हाइपोग्लाइसीमिया क्या है, उपचार, कारण तथा शुगर लेवल कम होने पर बचाव के टिप्स

डायबिटीज के साथ जीवन में दो समस्याएं कभी भी आ सकती हैं। पहली जिसमें ब्लड शुगर अचानक कम हो जाती है; और दूसरी, जिसमें रोग के प्रति ढील बरतने से शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इन दोनों कठिन स्थितियों के लक्षणों को ठीक-ठीक पहचानना और उनके प्रति सजग रहना हर रोगी और उसके परिवारजनों के बहुत जरुरी है। हाइपोग्लाइसीमिया, हाइपरग्लाइसीमिया और मधुमेह संबंधी बेहोशी उस स्टेज को कहते हैं जब खून में ग्लूकोज़ की मात्रा सामान्य से घट जाती है या शुगर लेवल कम हो जाता है। वैसे तो हाइपोग्लाइसीमिया के कई कारण होते हैं, परंतु मधुमेह के मरीजो में इसके होने के प्रमुख कारण, लक्षण, प्राथमिक इलाज और शुगर कम होने पर क्या करे? ये जानकारी एक मधुमेही को जरुर होनी चाहिए | साथ ही लो शुगर के इलाज पूरी जानकारी देने का प्रयास भी करेंगे |

लो शुगर से मधुमेह में होने वाली बेहोशी 

  • डायबिटीज में बेहोशी की दो अवस्था में होती है। पहली अवस्था में खून में ग्लूकोस सामान्य से बहुत बढ़ जाती है और रोगी बेहोश हो जाता है। इसे (Hyperglycaemic Coma) कहते हैं |
  • दूसरे प्रकार की अवस्था में रक्त में शर्करा (ग्लूकोस) सामान्य से बहुत घट जाती है जिससे रोगी बेहोश हो जाता है। इसे ‘हाइपोग्लाइसीमिक (Hypoglycaemic Coma) कहते हैं |
  • जब खून में शुगर की मात्रा 70 मिली ग्राम से कम हो जाती है तो हाइपोग्लाइसेमिया और 50 मिली ग्राम से भी कम है तो ये सीवियर हाइपोग्लाइसीमिया माना जाता है |
  • स्वस्थ शरीर 60 mg/dl की ब्लड शुगर भी आसानी से सह लेता है। लेकिन डायबिटीज में शरीर बढ़ी हुई ब्लड शुगर का इतना आदी हो जाता है कि ब्लड शुगर का थोड़ा भी कम होना उसे सहन नहीं होता। ब्लड शुगर की यह सीमा हर किसी में थोड़ी अलग-अलग होती है और उसे किसी निश्चित आँकड़े में नहीं बाँधा जा सकता, लेकिन डायबिटीज में ब्लड शुगर के 60 या 70 mg/dl पर पहुँचने से पहले ही खतरे की घंटी बज जाती है।

शुगर लेवल कम होने (हाइपोग्लाइसीमिया ) के मुख्य कारण :

