाचन सम्बन्धी विकारों व शूल रोगों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य बृहत वातचिंतामणि रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : पक्षाघात तथा सभी प्रकार के जोड़ों के दर्द व वातरोगों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य स्वर्ण वसन्तमालती रस के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : शिथिलता, रोगप्रतिरोधक क्षमता का अभाव, बहुमूत्रता तथा राजयक्ष्मा में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य फलधृत के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : गर्भाशय विकारों तथा स्त्री रोगों में हितकर। गर्भधारण में बार-बार होने वाले गर्भपात में लाभप्रद।
  • उपयोग-विधि : 1 चम्मच प्रात: एवं सायं गुनगुने जल के साथ सेवन करें या चिकित्सक के परामर्शानुसार प्रयोग करें।

पतंजलि दिव्य महात्रिफलादिधृत के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : समस्त प्रकार को नेत्ररोग, दृष्टि-विकार, केशरोग, उदर रोग व शारीरिक शिथिलता में लाभकारी। उपयोग-विधि : 1 चम्मच प्रात: एवं सायं गुनगुने जल के साथ सेवन करें या चिकित्सक के परामर्शानुसार प्रयोग करें।

पतंजलि दिव्य षड्बन्दु तैल के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सिरदर्द, सर्दी, कफ व सभी तरह के नासागत रोग एवं साइनस के संक्रमण में लाभप्रद। उपयोग-विधि : 2-2 बूंद नाक में डालें या चिकित्सक के परामर्शानुसार उपयोग करें

पतंजलि दिव्य कासीस भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : रक्ताल्पता, यकृत्प्लीहा–वृद्धि आदि में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य कुलिया भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : मिरगी, उन्माद तथा नसों से सम्बन्धि विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य गोदन्ती भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सिरदर्द, ज्वर, खाँसी तथा अस्थमा में लाभप्रद। यह कैल्शियम का प्राकृतिक स्रोत है।

पतंजलि दिव्य टंकण भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : खाँसी, जुकाम, कफ विकार व छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय होने वाली परेशानी में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य ताम्र भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : कैंसर, ट्यूमर, किसी भी तरह की गाँठ तथा उदर सम्बन्धी विकारों में लाभपद्र।

पतंजलि दिव्य त्रिवंग भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : मधुमेह, स्त्री एवं पुरुष सम्बन्धित धातुरोग तथा मूत्र सम्बन्धी विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य मण्डूरं भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : यकृत्-विकारों, पीलिया, रक्ताल्पता तथा शोथजन्य विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य मुक्ताशुक्ति भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : उदरशूल, ज्वर तथा अम्लपित्त में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य रजत भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : इसका सेवन स्नायुविकार, वातरोग व मिरगी में लाभप्रद है।

पतंजलि दिव्य लोह भस्म के लाभ

  • मुख्य गुणा-धर्म : रक्ताल्पता, अम्लपित, पीलिया तथा अन्य उदर संबंधी विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य वंग भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : मधुमेह, मूत्र संस्थानगत रोग तथा नपुंसकता में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य शंख भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : उदर सम्बन्धी विकारों, अफारा, अपच जैसे जीर्ण रोगों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य स्फटिक भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : अति रक्तस्राव, खांसी, नासा गत रक्तस्राव तथा श्वास संबंधी विकारों में लाभप्रद। व्रणरोपक व व्रणशोधक।

पतंजलि दिव्य स्वर्ण माक्षिक भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : रक्ताल्पता, पीलिया, अनिद्रा, संधिगत दुर्बलता, स्नायुविष्कार तथा बारम्बार होने वाले ज्वर में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य स्वर्ण भस्म के लाभ

मुख्य गुण-धर्म :

  • सोना एक श्रेष्ठतम धातु है। अत: उससे प्राप्त भस्म भी शारीरिक और मानसिक विकृतियों का नाश करने में बहुत महत्वपूर्ण है। इसके सेवन से प्राय: सभी रोगों में चमत्कारिक लाभ होता है। से पीड़ित व अत्यन्त क्षीण अवस्था को प्राप्त रोगी, जो अन्य किसी औषधि से ठीक न हो रहा हो, स्वर्णघटित औषध के प्रयोग से ठीक हो जाता है।
  • स्वर्ण भस्म तेजस्वी होते हुए भी सौम्य पदार्थ है। यह दूषित रक्त को शुद्ध कर हृदय को पुष्ट करते हुए मस्तिष्क, स्नायु मण्डल, मूत्र पिण्ड और शरीर के अन्य अंगों पर एक प्रकार का स्फूर्ति दायक प्रभाव डालता है, जिससे शरीर की ओज-कान्ति बढ़ती है। शरीर में नूतन चेतना व मन में उमंग पैदा होती है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि कर, बढ़े हुए विजातीय तत्व को समाप्त करती है।