low blood sugar symptoms cause treatment in hindi हाइपोग्लाइसीमिया : शुगर लेवल कम होने के लक्षण, कारण, उपाय
हाइपोग्लाइसीमिया : शुगर लेवल कम होने के लक्षण, कारण, बचाव के उपाय
  • इंसुलिन या दवाई लेने के बाद भोजन न कर पाना।
  • हाइपोग्लाइसीमिया इंसुलिन लेने वाले मरीजों में अधिक होता है, पर कभी-कभी डायबिटीज-रोधी गोलियाँ लेने वाले मरीज भी इस इमरजेंसी में फँस जाते हैं।
  • व्रत-उपवास से भी यह परेशानी जन्म ले सकती है। साधारण इंसुलिन लेने वालों में अधिक इंसुलिन लेने से दो-तीन घंटों के बाद ही ब्लड शुगर घटने (हाइपोग्लाइसीमिया) के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। जैसे ही लक्षण दिखें, वैसे ही ग्लूकोज ले लेने से खतरा टाला जा सकता है। लंबे समय तक असर करने वाली इंसुलिन जैसे अल्ट्रालेंटे और पी.जेड.आई. इंसुलिन के साथ ढील बरतना अधिक खतरनाक होता है। उनका असर कई घंटों तक बना रहता है।
  • मधुमेह के मरीज का कभी भी अपने मन से दवा लेने और छोड़ने की आदत भी हाइपोग्लाइसीमिया का एक कारण है |
  • शुगर कम होने के कारणों में इंसुलिन या दवाई की मात्रा जरुरत से अधिक ले लेने पर या भूलवश दो बार ले लेना।
  • आवश्यकता से अधिक शारीरिक श्रम या कसरत, डायबिटिक बच्चों में अधिक खेलने से होने वाली थकान |
  • अत्यधिक शराब का सेवन करने और खाना नहीं खा पाने पर भी हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है
  • इंसुलिन को त्वचा के नीचे (सबक्सूटेनियस) लगाने के बजाय नस में (इन्ट्रावीनस) लगा देने पर।
  • रोजाना व्यायाम कम करने से डायबिटिक को इंसुलिन की ज्यादा जरूरत पड़ने लगती है | जो समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ती जाती है जो हाइपरग्लासीमिया को जन्म देती हैं |
  • ‘थायरोक्सीन’ नामक हार्मोन अपने स्वभाव से इंसुलिन विरोधी होता है। इसलिए थायरोक्सीन की मात्रा बढ़ने पर हाइपरग्लासीमिया हो जाता है |
  • कुछ डायबिटिक स्त्रियों में हाइपोग्लाइसीमिया गर्भावस्था में बन सकती है।
  • खान-पान संबंधी नियमों का पालन न करने पर भी हाइपरग्लासीमिया या बेहोशी हो जाती है।
  • ग्लूकोज़ घटने पर शरीर में फैट और प्रोटीन की टूट-फूट होने लगती है | वसा (फैट) के विकारों से शरीर में कीटोनी पदार्थ बनने लगते हैं, जो दिमाग को प्रभावित करके बेहोशी का कारण बनते हैं |
  • सल्फोनिलयूरिया वर्ग की डायबिटीज की दवाओं जैसे, ग्लाइबेनक्लेमाइड (डायोनिल), ग्लाइपीजाइड (ग्लाइनेज), ग्लाइक्लाजाइड (डायमाइक्रोन), ग्लाइमेपेराइड (ग्लिमर), टॉलब्यूटामाइड (रस्टीनॉन) और क्लोरप्रोपामाइड (डायबिनीज) के साथ भी ब्लड शुगर घटने की आशंका काफी होती है।

हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों पर एक नजर डालते हैं |  शुगर लेवल कम होने के लक्षण :

Low sugar Symptoms.

ज्यादातर लोगों को खून में ग्लूकोज़ की मात्रा बहुत कम हो जाने पर इसकी चेतावनी देने वाले लक्षण नजर आते हैं। शुगर कम होने के लक्षण इस प्रकार होते हैं :-

  • चक्कर आना या सिर घूमना
  • ज्यादा भूख महसूस होना
  • सिर में दर्द होना
  • पहले से ज्यादा पसीना आना
  • पैरों में लड़खड़ाहट
  • रंग पीला होना दिल की धड़कन तेज होना
  • शुगर कम होने पर स्पष्ट रूप से सोच न पाना या सोचने की शक्ति में कमी हो सकती हैं |
  • बोलने में कठिनाई का अनुभव, सिरदर्द |
  • हाथ-पैरों में कंपन |
  • जल्दी गुस्सा आना अजीब सा व्यवहार करना |
  • आँखों से धुंधला दिखाई देना ।
  • दिल की धड़कन तेज हो जाती है।
  • शरीर में कंपन | शरीर का ठंडा पड़ जाना |
  • उँगलियों में झुनझुनी महसूस होना |
  • शुगर कम होने पर चलने में लड़खड़ाहट या परेशानी होने लगती हैं |
  • शुगर कम होने पर सुस्ती और जरुरत से ज्यादा थकावट महसूस होना |
  • आंख के सामने अंधेरा छा जाना |
  • एक की बजाय चीजें दो-दो दिखाई देना |
  • और अंत में बेहोशी व मिर्गी जैसा दौरा पड़ना
  • बेहोशी छाने से पहले मरीज के चेहरे पर थकान दिखाई पड़ने लगती है। त्वचा शुष्क हो जाती है और चेहरा लाल हो जाता हैं ।
  • लो शुगर इफेक्ट्स के अन्य लक्षणों में प्यास बढ़ जाती है, और अधिक पानी पीने पर उल्टियां होने लगती हैं।
  • शुगर कम होने पर धीरे-धीरे घबराहट बढ़ने लगती है और नींद भी आने लगती है जो आखिरकार बेहोशी में बदल जाती है।
  • हाइपोग्लाइसीमिया होने पर शुरू में नाड़ी भी तेज होती है, पर बाद में धीमी पड़ जाती है। ब्लड प्रेशर गिरने लगता है, साँस की गति बढ़ती है और बाद में रूकावट पैदा हो जाती है।
  • नाक में फलों जैसी गंध आने लगती है जो कीटोनी पदाथों द्वारा उत्पन्न होती है। समय पर इलाज न मिलने पर मरीज की हालात और भी खराब हो सकती हैं |
  • ब्लड शुगर घटने (हाइपोग्लाइसीमिया) का असर व्यवहार पर भी पड़ सकता है। अच्छा-भला आदमी अपने स्वभाव के विपरीत अचानक लड़ाई-झगड़े और गाली गलौज पर उतर सकता है। अच्छे-बुरे की समझ गुम हो जाती है। कोई-कोई रोगी तो हिंसक तक हो उठता है। कुछ रोगी खासकर बच्चे अचानक ही बिल्कुल सुस्त हो जाते हैं। अब भी सुध न ली जाए तो बेहोशी छा जाती है, दौरे पड़ सकते हैं और व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। यह स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है।

हाइपोग्लाइसीमिया से बचाव और प्राथमिक चिकित्सा (First aid )

  • शुगर लेवल कम होने पर क्या करे – सबसे पहले यह जानना बहुत जरुरी होता है की ग्लूकोस कम होने से परेशानी है या ज्यादा होने से क्योंकि दोनों के लक्षण लगभग समान ही होते हैं | इसलिए यह सुनिश्चित करना बेहद जरुरी होता है की शुगर लेवल कम है या ज्यादा ताकि उसी के अनुसार जल्दी से उपचार के सही कदम उठाने शुरू किये जाएँ | यदि आपको ऐसी समस्या का सामना बार-बार करना पड़ता है तो, सबसे पहले आप हमेशा अपने साथ शुगर जांचने की मशीन जरुर रखें, आजकल बाजार में कई Portable Glucometer मौजूद है जो उपयोग करने में तथा साथ रखने में भी सुविधाजनक होते है |
  • आपके पास हमेशा खाने-पीने की कोई मीठी चीज होनी चाहिए, जिसे आप हाइपोग्लाइसीमिया होने पर इमरजेंसी में इसका इस्तेमाल कर सकें।
  • हाइपोग्लाइसीमिया से बचाव के लिए अधिक भारी काम या अचानक अधिक व्यायाम ना करें |
  • इंसुलिन मुंह से नहीं लें।
  • खाली पेट व्यायाम नहीं करें और उपवास या व्रत ना करें |
  • अपनी दिनचर्या ठीक रखनी चाहिए | एक निर्धारित समय पर ही खाए-पियें और दवा लें |
  • घाव को खुला नहीं छोड़ें। यह भी जरुर पढ़ें – डायबिटीज कंट्रोल रखती हैं ये फल और सब्जियां
  • दवाई की दुकान से बगैर सलाह के डाइबिटीज़ की गोली खरीदकर नहीं खाएं।
  • आपके दोस्तों और परिवार को लो शुगर के इलाज पूरी जानकारी होना जरूरी है कि जब भी आपको हाइपोग्लाइसीमिया हो जाए तो उसके लक्षण क्या हैं, और उसका फर्स्ट ऐड कैसे दिया जाये, क्योंकि खून में ग्लूकोज़ की मात्रा कम होने पर आप खुद ज्यादा सोचने की कंडिशन में नहीं होंगे।
  • कुछ लोगों को यह पता नहीं चलता कि उनके ग्लूकोज़ की मात्रा कब कम होती है। और वो हाइपोग्लाइसीमिया से प्रभावित हैं |
  • भूखे नहीं रहें। पानी की सतह के नीचे तैराकी व फैशन के लिए तंग व ऊंची एड़ी वाले जूते बिलकुल न पहनें। खासतौर पर वे जूते जो काटते हों और पैरो में घाव बना सकते हो ।
  • किसी दुर्घटना के बाद अगर आप कोई ट्रीटमेंट ले रहें है तो डॉक्टर को बता दें की आप मधुमेह से पीड़ित हैं।