पतंजलि दिव्य हजरूलयहूद भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : मूत्रनली या गुर्दे की पथरी, मूत्र विसर्जन में कठिनाई तथा पेशाब में जलन आदि रोगों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य हीरक भस्म के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : कैंसर, सभी प्रकार के ट्यूमर तथा अत्यन्त शारीरिक दुर्बलता व नपुंसकता आदि के उपचार में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य अकीक पिष्टी के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : ज्वर तथा हृदय विकारों में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य कहरवा पिष्टी के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : खूनी पेचिश, अति रक्तस्राव व रक्तप्रदर आदि में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य जहरमोहरा पिष्टी के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : उच्च रक्तचाप में लाभप्रद, ह्रदय को बल देने वाली, विषनाशक निरापद औषधि है |

पतंजलि दिव्य प्रवाल पिष्टी के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : खाँसी, ज्वर, अस्थि मृदुता, शिथिलता तथा अम्लता में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य मुक्ता पिष्टी के लाभ

मुख्य गुण-धर्म :

  • यह रक्त पित्त , कमजोरी सिरदर्द पित्त के बढने जलन आदि को दूर करती है। इसके सेवन से पित्त की तीव्रता और अम्लता तुरन्त कम हो जाती है तथा नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
  • हृदय की बढ़ी हुई धड़कन एवं अनिद्रा रोग में मुक्ता पिष्टी से विशेष लाभ होता है।
  • मूत्रदाह, सर्वागदाह, निद्रा का अभाव, चिड़चिड़ापन आदि में मुक्ता पिष्टी के सेवन से शीघ्र लाभ मिलता है।
  • गर्मी के दिनों में कड़ी धूप में घूमने-फिरने या आग के पास ज्यादा देर काम करने से, नाक, मुँह तथा गुदा मार्ग से रक्त गिरने लगता है। साथ ही कपाल, नेत्र तथा सर्वाग में दाह होने लगता है। रोगी बेचैन हो जाता है।
  • ऐसे लक्षणों में मुक्ता पिष्टी का सेवन अति लाभकारी है। पित्तजन्य क्षय में जब दाह, तृष्णा, बुखार, बेचैनी आदि लक्षण हों तो मुक्ता पिष्टी का सेवन लाभदायक है।
  • अम्लपित्त में जब कण्ठ में जलन हो, खट्टी डकारें आती हों तो मुक्ता पिष्टी तुरन्त लाभ पहुँचाती है।

सेवन विधि व मात्राः :

  • 1 से 2 रती (125-250 मि.ग्रा) तक, मक्खन, मलाई, शहद, च्यवनप्राश, गुलकन्द, आंवले का मुरब्बा, ब्राह्मी शरबत आदि के साथ सेवन करें।

पतंजलि दिव्य श्वेत पर्पष्टी के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : मूत्र कृच्छ्, वृक्क व मूत्र नली की पथरी, पेशाब सम्बन्धी दाह को शान्त करने वाली तथा संग्रहणी में लाभप्रद।

पतंजलि पिष्टी और भस्मों के लाभ

  • समस्त पिष्टी व भस्मों की सामान्य मात्रा एवं उपयोग-विधि : शुद्ध एवं शास्त्रीय विधि से निर्मित भस्में अत्यन्त प्रभावकारी एवं रोगों को समूल नष्ट करने वाली होती हैं, भस्मों का सेवन उचित अनुपान, आयु व बल का विचार करके किसी योग्य चिकित्सक के परामर्श से ही करना चाहिए।
  • समस्त लौह-मण्डूर तथा रसायन, सिन्दूर की सामान्य मात्रा एवं उपयोग-विधि : – कुपीपक्व रसायन व सिन्दूर का प्रयोग दूसरी औषधियों के साथ अनुपान भेद व आयु एवं शारीरिक अवस्था को ध्यान में रखकर किया जाता है, अत: कुशल वैद्य के निरीक्षण में ही सेवन करें।

पतंजलि दिव्य ताल सिंदूर के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : श्वसनविकारों एवं त्वचा-रोगों में लाभदायक।

पतंजलि दिव्य पुनर्नवादि मंडूर के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : शोथ, रक्ताल्पता तथा प्लीहा–वृद्धि में लाभप्रद।

पतंजलि दिव्य मकरध्वज के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सामान्य स्वास्थ्य के लिए टॉनिक तथा कामशक्ति वर्धक।

पतंजलि दिव्य सप्तामृत लौह के लाभ

  • मुख्य गुण-धर्म : सभी प्रकार के दृष्टि तथा उदर-विकारों में लाभप्रद।

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