हाइपोग्लाइसीमिया के उपचार और हाइपोग्लाइसीमिया की सावधानियां :

  • याद रहे, जो लोग इंसुलिन के इंजेक्शन लगाते हैं अथवा मधुमेह संबंधी अन्य दवाइयां खाते हैं उन्हीं लोगों में प्राय: ‘हाइपोग्लाइसीमिक कोमा” होता है। इसलिए इंसुलिन लगाने वाले रोगी को चाहिए कि वे हमेशा अपने साथ ग्लूकोज़ रखे-ताकि चक्कर आते ही ग्लूकोज़ खाने से बेहोशी रुक सके।
  • अगर आपको ठीक से पता न हो कि यह हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण ही है तो आपको अपने खून का परीक्षण करके उसमें ग्लूकोज़ की मात्रा को टेस्ट चाहिए।
  • कभी-कभी हाइपोग्लाइसीमिया होने पर आपके खून का अपने आप टेस्ट करना मुश्किल हो जाता है। यह काम आपके आसपास मौजूद लोग ही कर सकते है |
  • यदि मरीज होश में हो तो उसे ग्लूकोज़ का शरबत पिलाएं।
  • यह भी ध्यान रखें कि बेहोशी की हालत में उसके मुँह में बिल्कुल कुछ न डालें। जबरदस्ती मुँह में पानी उड़ेलने की कोशिश बिल्कुल न करें इससे मरीज का दम घुंट सकता है। डॉक्टर नसों के रास्ते ग्लूकोज़ देकर स्थिति को सँभालने की कोशिश करता है। ऐसे में ग्लूकागोन हार्मोन का इंजेक्शन लगाकर भी मरीज की जान बचाई जा सकती है। ग्लूकागोन इंसुलिन के बिल्कुल विपरीत काम करता है और ब्लड शुगर बढ़ा देता है। |
  • हाइपोग्लाइसीमिया से बेहोश होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। किसी से ग्लूकोज़ के इंजेक्शन इन्ट्रावीनस लगवाएं। पढ़ें यह पोस्ट डायबिटीज में इंसुलिन इंजेक्शन : तरीका, सावधानी, साइड इफ़ेक्ट |
  • हाइपोग्लाइसीमिया का ध्यान रखने के लिए और शुगर बढ़ाने के उपाय के लिए आपके पास ऐसी मीठी वस्तु अवश्य हमेशा होनी चाहिए, जो आपके खून में जल्दी पहुंच सके जैसे कि फलों के रस का एक गिलास, टॉफी या ग्लूकोज की गोलियां।
  • डायबिटीज रोगियों के लिए 1200 तथा 1800 कैलोरी का डाइट चार्ट 
  • इसके बाद रोगी को एक सैंडविच या बिस्कुट या फिर अनाज या फल का टुकड़ा खाने को दें।
  • हाइपोग्लाइसीमिया का इलाज न किए जाने पर आप बेहोश हो सकते हैं। उसके बाद आपका शरीर खून में जमा अपने ग्लूकोज़ के भंडार का प्रयोग करेगा ।
  • शुगर कम होने पर क्या करे – शुगर कम होने पर मरीज को तुरंत हॉस्पिटल में दिखाया जाना चाहिए और डॉक्टर को बताना चाहिए कि ये मधुमेह से पीड़ित है और हाइपोग्लाइसीमिया (शुगर कम होने) से बेहोश हो गये है।

हाइपोग्लाइसीमिया से बचने के कुछ अन्य सुझाव इस प्रकार हैं |

  • शुगर कम होने पर यह बेहोशी धीरे धीरे आती है, इसलिए जैसे ही लक्षण दिखाई पड़ते हैं, फर्स्ट ऐड लेने के बाद डॉक्टर के पास जाना चाहिए ।
  • शुगर के रोगी को थोड़ी -थोड़ी मात्रा में दिन में कई बार हल्का खाना लेना चाहिए | अधिक जानकारी के लिए पढ़े ये पोस्ट  डायबिटीज में क्या खाए और क्या नहीं-31 टिप्स |
  • सभी मधुमेह के रोगियों को हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों और इसके जाँच की विधि सीखनी चाहिए।
  • कोशिश यही होनी चाहिए कि हाइपोग्लाइसीमिया जीवन में कभी न आए। थोड़ा सा अनुशासन रखने से ही स्थिति सँभली रह सकती है। चाहे कितने ही व्यस्त हों, भोजन समय से करें। यह छोटी सी सावधानी हाइपोग्लाइसीमिया से बचा सकती है। इंसुलिन या डायबिटीज-रोधी गोलियाँ लेने में भी भूल-चूक माफ नहीं होती है और एक साथ बहुत मेहनत-मशक्कत और वर्क-आउट करने से भी ब्लड शुगर घट सकती है।
  • कभी भी इस असमंजस में न फंसे कि शायद ऐसे ही कुछ परेशानी हो रही है। यदि गलती भी हो गई और थोड़ी देर के लिए ब्लड शुगर बढ़ भी गई तो कोई मुश्किल नहीं होने वाली; पर कहीं ब्लड शुगर कम हुई तो देर होने से जान खतरे में पड़ सकती है।
  • जिनको बार-बार हाइपोग्लाइसीमिया होता हो तो ऐसे मरीजों को अकेले घर से बाहर जाने नहीं देना चाहिए और उनको वाहन भी अकेले नहीं चलाना चाहिए |
  • अपने परिवार के सदस्यों, संगी-साथियों और मित्रों को यह बताकर रखें कि कभी उन्हें आपके व्यवहार में बेतुकापन दिखे, तो गलत न समझें |
  • हाइपोग्लाइसीमिया के रेगुलर मरीजों की जेब में एक पहचान पत्र रखना चाहिए। इस पर उनका नाम, पता, टेलीफोन नंबर, डॉक्टर का नाम, रोग और दवा की जानकारी दी जानी चाहिए ताकि घर के बाहर समस्या पैदा होने पर जल्द ही इलाज शुरू किया जा सके।
  • हाइपोग्लाइसीमिया में आपके पास में कोई न हो तो आपातकालीन नंबर जैसे एम्बुलेंस, पुलिस को भी फोन करके मदद मांग सकते है हालांकि यह काम उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता है। पास में कोई डॉक्टर हो, तो उसे भी फोन कर सकते हैं। यह ध्यान रखें कि देर तक ब्लड शुगर कम बनी रहने से दिमाग की कोशिकाओं का हमेशा के लिए नुकसान हो सकता है, जिसकी फिर भरपाई मुश्किल होती है।
  • Benedict’s Qualitative Reagent से मूत्र परीक्षण (Urine Test) आसान है। यदि इस परीक्षण में गुलाब या लाल रंग दिखाई पड़े तो समझ लेना चाहिए कि बेहोशी निकट है, इसलिए जल्दी इलाज पर ध्यान देने की आवश्यकता हो जाती है।
  • इसके अलावा यदि पेशाब में कीटोनी पदार्थ पाए जाएं तो बेहोशी की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए ऐसी अवस्था में इलाज पर ध्यान देना चाहिए।
  • समुचित ध्यान देने और इन सब जानकारियों से मधुमेह संबंधी बेहोशी हाइपोग्लाइसीमिया से बचा जा सकता है। इससे बचाव आसान है। इसलिए समय-समय पर पेशाब की जाँच करते रहना चाहिए। हाइपोग्लाइसीमिया को हल्के में बिलकुल नहीं लेना चाहिए इसका तुरंत उपचार करवाना चाहिए।

डायबिटिक कीटो-एसिडोसिस के लक्षण

  • अधिक प्यास लगना बार-बार पेशाब आना बहुत कमजोरी महसूस होना
  • सुस्ती छाना पेशियों में दर्द होना सिर में दर्द होना
  • भूख न लगना जी कच्चा होना और उल्टियाँ होना
  • पेट में दर्द होना, साँस फूलना

उपचार–  कीटो-एसिडोसिस का उपचार अस्पताल या नर्सिंग होम में चौबीसों घंटे भर्ती होकर ही किया जा सकता है। स्थिति की पुष्टि के लिए पहले मूत्र और रक्त की जाँच की जाती है, और फिर तेजी से इलाज शुरू कर दिया जाता है। पूरी कोशिश होती है कि शरीर की बिगड़ी हुई जैव रासायनिकी को जल्द-से-जल्द सुधार लिया जाए, रक्त-अम्लता का स्तर फिर से सामान्य बनाया जाए और शरीर में आई पानी की कमी दूर की जाए। शरीर के किसी अंग में इंफेक्शन हो, तो उसे दूर करने के लिए भी उपयुक्त ऐंटिबायोटिक दवा दी जाती हैं। ब्लड शुगर पर नियंत्रण पाने के लिए इंसुलिन तथा शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट की कमी पूरी करने के लिए उनका घोल शिरा से चढ़ाया जाता है। शुरू के 24 घंटे ठीक-ठाक बीत जाएँ तो मरीज के बचने की आशा बढ़ती जाती है। लेकिन उसे पूरी तरह सुधरने में काफी समय लगता है।

Hyperglycaemic Coma होने का कारण :

  • जो Diabetic अपनी बीमारी पर पूरी तरह ध्यान नहीं देते या इलाज से जुडी सावधानियां नहीं बरतते हैं उनमें एकदम से ब्लड ग्लूकोस बढ़ जाने से ‘हाइपरग्लासीमिक कोमा’ (Hyperglycaemic Coma) की शिकायत हो जाती है। उनके ब्लड में ग्लूकोस की मात्रा सामान्य सीमाओं को पार कर जाती है और बेहोशी का कारण बन जाती है।

स्रोत : इस पोस्ट की कुछ जानकारी (Dr. Sudheer Jain (Diabetologist, Diabetes Specialist) के आर्टिकल से ली गई हैं |

अन्य सम्बंधित पोस्ट 

New-Feed

2 thoughts on “हाइपोग्लाइसीमिया क्या है, उपचार, कारण तथा शुगर लेवल कम होने पर बचाव के टिप्स”

  1. Mere father ko 12 years se sugar hai pair me ghav bhi hai 1 years se one week me sugar level low ho jata hai kaya karoo medicine chalu hai

    Reply

Leave a Comment